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शहीद भगत सिंह का मोहब्बत की नगरी से है खास संबंध, संरक्षण हमारा दायित्व - शहीदी दिवस

आगरा में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की यादों को संजोए कोठी नबंर-1784 जर्जर हो गई है. इस ओर न सरकार का ध्यान है न जिला प्रशासन और न ही समाजिक संगठन का. सिर्फ एक दिन शहीद-ए-आजम और उनके साथियों को याद किया जाता है. भगत सिंह और उनके साथियों ने आगरा की इसी कोठी में किराए पर रहकर बम बनाने का काम किया था. यहां के बनाए बम को 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में फोड़ कर अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था.

शहीद भगत सिंह का मोहब्बत की नगरी
शहीद भगत सिंह का मोहब्बत की नगरी
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Published : Mar 23, 2021, 1:41 PM IST

आगरा : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. जी हां हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगतसिंह और उनके साथियों की. शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को लाहौर में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटकाया था. भारत मां के तीनों वीर सपूत हंसते-हंसते सूली पर चढ़े और देश में आजादी की आग को शोला बन गए. शहीद-ए-आजम भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने सन् 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम धमाका करके अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था. भगत सिंह और उनके साथियों ने आगरा में किराए पर रहकर बम बनाने का काम किया था. जिस कोठी में भगत सिंह और उनके साथी छात्र बनकर रहे थे, वह नूरी दरवाजा स्थित कोठी नंबर 1784 है, जो खंडहर हो गई है.

सांडर्स की हत्या कर आगरा में रहे
शहीद-ए-आजम भगत सिंह लाहौर में अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स की गोली मारकर हत्या करने के बाद आगरा आए थे. सन 1928 में भगत सिंह और उनके साथी आगरा आए. यहां पर उन्होंने लाला छन्नोमल के नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को अपने कई दोस्तों के साथ किराए पर लिया था. छन्नोमल ने भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के पकड़े जाने पर गवाही दी थी. जिसमें उन्होंने स्वीकारा था कि, ढाई रुपये एडवांस देकर पांच रुपए महीने के किराए पर भगत सिंह ने मकान लिया था.

आगरा और भगत सिंह के संबंध पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आगरा में इसलिए आए भगत सिंह
आगरा और उसके आसपास क्रांतिकारी गतिविधिया बहुत कम थीं. इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत का इस ओर ध्यान नहीं था. शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इसीलिए आगरा को अपने लिए मुफीद माना था. नूरी दरवाजा, नाई की मंडी, हींग की मंडी में करीब एक साल तक शहीद भगतसिंह और उनके साथी रहे. इसके अलावा एक अहम वजह यह भी थी कि, कीठम, कैलाश भरतपुर का जंगल था. इन जंगलों में ही क्रांतिकारी अपने बनाए बम का परीक्षण करते थे. इन्हीं जंगलों में क्रांतिकारी हथियारों से निशाना लगाना भी सीखते थे.

असेंबली में फोड़ा था आगरा का बनाया बम
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने करीब एक साल नूरी दरवाजा की कोठी नंबर 1784 में बिताए थे. घर में ही बम की फैक्ट्री लगाई थी. यहां पर तैयार किए बम का भरतपुर के जंगल, कीठम के जंगल, कैलाश के जंगल, नाल बंद का नाला और नूरी दरवाजा के पीछे के जंगल में परीक्षण किया जाता था. अधिक तीव्रता वाले बम का परीक्षण झांसी के पास बबीना के जंगलों में किया जाता था. सभी आगरा में नाम बदल कर रहे थे. भगत सिंह का यहां उपनाम रंजीत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का उपनाम बलराम, राजगुरु का उपनाम रघुनाथ और बटुकेश्वरदत्त का उपनाम मोहन था. भगत सिंह और उनके साथियों ने 8 अप्रैल-1929 को असेंबली में बम फोड़ा था. उस दिन अंग्रेजी सरकार असेंबली में सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल पेश कर रही थी. यह दोनों ही कानून बहुत ही दमनकारी थे. असेंबली में 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे के साथ भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने सरेंडर कर दिया था.

