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विशेषज्ञ बोले- भ्रम और भय के दौर से गुजर रहे हैं कश्मीर के लोग

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करने और इसे दो हिस्सों में विभाजित करने के अपने 'ऐतिहासिक निर्णय' की पहली वर्षगांठ के अवसर पर एक भव्य समारोह के आयोजन की योजना बना रही है. वहीं इसके विपरीत कई विशेषज्ञ मानते हैं कि तत्कालीन राज्य के सभी क्षेत्रों के लोग 'भ्रम और भय' के दौर से गुजर रहे हैं.

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Published : Aug 5, 2020, 12:47 AM IST

डिजाइन फोटो
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श्रीनगर : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करने और इसे दो हिस्सों में विभाजित करने के अपने 'ऐतिहासिक निर्णय' की पहली वर्षगांठ के अवसर पर एक भव्य समारोह के आयोजन की योजना बना रही है. वहीं इसके विपरीत कई विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्य के सभी क्षेत्रों के लोग 'भ्रम और भय' के दौर से गुजर रहे हैं.

ईटीवी भारत ने जम्मू कश्मीर के सभी क्षेत्रों के स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों से बात की और उस दिन से सभी घटनाक्रमों को बारीकी से फॉलो किया, जिस दिन से केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को वापस लिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.

लैंड बैंकिंग से वू इनवेस्टर

पिछले साल नवंबर के पहले दो सप्ताह के दौरान जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए निवेशकों को लुभाने के लिए भूमि बैंक बनाना शुरू किया.

केंद्र द्वारा पांच अगस्त को लिए गए इस फैसले के ठीक चार महीने बाद उठाए गए इस कदम ने अफवाहों और खबरों की एक लहर पैदा कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि यहां जल्द ही एक और बड़ा विकास हो सकता है.

प्रशासन ने अपने उद्देशय को स्पष्ट करते हुए कहा,'यह आगामी जम्मू-कश्मीर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट -2020 के लिए किया जा रहा है.

निवेशकों को लुभाने के लिए हम दोनों क्षेत्रों (जम्मू और कश्मीर) में 5000 कनाल (लगभग 624 एकड़) से अधिक भूमि बैंकों के निर्माण किया जा रहा है.

जम्मू कश्मीर में एक वर्ष में हुए बदलाव
जम्मू कश्मीर में एक वर्ष में हुए बदलाव

जम्मू कश्मीर राज्य औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध निदेशक रविंदर कुमार ने कहा था 'हमने औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भूमि की पहचान की है.'

उन्होंने आगे कहा कि इच्छुक निवेशकों को मार्च में राजधानी श्रीनगर और जम्मू में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है.

कुमार ने कहा था, 'शिखर जम्मू-कश्मीर को औद्योगिक केंद्र बनाने में एक निर्णायक कारक साबित होंगे.'

उन्होंने आगे कहा था कि यह न केवल व्यापार के अनुकूल नीतियों को पेश करने में मदद करेगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर की आंतरिक ताकत और विकास और रोजगार के अवसरों की आकांक्षाओं को भी सामंजस्य देगा. आखिरकार इस साल अप्रैल में शिखर सम्मेलन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.

प्रशासन के बयान के अनुसार,'शिखर सम्मेलन आयोजित करना संभव नहीं होगा. इसे तब तक बंद रखा जाएगा, जब तक कि कोरोना वायरस की स्थिति में सुधार नहीं हो जाता और चीजें वापस सामान्य नहीं हो जाती हैं. हालांकि प्रशासन व्यवसाय से संबंधित पहल करने के लिए अवधि का उपयोग सुधार, औद्योगिक संपदा का निर्माण, केंद्रशासित प्रदेश के साथ-साथ अन्य जिलों में अधिक भूमि की पहचान करने में करेगा.'

घरेलू अधिनियम

इस वर्ष 31 मार्च को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों के अनुकूलन) आदेश, 2020 के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेश में अधिवास की नई परिभाषा पेश की.

