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बनारस की इस सीट पर मुस्लिम मतदाता अधिक, फिर भी 8 बार से है बीजेपी का कब्जा

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Published : Jan 27, 2022, 5:41 PM IST

लगातार आठ बार से विधानसभा चुनावों में बनारस की दक्षिणी विधानसभा सीट का बीजेपी के पास होना निश्चित तौर पर सारे सियासी समीकरणों से परे दिखाई देता है. दरअसल, बनारस की यह सीट हमेशा से ही भाजपा का सबसे मजबूत किला मानी जाती रही है. इसकी बड़ी वजह यह है कि यहां से श्यामदेव राय चौधरी ने 1989 से लेकर 2012 तक लगातार अपना कब्जा कायम रखा था.

BJP has been in possession of the southern assembly seat of Banaras for eight times
आठ बार से बीजेपी का कब्जा है बनारस की दक्षिणी विधानसभा सीट पर

वाराणसी : उत्तर प्रदेश में इस बार का विधानसभा चुनाव कई राजनीतिक दलों के भविष्य को निर्धारित करने वाला है. शायद यही वजह है कि सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी एक-एक सीट पर गुणा-गणित के बाद अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर रही है. वहीं समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ ही जातिगत और धार्मिक आधार पर हर सीट को जीतने का प्रयास कर रही है.

इन सबके बीच कुछ विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं जो वर्तमान में बीजेपी के लिए साख महत्व रखती हैं. ऐसी ही एक सीट है पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में पड़ने वाली शहर दक्षिणी विधानसभा की सीट. यह विधानसभा सीट एक-दो बार नहीं बल्कि लगातार आठ बार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पाले में रही है.

बनारस की इस सबसे पुरानी सीट पर मुस्लिम वोटर ज्यादा होने के बाद भी 8 बार से है बीजेपी का कब्जा.

वर्तमान में भी यहां से बीजेपी के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में धर्मार्थ कार्य और पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी हैं. इस सीट से 7 बार बीजेपी के श्यामदेव राय चौधरी चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि इन सब गुणा गणित के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां वोटरों के लिहाज से मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बाकी अन्य जातियों या धर्म विशेष के वोटों से अधिक है.

इसके बाद भी लगातार आठ बार से विधानसभा के चुनावों में इस सीट का बीजेपी के पास होना निश्चित तौर पर राजनीतिक और चुनावी समीकरणों से परे जान पड़ता है. दरअसल, बनारस की दक्षिणी विधानसभा की सीट हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत किला मानी जाती रही है. इसकी बड़ी वजह यह है कि यहां से श्यामदेव राय चौधरी ने 1989 से लेकर 2012 तक लगातार अपना कब्जा कायम रखा था.

ये भी पढ़ें- जयंत ने ठुकराया भाजपा का ऑफर, कहा- चवन्नी नहीं हूं मैं जो पलट जाऊंगा

सात बार विधायक चुनकर बीजेपी को इस सीट पर काबिज रखने वाले इस विधायक का टिकट 2017 में पार्टी ने काट दिया और डॉक्टर नीलकंठ तिवारी को उम्मीदवार बनाया. फिर से नीलकंठ तिवारी ने बीजेपी का परचम इस विधानसभा सीट पर लहराया.

यदि बात की जाए श्यामदेव राय चौधरी की तो 1989, 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में लगातार उन्होंने जीत हासिल की. यह विधानसभा सीट अपने आप में काफी ऐतिहासिक भी मानी जाती है यह वही सीट है जहां से इस विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद भी चुनाव लड़े थे.

उनके बाद यहां कांग्रेस और वामपंथियों ने भी अपनी ताकत दिखाई लेकिन भगवा हमेशा मजबूत रहा. बड़ी बात यह है कि इस विधानसभा सीट से जातिगत समीकरण कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. शहर दक्षिणी विधानसभा सीट पर वर्तमान में 3,16,328 मतदाता हैं. इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,74,184 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 142113 है. थर्ड जेंडर वोटर भी यहां पर 31 की संख्या में मौजूद हैं.

इन सबके बीच इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ हमेशा से ही बड़ा फैक्टर रहा है. वोटर संख्या के हिसाब से ब्राह्मण वोट यहां 8% हैं जबकि मुस्लिम मतदाता 13% से ज्यादा हैं. बनारस की इस विधानसभा सीट में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों दालमंडी, हड़हा, राजा दरवाजा, मदनपुरा सोनारपुरा बड़ी मुस्लिम आबादी का इलाका है.

13% से ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं के होने के बाद भी यहां लगातार भारतीय जनता पार्टी का कब्जा होना निश्चित तौर पर सारे राजनीतिक पंडितों को चकराने के लिए काफी है. इस सीट को महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यहां ब्राह्मणों का वर्चस्व है.

