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बेंगलुरु के डॉक्टरों ने काबुल की महिला को दी नई जिंदगी

फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने काबुल की एक महिला को नई जिंदगी दी है. डॉक्टरों ने उसकी छोटी आंत का प्रत्यारोपण (small bowel transplant) किया. खून रोकने के लिए उसकी एक और सर्जरी हुई. पढ़ें पूरी खबर.

Fortis Hospital
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Published : Jul 17, 2021, 4:46 AM IST

बेंगलुरु : फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital) के डॉक्टरों ने काबुल की एक 27 वर्षीय महिला की जान बचाने के लिए छोटी आंत का जटिल और दुर्लभ प्रत्यारोपण (transplant) किया. महिला रक्त के थक्के जमने और शॉर्ट बाउल सिंड्रोम (short bowel syndrome) से पीड़ित थी. वह जीवित रहने के लिए टीपीएन (टोटल पैरेंट्रल न्यूट्रिशन) पर निर्भर थी.

पांच महीने पहले जब वह गर्भवती थी, तब काबुल में गैंगरीन के लिए उसकी छोटी आंत को हटा दिया गया था. काबुल के डॉक्टर इलाज के तरीके को लेकर आश्वस्त नहीं थे. उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी. आंत हटाए जाने से वह टीपीएन (टोटल पैरेंट्रल न्यूट्रिशन) पर निर्भर थी, जिसके कारण उसकी स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी, इसलिए उसे तत्काल इलाज के लिए फोर्टिस बेंगलुरु रेफर कर दिया गया.

रिपोर्ट में मरीज की स्थिति देखकर एकमात्र विकल्प छोटी आंत्र का प्रत्यारोपण था. डॉक्टरों की एक टीम ने एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य सहायक उपायों के साथ इलाज किया.

आसान नहीं था प्रत्यारोपण

फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉ. महेश गोपसेट्टी (Dr Mahesh Gopasetty) ने कहा, 'कोविड -19 लॉकडाउन के बीच एक उपयुक्त डोनर ढूंढना मुश्किल था. करीब 3 महीने से हमने सभी प्रयास किए और सभी कोविड सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करके उसे सुरक्षित रखा. 3 महीने की प्रतीक्षा अवधि के बाद हमें उसके लिए एक डोनर (ब्रेन डेड डोनर) मिला, अंग की उपलब्धता के तुरंत बाद प्रत्यारोपण किया गया. रोगी में रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति थी और प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद यह जोखिम सबसे अधिक था. हमें थक्कों को रोकने के लिए ब्लड थिनर का प्रबंध करना पड़ा. रक्तस्राव को रोकने के लिए हमें एक और सर्जरी करनी पड़ी.

पढ़ें- कोविड-19 की दूसरी लहर में अधिक शहरी पुरुषों ने खोई नौकरियां : CMIE

बेंगलुरु : फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital) के डॉक्टरों ने काबुल की एक 27 वर्षीय महिला की जान बचाने के लिए छोटी आंत का जटिल और दुर्लभ प्रत्यारोपण (transplant) किया. महिला रक्त के थक्के जमने और शॉर्ट बाउल सिंड्रोम (short bowel syndrome) से पीड़ित थी. वह जीवित रहने के लिए टीपीएन (टोटल पैरेंट्रल न्यूट्रिशन) पर निर्भर थी.

पांच महीने पहले जब वह गर्भवती थी, तब काबुल में गैंगरीन के लिए उसकी छोटी आंत को हटा दिया गया था. काबुल के डॉक्टर इलाज के तरीके को लेकर आश्वस्त नहीं थे. उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी. आंत हटाए जाने से वह टीपीएन (टोटल पैरेंट्रल न्यूट्रिशन) पर निर्भर थी, जिसके कारण उसकी स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी, इसलिए उसे तत्काल इलाज के लिए फोर्टिस बेंगलुरु रेफर कर दिया गया.

रिपोर्ट में मरीज की स्थिति देखकर एकमात्र विकल्प छोटी आंत्र का प्रत्यारोपण था. डॉक्टरों की एक टीम ने एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य सहायक उपायों के साथ इलाज किया.

आसान नहीं था प्रत्यारोपण

फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉ. महेश गोपसेट्टी (Dr Mahesh Gopasetty) ने कहा, 'कोविड -19 लॉकडाउन के बीच एक उपयुक्त डोनर ढूंढना मुश्किल था. करीब 3 महीने से हमने सभी प्रयास किए और सभी कोविड सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करके उसे सुरक्षित रखा. 3 महीने की प्रतीक्षा अवधि के बाद हमें उसके लिए एक डोनर (ब्रेन डेड डोनर) मिला, अंग की उपलब्धता के तुरंत बाद प्रत्यारोपण किया गया. रोगी में रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति थी और प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद यह जोखिम सबसे अधिक था. हमें थक्कों को रोकने के लिए ब्लड थिनर का प्रबंध करना पड़ा. रक्तस्राव को रोकने के लिए हमें एक और सर्जरी करनी पड़ी.

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