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विशेष लेख : सौर ऊर्जा दिला सकती है प्रदूषण से निजात

ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के पीएम के साथ मिलकर 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' का कॉन्सेप्ट दिया है. लेकिन यह सपना तभी पूरा हो पाएगा, जब हरेक देश इसमें अपना योगदान करे. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत तेजी से प्रगति कर रहा है. भारत सरकार सौर ऊर्जा का बढ़ावा देने के लिए 30 फीसदी तक सहयोग भी कर रही है. कुछ राज्यों में 70 फीसदी तक मदद की जा रही है, जैसे उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लक्षद्वीप में. पढ़िए एक आलेख.

सौर ऊर्जा
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Published : Nov 17, 2021, 6:45 PM IST

हैदराबाद : ऊर्जा के क्षेत्र को लेकर मुख्य रूप से दो विषय हैं. ये हैं डिकार्बोनाइजेशन और बिजली का समान रूप से वितरण. जीवाश्म ईंधन के हानिकारक प्रभावों और लगातार बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से पृथ्वी को बचाने की वैश्विक खोज का यह एक हिस्सा है.

भारत अभी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बिजली पहुंचाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है. यह स्थिति तब है जबकि अभी भी 20 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचानी है. दूसरी ओर आबादी भी लगातार बढ़ रही है. लिहाजा बिजली की खपत भी लगातार बढ़ती जा रही है. दूसरी ओर विकास के कारण भी बिजली की डिमांड बढ़ी है. भारत अभी भी बिजली की मांग को पूरी करने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है.

अगर भारत को जीडीपी में उत्सर्जन के योगदान को कम करना है, तो उसे क्रांतिकारी स्तर पर कदम उठाने होंगे. इस दशक के अंत तक भारत ने अपनी जरूरत का 40 फीसदी बिजली रेन्वेवल सोर्स से पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. यह पेरिस समझौते की रूपरेखा के अनुरूप है. जाहिर है, इस क्षमता को तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कर सकें.

भारत में प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है. ऐसा न मानें कि दुनिया के दूसरे देश प्रदूषण को बढ़ाने में पीछे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का स्तर पिछले तीस सालों में 50 फीसदी तक बढ़ चुका है. जीवाश्म ईंधनों के जलाए जाने से कार्बन उत्सर्जन के बढ़ने की गति 62 फीसदी तक हो चुकी है. हम अस्वस्थकर हालात में जीने के लिए अभिशप्त हैं. अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा जन स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेती है. भारत में प्रदूषण मौत की तीसरी बड़ी वजह है. भारत में हर साल 42 लाख लोग इसकी वजह से मरते हैं. दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 21 शहर भारत के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अधिकांश शहर वायु गुणवत्ता के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हैं.

वायु में औसतन 2.5 पीएम का संकेद्रण भारत में 50.08 है. उत्तर प्रदेश के औद्योगिक इलाकों जैसे मुरादाबाद, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा में वायु गुणवत्ता का स्तर बहुत ही खराब है. एयर क्वालिटी इंडेक्स वहां के हालात बताते हैं. गुवाहाटी, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, मेरठ, सिलीगुड़ी, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर भी प्रदूषण की चपेट में हैं. वायु गुणवत्ता सही नहीं है.

देश की राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सबसे निम्न किस्म का है. सरकार ने पराली जलाने, ट्रैफिक पर नियंत्रण लगाने और पटाखों पर बैन लगाकर कुछ हद तक इसे कम करने की कोशिश की है. दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत आपातकाल में उपयोग किए जा रहे डीजल जेनरेशन पर भी पाबंदियां लगाई हैं. पराली जलाने से बचने के लिए ऑर्गेनिक कंपोस्टिंग का विकल्प दिया गया है. इसके लिए विशेष तौर पर एक कैप्सूल तैयार किया गया है. इसके बावजूद घरेलू, औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोग के कारण कार्बन उत्सर्जन का लेवल काफी ज्यादा है. जाहिर है, इस पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है.

