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लॉकडाउन में घर में बंद रहने को मजबूर बच्चे, व्यवहार में आ रहा बदलाव - मनोचिकित्सक

कोरोना संक्रमण के डर के चलते बच्चे न तो घर के बाहर खेलने जा पा रहे हैं और न ही अपने दोस्तों से मिल पा रहे हैं. ऐसे में उनके व्यवहार में बदलाव आए हैं. इसे लेकर 'ईटीवी भारत' ने बच्चों के अभिभावकों और मनोचिकित्सक से बात की. जानिए अभिभावकों ने क्या समस्याएं बताईं, मनोचिकित्सक ने क्या सुझाव दिए.

बच्चों के व्यवहार में आ रहा बदलाव
बच्चों के व्यवहार में आ रहा बदलाव
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Published : May 22, 2021, 3:52 PM IST

नई दिल्ली : लॉकडाउन के कारण बच्चे घर में बंद रहने को मजबूर हैं. संक्रमण के डर के चलते बच्चे न तो घर के बाहर खेलने जा पा रहे हैं और न ही अपने दोस्तों से मिल पा रहे हैं. ऐसे में उनके व्यवहार में काफी बदलाव भी देखने को मिल रहा है.

अभिभावकों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि गैजेट्स में बच्चे अब अपना समय बिता रहे हैं, जिसके चलते उनके व्यवहार में भी बदलाव आ रहा है. वे पहले से ज्यादा जिद्दी और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं.

अभिभावक सपना ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं. लॉकडाउन के कारण काफी समय से बच्चे घर पर ही हैं, ऐसे में बच्चों के शारीरिक और मानसिक गतिविधियों में काफी बदलाव हुआ है, जहां पहले हर काम टाइम टेबल से करते थे अब बच्चे बहुत ज्यादा आलसी हो गए हैं.

लॉकडाउन में घर में बंद रहने को मजबूर बच्चे

पढ़ें- NCERT पहली क्लास की कविता सोशल मीडिया पर वायरल, शिक्षकों ने बताया बेवजह का विवाद

इसके अलावा टीवी या अन्य सोशल मीडिया के जरिए कोरोना से जुड़ी खबरों को देखकर भी बच्चे कई सवाल पूछते हैं, कि यह कौन सी बीमारी है और क्या इससे हम बीमार हो जाएंगे? जिसको लेकर कई बार उन्हें समझाना पड़ता है. हालांकि कोरोना के डर के चलते बच्चे साफ-सफाई और हैंडवाश को लेकर भी सतर्क रहते हैं, लेकिन बच्चे अक्सर खेलने की जिद्द करते हैं. घर से बाहर जाने की जिद्द करते हैं, जिसके लिए उन्हें मनाना काफी मुश्किल हो जाता है.

संक्रमण के कारण घर में कैद

आठ साल के मयंक के पिता नीरज पालीवाल बताते हैं कि करीब 2 साल हो चुके हैं, बच्चे कहीं घूमने नहीं गए हैं अपने दोस्तों से नहीं मिले हैं. उनका बेटा अपने दादा-दादी, नाना-नानी समेत अलग-अलग रिश्तेदारों से मिलने या उनके घर जाने की जिद करता है. अपने दोस्तों से मिलने के लिए या बाहर घूमने जाने के लिए कहता है, लेकिन संक्रमण के डर के चलते हम उसे कहीं नहीं ले जा सकते. उसे समझाते हैं और फोन या वीडियो कॉल पर उसके दादा-दादी और अन्य रिश्तेदारों से बात करा देते हैं.

उसके खेलने के लिए घर का हॉल ही हमने प्लेग्राउंड बना दिया है. जहां पर वह साइकिल या क्रिकेट, फुटबॉल आदि से खेल कर अपना मनोरंजन कर लेता है. उन्होंने बताया कि घर पर रहने के कारण फोन चलाने की जिद्द करता है, जिसके चलते हाल ही में उसकी गर्दन में दर्द की शिकायत भी हुई थी, जिसको लेकर डॉक्टर को दिखाया था.

टाइम टेबल स्ट्रिक्टली फॉलो न करवाएं : मनोचिकित्सक

इन समस्याओं को लेकर 'ईटीवी भारत' ने सर गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता से भी बात की. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण बच्चे और माता-पिता सब घर पर ही हैं. कई माता-पिता वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं या फिर घर में काम करने वाली बाई नहीं आ रही है. इसके चलते माता-पिता अपने काम में लगे रहते हैं और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाते. ऐसे में बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय सोशल मीडिया या फोन को इस्तेमाल करने में लगाते हैं, जिससे कि वह मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निर्भर हो गए हैं.

कई बार माता-पिता अपनी कई परेशानियों को लेकर बच्चों पर गुस्सा निकाल देते हैं. वहीं बच्चे इस दौरान यह भी देख रहे हैं कि कोरोना के कारण उनका कोई न कोई करीबी उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया है, जिससे वह कई बार काफी ज्यादा अटैच होते थे, जिसमें दादा, नानी, दादी, चाचा या अन्य रिश्तेदार शामिल हैं.

डॉ. राजीव मेहता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जब बच्चे घर पर हैं, तो उन्हें इन सब परेशानियों से दूर रखने के लिए उनके दिन भर की एक्टिविटी का एक टाइम टेबल सेट करें, लेकिन इस टाइम टेबल को स्ट्रिक्टली फॉलो न करवाएं.

