ETV Bharat / bharat

विज्ञान का ज्ञान भी यहां है बेकार, गायों को मन्नतियों के ऊपर दौड़ाते हैं ग्रामीण

उज्जैन के बड़नगर में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल जारी है. जहां मन्नतें पूरी करने और गांव की खुशहाली के लिए दिवाली के दूसरे दिन गांव की सैकड़ों गायों को ग्रामीणों के ऊपर दौड़ाया जाता है. वहीं झाबुआ के विभिन्न अंचलों में भी ऐसी मान्यता देखी जा सकती है.

गौरी पूजन की परम्परा
author img

By

Published : Oct 29, 2019, 5:54 PM IST

उज्जैन : कहा जाता है कि आस्था पर सवाल नहीं खड़े किये जाते और जहां सवाल हों, वहां आस्था खत्म हो जाती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है मध्य प्रदेश के उज्जैन और झाबुआ इलाकों में, जहां अस्था के नाम पर खतरनाक परम्परा चली आ रही है, अंधविश्वास के इस खेल को जानने के बाद आप भी दातों तले अंगुली दबा लेंगे. दीपावली के दूसरे दिन झाबुआ और उज्जैन में गायों के पैरों तले सैकड़ों लोग लेट जाते हैं और गायें उनके ऊपर से निकल जाती हैं. पढ़ें.....

उज्जैन के भीडावद गांव में सदियों से चली आ रही परम्परा लोगों के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती है, बल्कि देखने वालों का भी दिल दहल जाता है.

चार हजार की आबादी वाले भीडावद गांव में दीपावली के बाद वाले दिन दर्जनों लोग अपनी मन्नतें लेकर सैकड़ों गायों के पैरों तले रुधने के लिए जमीन पर लेट जाते हैं, कुछ ही पलों में सैकड़ों गायें जमीन पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से गुजर जाती हैं. इस मंजर को देखने के लिए हर साल इस गांव में हजारों लोग जमा होते हैं.

उज्जैन में गौरी पूजन की सदियों पुरानी परम्परा का निर्वहन.

शहर से 45 किलोमीटर दूर भीडावद गांव के लोग दिवाली के दूसरे दिन सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हैं. सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परम्परा निभाने की तैयारियों में जुट जाते हैं, जिसके बाद मन्नत मांगने वाला जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता है.

इस जुलूस में लोग मुंह के बल जमीन पर लेट जाते हैं. उसके बाद गांव की सैकड़ों गायें दौड़ते हुए उनके ऊपर से गुजर जाती हैं. जो भी इस नजारे को देखता है, उसका दिल-दहल जाता है.

गांव के लोग बताते हैं कि यह परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है, गांव के लोग अपनी-अपनी मन्नतें मांगते हैं.

प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानी की गोमाता सुख-समृद्धि और शांति की प्रतीक हैं, शास्त्रों में भी गोमाता के शारीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास बताया गया है, गांव के लोग मन्नतियों को साथ लेकर गांव के चौक पर जमा होते हैं, जहां पर मां गौरी (गोमाता) का पूजन किया जाता है.

ढोल-ताशों के बीच चौक पर मां गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते हैं. करीब दो क्विंटल वजनी सैकड़ों गायें इन लोगों के शरीर को रौंदती हुई निकल जाती हैं.

इस ऐतिहासिक परम्परा में लोगों की अटूट आस्था के चलते मन्नतधारियों को मामूली नुकसान से ज्यादा कुछ नहीं होता.

सदियों से चली आ रही इस परम्परा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगों की आस्था को और मजबूत करता है.

झाबुआ में मनाया जाता है गाय गोहरी पर्व
इसी तरह की एक प्रथा मध्यप्रदेश के झाबुआ में देखने को मिलती है, जहां दीपावली के दो दिन बाद तक गाय गोहरी का पर्व मनाया जाता है.

झाबुआ का गाय गोहरी पर्व इसलिए हर साल चर्चा में रहता है कि यहां मन्नतधारी गायों के पैरों के नीचे लेटकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

इस दौरान गायों को मोर पंख के साथ ही सुंदर-आकर्षक रंगों से सजाया-संवारा भी जाता है, जिसके बाद इन गायों से मन्नतधारियों को रौंदवाया जाता है.

गायों को मन्नतियों के ऊपर दौड़ाते हैं ग्रामीण.

झाबुआ में गोवर्धन नाथ मंदिर के सामने गाय गोहरी का पर्व पड़वा यानी नव वर्ष के दिन के रूप में मनाया जाता है.

राणापुर क्षेत्र के कन्जावानी, समोई, रूपा खेड़ा, छायन जैसे गांवों में गाय गोहरी का पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है.

सोमवार को गाय गोहरी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हुए. इसे आप आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन सच्चाई ये है कि इस पर्व के दौरान मैदान में लेटे लोगों के ऊपर से गायें दौड़ती हुई निकल जाती हैं, पर उन्हें कुछ नहीं होता.

यहां के आदिवासी समाज में ये मान्यता है कि गाय के पैरों के नीचे बैकुंठ होता है.

