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बनारस में ओवैसी ने साधा निशाना, कहा-यूपी में सपा ने 28 बार आने से रोका

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही सवा साल का वक्त बाकी हो, लेकिन राजनीतिक दलों की सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पूर्वांचल में अपनी जमीन मजबूत करने की कवायद में मंगलवार को बनारस पहुंचे. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वाराणसी से होकर जौनपुर गए. ओवैसी ने अखिलेश पर निशाना साधा, लेकिन उन्होंने पलटवार नहीं किया.

अखिलेश यादव, ओवैसी
अखिलेश यादव, ओवैसी
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Published : Jan 12, 2021, 6:51 PM IST

वाराणसी : यूपी की राजनीति ठंड के मौसम में आज गरमा गई जब दो बड़े राजनीतिक दिग्गज एक ही दिन पूर्वांचल के दौरे पर पहुंच गए. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वाराणसी से होकर जौनपुर के लिए रवाना हुए हैं. वहीं, दूसरी ओर हैदराबाद से एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी बनारस पहुंचे.

खास बात ये रही कि ओवैसी ने सपा का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में सेंधमारी की कोशिश शुरू की है. इस पर अखिलेश यादव की चुप्पी के भी मायने निकाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि आने वाले समय में संयुक्त मोर्चा जो भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर ओवैसी की पार्टी ने तैयार किया है, उसका हिस्सा समाजवादी पार्टी भी हो सकती है.

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी तेज

ओवैसी के बयान पर अखिलेश की चुप्पी

बनारस से पूर्वांचल होते हुए यूपी में एंट्री लेने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने समाजवादी पार्टी पर जमकर हमला बोला और सपा सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि सपा सरकार में उन्हें यूपी में 28 बार एंट्री नहीं करने दिया गया. हालांकि इन सबके बाद भी ओवैसी के बयान पर पलटवार न करके अखिलेश ने यह इशारा जरुर कर दिया कि वह संयुक्त मोर्चा को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रख रहे हैं.

ओवैसी की एंट्री से गरमाई यूपी की राजनीति

बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश का कांग्रेस के साथ जाना इस बात को इशारा कर चुका है कि बीजेपी को हराने के लिए राजनीतिक पार्टियां कहीं से भी एकजुट हो सकती हैं. मायावती यानी बसपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पिछले चुनावों में एकजुट हुए तो राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई और इस बार संयुक्त मोर्चा में ओवैसी की एंट्री ने एक बार फिर यूपी की राजनीति को गरमाने काम किया है.

पूर्वांचल पर रहती है हर दल की निगाह
यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का महत्वपूर्ण रोल होता है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और दलगत राजनीति करने वाली छोटी-पार्टियां यूपी में पूर्वांचल को सबसे ज्यादा तवज्जो देती हैं. काफी लंबे वक्त के बाद यूपी में जब बीजेपी ने सरकार बनाई तब भारतीय समाज पार्टी में सहयोगी दल की भूमिका में रहकर बीजेपी को सपोर्ट किया. हालांकि बाद में भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और कैबिनेट मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से खुद को अलग कर संयुक्त मोर्चा बनाने की तैयारी शुरू की. वहीं इस संयुक्त मोर्चा में जब हैदराबाद से सांसद एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी का नाम जुड़ा तो यूपी का राजनैतिक पारा चढ़ने लगा.

पूर्वांचल की 90 सीटों पर जोर आजमाइश

यूपी की राजनीति में पूर्वांचल और जातिगत राजनीति के लिए जाना जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है 2017 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने इस जातिगत वोट बैंक पर असर डालने के लिए एकजुटता दिखाई लेकिन यह फेल साबित हुई. एक बार फिर से जब 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक है तो जातीय समीकरण के दलदल में पूर्वांचल की 90 सीटों पर अपनी जोर आजमाइश करने के लिए हर पार्टी जुड़ गई है.

मुस्लिम मतदाताओं के बंटने की आशंका

आजमगढ़ को मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मुलायम और अब अखिलेश भी इसे समाजवादी पार्टी का गढ़ मानते हैं. यही वजह है कि जातीय समीकरण में उलझे पूर्वांचल की राजनीति में ओवैसी की एंट्री कहीं न कहीं से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए थोड़ी टेंशन बढ़ाने वाली जरूर हो सकती है, क्योंकि आजमगढ़, जौनपुर, मऊ, गाजीपुर समेत कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या इन राजनीतिक पार्टियों को फायदा पहुंचाती रही है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद ओवैसी ने जब यूपी का रुख किया है. तब मुस्लिम मतदाताओं के बटने की आशंका से राजनीतिक पार्टियां तनाव में जरूर हैं.

2017 में हुए मुस्लिम तुष्टीकरण ने बढ़ाई टेंशन
यूपी की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं कि संख्या सपा, बसपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों को मजबूत करने का काम करती है. लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम तुष्टीकरण ने कहीं न कहीं से इन पार्टियों के माथे पर शिकन ला दी थी. इसके बाद अब अचानक से एक बड़े मुस्लिम नेता के चेहरे के रूप में पहचान बना चुके ओवैसी ने यूपी में एंट्री की तो अखिलेश यादव भी पीछे-पीछे पूर्वांचल के दौरे पर पहुंच गए.

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के महत्व का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि हर चुनावों में राजनीतिक पार्टियां टिकट बंटवारे में भी मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर जीत का दम भरने का दावा करती हैं.