प्रदूषण का जैव विविधता पर भी काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता है. जलाशयों में यूट्रोफिकेशन की शिकायत रहती है. नदियों में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक जमा हो जाती है. इसकी वजह से यहां पर प्रदूषण बढ़ता है. शैवाल नदी को आच्छादित कर लेता है. शैवाल के अधिक रूप में जमा होने की वजह से नदी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. ऐसे में नदियों में रहने वाली मछलियों और जल प्राणी के लिए जीना मुश्किल हो जाता है. यह तो एक छोटा सा उदाहरण है, जिसके जरिए आप समझ सकते हैं कि वायु प्रदूषण का कितना गंभीर असर पड़ता है. इसकी क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है. प्रकृति और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है.

नीति निर्धारकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जीवाश्म ईंधन का विकल्प खोजना है. स्वच्छ ऊर्जा किसी तरह से पैदा की जा सकती है. जीवाश्म ईंधन न सिर्फ प्रदूषण बढ़ाता है, बल्कि इसकी मात्रा भी सीमित है.

नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे अच्छा माध्यम सौर ऊर्जा है. यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है. भारत में सौर ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. हम इसमें स्वावलंबी हो सकते हैं. पार्यावरण के साथ-साथ बिजली की दर भी अफोर्डेबल है. पारंपरिक माध्यमों से बिजली उत्पादन करने के लिए काफी बड़ा निवेश जरूरी होता है.

यह भी पढ़ें- ग्लासगो जलवायु समझौते के बारे में पांच बातें जो हमें जाननी चाहिए

सौर ऊर्जा हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है. जीवाश्म ईंधन से मुक्ति दिला सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि आप इसे आसानी से अपने-अपने घरों में भी लगा सकते हैं. घर की छतों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाकर आप खुद इसके उपभोक्ता और उत्पादक बने रह सकते हैं. बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों से लेकर छोटे दुकानदार तक इसको सुगमता से लगा सकते हैं. वैसे भी भारत में हमारे भवनों की छतें अनुपयोगी पड़ी रहती हैं.

एक अनुमान है कि छत पर एक किलोवाट सौर ऊर्जा की व्यवस्था करने से 25 सालों में हम 30 टन कार्बन उत्सर्जन को रोक सकते हैं. अगर पेड़ों की संख्या के आधार पर गणना करें, तो 50 पेड़ों के लगाने के बराबर है. पर्यावरण के हिसाब से तो यह बहुत ही सकारात्मक कदम है. अभी सोलर से जितना उत्पादन हम कर पाते हैं, उसका 40 फीसदी रूफटॉप से ही आता है. यानी 100 गीगावाट में से 40 गीगावाट. भारत सरकार 30 फीसदी तक सहयोग भी कर रही है. कुछ राज्यों में 70 फीसदी तक सरकार मदद कर रही है, जैसे उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लक्षद्वीप में. यह हमारे आत्म निर्भर भारत के अनुरूप कदम भी है.

पिछले सप्ताह लंदन के ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने संयुक्त रूप से 'वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड' का संकल्प लिया है. यानी दुनिया के सारे देशों का एक ग्रिड होगा. पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया के किसी न किसी कोने में हर समय सूर्य की किरणें आती रहती हैं. इस ग्रिड के माध्यम से सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है.

हालांकि, ये भी एक सच्चाई है कि सौर ऊर्जा को लेकर हमारी सीमाएं भी हैं. छतों का आकार सीमित होता है. बिजली वितरण करने वाली कंपनियों की अपनी क्षमताएं हैं. छतों की ढलान और आकार भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण होता है. जैसे उत्तरी हेमिस्फेयर में दक्षिण की ओर ढलान या फेसिंग रखने वाली छतों पर रोशनी अधिक आती है.

इन छोटी-मोटी चुनौतियों के बावजूद सौर ऊर्जा का सबसे अधिक लाभ यह है कि आप इसे अपने बिल्डिंग से इसका उत्पादन कर सकते हैं. जिस समय सन लाइट रहता है, उस समय एक्स्ट्रा बिजली को ग्रिड के जरिए सप्लाई भी कर सकते हैं.

भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है. ग्लासगो सम्मेलन में भारत ने बताया कि पिछले सात सालों में हमने सौर ऊर्जा के माध्यम से 17 गुना अधिक बिजली उत्पादन करने की क्षमता विकसित की है. जितना अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन करेंगे, उतना अधिक से अधिक हमारी निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर कम होती जाएगी. अगर हमारा प्रयास जारी रहा और कदम उठते रहे तो 2070 तक हम नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य अवश्य ही प्राप्त कर सकते हैं. इससे न सिर्फ जन स्वास्थ्य बल्कि अपनी बायोडायवर्सिटी को भी बचा सकते हैं.

