नई दिल्ली : शहरों में लोगों के घरों से प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े का जहां कुछ घंटों में निस्तारण हो जाता है, वहीं दिल्ली में स्थिति यह है कि दशकों पहले बनाए गए लैंडफिल साइट अपनी क्षमता से अधिक कूड़े को ढो रहा है. नतीजा यह है कि लैंडफिल साइट पर आए दिन हादसे होते रहते हैं. दिल्ली के तीन बड़े लैंडफिल साइट में से एक भलस्वा लैंडफिल साइट पर पिछले 50 वर्षों से कूड़ा इकट्ठा करने से न केवल प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में रहने वालों के लिए बड़ी मुसीबत बन चुका है.
राजधानी के भलस्वा डंपिंग साइट का हिस्सा आज सुबह झुग्गीनुमा मकानों पर गिर गया. इस डंपिंग साइट के पास कई झुग्गीनुमा घर बने हुए हैं, जिनमें लोग रहते हैं. अचानक मलबा गिरने से घरों के दरवाजे बंद हो गए. लोगों को सीढ़ियों द्वारा छतों के ऊपर से निकाला गया. गनीमत रही कि इस हादसे में कोई घायल नहीं हुआ है.
अब तक यहां करीब 80 लाख मीट्रिक टन कूड़ा इकट्ठा होकर 63 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ का रूप ले चुका है. सोमवार को जिस तरह इस साइट के एक हिस्से का कूड़ा अचानक ढह गया, अगर इसी तरह यहां जमा कूड़ा बिखरा तो 25 वर्ग किलोमीटर के दायरे में आने वाली कॉलोनियों में एक फुट ऊंचाई तक कूड़ा ही नजर आएगा. हालांकि लगातार गंभीर हो रही इस समस्या का हल ढूंढने में आईआईटी के विशेषज्ञ जुटे हैं. जल्द ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी एमसीडी को सौंप दी जाएगी.
कचरे से गैस उत्पादन की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं, लेकिन अभी सिर्फ वहां मलबे और प्लास्टिक को अलग करने का काम शुरू हो पाया है. भलस्वा लैंडफिल साइट पर कचरा भंडारण से होने वाली समस्याओं को दूर करने में अब तक सफलता नहीं मिल सकी है. बढ़ते प्रदूषण से प्रभावित हो रहे भूजल के कारण एमसीडी ने इसके अध्ययन की जिम्मेदारी आईआईटी दिल्ली को सौंपी है.
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डीपीआर में न केवल वैकल्पिक इंतजाम बल्कि इसे तैयार करने में होने वाले खर्च के अलावा गैस या कंपोस्ट से होने वाली आय सहित तमाम पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है. इसी रिपोर्ट के आधार पर भलस्वा लैंडफिल साइट की समस्या को दूर किया जाएगा, ताकि वर्षों से परेशानी झेल रहे दिल्ली वासियों को राहत मिल सके.
बताते चलें कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में रोजाना लगभग 4000 मीट्रिक टन कूड़ा इकट्ठा होता है, जिसे भलस्वा, नरेला और बवाना में डंप किया जाता है. लैंडफिल साइट में पैदा हो रहे मिथेन गैस को किस तरह उपयोगी बनाया जा सके, इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. गैस, खाद सहित अन्य उत्पादों का कैसे इस्तेमाल किया जाए और प्रदूषित हो रहे भूजल को भी बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.
डीपीआर सौंपने के बाद इस संबंध में टेंडर जारी किया जाएगा. बता दें इससे पहले गत दो मई को भलस्वा लैंडफिल साइट पर आधी रात को कचरे में अचानक लगी आग पर काबू पाने में दिनभर लग गया था. दिल्ली में फिलहाल प्रतिदिन लगभग 10,000 मीट्रिक टन कूड़ा एकत्रित होता है और आने वाले समय में बढ़कर 20,000 मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है. वहीं भलस्वा लैंडफिल साइट 19.2 हेक्टेयर में फैला हुआ है और गाजीपुर लैंडफिल साइट 28 हेक्टेयर में फैला हुआ है.
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समाधान की बात करें, तो कूड़ा संग्रहण को सबसे पहले व्यवस्थित करने पर जोर देना चाहिए. कॉलोनी व बाजार में पर्याप्त संख्या में अलग-अलग स्थानों पर कूड़ेदान की व्यवस्था किया जाना चाहिए. आउटडेटेड तकनीक की बजाए एजेंसी को अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कूड़ा निस्तारण के लिए करना चाहिए. रिसाइक्लिंग प्लांट के लिए लैंडफिल साइट के समीप जगह नहीं मिलने की स्थिति में एमससीडी को शहर के बाहरी हिस्से में स्थित अपनी जमीन पर प्लांट लगाने के बारे में निर्णय लेना चाहिए.