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ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के लिए याचिका दायर, 9 जनवरी को सुनवाई

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Published : Dec 13, 2019, 11:54 PM IST

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में एक याचिका दायर की गई है. यह याचिका प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर ने दायर की है, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की गई है.

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वाराणसी: अयोध्या में राम मंदिर पर फैसले के बाद अब द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से की गई. अपील पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया गया है.

पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग गलत
कोर्ट की ओर से अगली सुनवाई की तारीख 9 जनवरी 2020 को रखी गई है, लेकिन कोर्ट में आपत्ति दाखिल करने के पहले ही मस्जिद पक्ष की ओर से पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग को गलत बताया जा रहा है. काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है, जिसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत में चल रहा है.

ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के लिए याचिका दायर

1991 से दायर मुकदमे में यह मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन का अधिकार है. कोर्ट से यह मांग प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने दायर की थी. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद तथा अन्य विपक्षी भी हैं.

वादियों की हो चुकी है मौत
मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है, जिसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थना पत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है.

यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है. 15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अपील की है कि विभाग रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खुदाई कराकर रिपोर्ट मंगाए, जिस पर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है.

वादी विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि
मुस्लिम पक्ष की ओर से यह विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानी ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए, जिसके विरुद्ध हिंदू पक्ष की ओर से पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद पूरे विश्वनाथ मंदिर परिसर का ही एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति निर्धारण साक्ष्यों के आधार पर होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- अयोध्या भूमि विवाद : SC ने खारिज कीं सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं

अंजुमन इतजामिया मस्जिद के ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद मोहम्मद यासीन से ईटीवी भारत ने बात की. उन्होंने बताया कि वादी पक्ष की ओर से पुरातात्विक सर्वे कराने की मांग गलत है. उन्होंने कहा कि जब 1936 में फैसला कोर्ट सिविल जज ने कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद ऊपर से नीचे तक हल्फी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है. 1942 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस फैसले को बहाल रखा तो अब सर्वे का कोई मतलब नहीं है. यह सब कुछ फिजा खराब करने की कोशिश के तहत किया जा रहा है.

वाराणसी: अयोध्या में राम मंदिर पर फैसले के बाद अब द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से की गई. अपील पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया गया है.

पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग गलत
कोर्ट की ओर से अगली सुनवाई की तारीख 9 जनवरी 2020 को रखी गई है, लेकिन कोर्ट में आपत्ति दाखिल करने के पहले ही मस्जिद पक्ष की ओर से पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग को गलत बताया जा रहा है. काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है, जिसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत में चल रहा है.

ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के लिए याचिका दायर

1991 से दायर मुकदमे में यह मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन का अधिकार है. कोर्ट से यह मांग प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने दायर की थी. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद तथा अन्य विपक्षी भी हैं.

वादियों की हो चुकी है मौत
मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है, जिसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थना पत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है.

यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है. 15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अपील की है कि विभाग रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खुदाई कराकर रिपोर्ट मंगाए, जिस पर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है.

वादी विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि
मुस्लिम पक्ष की ओर से यह विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानी ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए, जिसके विरुद्ध हिंदू पक्ष की ओर से पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद पूरे विश्वनाथ मंदिर परिसर का ही एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति निर्धारण साक्ष्यों के आधार पर होना चाहिए.

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अंजुमन इतजामिया मस्जिद के ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद मोहम्मद यासीन से ईटीवी भारत ने बात की. उन्होंने बताया कि वादी पक्ष की ओर से पुरातात्विक सर्वे कराने की मांग गलत है. उन्होंने कहा कि जब 1936 में फैसला कोर्ट सिविल जज ने कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद ऊपर से नीचे तक हल्फी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है. 1942 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस फैसले को बहाल रखा तो अब सर्वे का कोई मतलब नहीं है. यह सब कुछ फिजा खराब करने की कोशिश के तहत किया जा रहा है.

