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भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल : आज भी अधूरा है राहत और पुनर्वास, देखें खास रिपोर्ट - union carbide factory

भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकले जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली. तमाम परिवार आज भी इस घटना का दंश झेल रहे हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट

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भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की फाइल फोटो
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Published : Dec 2, 2019, 8:08 AM IST

Updated : Dec 2, 2019, 9:03 AM IST

भोपाल। कहते हैं वक्त के साथ हर जख्म भर जाता है, लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो ताजिंदगी नहीं भूलती हैं. ऐसा ही एक हादसा 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात मध्यप्रदेश की राजधानी में हुआ था. जिसे इतिहास के पन्नों में भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है. इस गैस कांड में हजारों लोगों की मौत हो गई थी, लाखों परिवारों पर इसका सीधे- सीधे असर हुआ था. उस डरावनी भयानक रात को याद करके आज भी गैस पीड़ित कांप उठते हैं.

दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकले कम से कम 30 टन जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली. तमाम परिवार आज भी इस घटना का दंश झेल रहे हैं.

भोपाल गैस त्रासदी को आज 35 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तक भोपाल के लोग इस सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं. ना ही अभी तक गैस पीड़ितों के हालात में कोई सुधार हुआ है. अब तक कितनी सरकारें आई और गईं, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के साथ इंसाफ नहीं कर सकीं. आज भी उन्हें मिला है तो सिर्फ अधूरा न्याय. गैसकांड के पीड़ित आज भी सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इन 35 सालों में गैसकांड के पीड़ितों ने अनगिनत प्रदर्शन, रैलियां, मतदान बहिष्कार जैसे कई कदम उठाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुई. सरकारों ने वादे तो तमाम किए, लेकिन मिलने वाला मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुआ.यहां तक की पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग का भी गठन किया गया, 33 राहत केंद्र गैस त्रासदी के पीड़ितों के इलाज के लिए भोपाल में चल रहे हैं, फिर भी पीड़ित इलाज के लिए दर- दर भटकते नजर आते हैं.

अब तो पीड़ितों को इलाज के लिए बने अस्पताल खुद ही बीमार हो चुके हैं. बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक सभी सरकारों ने एक- दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के आंसू पोंछने के बड़े-बड़े दावे किए हैं. राहत कार्य, मुआवजा और बेहतर इलाज जैसे जुमलों से गैसकांड के पीड़ितों को लुभाने की कोशिश भी खूब हुई, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है, रही है.

बात प्रदेश सरकार के दावों की, तो जब 35 साल में राहत और पुनर्वास का काम पूरा नहीं हो सका तो अब उम्मीद करना भी बेमानी ही नजर आता है.सरकारें भले ही लाख दावे करें, लेकिन इस त्रासदी के पीड़ितों की आंखों के आंसू सारी कहानी बयां करने के लिए काफी हैं. गौस त्रासदी ने जो दर्द इन्हें दिया, उसे तो किसी तरह इन्होंने सह लिया, लेकन 35 सालों से राहत और पुनर्वास कार्य के नाम पर जो मजाक इनके साथ किया गया उसे कैसे बर्दाश्त करें.

भोपाल। कहते हैं वक्त के साथ हर जख्म भर जाता है, लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो ताजिंदगी नहीं भूलती हैं. ऐसा ही एक हादसा 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात मध्यप्रदेश की राजधानी में हुआ था. जिसे इतिहास के पन्नों में भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है. इस गैस कांड में हजारों लोगों की मौत हो गई थी, लाखों परिवारों पर इसका सीधे- सीधे असर हुआ था. उस डरावनी भयानक रात को याद करके आज भी गैस पीड़ित कांप उठते हैं.

दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकले कम से कम 30 टन जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली. तमाम परिवार आज भी इस घटना का दंश झेल रहे हैं.

भोपाल गैस त्रासदी को आज 35 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तक भोपाल के लोग इस सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं. ना ही अभी तक गैस पीड़ितों के हालात में कोई सुधार हुआ है. अब तक कितनी सरकारें आई और गईं, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के साथ इंसाफ नहीं कर सकीं. आज भी उन्हें मिला है तो सिर्फ अधूरा न्याय. गैसकांड के पीड़ित आज भी सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इन 35 सालों में गैसकांड के पीड़ितों ने अनगिनत प्रदर्शन, रैलियां, मतदान बहिष्कार जैसे कई कदम उठाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुई. सरकारों ने वादे तो तमाम किए, लेकिन मिलने वाला मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुआ.यहां तक की पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग का भी गठन किया गया, 33 राहत केंद्र गैस त्रासदी के पीड़ितों के इलाज के लिए भोपाल में चल रहे हैं, फिर भी पीड़ित इलाज के लिए दर- दर भटकते नजर आते हैं.

अब तो पीड़ितों को इलाज के लिए बने अस्पताल खुद ही बीमार हो चुके हैं. बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक सभी सरकारों ने एक- दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के आंसू पोंछने के बड़े-बड़े दावे किए हैं. राहत कार्य, मुआवजा और बेहतर इलाज जैसे जुमलों से गैसकांड के पीड़ितों को लुभाने की कोशिश भी खूब हुई, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है, रही है.