इसे भी पढ़ें-शौर्यगाथा : फिरोजशाह कोटला किले में बैठक से लेकर बम फेंकने तक की कहानी...

तमाम लोगों की हुई थी गवाही
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' के मुताबिक 8 अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फोड़ने और सरेंडर करने पर भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया था. भगत सिंह को सांडर्स मर्डर केस में शामिल किया गया. 28 और 29 जुलाई, 1930 में सांडर्स मर्डर केस के मामले में आगरा के 12 से ज्यादा लोगों की गवाही हुई थी. इस गवाही में लाला छन्नोमल ने स्वीकारा था कि, भगत सिंह किराए पर उनके मकान में रहे थे.

कोठी को संरक्षित कराने की मांग
समाजसेवी विनोद साहनी का कहना है कि, सरदार भगत सिंह और उनके साथियों की आगरा में ही एकमात्र निशानी है. मेरा पूरा प्रयास है कि, खंडहर भवन को संरक्षित कराया जा सके. जिला प्रशासन और सरकार से लगातार प्रयास कर रहा हूं. क्योंकि, प्राइवेट प्रॉपर्टी होने के चलते सरकार और जिला प्रशासन ही इतिहास की जगह को संरक्षित कर सकते हैं. जिससे आगे आने वाली पीढ़ी हमारे इतिहास से रूबरू हो सकें. पेठा कारोबारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि, कई बार इस कोठी को संरक्षित करने के प्रयास किए गए. आजादी के इतिहास में एक मात्र आगरा की कोठी इतनी महत्वपूर्ण है कि, यहां से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गई थी. अगर यह कोठी संरक्षित हो जाए. हमारे आगे आने वाली पीढ़ी शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के इतिहास से रूबरू हो सकेगी.

भगत सिंह की मूर्ति लगाई
व्यापारी नवीन अग्रवाल का कहना है कि, शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की यादों को संजोने के लिए नूरी गेट का नाम भगत सिंह गेट किया गया है. इसके साथ ही उनकी याद में यहां उनकी मूर्ति भी लगाई गई है. जहां उनके शहीदी दिवस के साथ ही सितंबर में भी बड़ा कार्यक्रम होता है. नूरी दरवाजा के व्यापारी महेश गुप्ता का कहना है कि, जिस कोठी में भगत सिंह रहे थे, वो जर्जर हो चुकी है. उसका संरक्षण करना बहुत जरूरी है. यह हमारा इतिहास है. जब यह संरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढ़ी इसे जान सकेगी.

आगरा : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. जी हां हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगतसिंह और उनके साथियों की. शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को लाहौर में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटकाया था. भारत मां के तीनों वीर सपूत हंसते-हंसते सूली पर चढ़े और देश में आजादी की आग को शोला बन गए. शहीद-ए-आजम भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने सन् 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम धमाका करके अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था. भगत सिंह और उनके साथियों ने आगरा में किराए पर रहकर बम बनाने का काम किया था. जिस कोठी में भगत सिंह और उनके साथी छात्र बनकर रहे थे, वह नूरी दरवाजा स्थित कोठी नंबर 1784 है, जो खंडहर हो गई है.

सांडर्स की हत्या कर आगरा में रहे
शहीद-ए-आजम भगत सिंह लाहौर में अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स की गोली मारकर हत्या करने के बाद आगरा आए थे. सन 1928 में भगत सिंह और उनके साथी आगरा आए. यहां पर उन्होंने लाला छन्नोमल के नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को अपने कई दोस्तों के साथ किराए पर लिया था. छन्नोमल ने भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के पकड़े जाने पर गवाही दी थी. जिसमें उन्होंने स्वीकारा था कि, ढाई रुपये एडवांस देकर पांच रुपए महीने के किराए पर भगत सिंह ने मकान लिया था.

