वाराणसी : बनारसी पान दिखने में भले आपको एक पत्ते के जैसा दिखाई दे, लेकिन यह पान आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. यही वजह है कि हिंदी फिल्मों में भी बनारसी पान ने गीतों के जरिए एक अलग मुकाम हासिल किया. विश्व पटल पर भी बनारस के पान की छाप है. बनारसीपन में खो जाने के लिए बनारस का पान बेहद जरूरी माना जाता है. लेकिन कई खूबी वाले इस बनारसी पान की एक खूबी यह भी है कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में भी बनारसी पान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
पान के बीड़े में सूचनाओं की पुड़िया
बनारस हजारों साल पुराना जीवंत शहर है और उतना ही पुराना और जीवंत बनारस का पान भी है. आज भी मुंह में पान को जमाते ही हर बनारसी ज्ञान की गंगा में न सिर्फ गोते लगाने लगता है, बल्कि बड़े-बड़े ज्ञानियों को भी मुफ्त में ज्ञान बांट देता है. यही वजह है कि बनारस का यह पान स्वतंत्रा आंदोलन की लड़ाई में अंग्रेजों की आंखों में धूल भी झोंकता था.
बनारस के जानकार बताते हैं कि आजादी के आंदोलन को जब बनारस में रहकर तमाम क्रांतिकारी और आंदोलनकारी आगे बढ़ा रहे थे. तब आंदोलनकारियों पर नकेल कसने के लिए उनके मूवमेंट की निगरानी होने लगी. प्रदर्शन से लेकर अन्य चीजों पर रोक लग गई. जिसकी वजह से वे अपनी प्लानिंग को आगे बढ़ाने और महत्वपूर्ण संदेश क्रांतिकारी एक-दूसरे तक नहीं पहुंचा पाते थे. उस वक्त इस बनारस के पान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बनारस के पान के ठोंगे में अखबारों का इस्तेमाल किया जाने लगा. चौगड़े में सुर्ती-सुपारी और चूने की पुड़िया के साथ चिट्ठियों की एक पुड़िया अलग से रखी जाने लगी, क्योंकि पान के चौगड़े की चेकिंग, तो अंग्रेजों द्वारा होती नहीं थी. इसलिए पान के ठोंगे और पान के पैकेट में संदेशों को छुपाकर एक स्थान से दूसरे स्थान भेजा जाता था.
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दुकानों पर दिखती है आंदोलन की झलक
बनारसी पान बनारस आने वाले सैलानियों को अपनी ओर खींचता है. बनारस में कई ऐसी पान की दुकानें भी हैं जो सैकड़ों साल पुरानी हैं. कई पीढ़ियों से बनारस में पान की दुकानों को संचालित किया जा रहा है. कई दुकान, तो ऐसी हैं जहां पर आपको बनारसीपन के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की झलक भी देखने को मिलेगी. इंदिरा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और अन्य बड़े नेताओं की तस्वीरों के साथ पान विक्रेताओं की तस्वीरें भी आपको बनारस के कई पान की दुकानों में देखने को मिल जाएंगी. इन दुकानों को चलाने वाले अब युवा पीढ़ी के पान विक्रेता भी यह मानते हैं कि उनके पूर्वज और पुराने लोग आजादी की लड़ाई में पान का महत्वपूर्ण योगदान बताते थे.