उज्जैन : कहा जाता है कि आस्था पर सवाल नहीं खड़े किये जाते और जहां सवाल हों, वहां आस्था खत्म हो जाती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है मध्य प्रदेश के उज्जैन और झाबुआ इलाकों में, जहां अस्था के नाम पर खतरनाक परम्परा चली आ रही है, अंधविश्वास के इस खेल को जानने के बाद आप भी दातों तले अंगुली दबा लेंगे. दीपावली के दूसरे दिन झाबुआ और उज्जैन में गायों के पैरों तले सैकड़ों लोग लेट जाते हैं और गायें उनके ऊपर से निकल जाती हैं. पढ़ें.....
उज्जैन के भीडावद गांव में सदियों से चली आ रही परम्परा लोगों के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती है, बल्कि देखने वालों का भी दिल दहल जाता है.
चार हजार की आबादी वाले भीडावद गांव में दीपावली के बाद वाले दिन दर्जनों लोग अपनी मन्नतें लेकर सैकड़ों गायों के पैरों तले रुधने के लिए जमीन पर लेट जाते हैं, कुछ ही पलों में सैकड़ों गायें जमीन पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से गुजर जाती हैं. इस मंजर को देखने के लिए हर साल इस गांव में हजारों लोग जमा होते हैं.
शहर से 45 किलोमीटर दूर भीडावद गांव के लोग दिवाली के दूसरे दिन सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हैं. सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परम्परा निभाने की तैयारियों में जुट जाते हैं, जिसके बाद मन्नत मांगने वाला जुलूस पूरे गांव में निकाला जाता है.
इस जुलूस में लोग मुंह के बल जमीन पर लेट जाते हैं. उसके बाद गांव की सैकड़ों गायें दौड़ते हुए उनके ऊपर से गुजर जाती हैं. जो भी इस नजारे को देखता है, उसका दिल-दहल जाता है.
गांव के लोग बताते हैं कि यह परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है, गांव के लोग अपनी-अपनी मन्नतें मांगते हैं.
प्राचीन मान्यता है कि मां गौरी का रूप यानी की गोमाता सुख-समृद्धि और शांति की प्रतीक हैं, शास्त्रों में भी गोमाता के शारीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास बताया गया है, गांव के लोग मन्नतियों को साथ लेकर गांव के चौक पर जमा होते हैं, जहां पर मां गौरी (गोमाता) का पूजन किया जाता है.
ढोल-ताशों के बीच चौक पर मां गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते हैं. करीब दो क्विंटल वजनी सैकड़ों गायें इन लोगों के शरीर को रौंदती हुई निकल जाती हैं.
इस ऐतिहासिक परम्परा में लोगों की अटूट आस्था के चलते मन्नतधारियों को मामूली नुकसान से ज्यादा कुछ नहीं होता.
सदियों से चली आ रही इस परम्परा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगों की आस्था को और मजबूत करता है.
झाबुआ में मनाया जाता है गाय गोहरी पर्व
इसी तरह की एक प्रथा मध्यप्रदेश के झाबुआ में देखने को मिलती है, जहां दीपावली के दो दिन बाद तक गाय गोहरी का पर्व मनाया जाता है.
झाबुआ का गाय गोहरी पर्व इसलिए हर साल चर्चा में रहता है कि यहां मन्नतधारी गायों के पैरों के नीचे लेटकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
इस दौरान गायों को मोर पंख के साथ ही सुंदर-आकर्षक रंगों से सजाया-संवारा भी जाता है, जिसके बाद इन गायों से मन्नतधारियों को रौंदवाया जाता है.
झाबुआ में गोवर्धन नाथ मंदिर के सामने गाय गोहरी का पर्व पड़वा यानी नव वर्ष के दिन के रूप में मनाया जाता है.
राणापुर क्षेत्र के कन्जावानी, समोई, रूपा खेड़ा, छायन जैसे गांवों में गाय गोहरी का पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है.
सोमवार को गाय गोहरी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हुए. इसे आप आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन सच्चाई ये है कि इस पर्व के दौरान मैदान में लेटे लोगों के ऊपर से गायें दौड़ती हुई निकल जाती हैं, पर उन्हें कुछ नहीं होता.
यहां के आदिवासी समाज में ये मान्यता है कि गाय के पैरों के नीचे बैकुंठ होता है.
गाय गोहरी के पूर्व खुले मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की जाती है. मन्नतधारी अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए, घर में सुख- शांति और समृद्धि के साथ-साथ संतान प्राप्ति के लिए भी ऐसा करते हैं.
आदिवासी जिले में मनाया जाने वाला पर्व अपनी विविधता के चलते पूरे देश में आकर्षण का केंद्र भी रहता है.
नोट : ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, न ही इस खबर को प्रकाशित करने के पीछे ऐसी कोई मंशा है.