Intro:खबर रैप से भेजी गई है।

वाराणसी: अयोध्या में राम मंदिर पर फैसले के बाद अब द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद पर सबकी निगाहे टिकी हुई है. इसी कड़ी में ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से अपील सिविल जज (सीनियर डिवीजन- फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थनापत्र देकर की गई है. कोर्ट की ओर से अगली सुनवाई की तारीख 9 जनवरी 2020 को रखी गई है, लेकिन कोर्ट में आपत्ति दाखिल करने के पहले ही मस्जिद पक्ष की ओर से पुरातात्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग को गलत बताया जा रहा है. मालूम हो कि काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है, जिसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत मे चल रहा है.Body:वीओ-01- 1991 से दायर मुकदमे यह मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है. जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन और मरमम्त का अधिकार है. कोर्ट से ये मांग प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने दायर किया था. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद तथा अन्य विपक्षी हैं.
मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है. जिसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थनापत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है. यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दिया है. 15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण तथा परिसर की खोदाई कराकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की। जिसपर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है. वादी विजय शंकर रस्तोगी बताते है कि मुस्लिम पक्ष की ओर से ये विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानि ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए. जिसके विरूद्द हिंदू पक्ष की ओर से अपने पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि पूरा विश्वनाथ मंदिर परिसर का ज्ञानवापी मस्जिद एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति के निर्धारण के लिए साक्ष्यों के आधार पर होना चाहिए. इसलिए पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लेने के लिए प्रथम अपर जनपद नयायाधीश द्वारा 1998 में आदेशित किया गया था. उसके विरूद्ध मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट में रिट याचिका में चली गई थी। इस कारण से इसकी कार्रवाई स्थगित हो गई थी काफी लंबे समय से. अब स्थगत आदेश समाप्त होने के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक तरिके से साक्ष्य लेने के लिए आर्किलाॅजिकल सोसाइटी आफ इंडिया, न्यू दिल्ली और पुरातत्व विभाग यूपी सरकार को रिट जारी कराकर न्यायालय के माध्यम से ये निवेदन किया गया है कि पुरात्तव विभाग रडार के जरिये और खुदाई करके स्वंभू विशेश्वर ज्योतिर्लिंग के विवादित स्थल के मध्य के गुंबद के स्थान के नीचे विराजमान हैं, उसको परिलक्षित करावे और पुरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लें. इसी के लिए प्रार्थनापत्र सिविल जज (सीनियर डिवीजन- फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में दाखिल किया गया था। जिसमें दूसरे पक्ष से भी आपत्ति मांगी गई है और 9 जनवरी 2020 को सुनवाई की तिथि कोर्ट ने निर्धारित की है.

बाईट- विजय शंकर रस्तोगी- वादी, पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल)Conclusion:वीओ-02 वहीं प्रतिवादी यानि मस्जिद की ओर के पक्ष ने फैसला लिया है कि वे अपनी आपत्ति 9 जनवरी 2020 को कोर्ट में दाखिल करेंगे और इसके लिए वे प्लेस आफ वर्शिप एक्ट को आधार बनाएगे. अंजुमन इतजामिया मस्जिद के ज्वाइंट सेकेरेट्री ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद 500 साल पहले की है. उऩ्होंने बताया कि वादी पक्ष की ओर से पुरातात्विक सर्वे कराने की मांग को गलत बताया और कहा कि जब 1936 में यह फैसला कोर्ट सिविल जज ने कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद ऊपर से नीचे तक हल्फी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की प्रापर्टी है और 1942 में इलहाबाद हाई कोर्ट ने उस फैसले को बहाल रखा तो अब सर्वे का कोई मतलब नही है. उसी फैसले को चैलेंज करना चाहिए था. उन्होंने आगे बताया कि जब अयोध्या फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रे आफ वर्शिप एक्ट को मान्यता दे दी है तो उसके बाद किसी चीज की जरूरत नहीं है. यासीन ने बताया कि ये सबकुछ फिजा खराब करने की कोशिश के तहत किया जा रहा है. यासिन आगे बताते है कि अभी ज्ञानवापी का चल रहा मामला 1991 में दाखिल किया गया था जिसमें 4 वादी थें.

बाईट- सैयद मोहम्मद यासीन- ज्वाइंट सेक्रेटरी, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद, वाराणसी

गोपाल मिश्र

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