भोपाल। जिन अल्लामा इकबाल की लिखी हुई लब पे आती है दुआ को दमोह के एक स्कूल में सीएम शिवराज की नाराजगी के बाद बैन कर दिया गया है. उन्हीं अल्लामा इकबाल के नाम पर मध्यप्रदेश में बीते 27 साल से उर्दू साहित्य की नामचीन शख्सियतों का राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिया जाता रहा है. हर साल उर्दू साहित्य की किसी एक जानीं-मानी शख्सियत को पांच लाख की राशि का ये पुरस्कार दिया जाता है. अल्लामा इकबाल के नाम पर पुरस्कार देने वाला देश का संभवत मध्यप्रदेश अकेला राज्य है. राजधानी भोपाल में इन्ही शायर के नाम पर इकबाल मैदान भी है. अल्लामा इकबाल की लिखी दुआ पर एमपी के एक स्कूल में लगी पाबंदी के बाद देश के अलग अलग हिस्सों से नामचीन शायरों ने ETV Bharrat से बातचीत में अपनी नाराजगी दर्ज कराई है और पूछा है कि क्या अब सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा पर भी मध्यप्रदेश सरकार पाबंदी लगाएगी.
जिनके नाम पर पुरस्कार उन्ही के लिखा बैन: मध्यप्रदेश का संस्कृति विभाग 1987 से लगातार उर्दू साहित्य की सेवा करने वाली उर्दू साहित्य की नामचीन शख्सियतों को राष्ट्रीय इकबाल सम्मान से नवाजती है. 1987 में पहला इकबाल सम्मान अली सरदार जाफरी जैसे मशहूर शायर को दिया गया. उनके बाद से कुर्रतुल एन हैदर से लेकर अख्तर उल रहमान इस्मत चुगताई मजरूह सुल्तानपुरी, उपेन्द्र नाथ अश्क, शहरयार शीन काफ निजाम गोपीचंद नारंग चंद्रभान ख्याल जैसे उर्दू की सेवा करने वाले नामचीन उर्दू के साहित्यकारों को ये राष्ट्रीय सम्मान दिया गया. 2003 में बीजेपी की सरकार आ जानें के बाद भी 2017 तक ये पुरस्कार दिया जाता रहा है.
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त के साथ इकबाल का नाम: देश के कला साहित्य और संस्कृति की नामचीन हस्तियों की इस फेहरिस्त में राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त, गायक किशोर कुमार, कुमार गंधर्व जैसे गायक के साथ उर्दू साहित्य का पुरस्कार शायर अल्लामा इकबाल के नाम पर दर्ज किया गया है. मध्यप्रदेश का संस्कृति विभाग हर साल उर्दू साहित्य की सेवा करने वाली देश की किसी एक विख्यात शख्सियत को ये पुरस्कार देती आई है. ये सिलसिला 2017 तक चला है.
दुआ केवल प्रार्थना : इकबाल सम्मान से नवाजे गए और ऊर्दू साहित्य की जानी मानी शख्सियत चंद्र भान ख्याल ETV Bharat से बातचीत में कहते हैं जिस दुआ को एमपी के एक स्कूल में बैन किया गया वो मैने कई बार पढ़ी है. मैं हैरान हूं कि ऐसे अजीम शायर को नीचा दिखाने का कोई मौका उस मध्यप्रदेश में नहीं छोड़ा जा रहा जिसकी राजधानी भोपाल से इकबाल साहब का गहरा ताल्लुक रहा. यहां शायरों से उनके गहरे ताल्लुकात रहे. इकबाल बहुत अजीम शायर हैं लेकिन ये जो फिरकापरस्त किस्म की जहनीयत है वो एमपी में ऐसा कुछ करवा रही है जो कभी नहीं होना चाहिए. जिस दुआ पर बैन किया गया वो दुआ केवल प्रार्थना है. ईश्वर से प्रार्थना है उसमें किसी खास फिरके के लिए नज्म नहीं है. उस दुआ की अदबी हैसियत है और बरसों से सैकड़ों स्कूलों में बच्चे उस दुआ को गाते हैं.
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा: इकबाल की पहचान पाकिस्तान बताई जा रही है जबकि हकीकत ये है कि पाकिस्तान बनने से पहले इकबाल साहब का इंतकाल हो चुका था. दिल्ली विश्वविद्यालय में भी इकबाल राजनीति शास्त्र में पढ़ाए जाते थे. वहां से भी उन्हें हटा दिया गया. वोटों की राजनीति मुल्क को कहां ले जा रही है. इकबाल की महानता को कम करके आंकना भी फिरकापरस्ती है. ख्याल साहब कहते हैं कौमी गीत उनका लिखा हुआ सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा.. गांधी जी के प्रिय गीत में शुमार था. जब अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से इंदिरा गांधी ने पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई देता है तो उन्होने कहा था कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा. फिर उस मध्यप्रदेश में इकबाल की लिखी दुआ पर बैन जहां उन्ही के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है. मुझे खुद उस पुरस्कार से नवाजा गया है.
तो इकबाल सम्मान भी बंद करे सरकार: भोपाल के ही शायर मंजर भोपाली ETV Bharat से बातचीत में कहते हैं स्कूल में जिसे बैन किया गया उस दुआ को पढ़िए. दुआ है कि जिंदगी शम्मा की सूरत हो या खुदाया मेरी, हो मेरा काम गरीबों की हिफाज़त करना, दर्द मंदों से जइफो से मोहब्बत रखना. मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको, नेक जो राह है उस रह पे चलाना मुझको. आप दुआ के अर्थ पर जाइए तो दुनिया की किसी जुबान में हो दुआ का अर्थ यही है जो इस दुआ में है तब इसमें क्या गलत है. मंजर कहते हैं, मेरे समझ से परे है कि दुआ पर बैन क्यों लगाया गया.
इकबाल की टू नेशन थ्योरी को लेकर विवाद रहा है अगर वो सोच है तो इकबाल अलग हैं और उनकी शायरी अलग. आज शायरी पर पाबंदी लग रही है. कल किसी और चीज पर लग जाएगी, ये तो चलता ही रहेगा फिर. अब इकबाल का ही लिखा है सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा क्या उसे भी बैन करेंगे, उस पर भी पाबंदी लगाएंगे. फिर तो ऐसा है कि भोपाल का संस्कृति महकमा जो अल्लामा इकबाल पुरस्कार देता है वो भी बंद करे. इसके साथ इकबाल मैदान का नाम भी बदला जाए.