हैदराबाद : कोविड संकट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा कि उन्हें लोगों की जिंदगी और उनकी आजीविका दोनों को बचानी है. लेकिन यह कैसे होगा, अभी तक साफ नहीं है. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के अनुसार इस बार राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन नहीं लगा है, लेकिन राज्य स्तर पर लॉकडाउन लगने की वजह से इसके और भी गंभीर प्रभाव हो सकते हैं.
हमारे देश में करोड़ों लोगों की आजीविका दैनिक आमदनी पर निर्भर है. लगभग 45 करोड़ मजदूर असंगठित क्षेत्र में हैं. उनकी आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है. कोविड की वजह से उनकी आमदनी प्रभावित हुई है. ऐसी स्थिति में जितने लोगों की मौत कोरोना की वजह से हो रही है, उससे ज्यादा लोग भूख से मर सकते हैं.
केंद्र सरकार 80 करोड़ गरीब लोगों को पांच किलो अनाज देने का निर्णय ले चुकी है. मई के साथ-साथ जून महीने में भी उन्हें मुफ्त अनाज मिलेगा. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि तकनीकी वजहों से पीडीएस योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक लोगों को अनाज नहीं मिल पा रहा है. कुछ लोगों के अंगूठों के निशान नहीं मिल पा रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें भी उन्हें राशन नहीं मिल रहा है.
एक तरफ केंद्र सरकार गरीबों को अतिरिक्त अनाज देने का भरोसा दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों को मदद देने से इनकार कर रही है. केंद्र का कहना है कि क्योंकि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन नहीं है, इसलिए प्रवासी मजदूर पर कोई पाबंदी नहीं है. वे अपने गांव लौट सकते हैं. उसके बाद राशन कार्ड की सहायता से अनाज प्राप्त कर सकते हैं.
यह बहुत ही कष्टकारी है कि केंद्र सरकार इन मजदूरों को प्राथमिकता नहीं दे रही है, जबकि जीडीपी में इनका योगदान 10 फीसदी तक है. पिछले साल 39 फीसदी प्रवासी मजदूरों को काम नहीं मिल पाया था. पिछले साल के लॉकडाउन की वजह से उनकी आमदनी 86 फीसदी तक घट गई. इस साल भी प्रवासी मजदूर वैसी ही समस्या का सामना कर रहे हैं. फिर भी केंद्र ने प्रवासी मजदूरों की सहायता करने के लिए कोई एहतियाती कदम नहीं उठाया.
केंद्र सरकार कृषि उत्पाद बढ़ने का दावा कर रही है. लेकिन भारत का विश्व भूख सूचकांक में 107 देशों की सूची में 94वां स्थान है. प्रवासी मजदूरों के जीवन जीने का अधिकार प्रभावित हो रहा है. उनके पास रोजगार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, हरियाणा और दिल्ली के अलावा केंद्र सरकार को प्रवासी मजदूरों के भोजन के लिए मदद करने का निर्देश दिया है. इसमें दोनों शाम भोजन और अन्य ग्रोसरी सहायता की बात कही गई है. कोर्ट ने कहा कि अगर प्रवासी मजदूर घर लौटना चाहते हैं, तो उनके लिए उचित परिवहन की व्यवस्था की जाए.
वैसे परिवार जिनकी आजीविका चली गई है, वे भूख की समस्या का सामना कर रहे हैं. ऐसे परिवारों को शीघ्र मदद की जरूरत है. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के कारण 23 करोड़ भारतीयों की आमदनी 375 रुपये दैनिक से भी कम हो चुकी है. अब न तो उनके पास काम है और न ही भोजन.
हाल ही में राइट टू फूड कैंपेन ने एक सर्वेक्षण किया है. इसके मुताबिक लॉकडाउन के दौरान 27 फीसदी भारतीयों को अक्सर ही भूखे सोना पड़ा. क्या आप चाहेंगे कि ऐसी मानवीय त्रासदी फिर से हो. सरकार के पास पर्याप्त अन्न भंडार हैं, आपातकाल में जितने सामग्री की जरूरत है, उससे तीन गुना अधिक. ऐसे में समय आ गया है कि उस अनाज से गरीब और मध्यम परिवारों की मदद की जाए. कोविड से होने वाली मौत पर रोक लगाने के साथ-साथ भूख से होने वाली मौत पर भी रोक लगाने की अविलंब जरूरत है.