आगरा और भगत सिंह के संबंध पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आगरा में इसलिए आए भगत सिंह
आगरा और उसके आसपास क्रांतिकारी गतिविधिया बहुत कम थीं. इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत का इस ओर ध्यान नहीं था. शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इसीलिए आगरा को अपने लिए मुफीद माना था. नूरी दरवाजा, नाई की मंडी, हींग की मंडी में करीब एक साल तक शहीद भगतसिंह और उनके साथी रहे. इसके अलावा एक अहम वजह यह भी थी कि, कीठम, कैलाश भरतपुर का जंगल था. इन जंगलों में ही क्रांतिकारी अपने बनाए बम का परीक्षण करते थे. इन्हीं जंगलों में क्रांतिकारी हथियारों से निशाना लगाना भी सीखते थे.

असेंबली में फोड़ा था आगरा का बनाया बम
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने करीब एक साल नूरी दरवाजा की कोठी नंबर 1784 में बिताए थे. घर में ही बम की फैक्ट्री लगाई थी. यहां पर तैयार किए बम का भरतपुर के जंगल, कीठम के जंगल, कैलाश के जंगल, नाल बंद का नाला और नूरी दरवाजा के पीछे के जंगल में परीक्षण किया जाता था. अधिक तीव्रता वाले बम का परीक्षण झांसी के पास बबीना के जंगलों में किया जाता था. सभी आगरा में नाम बदल कर रहे थे. भगत सिंह का यहां उपनाम रंजीत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का उपनाम बलराम, राजगुरु का उपनाम रघुनाथ और बटुकेश्वरदत्त का उपनाम मोहन था. भगत सिंह और उनके साथियों ने 8 अप्रैल-1929 को असेंबली में बम फोड़ा था. उस दिन अंग्रेजी सरकार असेंबली में सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल पेश कर रही थी. यह दोनों ही कानून बहुत ही दमनकारी थे. असेंबली में 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे के साथ भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने सरेंडर कर दिया था.

इसे भी पढ़ें-शौर्यगाथा : फिरोजशाह कोटला किले में बैठक से लेकर बम फेंकने तक की कहानी...

तमाम लोगों की हुई थी गवाही
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' के मुताबिक 8 अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फोड़ने और सरेंडर करने पर भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया था. भगत सिंह को सांडर्स मर्डर केस में शामिल किया गया. 28 और 29 जुलाई, 1930 में सांडर्स मर्डर केस के मामले में आगरा के 12 से ज्यादा लोगों की गवाही हुई थी. इस गवाही में लाला छन्नोमल ने स्वीकारा था कि, भगत सिंह किराए पर उनके मकान में रहे थे.

कोठी को संरक्षित कराने की मांग
समाजसेवी विनोद साहनी का कहना है कि, सरदार भगत सिंह और उनके साथियों की आगरा में ही एकमात्र निशानी है. मेरा पूरा प्रयास है कि, खंडहर भवन को संरक्षित कराया जा सके. जिला प्रशासन और सरकार से लगातार प्रयास कर रहा हूं. क्योंकि, प्राइवेट प्रॉपर्टी होने के चलते सरकार और जिला प्रशासन ही इतिहास की जगह को संरक्षित कर सकते हैं. जिससे आगे आने वाली पीढ़ी हमारे इतिहास से रूबरू हो सकें. पेठा कारोबारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि, कई बार इस कोठी को संरक्षित करने के प्रयास किए गए. आजादी के इतिहास में एक मात्र आगरा की कोठी इतनी महत्वपूर्ण है कि, यहां से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गई थी. अगर यह कोठी संरक्षित हो जाए. हमारे आगे आने वाली पीढ़ी शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के इतिहास से रूबरू हो सकेगी.

भगत सिंह की मूर्ति लगाई
व्यापारी नवीन अग्रवाल का कहना है कि, शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की यादों को संजोने के लिए नूरी गेट का नाम भगत सिंह गेट किया गया है. इसके साथ ही उनकी याद में यहां उनकी मूर्ति भी लगाई गई है. जहां उनके शहीदी दिवस के साथ ही सितंबर में भी बड़ा कार्यक्रम होता है. नूरी दरवाजा के व्यापारी महेश गुप्ता का कहना है कि, जिस कोठी में भगत सिंह रहे थे, वो जर्जर हो चुकी है. उसका संरक्षण करना बहुत जरूरी है. यह हमारा इतिहास है. जब यह संरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढ़ी इसे जान सकेगी.

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