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कश्मीर में संचार पर प्रतिबंध के संबध में आदेशों को दबाया गयाः अनुराधा भसीन

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Published : Oct 17, 2019, 9:44 PM IST

कश्मीर टाइम्स के कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने कश्मीर में संचार प्रतिबंध को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका आरोप है कि सरकार ने कश्मीर में संचार पर प्रतिबंध के संबध में आदेशों को दबा दिया है. पढ़ें पूरी खबर...

फाइल फोटो

नई दिल्लीः कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने अपने प्रत्युत्तर में सरकार पर आरोप लगाए हैं. इन्होंने कश्मीर में संचार पर प्रतिबंधों के खिलाफ याचिका दायर की थी.

उन्होंने कहा है कि सरकार ने कश्मीर में संचार पर प्रतिबंध के संबध में आदेशों, अधिसूचनाओं, निर्देशों, दस्तावेजों और परिपत्रों को दबा दिया है.

अनुराधा भसीन ने हलफनामें में कहा है कि, केंद्र ने प्रासंगिक आदेशों की संवैधानिकता पर संकल्प/आदेश से बचने के लिए याचिका दायर की है. साथ ही केंद्र वर्तमान आदेशों के बजाय अतीत की स्थितियों पर जोर दे रही है.

अनुराधा भसीन के हलफनामें में यह भी कहा गया है कि सरकार का दावा है कि घाटी में आतंकवाद और मिलिटेंसी कम हो गई है. लिहाजा शांति और व्यवस्था में गड़बड़ी के बारे में आशंका की जरूरत नहीं है.

पढ़ें-जम्मू-कश्मीर : हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादी गिरफ्तार

सरकार की तरफ से पेश हुए एसजी तुषार मेहता ने अदालत में प्रतिबंध को सही ठहराते हुए कहा कि 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद 3 महीने के लिए नाकाबंदी की गई थी.

हलफनामें में यह भी कहा गया है कि, संचार पर प्रतिबंध के प्रभव से कुछ दिन में व्यवसाय या पेशे के रूप अखबार प्रकाशित करना मुमकिन नहीं होगा. गौरतलब है कि कश्मीर टाइम्स की सिर्फ 500 प्रतियां प्रकाशित हो पाई हैं.

संचार प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 16 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. यहां पर आपको यह बता दें कि जम्मू-कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं बहाल कर दी गई है.

नई दिल्लीः कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने अपने प्रत्युत्तर में सरकार पर आरोप लगाए हैं. इन्होंने कश्मीर में संचार पर प्रतिबंधों के खिलाफ याचिका दायर की थी.

उन्होंने कहा है कि सरकार ने कश्मीर में संचार पर प्रतिबंध के संबध में आदेशों, अधिसूचनाओं, निर्देशों, दस्तावेजों और परिपत्रों को दबा दिया है.

अनुराधा भसीन ने हलफनामें में कहा है कि, केंद्र ने प्रासंगिक आदेशों की संवैधानिकता पर संकल्प/आदेश से बचने के लिए याचिका दायर की है. साथ ही केंद्र वर्तमान आदेशों के बजाय अतीत की स्थितियों पर जोर दे रही है.

अनुराधा भसीन के हलफनामें में यह भी कहा गया है कि सरकार का दावा है कि घाटी में आतंकवाद और मिलिटेंसी कम हो गई है. लिहाजा शांति और व्यवस्था में गड़बड़ी के बारे में आशंका की जरूरत नहीं है.

पढ़ें-जम्मू-कश्मीर : हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादी गिरफ्तार

सरकार की तरफ से पेश हुए एसजी तुषार मेहता ने अदालत में प्रतिबंध को सही ठहराते हुए कहा कि 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद 3 महीने के लिए नाकाबंदी की गई थी.

हलफनामें में यह भी कहा गया है कि, संचार पर प्रतिबंध के प्रभव से कुछ दिन में व्यवसाय या पेशे के रूप अखबार प्रकाशित करना मुमकिन नहीं होगा. गौरतलब है कि कश्मीर टाइम्स की सिर्फ 500 प्रतियां प्रकाशित हो पाई हैं.

संचार प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 16 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. यहां पर आपको यह बता दें कि जम्मू-कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं बहाल कर दी गई है.

Intro:Kashmir Times Executive Editor Anuradha Bhasin, one of the petitioners challenging communication blockade in Kashmir, has alleged in her rejoinder that the government has supressed relevant orders, notifications, directions , documents and circulars regarding internet and communications shutdown in Kashmir.


Body:Bhasin's affidavit states that the centre has "filed evasive pleadings to avoid a determination on the constitutionality of the relevant orders, while emphasizing situations of the past rather than the present."

The affidavit also says that as the government claims that terrorism and millitancy has reduced in the valley there is no need to have apprehensions about disturbance in peace and order. SG Tushar Mehta appearing for the government had said that in the court, justifying the shutdown, that in 2016 after killing of Burhan Wani there was blockade for 3 months. Bhasin has countered this argument by her reply.

Affidavit also stated that "the delibating impact of the communication shutdown is such that newspaper publishing will soon become unsustainable as a business or profession." Only 500 copies of Kashmir Times could be published.


Conclusion:A bunch of petitions challenging the communication shutdown are listed for hearing on 16th October. Although post paid mobile services are restored in the valley today.
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