(लेखक - अशद मोफिज, सहायक मैनेजर, कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस, जैक्सन ग्रुप)

हैदराबाद : ऊर्जा के क्षेत्र को लेकर मुख्य रूप से दो विषय हैं. ये हैं डिकार्बोनाइजेशन और बिजली का समान रूप से वितरण. जीवाश्म ईंधन के हानिकारक प्रभावों और लगातार बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से पृथ्वी को बचाने की वैश्विक खोज का यह एक हिस्सा है.

भारत अभी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बिजली पहुंचाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है. यह स्थिति तब है जबकि अभी भी 20 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचानी है. दूसरी ओर आबादी भी लगातार बढ़ रही है. लिहाजा बिजली की खपत भी लगातार बढ़ती जा रही है. दूसरी ओर विकास के कारण भी बिजली की डिमांड बढ़ी है. भारत अभी भी बिजली की मांग को पूरी करने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है.

अगर भारत को जीडीपी में उत्सर्जन के योगदान को कम करना है, तो उसे क्रांतिकारी स्तर पर कदम उठाने होंगे. इस दशक के अंत तक भारत ने अपनी जरूरत का 40 फीसदी बिजली रेन्वेवल सोर्स से पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. यह पेरिस समझौते की रूपरेखा के अनुरूप है. जाहिर है, इस क्षमता को तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कर सकें.

भारत में प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है. ऐसा न मानें कि दुनिया के दूसरे देश प्रदूषण को बढ़ाने में पीछे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का स्तर पिछले तीस सालों में 50 फीसदी तक बढ़ चुका है. जीवाश्म ईंधनों के जलाए जाने से कार्बन उत्सर्जन के बढ़ने की गति 62 फीसदी तक हो चुकी है. हम अस्वस्थकर हालात में जीने के लिए अभिशप्त हैं. अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा जन स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेती है. भारत में प्रदूषण मौत की तीसरी बड़ी वजह है. भारत में हर साल 42 लाख लोग इसकी वजह से मरते हैं. दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 21 शहर भारत के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अधिकांश शहर वायु गुणवत्ता के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हैं.

वायु में औसतन 2.5 पीएम का संकेद्रण भारत में 50.08 है. उत्तर प्रदेश के औद्योगिक इलाकों जैसे मुरादाबाद, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा में वायु गुणवत्ता का स्तर बहुत ही खराब है. एयर क्वालिटी इंडेक्स वहां के हालात बताते हैं. गुवाहाटी, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, मेरठ, सिलीगुड़ी, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर भी प्रदूषण की चपेट में हैं. वायु गुणवत्ता सही नहीं है.

देश की राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सबसे निम्न किस्म का है. सरकार ने पराली जलाने, ट्रैफिक पर नियंत्रण लगाने और पटाखों पर बैन लगाकर कुछ हद तक इसे कम करने की कोशिश की है. दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत आपातकाल में उपयोग किए जा रहे डीजल जेनरेशन पर भी पाबंदियां लगाई हैं. पराली जलाने से बचने के लिए ऑर्गेनिक कंपोस्टिंग का विकल्प दिया गया है. इसके लिए विशेष तौर पर एक कैप्सूल तैयार किया गया है. इसके बावजूद घरेलू, औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोग के कारण कार्बन उत्सर्जन का लेवल काफी ज्यादा है. जाहिर है, इस पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है.

प्रदूषण का जैव विविधता पर भी काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता है. जलाशयों में यूट्रोफिकेशन की शिकायत रहती है. नदियों में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक जमा हो जाती है. इसकी वजह से यहां पर प्रदूषण बढ़ता है. शैवाल नदी को आच्छादित कर लेता है. शैवाल के अधिक रूप में जमा होने की वजह से नदी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. ऐसे में नदियों में रहने वाली मछलियों और जल प्राणी के लिए जीना मुश्किल हो जाता है. यह तो एक छोटा सा उदाहरण है, जिसके जरिए आप समझ सकते हैं कि वायु प्रदूषण का कितना गंभीर असर पड़ता है. इसकी क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है. प्रकृति और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है.