नया अधिनियम सभी भारतीय नागरिकों को कुछ शर्तों को पूरा करने पर जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है. सरकार ने जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती सरकार के 29 कानूनों को भी रद्द कर दिया और 109 अन्य कानूनों को संशोधित किया, जिन्हें पिछले अगस्त में खत्म कर दिया गया था.

केंद्र के इस कदम की घाटी के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की और इसे 'भेदभावपूर्ण' और 'अपमान' करने वाला करार दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2019 तक जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35A के संवैधानिक प्रावधानों के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था, जिसके तहत शेष भारत के किसी भी व्यक्ति को वहां अधिवास की अनुनति नहीं थी. इसका मतलब यह था कि बाहरी लोग स्थानीय सरकार या वहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे. हालांक, यह नियम केंद्र सरकार की पोस्टिंग पर लागू नहीं हुआ है.

नया नियम केवल जम्मू- कश्मीर मूल के गैर-राजपत्रित फोर्थ ग्रेड की नौकरियों को आरक्षित करता है. यह कुछ शर्तों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें एक अधिवास आवेदक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए पूरा करना चाहिए. आवेदक 15 वर्ष से जम्मू कश्मीर का निवासी होना चाहिए या राज्य में सात साल तक अध्ययन किया हो और या फिर कक्षा 10 या कक्षा 12 परीक्षा दी हो.

केंद्रीय सरकारी अधिकारियों (सेना, अर्धसैनिक बल, IAS, IPS) के बच्चे और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बैंकों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों आदि के कर्मचारी, जिन्होंने 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में सेवा की है, वह भी सरकारी नौकरियों में गैजिट और नॉन गैजिट के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे. इनमें वह लोग भी शामिल हैं, जो राज्य से बाहर काम करते हैं.

राहत और पुनर्वास आयुक्त द्वारा पंजीकृत प्रवासियों को उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है और स्वचालित रूप से अधिवास प्रमाण पत्र के लिए पात्र होंगे.

घाटी के मुख्यधारा के राजनीताओं का कहना है कि सरकार का अधिवास निर्णय ठीक नहीं है और वह इस निर्णय की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. आलोचना करने वालों में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स मूवमेंट और अपनी पार्टी शामिल हैं. इस बीच जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ अधिकारी केंद्र शासित प्रदेश में अधिवास अधिकार पाने वाले पहले अधिकारी बन गए. जम्मू-कश्मीर कैडर के अधिकारी नवीन कुमार चौधरी, जो वर्तमान में कृषि उत्पादन विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में तैनात हैं, को जम्मू से अधिवास प्रमाण पत्र जारी किया गया.

बिहार के दरभंगा जिले के निवासी चौधरी ने कहा कि वह पिछले 26 वर्ष से जम्मू-कश्मीर सरकार में सेवारत हैं. उनकी पहली पोस्टिंग श्रीनगर के सहायक आयुक्त के रूप में हुई थी.

जम्मू के बाहु क्षेत्र के तहसीलदार द्वारा जारी प्रमाण पत्र में लिखा है कि यह प्रमाणित किया जाता है कि वर्तमान में देवकांत चौधरी के बेटे, नवीन के चौधरी, गांधी नगर जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित का अधिवासी हैं.

सशस्त्र बलों के लिए रणनीति

इस वर्ष 17 जुलाई को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सशस्त्र बलों द्वारा निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के अंदर के कुछ स्थानों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का निर्णय लिया. इसके बाद के आदेश ने गृह विभाग से 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' प्राप्त करने की शर्त को हटा दिया. सरकार ने कहा कि रक्षा बलों को क्षेत्र में कहीं भी अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं.

एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस कदम को उपराज्यपाल जीसी मुर्मू की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक परिषद ने मंजूरी दी थी.

उन्होंने कहा, 'प्रशासनिक परिषद ने भवन निर्माण संचालन अधिनियम, 1988 और जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम, 1970 में संशोधन के प्रस्ताव को रणनीतिक क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों को पूरा करने के लिए विशेष छूट प्रदान करने के लिए अपनी मंजूरी दी है.'

