बालाघाट: मध्यप्रदेश स्थित बालाघाट के चावलों को जीआई टैग (Geographical Indication-GI Tag) मिल गया है. GI टैग मिलने के बाद अब से किसानों की आय में वृद्धि होगी. इससे यहां के चावलों को वैश्विक बाजार में उचित स्थान और दाम मिलेगा. इस उपलब्धि का लाभ सीधे किसानों को मिलेगा.
बालाघाट के चावलों को GI Tag मिलने को लेकर मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग मंत्री ने ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में किसानों के कल्याण और विकास के लिए हम प्रतिबद्ध हैं. हम सभी को मिलकर आत्मनिर्भर कृषि के रोडमेप पर चलकर प्रधानमंत्रीजी के किसानों की आय दोगुना करने के संकल्प को पूरा करना है.
वहीं, इस बारे में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने ट्वीट कर घोषणा कर कहा कि बालाघाट के चावलों को मिला GI Tag. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इससे यहां के चावलों को वैश्विक बाजार में उचित स्थान और दाम मिलेगा, व इसका लाभ हमारे किसानों को मिलेगा.
संसद से मिली मान्यता
भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. ये GI Tag किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.
क्या है जीआई टैग ? (What is GI Tag)
भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), पंजाब (Panjab), हरियाणा (Haryana), उत्तराखंड (Uttarakhand), दिल्ली (Delhi) के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था. किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है. ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके.
जीआई टैग के फायदे
जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है यानि जीआई टैग उत्पादों की नकल को रोकता है. साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं. जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है.
पंजीकरण कैसे, कहां और कितने वक्त के लिए
किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है. जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है. पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है जिसे रिन्यू करवाया जा सकता है. एक निर्धारिक फीस जमा करने पर जीआई टैग की अवधि 10 और वर्षों के लिए बढ़ जाती है. लेकिन इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता है.
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जीआई टैग सरकार की ओर से जारी एक सर्टिफिकेट और लोगो होता है. इस टैग का इस्तेमाल सिर्फ उस क्षेत्र विशेष या वो उत्पादक कर सकता है जिसके उत्पाद को ये टैग मिला है. किसी राज्य विशेष के उत्पाद को ये टैग मिलने पर इसका इस्तेमाल उस उत्पाद के लिए सिर्फ उसी प्रदेश के लोग कर सकते हैं जैसे बंगाल के रसगुल्ले के लिए जो लोगो मिला है उसका इस्तेमाल बंगाल के लोग ही कर सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है जीआई टैग
इस टैग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उस उत्पाद की कीमत और महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं. इससे उस क्षेत्र विशेष में व्यापार के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है.जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO यानि विश्व व्यापार संगठन (world trade organization) इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है. सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. इस एग्रीमेंट के तहत किसी देश के जीआई टैग उत्पाद की किसी भी दूसरे देश में नकली उत्पाद बनाने से रोकने पर भी सहमति बनी हुई है.
पहला जीआई टैग
सबसे पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को मिला. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव आदि शामिल हैं.