पढ़ें- 23 जनवरी को असम के दौरे पर होंगे पीएम मोदी

सपा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे ओवैसी

वहीं, आजमगढ़ में सपा की मजबूती को देखते हुए ओवैसी का यूपी की राजनीति में आजमगढ़ से शुरुआत करना एक नई पटकथा लिखने की तैयारी भी मानी जा सकती है. हालांकि सपा कार्यकर्ता ओवैसी की एंट्री को तवज्जो नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि ओवैसी वोट कटवा हो सकते हैं, लेकिन सपा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे.

वाराणसी : यूपी की राजनीति ठंड के मौसम में आज गरमा गई जब दो बड़े राजनीतिक दिग्गज एक ही दिन पूर्वांचल के दौरे पर पहुंच गए. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वाराणसी से होकर जौनपुर के लिए रवाना हुए हैं. वहीं, दूसरी ओर हैदराबाद से एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी बनारस पहुंचे.

खास बात ये रही कि ओवैसी ने सपा का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में सेंधमारी की कोशिश शुरू की है. इस पर अखिलेश यादव की चुप्पी के भी मायने निकाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि आने वाले समय में संयुक्त मोर्चा जो भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर ओवैसी की पार्टी ने तैयार किया है, उसका हिस्सा समाजवादी पार्टी भी हो सकती है.

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी तेज

ओवैसी के बयान पर अखिलेश की चुप्पी

बनारस से पूर्वांचल होते हुए यूपी में एंट्री लेने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने समाजवादी पार्टी पर जमकर हमला बोला और सपा सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि सपा सरकार में उन्हें यूपी में 28 बार एंट्री नहीं करने दिया गया. हालांकि इन सबके बाद भी ओवैसी के बयान पर पलटवार न करके अखिलेश ने यह इशारा जरुर कर दिया कि वह संयुक्त मोर्चा को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रख रहे हैं.

ओवैसी की एंट्री से गरमाई यूपी की राजनीति

बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश का कांग्रेस के साथ जाना इस बात को इशारा कर चुका है कि बीजेपी को हराने के लिए राजनीतिक पार्टियां कहीं से भी एकजुट हो सकती हैं. मायावती यानी बसपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पिछले चुनावों में एकजुट हुए तो राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई और इस बार संयुक्त मोर्चा में ओवैसी की एंट्री ने एक बार फिर यूपी की राजनीति को गरमाने काम किया है.

पूर्वांचल पर रहती है हर दल की निगाह
यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का महत्वपूर्ण रोल होता है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और दलगत राजनीति करने वाली छोटी-पार्टियां यूपी में पूर्वांचल को सबसे ज्यादा तवज्जो देती हैं. काफी लंबे वक्त के बाद यूपी में जब बीजेपी ने सरकार बनाई तब भारतीय समाज पार्टी में सहयोगी दल की भूमिका में रहकर बीजेपी को सपोर्ट किया. हालांकि बाद में भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और कैबिनेट मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से खुद को अलग कर संयुक्त मोर्चा बनाने की तैयारी शुरू की. वहीं इस संयुक्त मोर्चा में जब हैदराबाद से सांसद एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी का नाम जुड़ा तो यूपी का राजनैतिक पारा चढ़ने लगा.

पूर्वांचल की 90 सीटों पर जोर आजमाइश

यूपी की राजनीति में पूर्वांचल और जातिगत राजनीति के लिए जाना जाता है. इसकी बड़ी वजह यह है 2017 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने इस जातिगत वोट बैंक पर असर डालने के लिए एकजुटता दिखाई लेकिन यह फेल साबित हुई. एक बार फिर से जब 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक है तो जातीय समीकरण के दलदल में पूर्वांचल की 90 सीटों पर अपनी जोर आजमाइश करने के लिए हर पार्टी जुड़ गई है.

मुस्लिम मतदाताओं के बंटने की आशंका

आजमगढ़ को मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मुलायम और अब अखिलेश भी इसे समाजवादी पार्टी का गढ़ मानते हैं. यही वजह है कि जातीय समीकरण में उलझे पूर्वांचल की राजनीति में ओवैसी की एंट्री कहीं न कहीं से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए थोड़ी टेंशन बढ़ाने वाली जरूर हो सकती है, क्योंकि आजमगढ़, जौनपुर, मऊ, गाजीपुर समेत कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या इन राजनीतिक पार्टियों को फायदा पहुंचाती रही है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद ओवैसी ने जब यूपी का रुख किया है. तब मुस्लिम मतदाताओं के बटने की आशंका से राजनीतिक पार्टियां तनाव में जरूर हैं.

2017 में हुए मुस्लिम तुष्टीकरण ने बढ़ाई टेंशन
यूपी की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं कि संख्या सपा, बसपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों को मजबूत करने का काम करती है. लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम तुष्टीकरण ने कहीं न कहीं से इन पार्टियों के माथे पर शिकन ला दी थी. इसके बाद अब अचानक से एक बड़े मुस्लिम नेता के चेहरे के रूप में पहचान बना चुके ओवैसी ने यूपी में एंट्री की तो अखिलेश यादव भी पीछे-पीछे पूर्वांचल के दौरे पर पहुंच गए.

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के महत्व का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि हर चुनावों में राजनीतिक पार्टियां टिकट बंटवारे में भी मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर जीत का दम भरने का दावा करती हैं.

पढ़ें- 23 जनवरी को असम के दौरे पर होंगे पीएम मोदी

सपा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे ओवैसी

वहीं, आजमगढ़ में सपा की मजबूती को देखते हुए ओवैसी का यूपी की राजनीति में आजमगढ़ से शुरुआत करना एक नई पटकथा लिखने की तैयारी भी मानी जा सकती है. हालांकि सपा कार्यकर्ता ओवैसी की एंट्री को तवज्जो नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि ओवैसी वोट कटवा हो सकते हैं, लेकिन सपा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे.

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