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नहीं रहे कैंसर के प्रख्यात चिकित्सक पद्मश्री डॉ. यशी ढोडेन - कैंसर का इलाज

पद्मश्री डॉ. यशी ढोडेन का 93 वर्ष की उम्र में मंगलवार को सुबह धर्मशाला के मैक्लोडगंज में निधन हो गया. यशी ढोडेन तिब्बती पद्धति से कैंसर का इलाज करते थे. वह तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के निजी चिकित्सक रह चुके थे. पढ़ें पूरी खबर...

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डॉ. यशी ढोडेन
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Published : Nov 26, 2019, 7:58 PM IST

Updated : Nov 26, 2019, 8:11 PM IST

धर्मशाला : पद्मश्री से सम्मानित डॉ. यशी ढोडेन का मंगलवार सुबह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के मैक्लोडगंज में निधन हो गया. डॉ. यशी को कैंसर जैसी जानवेला बीमारी का इलाज करने में महारत हासिल थी. वह तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के भी निजी चिकित्सक रह चुके हैं. 93 वर्षीय यशी ढोडेन पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. भारत सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा था. वर्तमान में डॉ. यशी ढोडेन मैक्लोडगंज में ही रहते थे.

डॉ यशी ढोडेन का जन्म 15 मई, 1927 को लहोका, तिब्बत में हुआ था. उनका परिवार नोगोक लोटसा और नोगो चोकेकु डोरजी के लोकप्रिय चिकित्सा वंश से आता है. यशी ढोडेन ने बीस साल की उम्र में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर ली थी.

डॉ. यशी ढोडेन का निधन.

वर्ष 1960 में उन्होंने तिब्बती मेडिकल कॉलेज की स्थापना की, जिसके वह 1979 तक निदेशक और प्रिंसिपल रहे. यशी ढोडेन 1960 से 1980 तक बीस साल तक तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा के निजी चिकित्सक थे.

पढ़ें : हिमाचल : देव परंपरा से छेड़छाड़ पर देवताओं ने जताई नाराजागी, दी आपदा की चेतावनी

ढोडेन हर्बल दवाओं और तिब्बती पद्धति से कैंसर पीड़ितों का इलाज करते थे. मैक्लोडगंज में उनके क्लीनिक में बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए विदेश से भी आते थे. वर्ष 2018 में उन्हें हर्बल दवाओं और आहार के माध्यम से हजारों रोगियों के उपचार में योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने साल 2019 के अप्रैल महीने में रिटायरमेंट ली थी. मैक्लोडगंज स्थित तिब्बत मेडिकल इंस्टीट्यूट में उनके लिए लिए प्रार्थना का आयोजन किया गया.

बता दें कि शुक्रवार को सुबह छह बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.

धर्मशाला : पद्मश्री से सम्मानित डॉ. यशी ढोडेन का मंगलवार सुबह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के मैक्लोडगंज में निधन हो गया. डॉ. यशी को कैंसर जैसी जानवेला बीमारी का इलाज करने में महारत हासिल थी. वह तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के भी निजी चिकित्सक रह चुके हैं. 93 वर्षीय यशी ढोडेन पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. भारत सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा था. वर्तमान में डॉ. यशी ढोडेन मैक्लोडगंज में ही रहते थे.

डॉ यशी ढोडेन का जन्म 15 मई, 1927 को लहोका, तिब्बत में हुआ था. उनका परिवार नोगोक लोटसा और नोगो चोकेकु डोरजी के लोकप्रिय चिकित्सा वंश से आता है. यशी ढोडेन ने बीस साल की उम्र में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर ली थी.

डॉ. यशी ढोडेन का निधन.

वर्ष 1960 में उन्होंने तिब्बती मेडिकल कॉलेज की स्थापना की, जिसके वह 1979 तक निदेशक और प्रिंसिपल रहे. यशी ढोडेन 1960 से 1980 तक बीस साल तक तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा के निजी चिकित्सक थे.

पढ़ें : हिमाचल : देव परंपरा से छेड़छाड़ पर देवताओं ने जताई नाराजागी, दी आपदा की चेतावनी

ढोडेन हर्बल दवाओं और तिब्बती पद्धति से कैंसर पीड़ितों का इलाज करते थे. मैक्लोडगंज में उनके क्लीनिक में बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए विदेश से भी आते थे. वर्ष 2018 में उन्हें हर्बल दवाओं और आहार के माध्यम से हजारों रोगियों के उपचार में योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने साल 2019 के अप्रैल महीने में रिटायरमेंट ली थी. मैक्लोडगंज स्थित तिब्बत मेडिकल इंस्टीट्यूट में उनके लिए लिए प्रार्थना का आयोजन किया गया.

बता दें कि शुक्रवार को सुबह छह बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.

Intro:धर्मशाला- इंसान के जीवन मे बीमारी का नाम जब आता है तो एक चिंता का विषय बन जाता है। वही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का उपचार करने में महारत हासिल किए पद्मश्री डॉ यशी ढोडेन का आज सुबह मैक्लोडगंज में निधन हो गया। डॉ यशी ढोडेन मैक्लोडगंज में ही रहते थे, वह तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के भी निजी चिकित्सक रह चुके हैं। 93 वर्षीय यशी ढोडेन पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। भारत सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा था।


डॉ यशी ढोडेन का जन्म 15 मई, 1927 को लहोका, तिब्बत में हुआ था। उनका परिवार नोगोक लोटसा और नोगो चोकेकु डोरजी के लोकप्रिय चिकित्सा वंश से आता है। वह बहुत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने बीस साल की उम्र में डॉक्टरी की पढ़ाई कर ली थी। वर्ष 1960 में उन्होंने तिब्बती मेडिकल कॉलेज की स्थापना की, जिसके वह 1979 तक निदेशक और प्रिंसिपल रहे। यशी ढोडेन 1960 से 1980 तक बीस साल तक तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा के निजी चिकित्सक भी रहे। 




Body:
वह हर्बल दवाओं और तिब्बती पद्धति से कैंसर पीड़ितों का इलाज करते थे। उनके क्लिनिक में मैक्लोडगंज में बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए विदेश से भी आते थे। वर्ष 2018 में उन्हें हर्बल दवाओं और आहार के माध्यम से हजारों रोगियों के उपचार में योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष अप्रैल माह में उन्होंने रिटायरमेंट ले ली थी।





Conclusion:वही उनके शिष्य का कहना है की जब भी वो बीमार होते थे तो वह अपनी देखभाल स्वयं कर लेते थे। लेकिन इस बार अटेक आने से वो खुद को नही सम्भाल सके। उन्होंने कहा कि कोई खास बीमारी गुरु जी को नही नही थी। उन्होंने कहा कि जब से दलाई लामा यहां आए थे तब वो भी यहां पर मौजूद थे। उन्होंने कहा कि तब से लोगो को खुद दवाई बनाकर खिलाते थे और वहां जाते थे। उन्होंने कहा कि तिबती मेडिकल इंसीटूट की स्थापना उन्होंने की उन्होंने कहा वहां से सेवा निर्वित होकर यहां पर काम कर रहे थे। दलाई लामा के भी वह निजी चिकित्सक रह चुके है।


वही मैक्लोडगंज स्थित तिबती मेडिकल इंसीटूट की स्थापना उन्होंने की थी वहां पर भी उनके लिए प्राथना का आयोजन किया था।  वही इस शुक्रवार को सुबह 6 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

Last Updated : Nov 26, 2019, 8:11 PM IST
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