पढ़ें- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास अब भी कोविड-19 टीके की 1.6 करोड़ खुराक मौजूद

इस टाइम टेबल में बच्चों के खेलने, उनसे बात करने, उन्हें अलग-अलग एक्टिविटी करवाने और यहां तक कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने, रिश्तेदारों से बात करवाने और घर के छोटे-छोटे काम करवाने जैसी चीजें भी शामिल हों, जिससे कि बच्चों का समय अच्छा व्यतीत हो. इसके साथ ही उन्हें हर एक काम के लिए शाबाशी दें, उनकी बातें ध्यान से सुनें, उनसे ज्यादा से ज्यादा बातें करें.

नई दिल्ली : लॉकडाउन के कारण बच्चे घर में बंद रहने को मजबूर हैं. संक्रमण के डर के चलते बच्चे न तो घर के बाहर खेलने जा पा रहे हैं और न ही अपने दोस्तों से मिल पा रहे हैं. ऐसे में उनके व्यवहार में काफी बदलाव भी देखने को मिल रहा है.

अभिभावकों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि गैजेट्स में बच्चे अब अपना समय बिता रहे हैं, जिसके चलते उनके व्यवहार में भी बदलाव आ रहा है. वे पहले से ज्यादा जिद्दी और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं.

अभिभावक सपना ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं. लॉकडाउन के कारण काफी समय से बच्चे घर पर ही हैं, ऐसे में बच्चों के शारीरिक और मानसिक गतिविधियों में काफी बदलाव हुआ है, जहां पहले हर काम टाइम टेबल से करते थे अब बच्चे बहुत ज्यादा आलसी हो गए हैं.

लॉकडाउन में घर में बंद रहने को मजबूर बच्चे

पढ़ें- NCERT पहली क्लास की कविता सोशल मीडिया पर वायरल, शिक्षकों ने बताया बेवजह का विवाद

इसके अलावा टीवी या अन्य सोशल मीडिया के जरिए कोरोना से जुड़ी खबरों को देखकर भी बच्चे कई सवाल पूछते हैं, कि यह कौन सी बीमारी है और क्या इससे हम बीमार हो जाएंगे? जिसको लेकर कई बार उन्हें समझाना पड़ता है. हालांकि कोरोना के डर के चलते बच्चे साफ-सफाई और हैंडवाश को लेकर भी सतर्क रहते हैं, लेकिन बच्चे अक्सर खेलने की जिद्द करते हैं. घर से बाहर जाने की जिद्द करते हैं, जिसके लिए उन्हें मनाना काफी मुश्किल हो जाता है.

संक्रमण के कारण घर में कैद

आठ साल के मयंक के पिता नीरज पालीवाल बताते हैं कि करीब 2 साल हो चुके हैं, बच्चे कहीं घूमने नहीं गए हैं अपने दोस्तों से नहीं मिले हैं. उनका बेटा अपने दादा-दादी, नाना-नानी समेत अलग-अलग रिश्तेदारों से मिलने या उनके घर जाने की जिद करता है. अपने दोस्तों से मिलने के लिए या बाहर घूमने जाने के लिए कहता है, लेकिन संक्रमण के डर के चलते हम उसे कहीं नहीं ले जा सकते. उसे समझाते हैं और फोन या वीडियो कॉल पर उसके दादा-दादी और अन्य रिश्तेदारों से बात करा देते हैं.

उसके खेलने के लिए घर का हॉल ही हमने प्लेग्राउंड बना दिया है. जहां पर वह साइकिल या क्रिकेट, फुटबॉल आदि से खेल कर अपना मनोरंजन कर लेता है. उन्होंने बताया कि घर पर रहने के कारण फोन चलाने की जिद्द करता है, जिसके चलते हाल ही में उसकी गर्दन में दर्द की शिकायत भी हुई थी, जिसको लेकर डॉक्टर को दिखाया था.

टाइम टेबल स्ट्रिक्टली फॉलो न करवाएं : मनोचिकित्सक

इन समस्याओं को लेकर 'ईटीवी भारत' ने सर गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता से भी बात की. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण बच्चे और माता-पिता सब घर पर ही हैं. कई माता-पिता वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं या फिर घर में काम करने वाली बाई नहीं आ रही है. इसके चलते माता-पिता अपने काम में लगे रहते हैं और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाते. ऐसे में बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय सोशल मीडिया या फोन को इस्तेमाल करने में लगाते हैं, जिससे कि वह मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निर्भर हो गए हैं.

कई बार माता-पिता अपनी कई परेशानियों को लेकर बच्चों पर गुस्सा निकाल देते हैं. वहीं बच्चे इस दौरान यह भी देख रहे हैं कि कोरोना के कारण उनका कोई न कोई करीबी उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया है, जिससे वह कई बार काफी ज्यादा अटैच होते थे, जिसमें दादा, नानी, दादी, चाचा या अन्य रिश्तेदार शामिल हैं.

डॉ. राजीव मेहता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जब बच्चे घर पर हैं, तो उन्हें इन सब परेशानियों से दूर रखने के लिए उनके दिन भर की एक्टिविटी का एक टाइम टेबल सेट करें, लेकिन इस टाइम टेबल को स्ट्रिक्टली फॉलो न करवाएं.

पढ़ें- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास अब भी कोविड-19 टीके की 1.6 करोड़ खुराक मौजूद

इस टाइम टेबल में बच्चों के खेलने, उनसे बात करने, उन्हें अलग-अलग एक्टिविटी करवाने और यहां तक कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने, रिश्तेदारों से बात करवाने और घर के छोटे-छोटे काम करवाने जैसी चीजें भी शामिल हों, जिससे कि बच्चों का समय अच्छा व्यतीत हो. इसके साथ ही उन्हें हर एक काम के लिए शाबाशी दें, उनकी बातें ध्यान से सुनें, उनसे ज्यादा से ज्यादा बातें करें.

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