बयान में कहा गया है कि आवास और शहरी विकास विभाग द्वारा प्रस्तावित संशोधन सशस्त्र बलों की आवश्यकता के संदर्भ में कुछ क्षेत्रों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और ऐसे क्षेत्रों में निर्माण गतिविधि का विनियमन एक विशेष माध्यम से होगा.

उन्होंने कहा, 'कुछ स्थानों के रणनीतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए और विकास संबंधी आकांक्षाओं के साथ उनकी सुरक्षा जरूरतों को समेटते हुए मंजूरी दी गई है.' हालांकि, मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने इस कदम की आलोचना की.

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को एक सैन्य प्रतिष्ठान में बदलना और नागरिक प्राधिकरण को कमजोर करना है.

पार्टी के प्रवक्ता इमरान डार ने कहा, 'जम्मू कश्मीर में हमारे पास एक गैर-विवादास्पद मुद्दा है, जो प्रस्तावित अधिसूचित क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के लिए सुचारु निर्माण के बहाने सुरक्षा बलों के नियंत्रण में और अधिक भूमि रखने का प्रस्ताव करता है.'

उन्होंने आगे कहा कि प्रस्तावित संशोधन कृषि गतिविधि के लिए उपलब्ध शेष कृषि योग्य और उपजाऊ भूमि पर कटौती करके जमीन पर सेना को कब्जा करना है. जम्मू कश्मीर का सामरिक महत्व कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि यह पूरा क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नईम अख्तर ने दावा किया कि यह निर्णय जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने की तुलना में 'डरावना' है. अख्तर ने कहा, 'ऐसा लगता है कि हम कब्रिस्तानों के लिए भी पर्याप्त भूमि नहीं छोड़ सकते. इसका मतलब है कि जम्मू और कश्मीर के किसी भी निवासी के पास स्थानीय सरकार के बुनियादी कार्यों को निर्धारित करने की कोई शक्ति नहीं है.'

दो दिन बाद जम्मू और कश्मीर प्रशासन के एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि आलोचना निराधार थी, क्योंकि निर्णय किसी भी मौजूदा कानून को दरकिनार नहीं करता था.

प्रवक्ता ने 19 जुलाई को कहा कि इस निर्णय का सीधा मतलब यह है कि सशस्त्र बलों की भूमि के भीतर तथाकथित अधिसूचित 'रणनीतिक क्षेत्रों' में , सभी पर्यावरण सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए खुद सशस्त्र बलों को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है कि जो भी निर्माण कार्य किए जाएं उनका सरंक्षण किया जाए.

प्रवक्ता ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या सुरक्षा उपाय प्रयाप्त हैं इसके लिए प्रावधानों का दुरुपयोग न हो.

उन्होंने कहा, 'फैसले का सशस्त्र बलों के लिए किसी भी भूमि के हस्तांतरण से कोई लेना-देना नहीं है.' स्थानांतरण, अधिग्रहण या आवश्यकता दोनों, मौजूदा कानून और विषय पर मानदंडों द्वारा शासित हो रहा है.

छावनी या सेना की भूमि के बाहर किसी भी नई भूमि को घोषित करने या सामरिक रूप से घोषित करने का कोई निर्णय नहीं है.

विकास और आंतरिक सुरक्षा की प्रतिस्पर्धी मांगों को पूरा करने के लिए सशस्त्र बलों द्वारा भूमि की आवश्यकता को विनियमित और सामंजस्य करना सरकार की घोषित नीति है.

विशेषज्ञों की राय

हालांकि स्थानीय लोग रिकॉर्ड या कैमरे पर बोलने में सहज नहीं हैं, लेकिन वह सभी धारा 370 के उन्मूलन के बाद प्रशासन द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में भ्रमित दिखाई दिए.

इस बीच विशेषज्ञों ने जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति के निरस्त होने की पूरी स्थिति का विश्लेषण करते हुए कहा कि यह एक एकतरफा और अवसरवादी निर्णय था.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रियाज मसरूर के लिए सरकार द्वारा लिए गए फैसले 'एकतरफा' और 'लोकतांत्रिक नहीं' थे.

उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून बनाया जाते हैं और संशोधित किया जाता है और जब कानून को लागू किया जाता है, तो नागरिकों को पालन करना पड़ता है या अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतने पड़ते हैं, लेकिन कश्मीर में लोग पिछले वर्ष लिए गए फैसलों की शिकायत कर रहे हैं.

मसरूर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है. दो-तीन अधिकारियों को प्रशासनिक परिषद के बैनर तले शासन का काम सौंपा जा रहा है. यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और यही कारण है कि हम इन फैसलों के विरोध को देखते हैं. चाहे अधिवास, भूमि बैंकिंग हो, भर्ती या इस तरह के किसी भी विकास का फैसला.

उन्होंने कहा, 'अगर यह सभी निर्णय उचित चैनलों के माध्यम से लिए गए होते, तो मेरा मानना है कि जनता में इस तरह का गुस्सा और आक्रोश नहीं होता. यदि क्षेत्रीय राजनीतिक सेटअप यहां सक्रिय होता, तो चीजें अलग होतीं. आज हम, जो बदलाव देख रहे हैं. वह एक तरफा है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनौती है.

राजस्थान की राजनीति पर सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा, 'हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में असंतोष की आवाज को बंद नहीं किया जा सकता है. प्रशासन से तर्क उनके दृष्टिकोण से सही हो सकते हैं, लेकिन लोगों की भागीदारी के बिना लोकतांत्रिक सेटअप अधूरा है.'

मसरूर ने यह भी बताया कि पिछले एक साल से घाटी के मुख्यधारा के राजनेता किस तरह नजरबंद हैं.

'जिन राजनेताओं ने कश्मीर में भारतीय ध्वज लहराया, उन्होंने चुनावों में भाग लिया और लोगों ने भी उन्हें वोट दिया. उन्हें अब लगभग एक साल तक हिरासत में रखा गया है. वर्तमान में कश्मीर में कोई राजनीति नहीं है. यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है.'

एक अन्य पत्रकार फिरदौस इलाही का मानना है कि 'यह निर्णय कश्मीरियों की आवाज को दबाने के लिए किया गया है.'

इलाही ने कहा, 'अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करने सहित सभी निर्णय तब लिए गए जब लोगों को उनके घरों में प्रतिबंधित कर दिया गया था. यह गलत है. निर्णय एक उचित मार्ग का अनुसरण करते हुए लिया जाना चाहिए और एक निर्वाचित सरकार के होने के बाद लिया जाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यहां की आवाजें दब रही हैं. लोग डर के साए में जी रहे हैं और कोई भी बात करने के लिए तैयार नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, 'फैसले लोगों पर मजबूर किए जा रहे हैं, क्योंकि प्रतिबंधों के कारण हर कोई अपने घरों तक ही सीमित है. वह जानते हैं कि मुद्दों पर कोई विरोध नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि कोई भी निर्णय ले रहा है, जबकि लोग मर रहे हैं. यह फासीवाद हैं.'

प्रशासन के फैसलों को अवैध बताते हुए उन्होंने कहा, 'वह जम्मू और कश्मीर में जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह प्रमाण पत्र अब नौकरियों, उच्च अध्ययन आदि के लिए आवश्यक हैं. उसी समय आप कानून के खिलाफ जम्मू में विरोध प्रदर्शन देख सकते हैं. अधिवास नीति के खिलाफ आवाज लद्दाख सहित पूरे क्षेत्र से आ रही है.'

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार हया जावेद को लगता है कि 'जिन लोगों ने भारत में विश्वास किया था और उन्हें विश्वास था कि देश उनके साथ खड़ा है. लेखों के निरस्त होने के बाद सभी भरोसा खो चुके हैं. निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग खुश थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के अधिकांश निवासी निर्णय के बाद नाराज और निराश थे.'

