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किसान संगठनों पर चक्रव्यूह रचने का प्रयास : श्रवण सिंह पंढेर

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य श्रवण सिंह पंढेर ने कहा कि सरकार की तरफ से एक खत आया कि अगर आप कृषि कानून वापस लेने वाली बात से पीछे हटकर संशोधन करने के लिए बात करना चाहते हैं, तो समय और तारीख दो. किसान संगठनों पर चक्रव्यूह रचने का प्रयास किया जा रहा है.

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य श्रवण सिंह पंढेर
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य श्रवण सिंह पंढेर
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Published : Dec 22, 2020, 6:11 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 27 दिनों से गतिरोध जारी है. केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच छह दौर की वार्ता होने के बावजूद गतिरोध बना हुआ है. किसान नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार को तीनों कानूनों को निरस्त करना ही होगा. दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि जिन प्रावधानों को लेकर आपत्ति है उनमें संशोधन किया जाएगा.

ताजा घटनाक्रम में किसान नेता श्रवण सिंह पंढेर ने कहा है कि यह सरकार द्वारा यह एक कदम आगे नहीं है, बल्कि किसानों को बरगलाए जाने का एक तरीका है. एक सामान्य व्यक्ति यह सोचता है कि किसान जिद्दी हैं, लेकिन तथ्य यह है कि हम कृषि कानूनों में संशोधन नहीं चाहते हैं, हम चाहते हैं कि वे पूरी तरह से दूर हो जाएं.

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य श्रवण सिंह पंढेर का बयान

दरअसल, सरकार और किसान नेताओं के बीच बीते 8 दिसंबर को अंतिम बार वार्ता हुई थी. इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लगभग दर्जनभर किसान नेता शरीक हुए थे. इसके बाद किसान नेताओं ने कहा कि सरकार के अड़ियल रवैये के कारण कोई वार्ता नहीं की जाएगी.

गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से ही कई किसान संगठन दिल्ली-हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर व उत्तर प्रदेश से लगती सीमा पर धरना दे रहे हैं. इस संबंध में संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं करती, उनका विरोध जारी रहेगा.

दिलचस्प है कि कृषि मंत्री तोमर ने गत 17 दिसंबर को एक पत्र लिखकर किसानों से गतिरोध समाप्त करने की अपील की थी. तोमर ने अपने पत्र में 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध का भी जिक्र किया था. उनके पत्र को पीएम मोदी ने रीट्वीट कर कहा था कि कृषि मंत्री ने अपनी भावनाएं किसानों के सामने रखी हैं, तोमर के पत्र को अन्नदाता जरूर पढ़ें.

यह भी पढ़ें: किसान आंदोलन के बीच कृषि मंत्री तोमर का पत्र, पीएम बोले- जरूर पढ़ें सभी अन्नदाता

बता दें कि केंद्र और किसानों के बीच तीन दिसंबर को हुई सात घंटे की मैराथन वार्ता बेनतीजा रहने के बाद पांच दिसंबर को अगली बैठक का फैसला लिया गया था. किसानों और केंद्र सरकार के बीच अंतिम वार्ता विगत पांच दिसंबर को होने के बाद आठ दिसंबर के भारत बंद के बाद गृह मंत्री शाह और कुछ किसान नेताओं के बीच भी बैठक हुई थी. शाह के साथ बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार अड़ियल रूख दिखा रही है. अब वार्ता नहीं होगी.

इससे पहले शुक्रवार, 18 दिसंबर को पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए कृषि कानून का विरोध कर रहे लोगों को आड़े हाथों लिया था. उन्होंने कहा था 'बीते कई दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, उनकी बहुत चर्चा है. ये कृषि सुधार कानून रातों-रात नहीं आए. पिछले 20-22 साल से हर सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है. कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है. देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं.'