बात प्रदेश सरकार के दावों की, तो जब 35 साल में राहत और पुनर्वास का काम पूरा नहीं हो सका तो अब उम्मीद करना भी बेमानी ही नजर आता है.सरकारें भले ही लाख दावे करें, लेकिन इस त्रासदी के पीड़ितों की आंखों के आंसू सारी कहानी बयां करने के लिए काफी हैं. गौस त्रासदी ने जो दर्द इन्हें दिया, उसे तो किसी तरह इन्होंने सह लिया, लेकन 35 सालों से राहत और पुनर्वास कार्य के नाम पर जो मजाक इनके साथ किया गया उसे कैसे बर्दाश्त करें.

Intro:भोपाल- दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड का नाम सुनते ही 35 साल पहले हुई ख़ौफ़नाक घटना का मंजर आंखों के सामने आ जाता है। जब जहरीली गैस रिसाव के बाद हजारों जाने गई थी और लाखों लोग इस जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे। गैस त्रासदी को 35 साल बीत चुके हैं। लेकिन इससे प्रभावित लोगों के जख्म आज भी हरे के हरे ही हैं।


Body:ओपनिंग पीटीसी- सिद्धार्थ सोनवाने।

आखिर क्या हुआ था उस रात-
2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात राजधानी के जेपी नगर में स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में आम दिनों की तरह ही कर्मचारी काम कर रहे थे। इस रात पाइप की धुलाई भी की जा रही थी। अचानक फैक्ट्री के प्लांट सी स्थित टैंक नंबर 610 से जहरीली गैस का रिसाव हुआ। इससे पहले की फैक्ट्री के कर्मचारी कुछ समझ पाते उन्हें खांसी, छींक, उल्टी, पेट दर्द और आंखों के सामने धुंधला नजर आने लगा। इस दौरान फैक्ट्री के ही एक कर्मचारी ने गैस रिसाव की जानकारी यूनियन कार्बाइड के ठीक सामने बसी बस्ती में लोगों को दी। इसके बाद बस्ती में भगदड़ सी मच गई। आसपास के इलाके के लोग खांसते हुए घरों के बाहर निकलने लगे और नए शहर की तरफ भागने लगे। भगदड़ इतनी हुई की कई परिवार बिखर गए और सड़कों पर लाशों के ढेर लगने लगे। सरकारी आंकड़ों की मानें तो गैस रिसाव के तुरंत बाद ही 2,259 लोगों की मौत हो गई थी। वंही दूसरे ही दिन ये आंकड़ा साढ़े 3 हज़ार पर पहुंच गया। लेकिन बताया जाता है कि, हकीकत में ये आंकड़ा इससे भी तीन गुना ज्यादा था। जबकि रिसाव के कारण 5 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए।

बाइट-1 पीड़ित महिला की बाइट लगाएं।

मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन को महज 5 घंटो में ही कर दिया गया था जमानत पर रिहा-

मिड पीटीसी- सिद्धार्थ सोनवाने।

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली लगभग 40 टन से भी ज्यादा जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट सी में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहा कर ले जा रहे थे। और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। गैस त्रासदी मैं बरती गई लापरवाही ओं के लिए यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के मालिक वारेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था। वारेन एंडरसन को आईपीसी की ऐसी धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था। जिन पर कोर्ट की इजाजत के बिना जमानत नहीं मिल सकती थी। इसके बावजूद महज 4 से 5 घंटे के भीतर वारेन एंडरसन को जमानत मिल गई। इतना ही नहीं वारेन एंडरसन को विशेष विमान से भोपाल से दिल्ली पहुंचाया गया और वहां से एंडरसन देश छोड़कर भागने में सफल हो गए। इसके बाद एंडरसन के खिलाफ अदालतों में सुनवाई होती रही अमेरिका से इनके प्रत्यर्पण की कथित कोशिशें भी की जाती रही लेकिन इस भयानक त्रासदी के बाद वारेन एंडरसन कभी भी भारत नहीं लौटा। बयान 20 साल की उम्र में साल 2014 में वारेन एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई। हालांकि तीन दशकों बाद भी यह साफ नहीं हो सका है कि आखिरकार एंडरसन की रिहाई किसके आदेशों पर की गई थी।



Conclusion:मुआवजे के नाम पर 25-25 हज़ार और निशुल्क दवाइयां-

इतने सालों में घटना को हर बार बरसी कर याद कर लिया जाता है दोषी को सजा दिलाने और मुआवजा दिलाने के तमाम वादे किए जाते हैं लेकिन दिन गुजरते ही वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है। यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना हक अमेरिका की कंपनी के पास होने के कारण हमेशा से यह मांग भी उठती रही कि गैस पीड़ितों को डॉलर के वर्तमान मूल्य पर मुआवजा दिया जाना चाहिए हालांकि इस याचिका में दिए गए निर्देश अभी भी सरकारी फाइलों में ही बंद है। इसके अलावा लाखों प्रभावितों के लिए अस्पताल भी खुले गए हैं लेकिन इन अस्पतालों में इलाज के नाम पर महज निशुल्क दवाएं ही वितरित की जाती है जबकि गैस कांड में प्रभावित हुए लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से इतने सालों बाद भी जूझ रहे हैं।

बाइट-2 पीड़ित महिला की बाइट लगाएं।

क्लोजिंग पीटीसी- सिद्धार्थ सोनवाने।
Last Updated : Dec 2, 2019, 9:03 AM IST
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