गाय गोहरी के पूर्व खुले मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की जाती है. मन्नतधारी अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए, घर में सुख- शांति और समृद्धि के साथ-साथ संतान प्राप्ति के लिए भी ऐसा करते हैं.

आदिवासी जिले में मनाया जाने वाला पर्व अपनी विविधता के चलते पूरे देश में आकर्षण का केंद्र भी रहता है.

नोट : ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, न ही इस खबर को प्रकाशित करने के पीछे ऐसी कोई मंशा है.

उज्जैन : कहा जाता है कि आस्था पर सवाल नहीं खड़े किये जाते और जहां सवाल हों, वहां आस्था खत्म हो जाती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है मध्य प्रदेश के उज्जैन और झाबुआ इलाकों में, जहां अस्था के नाम पर खतरनाक परम्परा चली आ रही है, अंधविश्वास के इस खेल को जानने के बाद आप भी दातों तले अंगुली दबा लेंगे. दीपावली के दूसरे दिन झाबुआ और उज्जैन में गायों के पैरों तले सैकड़ों लोग लेट जाते हैं और गायें उनके ऊपर से निकल जाती हैं. पढ़ें.....

उज्जैन के भीडावद गांव में सदियों से चली आ रही परम्परा लोगों के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती है, बल्कि देखने वालों का भी दिल दहल जाता है.

चार हजार की आबादी वाले भीडावद गांव में दीपावली के बाद वाले दिन दर्जनों लोग अपनी मन्नतें लेकर सैकड़ों गायों के पैरों तले रुधने के लिए जमीन पर लेट जाते हैं, कुछ ही पलों में सैकड़ों गायें जमीन पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से गुजर जाती हैं. इस मंजर को देखने के लिए हर साल इस गांव में हजारों लोग जमा होते हैं.

उज्जैन में गौरी पूजन की सदियों पुरानी परम्परा का निर्वहन.

शहर से 45 किलोमीटर दूर भीडावद गांव के लोग दिवाली के दूसरे दिन सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हैं. सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परम्परा निभाने की तैयारियों में जुट जाते हैं, जिसके बाद मन्नत मांगने वाला जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता है.

इस जुलूस में लोग मुंह के बल जमीन पर लेट जाते हैं. उसके बाद गांव की सैकड़ों गायें दौड़ते हुए उनके ऊपर से गुजर जाती हैं. जो भी इस नजारे को देखता है, उसका दिल-दहल जाता है.

गांव के लोग बताते हैं कि यह परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है, गांव के लोग अपनी-अपनी मन्नतें मांगते हैं.

प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानी की गोमाता सुख-समृद्धि और शांति की प्रतीक हैं, शास्त्रों में भी गोमाता के शारीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास बताया गया है, गांव के लोग मन्नतियों को साथ लेकर गांव के चौक पर जमा होते हैं, जहां पर मां गौरी (गोमाता) का पूजन किया जाता है.

ढोल-ताशों के बीच चौक पर मां गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते हैं. करीब दो क्विंटल वजनी सैकड़ों गायें इन लोगों के शरीर को रौंदती हुई निकल जाती हैं.

इस ऐतिहासिक परम्परा में लोगों की अटूट आस्था के चलते मन्नतधारियों को मामूली नुकसान से ज्यादा कुछ नहीं होता.

सदियों से चली आ रही इस परम्परा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगों की आस्था को और मजबूत करता है.

झाबुआ में मनाया जाता है गाय गोहरी पर्व
इसी तरह की एक प्रथा मध्यप्रदेश के झाबुआ में देखने को मिलती है, जहां दीपावली के दो दिन बाद तक गाय गोहरी का पर्व मनाया जाता है.

झाबुआ का गाय गोहरी पर्व इसलिए हर साल चर्चा में रहता है कि यहां मन्नतधारी गायों के पैरों के नीचे लेटकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

इस दौरान गायों को मोर पंख के साथ ही सुंदर-आकर्षक रंगों से सजाया-संवारा भी जाता है, जिसके बाद इन गायों से मन्नतधारियों को रौंदवाया जाता है.

गायों को मन्नतियों के ऊपर दौड़ाते हैं ग्रामीण.

झाबुआ में गोवर्धन नाथ मंदिर के सामने गाय गोहरी का पर्व पड़वा यानी नव वर्ष के दिन के रूप में मनाया जाता है.

राणापुर क्षेत्र के कन्जावानी, समोई, रूपा खेड़ा, छायन जैसे गांवों में गाय गोहरी का पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है.

सोमवार को गाय गोहरी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हुए. इसे आप आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन सच्चाई ये है कि इस पर्व के दौरान मैदान में लेटे लोगों के ऊपर से गायें दौड़ती हुई निकल जाती हैं, पर उन्हें कुछ नहीं होता.

यहां के आदिवासी समाज में ये मान्यता है कि गाय के पैरों के नीचे बैकुंठ होता है.

गाय गोहरी के पूर्व खुले मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की जाती है. मन्नतधारी अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए, घर में सुख- शांति और समृद्धि के साथ-साथ संतान प्राप्ति के लिए भी ऐसा करते हैं.