नीति निर्धारकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जीवाश्म ईंधन का विकल्प खोजना है. स्वच्छ ऊर्जा किसी तरह से पैदा की जा सकती है. जीवाश्म ईंधन न सिर्फ प्रदूषण बढ़ाता है, बल्कि इसकी मात्रा भी सीमित है.

नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे अच्छा माध्यम सौर ऊर्जा है. यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है. भारत में सौर ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. हम इसमें स्वावलंबी हो सकते हैं. पार्यावरण के साथ-साथ बिजली की दर भी अफोर्डेबल है. पारंपरिक माध्यमों से बिजली उत्पादन करने के लिए काफी बड़ा निवेश जरूरी होता है.

यह भी पढ़ें- ग्लासगो जलवायु समझौते के बारे में पांच बातें जो हमें जाननी चाहिए

सौर ऊर्जा हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है. जीवाश्म ईंधन से मुक्ति दिला सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि आप इसे आसानी से अपने-अपने घरों में भी लगा सकते हैं. घर की छतों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाकर आप खुद इसके उपभोक्ता और उत्पादक बने रह सकते हैं. बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों से लेकर छोटे दुकानदार तक इसको सुगमता से लगा सकते हैं. वैसे भी भारत में हमारे भवनों की छतें अनुपयोगी पड़ी रहती हैं.

एक अनुमान है कि छत पर एक किलोवाट सौर ऊर्जा की व्यवस्था करने से 25 सालों में हम 30 टन कार्बन उत्सर्जन को रोक सकते हैं. अगर पेड़ों की संख्या के आधार पर गणना करें, तो 50 पेड़ों के लगाने के बराबर है. पर्यावरण के हिसाब से तो यह बहुत ही सकारात्मक कदम है. अभी सोलर से जितना उत्पादन हम कर पाते हैं, उसका 40 फीसदी रूफटॉप से ही आता है. यानी 100 गीगावाट में से 40 गीगावाट. भारत सरकार 30 फीसदी तक सहयोग भी कर रही है. कुछ राज्यों में 70 फीसदी तक सरकार मदद कर रही है, जैसे उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लक्षद्वीप में. यह हमारे आत्म निर्भर भारत के अनुरूप कदम भी है.

पिछले सप्ताह लंदन के ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने संयुक्त रूप से 'वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड' का संकल्प लिया है. यानी दुनिया के सारे देशों का एक ग्रिड होगा. पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया के किसी न किसी कोने में हर समय सूर्य की किरणें आती रहती हैं. इस ग्रिड के माध्यम से सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है.

हालांकि, ये भी एक सच्चाई है कि सौर ऊर्जा को लेकर हमारी सीमाएं भी हैं. छतों का आकार सीमित होता है. बिजली वितरण करने वाली कंपनियों की अपनी क्षमताएं हैं. छतों की ढलान और आकार भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण होता है. जैसे उत्तरी हेमिस्फेयर में दक्षिण की ओर ढलान या फेसिंग रखने वाली छतों पर रोशनी अधिक आती है.

इन छोटी-मोटी चुनौतियों के बावजूद सौर ऊर्जा का सबसे अधिक लाभ यह है कि आप इसे अपने बिल्डिंग से इसका उत्पादन कर सकते हैं. जिस समय सन लाइट रहता है, उस समय एक्स्ट्रा बिजली को ग्रिड के जरिए सप्लाई भी कर सकते हैं.

भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है. ग्लासगो सम्मेलन में भारत ने बताया कि पिछले सात सालों में हमने सौर ऊर्जा के माध्यम से 17 गुना अधिक बिजली उत्पादन करने की क्षमता विकसित की है. जितना अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन करेंगे, उतना अधिक से अधिक हमारी निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर कम होती जाएगी. अगर हमारा प्रयास जारी रहा और कदम उठते रहे तो 2070 तक हम नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य अवश्य ही प्राप्त कर सकते हैं. इससे न सिर्फ जन स्वास्थ्य बल्कि अपनी बायोडायवर्सिटी को भी बचा सकते हैं.

(लेखक - अशद मोफिज, सहायक मैनेजर, कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस, जैक्सन ग्रुप)

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