यह भी पढ़ें: पीएम बोले- किसानों को बरगलाना, उन्हें भ्रमित करना छोड़ दीजिए

पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के रायसेन में आयोजित प्रदेश स्तरीय कृषि महासम्मेलन को संबोधन किया. मोदी ने कहा कि देश के किसानों को याद दिलाऊंगा यूरिया की. याद करिए, 7-8 साल पहले यूरिया का क्या हाल था? रात-रात भर किसानों को यूरिया के लिए कतारों में खड़े रहना पड़ता था या नहीं? कई स्थानों पर, यूरिया के लिए किसानों पर लाठीचार्ज की खबरें आती थीं या नहीं?

आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का रूख

इससे पहले 17 दिसंबर को किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा वैकेशन बैंच इस मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा किसान संगठनों की बात सुनने के बाद ही आदेश जारी किया जाएगा. उच्चतम न्यायालय ने संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है.

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को दी दिशा, नहीं चलेगी किसी की जिद

बता दें कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में किसान सम्मेलन में कहा था कि जल्द ही आंदोलन खत्म होगा. साथियों ने कहा कि विपक्षी दल देश भर में किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. वह सफल नहीं होंगे. साथ ही उन्होंने ने कहा कि केवल पंजाब ही राज्य ऐसा है जो कृषि कानून का विरोध कर रहा है इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं.

किसानों के आंदोलन की हर पल की खबरें-

आंदोलन पर कृषि मंत्री के सवाल

गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से शुरू हुए आंदोलन के संबंध में भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्रियों की तरफ से कई बार ऐसे बयान भी दिए गए हैं, जिससे दोनों पक्षों (सरकार-किसान) के बीच का गतिरोध गहराता दिखाई देता है. खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमिर ने किसानों के आंदोलन के दौरान दिल्ली दंगों के आरपियों की रिहाई की मांग को लेकर सवाल खड़े किए थे.

ऐसे ही एक वाकये में पंजाब के भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा था कि किसान आंदोलन में नक्सलवादी घुस आए हैं.

एक अन्य बयान में किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा था, सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: केंद्रीय मंत्री बोले- असली किसान खेत में हैं, विपक्ष कर रहा राजनीति

विपक्षी दलों का समर्थन

गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'

गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.

यह भी पढ़ें: किसान आंदोलन : अमित शाह की अपील, सरकार बातचीत के लिए तैयार

राजद और वाम नेताओं का समर्थन

हालांकि, तमाम विरोधों के बावजूद नीति आयोग के सदर्य ने कहा था कि कानूनों का विरोध कर रहे किसान कंद्र सरकार के कानूनी प्रावधानों को समझ नहीं पा रहे हैं.

यह भी पढ़ें: किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं : नीति आयोग सदस्य

कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

यह भी पढ़ें: किसानों से जुड़े विधेयक पर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रोश, जानिए पक्ष-विपक्ष

कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 27 दिनों से गतिरोध जारी है. केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच छह दौर की वार्ता होने के बावजूद गतिरोध बना हुआ है. किसान नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार को तीनों कानूनों को निरस्त करना ही होगा. दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि जिन प्रावधानों को लेकर आपत्ति है उनमें संशोधन किया जाएगा.

ताजा घटनाक्रम में किसान नेता श्रवण सिंह पंढेर ने कहा है कि यह सरकार द्वारा यह एक कदम आगे नहीं है, बल्कि किसानों को बरगलाए जाने का एक तरीका है. एक सामान्य व्यक्ति यह सोचता है कि किसान जिद्दी हैं, लेकिन तथ्य यह है कि हम कृषि कानूनों में संशोधन नहीं चाहते हैं, हम चाहते हैं कि वे पूरी तरह से दूर हो जाएं.

किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य श्रवण सिंह पंढेर का बयान

दरअसल, सरकार और किसान नेताओं के बीच बीते 8 दिसंबर को अंतिम बार वार्ता हुई थी. इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लगभग दर्जनभर किसान नेता शरीक हुए थे. इसके बाद किसान नेताओं ने कहा कि सरकार के अड़ियल रवैये के कारण कोई वार्ता नहीं की जाएगी.

गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से ही कई किसान संगठन दिल्ली-हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर व उत्तर प्रदेश से लगती सीमा पर धरना दे रहे हैं. इस संबंध में संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं करती, उनका विरोध जारी रहेगा.

दिलचस्प है कि कृषि मंत्री तोमर ने गत 17 दिसंबर को एक पत्र लिखकर किसानों से गतिरोध समाप्त करने की अपील की थी. तोमर ने अपने पत्र में 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध का भी जिक्र किया था. उनके पत्र को पीएम मोदी ने रीट्वीट कर कहा था कि कृषि मंत्री ने अपनी भावनाएं किसानों के सामने रखी हैं, तोमर के पत्र को अन्नदाता जरूर पढ़ें.

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बता दें कि केंद्र और किसानों के बीच तीन दिसंबर को हुई सात घंटे की मैराथन वार्ता बेनतीजा रहने के बाद पांच दिसंबर को अगली बैठक का फैसला लिया गया था. किसानों और केंद्र सरकार के बीच अंतिम वार्ता विगत पांच दिसंबर को होने के बाद आठ दिसंबर के भारत बंद के बाद गृह मंत्री शाह और कुछ किसान नेताओं के बीच भी बैठक हुई थी. शाह के साथ बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार अड़ियल रूख दिखा रही है. अब वार्ता नहीं होगी.

इससे पहले शुक्रवार, 18 दिसंबर को पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए कृषि कानून का विरोध कर रहे लोगों को आड़े हाथों लिया था. उन्होंने कहा था 'बीते कई दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, उनकी बहुत चर्चा है. ये कृषि सुधार कानून रातों-रात नहीं आए. पिछले 20-22 साल से हर सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है. कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है. देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं.'

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पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के रायसेन में आयोजित प्रदेश स्तरीय कृषि महासम्मेलन को संबोधन किया. मोदी ने कहा कि देश के किसानों को याद दिलाऊंगा यूरिया की. याद करिए, 7-8 साल पहले यूरिया का क्या हाल था? रात-रात भर किसानों को यूरिया के लिए कतारों में खड़े रहना पड़ता था या नहीं? कई स्थानों पर, यूरिया के लिए किसानों पर लाठीचार्ज की खबरें आती थीं या नहीं?

आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का रूख

इससे पहले 17 दिसंबर को किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा वैकेशन बैंच इस मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा किसान संगठनों की बात सुनने के बाद ही आदेश जारी किया जाएगा. उच्चतम न्यायालय ने संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है.

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बता दें कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में किसान सम्मेलन में कहा था कि जल्द ही आंदोलन खत्म होगा. साथियों ने कहा कि विपक्षी दल देश भर में किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. वह सफल नहीं होंगे. साथ ही उन्होंने ने कहा कि केवल पंजाब ही राज्य ऐसा है जो कृषि कानून का विरोध कर रहा है इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं.

किसानों के आंदोलन की हर पल की खबरें-

आंदोलन पर कृषि मंत्री के सवाल

गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से शुरू हुए आंदोलन के संबंध में भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्रियों की तरफ से कई बार ऐसे बयान भी दिए गए हैं, जिससे दोनों पक्षों (सरकार-किसान) के बीच का गतिरोध गहराता दिखाई देता है. खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमिर ने किसानों के आंदोलन के दौरान दिल्ली दंगों के आरपियों की रिहाई की मांग को लेकर सवाल खड़े किए थे.

ऐसे ही एक वाकये में पंजाब के भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा था कि किसान आंदोलन में नक्सलवादी घुस आए हैं.

एक अन्य बयान में किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा था, सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.

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विपक्षी दलों का समर्थन

गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'

गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.

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राजद और वाम नेताओं का समर्थन

हालांकि, तमाम विरोधों के बावजूद नीति आयोग के सदर्य ने कहा था कि कानूनों का विरोध कर रहे किसान कंद्र सरकार के कानूनी प्रावधानों को समझ नहीं पा रहे हैं.

यह भी पढ़ें: किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं : नीति आयोग सदस्य

कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

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