आदिवासी जिले में मनाया जाने वाला पर्व अपनी विविधता के चलते पूरे देश में आकर्षण का केंद्र भी रहता है.

नोट : ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, न ही इस खबर को प्रकाशित करने के पीछे ऐसी कोई मंशा है.

Intro:उज्जैन बड़नगर आस्था के नाम पर अंधविश्वास , मौत का खेल ... मन्नत पूरी करने के लिए और गाँव की खुशहाली के लिए गाँव की सेकड़ो गाय इंसान के ऊपर से निकलती है .. रोगंटे खड़े कर देने वाला द्रष्य




Body:उज्जैन हिंदुस्तान ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली हे लेकिन इक्कीसवी सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला हे. आस्था और परंपरा की हदे पार हो जाये तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता हे। उज्जैन के एक गाव में सदियों से चली आ रही एक परंपरा लोगो के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती हे बल्कि देखने वालो के दिल भी दहल जाते हे चार हज़ार की आबादी वाले भीडावद गाव में दीपावली के दुसरे दिन दर्जनों लोग मन्नते लेकर सेकड़ो गायों के पेरो तले रुधने के लिए लेट जाते हे कुछ ही पलो में सेकड़ो गाये जमीं पर लेटे लोगो के ऊपर से गुजर जाती हे. इस मंज़र को देखने के लिए हर साल इस गाव में हजारो लोग जमा होते हे



Conclusion:उज्जैन पडवा यानि दीवाली के दुसरे दिन जब सारा देश दीपावली की थकान मिटाने के लिए नीद की आगोश में सोया रहता हे तब उज्जैन से ७५ की.मी.दूर भीडावद गाव के लोग सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हे सूरज निकलने से पहले ही लोग सदियों से चली आ रही गोरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हे सूरज निकलते ही मंदिरों में घंटिया बजने लगती हे .सुबह होते ही लोग अपनी गायो को तैयार करते हे. माता का रूप माने जाने वाली सेकड़ो गायो को नहलाया जाता हे इनको आकर्षक रंग और मेहँदी से सजाया जाता हे .इसके बाद गाव के लोग चौक में जमा हो जाते हे.जहाँ से मन्नत माँगने वाले लोगो का एक जुलुस पूरे गाँव में निकाला जाता हे.जुलुस ख़तम होने के बाद गाँव के मुख्य मार्ग पर इन मन्नत मांगने वाले लोगो को मुह के बल जमीन पर लिटाया जाता हे.उसके बाद गाँव की सैकड़ो गायो को छोड़ दिया जाता हे.ये गाये दौड़ते हुए जमीन पर लेटे हुए मन्नातियो के ऊपर से गजर जाती हे.जो भी इस नज़ारे को देखता है उसका दिल दहल जाता हे गाँव के लोग बताते हे की ये परम्परा सैकड़ो सालों से चली आ रही है गाव के लोग अपनी-अपनी मन्नत मांगते हे

गाँव में प्राचीन मान्यता है की माँ गौरी का रूप यानि की गो माता सुख समृध्धि और शांति का प्रतिक है शास्त्रों में भी गो माता के शारीर में ३३ करोड़ देवताओ वास बताया गया है गाँव के लोग मन्नातियो को साथ लेकर गाँव के चौक में जमा होते है यहाँ पर माँ गौरी ( गो माता ) का पूजन किया जाता है ढोल धमाको के बीच चौक में माँ गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते है

गाँव में ये परम्परा बरसो पहले शुरू हुई जो आज भी बदस्तूर जारी हे इस गाँव के जो लोग माता भवानी के मंदिर में मन्नत मांगते हे उनको दीपावली से पांच दिन पहले ग्यारस की दिन से ही अपने घर छोड़ कर मंदिर में ही रहना पड़ता है इस साल भी गाँव के सात लोगो ने मन्नते मांगी है जिनको पांच दिन तक पूरे समय म,अन्दिर में ही रहना पड़ा दीपावली के दुसरे दिन पडवा को इन सातो लोगो को मंदिर में पूजा के बाद जूलूस के रूप में गाँव में घोमाया गया मन्नत मांगने वाले लोगो को पूरा भरोसा रहता है की पुरखो से चली आ रही इस परंपरा को निभाने से उनकी मुराद पूरी होती है

सुबह होते ही मन्नात्धारी लोगो के ऊपर से सेकड़ो गांए दोड़ते हुए गुज़र जाती है डेड से दो क्विंटल वजनी सेकड़ो गांए इन लोगो के शारीर को रोंदाती हुई निकल जाती है .लेकिन एतिहासिक परंपरा में लोगो की अटूट आस्था के चलते मन्नत धारिओ को मामूली नुक्सान से ज्यादा कुछ नहीं होता सेकड़ो सालो से चली आ रही इस परंपरा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगो की आस्था को और मजबूत करता है हर साल दिल को दहला देने वाले इस नज़ारे को देखने के लिए आस पास के गाँवो से हजारो लोग जुटते है गाँव की महिलाए भी इस परंपरा को सुख शांति और समृध्धि का प्रतीक मानती है







बाइट---महेश ग्रामीण

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.