हमेशा से ही यहां पर ब्राह्मण उम्मीदवार जीत हासिल करता रहा है. 8% ब्राह्मण मतदाताओं के साथ 6% छत्रिय मतदाता और लगभग 8% वैश्य मतदाता यहां पर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में नजर आते रहे हैं. अगड़ा पिछड़ा की राजनीति भले ही इस वक्त उत्तर प्रदेश में चरम पर हो लेकिन बनारस की यह विधानसभा सीट हमेशा से सवर्णों की सीट कही जाती रही है. आजादी के बाद हुए चुनावों में 1951 में डॉ. संपूर्णानंद ने इस सीट से जीत हासिल की थी.

ये भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: जेल में बंद गायत्री प्रजापति की पत्नी को सपा ने दिया अमेठी से टिकट

1957 के चुनावों में वह फिर से जीते और मुख्यमंत्री चुने गए. आजादी के बाद पहले चुनाव से 1967 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा लेकिन 1969 से 1974 तक दक्षिणी विधानसभा में जनसंघ का बीज होता गया. बीच में सीपीआई के रुस्तम यहां से विधायक चुने गए थे.

वर्तमान में अगर समीकरण की बात की जाए तो यहां पर ब्राह्मण चेहरे को ही तवज्जो दिए जाने की तैयारी चल रही है. भारतीय जनता पार्टी जहां पुराने प्रत्याशी डॉक्टर नीलकंठ तिवारी पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है. वहीं, समाजवादी पार्टी अब तक यह निर्णय नहीं कर सकी है कि यहां से किसे लड़वाया जाए.

शायद यही वजह है कि बनारस की यह विधानसभा सीट तृणमूल के पाले में जा सकती है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि बनारस की विधानसभा सीट पर बंगाली मतदाताओं की संख्या भी काफी अच्छी खासी है. तृणमूल का बंगाली प्रेम इस सीट पर पुराने कांग्रेसी और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी के परिवार पर दांव खेल सकती है.

हाल ही में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल में शामिल हुए ललितेश पति त्रिपाठी को इस सीट से चुनाव लड़वाने की चर्चा जोर शोर से चल रही है. इसे लेकर ममता बनर्जी भी बनारस जल्द आ सकतीं हैं. माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी इस सीट से अपने कदम पीछे खींच सकती है. तृणमूल ब्राह्मण प्रत्याशी को सामने करके बंगाली ब्राह्मण और मुस्लिम गठजोड़ से इस सीट को जीतने की जद्दोजहद भी कर सकती है.

फिलहाल बनारस के विधानसभा दक्षिणी की यह सीट निश्चित तौर पर इन चुनावों में सबसे हॉट सीट के रूप में सामने आने वाली है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या के बाद भी बीजेपी का लगातार यहां से काबिज होना सारे समीकरण को ध्वस्त तो करता ही है, इस सीट के महत्व को भी बढ़ाता है.

वाराणसी : उत्तर प्रदेश में इस बार का विधानसभा चुनाव कई राजनीतिक दलों के भविष्य को निर्धारित करने वाला है. शायद यही वजह है कि सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी एक-एक सीट पर गुणा-गणित के बाद अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर रही है. वहीं समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ ही जातिगत और धार्मिक आधार पर हर सीट को जीतने का प्रयास कर रही है.

इन सबके बीच कुछ विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं जो वर्तमान में बीजेपी के लिए साख महत्व रखती हैं. ऐसी ही एक सीट है पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में पड़ने वाली शहर दक्षिणी विधानसभा की सीट. यह विधानसभा सीट एक-दो बार नहीं बल्कि लगातार आठ बार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पाले में रही है.

बनारस की इस सबसे पुरानी सीट पर मुस्लिम वोटर ज्यादा होने के बाद भी 8 बार से है बीजेपी का कब्जा.

वर्तमान में भी यहां से बीजेपी के विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में धर्मार्थ कार्य और पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी हैं. इस सीट से 7 बार बीजेपी के श्यामदेव राय चौधरी चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि इन सब गुणा गणित के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां वोटरों के लिहाज से मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बाकी अन्य जातियों या धर्म विशेष के वोटों से अधिक है.

इसके बाद भी लगातार आठ बार से विधानसभा के चुनावों में इस सीट का बीजेपी के पास होना निश्चित तौर पर राजनीतिक और चुनावी समीकरणों से परे जान पड़ता है. दरअसल, बनारस की दक्षिणी विधानसभा की सीट हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत किला मानी जाती रही है. इसकी बड़ी वजह यह है कि यहां से श्यामदेव राय चौधरी ने 1989 से लेकर 2012 तक लगातार अपना कब्जा कायम रखा था.

