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एमनेस्टी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर एनआईए की कार्रवाई की निंदा की

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में नागरिक समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ एनआईए की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की है.

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एमनेस्टी इंटरनेशनल
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Published : Oct 31, 2020, 5:26 PM IST

नई दिल्ली: मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में नागरिक समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ एनआईए की कार्रवाई की निंदा की है. साथ ही एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार से इस तरह की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की है.

बता दें कि हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने देशभर में कई स्थानों पर नागरिक समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के घरों व परिसरों में छापेमारी की थी.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की कार्यवाहक महासचिव जूली वेरहार ने कहा कि यह छापेमारी एक खतरनाक संकेत है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में सभी असंतुष्ट आवाजों को दबाने पर तुली है.

एनआईए की कार्रवाई पर एमनेस्टी की टिप्पणी
एनआईए की कार्रवाई पर एमनेस्टी की टिप्पणी

मानवाधिकार संस्था ने कहा कि एनआईए ने प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज और उनके तीन सहयोगियों तथा परवीना अहंगर के आवास और कार्यालयों पर छापेमारी की थी.

बता दें कि परवीना अहंगर एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) की चेयरपर्सन तथा खुर्रम परवेज जेएंडके कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (जेकेसीसीएस) के संयोजक हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि दोनों संगठनों ने कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन, अनिश्चितकालीन प्रशासनिक नजरबंदी, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन और हिरासत में लोगों पर अत्याचार के मामलों को व्यापक रूप से उठाया है.

जूली वेरहार ने कहा कि जांच एजेंसियां इन सिविल सोसाइटी ग्रुप और मीडिया समूहों को उनकी रिपोर्टिंग को लेकर लगातार निशाना बना रही हैं, क्योंकि वे जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक बात है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और विदेशी फंडिंग कानून को हथियार बनाकर नागरिक समूहों को डराया और परेशान किया जा रहा है, जो अभिव्यक्ति और एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.

वेरहार ने कहा कि एक अक्टूबर, 2020 से एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के काम पर रोक लगाने और उसके कर्मचारियों को देश छोड़ने के आदेश के बाद यह छापेमारी की गई. क्योंकि इस आदेश के बाद एमनेस्टी ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार पर एक रिपोर्ट जारी की थी.

बता दें कि भारत सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है.

सितंबर 2020 में, एपीडीपी ने पीड़ितों की लगभग 40 गवाही प्रस्तुत की थी, जिन्हें कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा मनमानी हिरासत में रखा गया था और यातनाएं दी गई थीं.

वहीं, पांच अगस्त को, जेकेसीसीएस ने अपनी द्वि-वार्षिक मानवाधिकार समीक्षा प्रकाशित की थी, जिसमें कम से कम 32 व्यक्तियों के एक्स्ट्रा जूडिशल एग्जीक्यूशन और क्षेत्र में इंटरनेट शटडाउन के प्रभावों को शामिल किया गया था.

यह भी पढ़ें- आतंकवाद वैश्विक चिंता का विषय, इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत : पीएम मोदी

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि 2014 के बाद से, कई संगठनों को विदेशी फंडिंग कानून के तहत निशाना बनाया गया है, जिनमें ग्रीनपीस इंडिया, लॉयर्स कलेक्टिव, सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ सोशल कंसर्न, सबरंग ट्रस्ट और कई अन्य शामिल हैं. सितंबर 2020 में, कोविड-19 महामारी के बीच, भारत में नागरिक समाज का गला घोंटने के लिए बिना किसी सार्वजनिक परामर्श के विदेशी फंडिंग कानून (एफसीआरए) में फिर से संशोधन किया गया.

नई दिल्ली: मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में नागरिक समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ एनआईए की कार्रवाई की निंदा की है. साथ ही एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार से इस तरह की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की है.

बता दें कि हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने देशभर में कई स्थानों पर नागरिक समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के घरों व परिसरों में छापेमारी की थी.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की कार्यवाहक महासचिव जूली वेरहार ने कहा कि यह छापेमारी एक खतरनाक संकेत है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में सभी असंतुष्ट आवाजों को दबाने पर तुली है.

एनआईए की कार्रवाई पर एमनेस्टी की टिप्पणी
एनआईए की कार्रवाई पर एमनेस्टी की टिप्पणी

मानवाधिकार संस्था ने कहा कि एनआईए ने प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज और उनके तीन सहयोगियों तथा परवीना अहंगर के आवास और कार्यालयों पर छापेमारी की थी.

बता दें कि परवीना अहंगर एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) की चेयरपर्सन तथा खुर्रम परवेज जेएंडके कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (जेकेसीसीएस) के संयोजक हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि दोनों संगठनों ने कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन, अनिश्चितकालीन प्रशासनिक नजरबंदी, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन और हिरासत में लोगों पर अत्याचार के मामलों को व्यापक रूप से उठाया है.

जूली वेरहार ने कहा कि जांच एजेंसियां इन सिविल सोसाइटी ग्रुप और मीडिया समूहों को उनकी रिपोर्टिंग को लेकर लगातार निशाना बना रही हैं, क्योंकि वे जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक बात है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और विदेशी फंडिंग कानून को हथियार बनाकर नागरिक समूहों को डराया और परेशान किया जा रहा है, जो अभिव्यक्ति और एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.

वेरहार ने कहा कि एक अक्टूबर, 2020 से एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के काम पर रोक लगाने और उसके कर्मचारियों को देश छोड़ने के आदेश के बाद यह छापेमारी की गई. क्योंकि इस आदेश के बाद एमनेस्टी ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार पर एक रिपोर्ट जारी की थी.

बता दें कि भारत सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है.

सितंबर 2020 में, एपीडीपी ने पीड़ितों की लगभग 40 गवाही प्रस्तुत की थी, जिन्हें कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा मनमानी हिरासत में रखा गया था और यातनाएं दी गई थीं.

वहीं, पांच अगस्त को, जेकेसीसीएस ने अपनी द्वि-वार्षिक मानवाधिकार समीक्षा प्रकाशित की थी, जिसमें कम से कम 32 व्यक्तियों के एक्स्ट्रा जूडिशल एग्जीक्यूशन और क्षेत्र में इंटरनेट शटडाउन के प्रभावों को शामिल किया गया था.

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एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि 2014 के बाद से, कई संगठनों को विदेशी फंडिंग कानून के तहत निशाना बनाया गया है, जिनमें ग्रीनपीस इंडिया, लॉयर्स कलेक्टिव, सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ सोशल कंसर्न, सबरंग ट्रस्ट और कई अन्य शामिल हैं. सितंबर 2020 में, कोविड-19 महामारी के बीच, भारत में नागरिक समाज का गला घोंटने के लिए बिना किसी सार्वजनिक परामर्श के विदेशी फंडिंग कानून (एफसीआरए) में फिर से संशोधन किया गया.

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