नई दिल्ली : अमेरिका के बड़े शहरों के निजी और वाणिज्यिक भवनों पर लगे बोर्डिंग के दृश्य देखकर बहुत अधिक हिंसा होने का डर लगेगा क्योंकि अभी जो चुनाव हो रहा है वह अभूतपूर्व है. अमेरिका में पूअमेरिका के बड़े शहरों के निजी और वाणिज्यिक भवनों पर लगे बोर्डिंग के दृश्य देखकर बहुत अधिक हिंसा होने का डर लगेगा क्योंकि अभी जो चुनाव हो रहा है वह अभूतपूर्व है. अमेरिका में भारतीय राजदूत रहीं मीरा शंकर ने कहा कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में यह अभूतपूर्व स्थिति है.
डोनाल्ड ट्रम्प के अभूतपूर्व राष्ट्रपतित्व काल में संस्थागत साख उठ गया है और अपने अनुयायियों से उन्होंने आह्वान किया है कि यदि चुनाव परिणाम उनके दूसरे कार्यकाल के लिए जीत की घोषणा नहीं करते हैं तो वे परिणामों को अस्वीकार कर दें. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा से बात करते हुए पूर्व राजदूत शंकर ने यह भी उल्लेख किया कि इस तरह से अमेरिकी समाज का ध्रुवीकरण किया गया है जैसा पहले कभी नहीं किया गया था.
दोनों मुख्यधारा की पार्टियों में मध्यमार्गी स्वर पहले विदेशी और आर्थिक नीति को लेकर राष्ट्रीय सहमति से काम करती रही हैं. अब दोनों पार्टियां केंद्र से अलग होकर चरम दक्षिण पंथी या चरम वामपंथी मत जाहिर कर रही हैं. इस विशेष साक्षात्कार में पूर्व राजनयिक ने ट्रम्प और बाइडेन के अलग-अलग नजरिए के बारे में भी बताया. यह भी बताया कि अमेरिका में बहुदलीय व्यवस्था क्यों पसंद नहीं किया गया और अन्य मुद्दों के साथ चुनाव की भविष्यवाणी और स्विंग करने वाले राज्यों को किस तरह से देखा जाए. यहां उनसे बातचीत की लिखित प्रति है.
पश्न : विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र में चुनाव दिवस पर बड़े पैमाने पर हिंसा और तनाव की आशंकाओं पर आपके विचार ?
स्पष्ट रूप से यह ऐसी चीज है जो पहले कभी नहीं हुई है. किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि अमेरिका की संस्थागत लोकतांत्रिक साख को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन इसका बहुत कुछ हिस्सा उस अभूतपूर्व राष्ट्रपति से मिला है जो उनके पास हैं.
राष्ट्रपति ट्रम्प ने खुद अपने बयानों में कहा है कि अगर डेमोक्रेट्स चुनाव परिणाम धोखे से हासिल कर लेते हैं तो वे चुनाव के उन परिणामों को स्वीकार नहीं करने जा रहे है. वे यह भी कह चुके हैं कि मेल से मतदान या इस तरह की और चीजें धोखाधड़ी के स्रोत हैं. ऐसा मूल रूप से इस वजह से क्योंकि वे उन राजनीतिक खिलाड़ियों में से एक है जो खुद को दौड़ में पीछे पा रहे हैं, इसलिए चुनाव की वैधता और चुनाव की प्रामाणिकता पर पहले से ही सवाल उठा रहे हैं.
इसलिए उनके समर्थक भी इसी तरह से उन्मादित हो रहे हैं जैसे दक्षिणपंथी मिलिशिया अपनी बंदूकों में तेल पिलाया है. वैसे भी यह प्रोत्साहन ऐसी चीज नहीं है जो स्वर्ग से मिली हो. यह इस स्तर पर इस वजह से उतर गया है क्योंकि उम्मीदवारों में से एक ने इसे अपनी चुनावी रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया है.
प्रश्न : अतीत में भी कुछ कड़वे मुकाबले होते रहे हैं लेकिन क्या वर्ष 2020 का चुनाव अमेरिकी इतिहास में एक क्रांतिकारी बदलाव है ?