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सात बार विधायक चुनकर बीजेपी को इस सीट पर काबिज रखने वाले इस विधायक का टिकट 2017 में पार्टी ने काट दिया और डॉक्टर नीलकंठ तिवारी को उम्मीदवार बनाया. फिर से नीलकंठ तिवारी ने बीजेपी का परचम इस विधानसभा सीट पर लहराया.

यदि बात की जाए श्यामदेव राय चौधरी की तो 1989, 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में लगातार उन्होंने जीत हासिल की. यह विधानसभा सीट अपने आप में काफी ऐतिहासिक भी मानी जाती है यह वही सीट है जहां से इस विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद भी चुनाव लड़े थे.

उनके बाद यहां कांग्रेस और वामपंथियों ने भी अपनी ताकत दिखाई लेकिन भगवा हमेशा मजबूत रहा. बड़ी बात यह है कि इस विधानसभा सीट से जातिगत समीकरण कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. शहर दक्षिणी विधानसभा सीट पर वर्तमान में 3,16,328 मतदाता हैं. इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,74,184 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 142113 है. थर्ड जेंडर वोटर भी यहां पर 31 की संख्या में मौजूद हैं.

इन सबके बीच इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ हमेशा से ही बड़ा फैक्टर रहा है. वोटर संख्या के हिसाब से ब्राह्मण वोट यहां 8% हैं जबकि मुस्लिम मतदाता 13% से ज्यादा हैं. बनारस की इस विधानसभा सीट में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों दालमंडी, हड़हा, राजा दरवाजा, मदनपुरा सोनारपुरा बड़ी मुस्लिम आबादी का इलाका है.

13% से ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं के होने के बाद भी यहां लगातार भारतीय जनता पार्टी का कब्जा होना निश्चित तौर पर सारे राजनीतिक पंडितों को चकराने के लिए काफी है. इस सीट को महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यहां ब्राह्मणों का वर्चस्व है.

हमेशा से ही यहां पर ब्राह्मण उम्मीदवार जीत हासिल करता रहा है. 8% ब्राह्मण मतदाताओं के साथ 6% छत्रिय मतदाता और लगभग 8% वैश्य मतदाता यहां पर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में नजर आते रहे हैं. अगड़ा पिछड़ा की राजनीति भले ही इस वक्त उत्तर प्रदेश में चरम पर हो लेकिन बनारस की यह विधानसभा सीट हमेशा से सवर्णों की सीट कही जाती रही है. आजादी के बाद हुए चुनावों में 1951 में डॉ. संपूर्णानंद ने इस सीट से जीत हासिल की थी.

ये भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: जेल में बंद गायत्री प्रजापति की पत्नी को सपा ने दिया अमेठी से टिकट

1957 के चुनावों में वह फिर से जीते और मुख्यमंत्री चुने गए. आजादी के बाद पहले चुनाव से 1967 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा लेकिन 1969 से 1974 तक दक्षिणी विधानसभा में जनसंघ का बीज होता गया. बीच में सीपीआई के रुस्तम यहां से विधायक चुने गए थे.

वर्तमान में अगर समीकरण की बात की जाए तो यहां पर ब्राह्मण चेहरे को ही तवज्जो दिए जाने की तैयारी चल रही है. भारतीय जनता पार्टी जहां पुराने प्रत्याशी डॉक्टर नीलकंठ तिवारी पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है. वहीं, समाजवादी पार्टी अब तक यह निर्णय नहीं कर सकी है कि यहां से किसे लड़वाया जाए.

शायद यही वजह है कि बनारस की यह विधानसभा सीट तृणमूल के पाले में जा सकती है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि बनारस की विधानसभा सीट पर बंगाली मतदाताओं की संख्या भी काफी अच्छी खासी है. तृणमूल का बंगाली प्रेम इस सीट पर पुराने कांग्रेसी और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी के परिवार पर दांव खेल सकती है.

हाल ही में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल में शामिल हुए ललितेश पति त्रिपाठी को इस सीट से चुनाव लड़वाने की चर्चा जोर शोर से चल रही है. इसे लेकर ममता बनर्जी भी बनारस जल्द आ सकतीं हैं. माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी इस सीट से अपने कदम पीछे खींच सकती है. तृणमूल ब्राह्मण प्रत्याशी को सामने करके बंगाली ब्राह्मण और मुस्लिम गठजोड़ से इस सीट को जीतने की जद्दोजहद भी कर सकती है.

फिलहाल बनारस के विधानसभा दक्षिणी की यह सीट निश्चित तौर पर इन चुनावों में सबसे हॉट सीट के रूप में सामने आने वाली है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या के बाद भी बीजेपी का लगातार यहां से काबिज होना सारे समीकरण को ध्वस्त तो करता ही है, इस सीट के महत्व को भी बढ़ाता है.

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