उन्होंने आगे कहा, 'भाजपा जम्मू-कश्मीर के लोगों को अलग करने के लिए सभी हथकंडे अपना रही है. लोग पिछले एक साल से पीड़ित हैं और इसके ठीक विपरीत जो बीजेपी ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करते हुए दावा किया था। वे नफरत के बीज बो रहे हैं.'

श्रीनगर : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करने और इसे दो हिस्सों में विभाजित करने के अपने 'ऐतिहासिक निर्णय' की पहली वर्षगांठ के अवसर पर एक भव्य समारोह के आयोजन की योजना बना रही है. वहीं इसके विपरीत कई विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्य के सभी क्षेत्रों के लोग 'भ्रम और भय' के दौर से गुजर रहे हैं.

ईटीवी भारत ने जम्मू कश्मीर के सभी क्षेत्रों के स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों से बात की और उस दिन से सभी घटनाक्रमों को बारीकी से फॉलो किया, जिस दिन से केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को वापस लिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.

लैंड बैंकिंग से वू इनवेस्टर

पिछले साल नवंबर के पहले दो सप्ताह के दौरान जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए निवेशकों को लुभाने के लिए भूमि बैंक बनाना शुरू किया.

केंद्र द्वारा पांच अगस्त को लिए गए इस फैसले के ठीक चार महीने बाद उठाए गए इस कदम ने अफवाहों और खबरों की एक लहर पैदा कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि यहां जल्द ही एक और बड़ा विकास हो सकता है.

प्रशासन ने अपने उद्देशय को स्पष्ट करते हुए कहा,'यह आगामी जम्मू-कश्मीर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट -2020 के लिए किया जा रहा है.

निवेशकों को लुभाने के लिए हम दोनों क्षेत्रों (जम्मू और कश्मीर) में 5000 कनाल (लगभग 624 एकड़) से अधिक भूमि बैंकों के निर्माण किया जा रहा है.

जम्मू कश्मीर में एक वर्ष में हुए बदलाव
जम्मू कश्मीर में एक वर्ष में हुए बदलाव

जम्मू कश्मीर राज्य औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध निदेशक रविंदर कुमार ने कहा था 'हमने औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भूमि की पहचान की है.'

उन्होंने आगे कहा कि इच्छुक निवेशकों को मार्च में राजधानी श्रीनगर और जम्मू में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है.

कुमार ने कहा था, 'शिखर जम्मू-कश्मीर को औद्योगिक केंद्र बनाने में एक निर्णायक कारक साबित होंगे.'

उन्होंने आगे कहा था कि यह न केवल व्यापार के अनुकूल नीतियों को पेश करने में मदद करेगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर की आंतरिक ताकत और विकास और रोजगार के अवसरों की आकांक्षाओं को भी सामंजस्य देगा. आखिरकार इस साल अप्रैल में शिखर सम्मेलन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.

प्रशासन के बयान के अनुसार,'शिखर सम्मेलन आयोजित करना संभव नहीं होगा. इसे तब तक बंद रखा जाएगा, जब तक कि कोरोना वायरस की स्थिति में सुधार नहीं हो जाता और चीजें वापस सामान्य नहीं हो जाती हैं. हालांकि प्रशासन व्यवसाय से संबंधित पहल करने के लिए अवधि का उपयोग सुधार, औद्योगिक संपदा का निर्माण, केंद्रशासित प्रदेश के साथ-साथ अन्य जिलों में अधिक भूमि की पहचान करने में करेगा.'

घरेलू अधिनियम

इस वर्ष 31 मार्च को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों के अनुकूलन) आदेश, 2020 के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेश में अधिवास की नई परिभाषा पेश की.

नया अधिनियम सभी भारतीय नागरिकों को कुछ शर्तों को पूरा करने पर जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है. सरकार ने जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती सरकार के 29 कानूनों को भी रद्द कर दिया और 109 अन्य कानूनों को संशोधित किया, जिन्हें पिछले अगस्त में खत्म कर दिया गया था.