हां, दो अलग-अलग नजरिया और दर्शन हैं जिन्हें दोनों उम्मीदवारों ने पेश किया है. ये आर्थिक नीति हो, स्वास्थ्य के मुद्दों पर हो, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा नीति के मुद्दों पर हो या विदेश नीति पर हो. आपके पास बहुत अलग-अलग दृष्टिकोण वाले दो उम्मीदवार हैं. हर कोई अमेरिकी जनता को समझाने की कोशिश कर रहा है कि उनका दृष्टिकोण सही है. यह इस बात को भी दर्शाता है कि हाल के वर्षों में अमेरिका कितना ध्रुवीकृत हो गया है.
अतीत में आपके पास हमेशा मध्यमार्गी डेमोक्रेट और मध्यमार्गी रिपब्लिकन का एक समूह होता था जो विदेश और आर्थिक नीति पर आम सहमति बनाने के लिए पूरे समय एक दूसरे के साथ काम कर सकते थे. अब वह केंद्रीय आधार जहां इस राष्ट्रीय सर्वसम्मति को आकार दिया जा सकता था, वाष्पित होकर उड़ गया है. दोनों दल बहुत अलग दिशाओं में चल रहे हैं. एक तरफ रिपब्लिकन पार्टी को टी-पार्टी आंदोलन के जरिए कब्जा कर लिया गया है जिसने एक तरह के दक्षिणपंथी देश विरोधी रुढ़िवाद को पेश किया है.
दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी में आपके पास लेफ्ट विंग है जो काफी मुखर हो गया है और कई युवा जो डेमोक्रेटिक पार्टी से कांग्रेस और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में आए हैं, लेफ्ट विंग से हैं. इसलिए दोनों पक्ष अलग-अलग दिशाओं में एक-दूसरे को खींचते हुए लग रहे हैं. बाइडेन एक मध्यमार्गी हैं. ट्रम्प को बाहर रखने के उनके प्रयास में डेमोक्रेटिक पार्टी अब तक एकजुट है. यहां तक कि लेफ्ट विंगर्स बर्नी सैंडर्स ने भी उम्मीदवारी के लिए बाइडेन को तहे दिल से समर्थन दिया है. लेकिन एक बार जब चुनाव खत्म हो जाता है और बाइडेन जीत जाते हैं तो उसके पास एक आमसहमति को चुनौती देने और अपने स्वयं के बचे हुए लेफ्ट विंगर्स को साथ ले जाने की चुनौती पेश होने वाली है और साथ ही साथ ट्रम्प के खिलाफ बहुत ही मुखर रहे रिपब्लिकन पार्टी का उदारवादी विंग है.
पारंपरिक रिपब्लिकन प्रतिष्ठान वे हैं, जिन्होंने रीगन या जॉर्ज बुश सीनियर या जॉर्ज बुश जूनियर के साथ काम किया है, उनमें से कई ट्रम्प के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं और वे अब्राहम लिंकन के नाम वाले लिंकन प्रोजेक्ट को चला रहे हैं. वे खुलकर प्रचार कर रहे हैं, ट्रम्प के खिलाफ विज्ञापन निकाल रहे हैं और इन चुनावों में बाइडेन के लिए वोट देने की बात कह रहे हैं. ट्रम्प का अपना निर्वाचन क्षेत्र ठोस दक्षिणपंथी निर्वाचन क्षेत्र है और बहुत दृढ़ता के साथ उनके समर्थन में है.
सबसे खराब समय में भी उनके अनुमोदन की 42 फीसद रेटिंग है. इसी बिंदु के आसपास उनकी अनुमोदन रेटिंग बहुत स्थिर बनी हुई है. वह कानून और व्यवस्था के इस कार्ड को खेल रहे हैं क्योंकि नस्ली प्रदर्शनों के कारण उथल-पुथल से डरे हुए हैं और कुछ ऐसे श्वेत मतदाताओं को वापस पाने की कोशिश के तहत हैं जिन्होंने उन्हें छोड़ दिया है. इसके साथ ही ट्रंप ने अफ्रीकी या लातीनी मतदाताओं के लिए एक आर्थिक पिच बनाते हुए कहा है कि कोविड से पहले मेरे कार्यकाल में उनकी बेरोजगारी शायद सबसे कम थी.
प्रश्न : अमेरिकी में एक बहुदलीय व्यवस्था क्यों नहीं विकसित की गई ?
