गुवाहाटी : असम में तकरीबन 1.43 लाख विदेशी नागरिक हैं, जिनमें से मात्र 329 को निष्कासित (डिपोर्ट) किया जा सका है. हालांकि, फॉरेनर ट्रिब्यूनल्स ने पिछले साल 31 दिसंबर तक 1,43,466 लोगों को विदेशी ठहराया था. सरकार के पास यह भी आंकड़ा नहीं है कि जिन्हें विदेशी ठहराया गया है, वे अभी कहां हैं, उनमें से कितने लोगों को हिरासत केंद्र (डिटेंशन सेंटर) में रखा गया है.
असम के लिए ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं. वह इसलिए क्योंकि राज्य में विदेशी नागरिकों के खिलाफ छह सालों तक लगातार आंदोलन चल चुका है. इन आंदोलनों के दौरान 855 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. उन्होंने विदेशियों की पहचान कर उन्हें निकालने का आंदोलन चलाया था.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में यह जानकारी दी. वह सीपीआई के सांसद बिनॉय विस्वम के एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उसी दौरान उन्होंने ये आंकड़े साझा किए. उन्होंने कहा कि असम में 100 फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने 1,23,829 मामले अभी लंबित हैं. ये ट्रिब्यूनल अर्ध न्यायिक संस्थाएं हैं. नागरिकता को लेकर विवादों के मामले निपटाने की इन्हें जिम्मेदारी दी गई है.
2005 में अवैध प्रवासियों (ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण) अधिनियम के निरस्त होने के बाद इन ट्रिब्यूनल्स को जल्द से जल्द मामले के निपटारे के लिए बनाया गया था. 2009 में इन ट्रिब्यूनल की संख्या बढ़ाकर सौ कर दी गई थी. गृह राज्यमंत्री ने यह भी जानकारी दी कि ट्रिब्यूनल्स 1,21,598 व्यक्तियों को भारतीय नागरिक ठहरा चुका है. यहां यह भी बताना जरूरी है कि इन ट्रिब्यूनल्स के लिए सरकार ठीक-ठाक पैसे भी खर्च कर रही है. रिकॉर्ड बताते हैं कि सरकार ने पिछले तीन सालों में ही इन पर 69 करोड़ रु. खर्च कर चुकी है.
असम जातीयबादी युवा छात्र परिषद के महासचिव पलाश संगमय ने कहा कि इन मुद्दों पर तर्कसंगत कदम उठाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स का गठन तो किया गया, लेकिन इनसे जो उम्मीदें थीं, वह पूरी नहीं हुईं. असम समझौते के अनुसार राज्य में रहने वाले सभी अवैध प्रवासियों की पहचान सुनिश्चित की जानी है और उसके बाद उन्हें डिपोर्ट करना है. जबकि इसके ठीक उलट सरकार संसद में बता रही है कि उनके पास विदेशी नागरिकों के ठिकाने की ठीक-ठीक जानकारी नहीं है. यह राज्य की भाजपा सरकार के साथ-साथ केंद्र की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है.
आपको बता दें कि विदेशी नागरिकों के खिलाफ 1979 से 1985 तक चले आंदोलन के बाद असम समझौता किया गया था. इस समझौते के बाद ही असम आंदोलन समाप्त हुआ था. इसके बावजूद असम में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों का मुद्दा अनसुलझा है.
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