केंद्र के इस कदम की घाटी के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की और इसे 'भेदभावपूर्ण' और 'अपमान' करने वाला करार दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2019 तक जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35A के संवैधानिक प्रावधानों के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था, जिसके तहत शेष भारत के किसी भी व्यक्ति को वहां अधिवास की अनुनति नहीं थी. इसका मतलब यह था कि बाहरी लोग स्थानीय सरकार या वहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे. हालांक, यह नियम केंद्र सरकार की पोस्टिंग पर लागू नहीं हुआ है.

नया नियम केवल जम्मू- कश्मीर मूल के गैर-राजपत्रित फोर्थ ग्रेड की नौकरियों को आरक्षित करता है. यह कुछ शर्तों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें एक अधिवास आवेदक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए पूरा करना चाहिए. आवेदक 15 वर्ष से जम्मू कश्मीर का निवासी होना चाहिए या राज्य में सात साल तक अध्ययन किया हो और या फिर कक्षा 10 या कक्षा 12 परीक्षा दी हो.

केंद्रीय सरकारी अधिकारियों (सेना, अर्धसैनिक बल, IAS, IPS) के बच्चे और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बैंकों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों आदि के कर्मचारी, जिन्होंने 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में सेवा की है, वह भी सरकारी नौकरियों में गैजिट और नॉन गैजिट के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे. इनमें वह लोग भी शामिल हैं, जो राज्य से बाहर काम करते हैं.

राहत और पुनर्वास आयुक्त द्वारा पंजीकृत प्रवासियों को उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है और स्वचालित रूप से अधिवास प्रमाण पत्र के लिए पात्र होंगे.

घाटी के मुख्यधारा के राजनीताओं का कहना है कि सरकार का अधिवास निर्णय ठीक नहीं है और वह इस निर्णय की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. आलोचना करने वालों में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स मूवमेंट और अपनी पार्टी शामिल हैं. इस बीच जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ अधिकारी केंद्र शासित प्रदेश में अधिवास अधिकार पाने वाले पहले अधिकारी बन गए. जम्मू-कश्मीर कैडर के अधिकारी नवीन कुमार चौधरी, जो वर्तमान में कृषि उत्पादन विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में तैनात हैं, को जम्मू से अधिवास प्रमाण पत्र जारी किया गया.

बिहार के दरभंगा जिले के निवासी चौधरी ने कहा कि वह पिछले 26 वर्ष से जम्मू-कश्मीर सरकार में सेवारत हैं. उनकी पहली पोस्टिंग श्रीनगर के सहायक आयुक्त के रूप में हुई थी.

जम्मू के बाहु क्षेत्र के तहसीलदार द्वारा जारी प्रमाण पत्र में लिखा है कि यह प्रमाणित किया जाता है कि वर्तमान में देवकांत चौधरी के बेटे, नवीन के चौधरी, गांधी नगर जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित का अधिवासी हैं.

सशस्त्र बलों के लिए रणनीति

इस वर्ष 17 जुलाई को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सशस्त्र बलों द्वारा निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के अंदर के कुछ स्थानों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का निर्णय लिया. इसके बाद के आदेश ने गृह विभाग से 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' प्राप्त करने की शर्त को हटा दिया. सरकार ने कहा कि रक्षा बलों को क्षेत्र में कहीं भी अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं.

एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस कदम को उपराज्यपाल जीसी मुर्मू की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक परिषद ने मंजूरी दी थी.

उन्होंने कहा, 'प्रशासनिक परिषद ने भवन निर्माण संचालन अधिनियम, 1988 और जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम, 1970 में संशोधन के प्रस्ताव को रणनीतिक क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों को पूरा करने के लिए विशेष छूट प्रदान करने के लिए अपनी मंजूरी दी है.'

बयान में कहा गया है कि आवास और शहरी विकास विभाग द्वारा प्रस्तावित संशोधन सशस्त्र बलों की आवश्यकता के संदर्भ में कुछ क्षेत्रों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और ऐसे क्षेत्रों में निर्माण गतिविधि का विनियमन एक विशेष माध्यम से होगा.