मुझे लगता है कि उन्हें दो पार्टी प्रणाली को संभालने में मुश्किल हो रही है. उनके पास स्वतंत्र उम्मीदवार हैं जो राष्ट्रपति पद के लिए खड़े हैं. आपने पहले अल गोर के समय में देखा है. पिछली बार भी आपके पास एक स्वतंत्र उम्मीदवार था जो कि हिलेरी के खिलाफ खड़ा था. लेकिन मुख्यधारा की अमेरिकी राजनीति वास्तव में इन दोनों पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है और दूसरों ने इसमें बहुत ज्यादा सेंध नहीं लगाई है. दोनों ही पक्षों ने विभिन्न मतों को शामिल किया है तो उस तरह की राय विविधता को दर्शाता है. चाय पार्टी अलग नहीं है. यह रिपब्लिकन पार्टी का हिस्सा है. जिस तरह डेमोक्रेटिक पार्टी में लेफ्ट विंग यानी प्रगतिवादी हैं, वे अलग नहीं हैं.
प्र. - अमेरिकी चुनाव सर्वेक्षकों और पंडितों में क्या मतभेद है कि लगातार दूसरे चुनाव के राष्ट्रीय सर्वेक्षण में इसे गलत पा रहे हैं कि जो बाइडेन को महत्वपूर्ण बढ़त मिल रही है ?
अधिकांश चुनावी सर्वेक्षण राष्ट्रीय स्तर पर बाइडेन को बढ़त दिखा रहे हैं. यदि आप उन सर्वेक्षणों को देखे जो पिछले सप्ताह या पिछले 15 दिनों में किए गए तो सभी सर्वेक्षणों का औसत करने पर राष्ट्रीय स्तर पर बाइडेन को 7. 8 से 10 फीसद के बीच बढ़त दे रहे हैं.
सवाल यह है कि यह उन मतों का बहुमत नहीं है जो निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति कौन होगा. यह निर्वाचक मंडल के मतों का बहुमत है और ये राज्यवार चुनाव हैं. पिछली बार हिलेरी को हार का सामना करना पड़ा, हालांकि उन्हें राष्ट्रपति ट्रम्प की तुलना में लगभग 30 लाख से अधिक लोकप्रिय वोट मिले थे लेकिन वह इसलिए हार गईं क्योंकि उन्हें कॉलेज के कम वोट मिले थे. वे स्विंग वाले राज्य पेंसिल्वेनिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन में हार गईं, जिन्हें पारंपरिक रूप से डेमोक्रेट का ठोस आधार माना जाता था.
लेकिन ट्रम्प अमेरिका पहले, आर्थिक संरक्षणवाद और अमेरिका में नौकरियां वापस लाने के अपने संदेश से पारंपरिक रूप से डेमोक्रेट्स और श्वेत श्रमिक वर्ग को लुभाने में सफल रहे. अमेरिका में एक निर्वाचन क्षेत्र है जो वैश्वीकरण के कारण पीछे छूट गया है और इसने उनके लाभ के लिए काम नहीं किया है. इसने विनिर्माण की नौकरियों चीन को और बहुत सारे अन्य आईटी या सॉफ्टवेयर की नौकरियों को भारत स्थानांतरित कर दिया है. यह अमेरिका में मजदूरी बढ़ाने पर भी दबाव बढ़ा रहा है क्योंकि यदि श्रमिक वेतन बढ़ाने के लिए कहते हैं तो कंपनी कहती है कि हम प्रतिस्पर्धा में नहीं रह पाएंगे इसलिए हम निर्माण के काम को दूसरे देशों में शिफ्ट करेंगे.
अमेरिका में एक पूरा निर्वाचन क्षेत्र है जो वैश्वीकरण के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इसलिए वह भागकर ट्रम्प के पास गया. यहां बाइडेन को हिलेरी पर बढ़त हासिल है क्योंकि उनकी खुद की पृष्ठभूमि श्रमिक वर्ग की है. अभी के सर्वेक्षणों ने उन्हें मिशिगन, विस्कॉन्सिन में आराम से आगे दिखाया है. पेंसिल्वेनिया में यह बढ़त मात्र 5.5 फीसद है. फिर यदि आप फ्लोरिडा और जॉर्जिया को लेते हैं, तो बाइडेन के पास बढ़त 2 फीसद की है. इसलिए ये अच्छी तरह से गलतियों के दायरे में है और ये ऐसे राज्य हैं जिन पर ट्रम्प ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.