उन्होंने कहा, 'कुछ स्थानों के रणनीतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए और विकास संबंधी आकांक्षाओं के साथ उनकी सुरक्षा जरूरतों को समेटते हुए मंजूरी दी गई है.' हालांकि, मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने इस कदम की आलोचना की.

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को एक सैन्य प्रतिष्ठान में बदलना और नागरिक प्राधिकरण को कमजोर करना है.

पार्टी के प्रवक्ता इमरान डार ने कहा, 'जम्मू कश्मीर में हमारे पास एक गैर-विवादास्पद मुद्दा है, जो प्रस्तावित अधिसूचित क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के लिए सुचारु निर्माण के बहाने सुरक्षा बलों के नियंत्रण में और अधिक भूमि रखने का प्रस्ताव करता है.'

उन्होंने आगे कहा कि प्रस्तावित संशोधन कृषि गतिविधि के लिए उपलब्ध शेष कृषि योग्य और उपजाऊ भूमि पर कटौती करके जमीन पर सेना को कब्जा करना है. जम्मू कश्मीर का सामरिक महत्व कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि यह पूरा क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नईम अख्तर ने दावा किया कि यह निर्णय जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने की तुलना में 'डरावना' है. अख्तर ने कहा, 'ऐसा लगता है कि हम कब्रिस्तानों के लिए भी पर्याप्त भूमि नहीं छोड़ सकते. इसका मतलब है कि जम्मू और कश्मीर के किसी भी निवासी के पास स्थानीय सरकार के बुनियादी कार्यों को निर्धारित करने की कोई शक्ति नहीं है.'

दो दिन बाद जम्मू और कश्मीर प्रशासन के एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि आलोचना निराधार थी, क्योंकि निर्णय किसी भी मौजूदा कानून को दरकिनार नहीं करता था.

प्रवक्ता ने 19 जुलाई को कहा कि इस निर्णय का सीधा मतलब यह है कि सशस्त्र बलों की भूमि के भीतर तथाकथित अधिसूचित 'रणनीतिक क्षेत्रों' में , सभी पर्यावरण सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए खुद सशस्त्र बलों को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है कि जो भी निर्माण कार्य किए जाएं उनका सरंक्षण किया जाए.

प्रवक्ता ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या सुरक्षा उपाय प्रयाप्त हैं इसके लिए प्रावधानों का दुरुपयोग न हो.

उन्होंने कहा, 'फैसले का सशस्त्र बलों के लिए किसी भी भूमि के हस्तांतरण से कोई लेना-देना नहीं है.' स्थानांतरण, अधिग्रहण या आवश्यकता दोनों, मौजूदा कानून और विषय पर मानदंडों द्वारा शासित हो रहा है.

छावनी या सेना की भूमि के बाहर किसी भी नई भूमि को घोषित करने या सामरिक रूप से घोषित करने का कोई निर्णय नहीं है.

विकास और आंतरिक सुरक्षा की प्रतिस्पर्धी मांगों को पूरा करने के लिए सशस्त्र बलों द्वारा भूमि की आवश्यकता को विनियमित और सामंजस्य करना सरकार की घोषित नीति है.

विशेषज्ञों की राय

हालांकि स्थानीय लोग रिकॉर्ड या कैमरे पर बोलने में सहज नहीं हैं, लेकिन वह सभी धारा 370 के उन्मूलन के बाद प्रशासन द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में भ्रमित दिखाई दिए.

इस बीच विशेषज्ञों ने जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति के निरस्त होने की पूरी स्थिति का विश्लेषण करते हुए कहा कि यह एक एकतरफा और अवसरवादी निर्णय था.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रियाज मसरूर के लिए सरकार द्वारा लिए गए फैसले 'एकतरफा' और 'लोकतांत्रिक नहीं' थे.

उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून बनाया जाते हैं और संशोधित किया जाता है और जब कानून को लागू किया जाता है, तो नागरिकों को पालन करना पड़ता है या अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतने पड़ते हैं, लेकिन कश्मीर में लोग पिछले वर्ष लिए गए फैसलों की शिकायत कर रहे हैं.

मसरूर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है. दो-तीन अधिकारियों को प्रशासनिक परिषद के बैनर तले शासन का काम सौंपा जा रहा है. यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और यही कारण है कि हम इन फैसलों के विरोध को देखते हैं. चाहे अधिवास, भूमि बैंकिंग हो, भर्ती या इस तरह के किसी भी विकास का फैसला.

उन्होंने कहा, 'अगर यह सभी निर्णय उचित चैनलों के माध्यम से लिए गए होते, तो मेरा मानना है कि जनता में इस तरह का गुस्सा और आक्रोश नहीं होता. यदि क्षेत्रीय राजनीतिक सेटअप यहां सक्रिय होता, तो चीजें अलग होतीं. आज हम, जो बदलाव देख रहे हैं. वह एक तरफा है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनौती है.

राजस्थान की राजनीति पर सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा, 'हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में असंतोष की आवाज को बंद नहीं किया जा सकता है. प्रशासन से तर्क उनके दृष्टिकोण से सही हो सकते हैं, लेकिन लोगों की भागीदारी के बिना लोकतांत्रिक सेटअप अधूरा है.'

मसरूर ने यह भी बताया कि पिछले एक साल से घाटी के मुख्यधारा के राजनेता किस तरह नजरबंद हैं.

'जिन राजनेताओं ने कश्मीर में भारतीय ध्वज लहराया, उन्होंने चुनावों में भाग लिया और लोगों ने भी उन्हें वोट दिया. उन्हें अब लगभग एक साल तक हिरासत में रखा गया है. वर्तमान में कश्मीर में कोई राजनीति नहीं है. यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है.'

एक अन्य पत्रकार फिरदौस इलाही का मानना है कि 'यह निर्णय कश्मीरियों की आवाज को दबाने के लिए किया गया है.'

इलाही ने कहा, 'अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करने सहित सभी निर्णय तब लिए गए जब लोगों को उनके घरों में प्रतिबंधित कर दिया गया था. यह गलत है. निर्णय एक उचित मार्ग का अनुसरण करते हुए लिया जाना चाहिए और एक निर्वाचित सरकार के होने के बाद लिया जाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यहां की आवाजें दब रही हैं. लोग डर के साए में जी रहे हैं और कोई भी बात करने के लिए तैयार नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, 'फैसले लोगों पर मजबूर किए जा रहे हैं, क्योंकि प्रतिबंधों के कारण हर कोई अपने घरों तक ही सीमित है. वह जानते हैं कि मुद्दों पर कोई विरोध नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि कोई भी निर्णय ले रहा है, जबकि लोग मर रहे हैं. यह फासीवाद हैं.'

प्रशासन के फैसलों को अवैध बताते हुए उन्होंने कहा, 'वह जम्मू और कश्मीर में जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह प्रमाण पत्र अब नौकरियों, उच्च अध्ययन आदि के लिए आवश्यक हैं. उसी समय आप कानून के खिलाफ जम्मू में विरोध प्रदर्शन देख सकते हैं. अधिवास नीति के खिलाफ आवाज लद्दाख सहित पूरे क्षेत्र से आ रही है.'

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार हया जावेद को लगता है कि 'जिन लोगों ने भारत में विश्वास किया था और उन्हें विश्वास था कि देश उनके साथ खड़ा है. लेखों के निरस्त होने के बाद सभी भरोसा खो चुके हैं. निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग खुश थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के अधिकांश निवासी निर्णय के बाद नाराज और निराश थे.'

उन्होंने आगे कहा, 'भाजपा जम्मू-कश्मीर के लोगों को अलग करने के लिए सभी हथकंडे अपना रही है. लोग पिछले एक साल से पीड़ित हैं और इसके ठीक विपरीत जो बीजेपी ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करते हुए दावा किया था। वे नफरत के बीज बो रहे हैं.'

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