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जलवायु सम्मेलन में जुटेंगे 120 देशों के नेता, जानिए क्या है एक्सपर्ट की राय

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Published : Oct 31, 2021, 1:22 AM IST

स्कॉटिश शहर ग्लासगो में 26वें कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी-26) में 120 देशों के नेता ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को रोकने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के तरीकों पर चर्चा करेंगे. ईटीवी भारत संवाददाता नियामिका सिंह की रिपोर्ट.

जलवायु सम्मेलन में जुटेंगे 120 देशों के नेता
जलवायु सम्मेलन में जुटेंगे 120 देशों के नेता

नई दिल्ली : स्कॉटिश शहर ग्लासगो में 26वें कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी-26) में विश्वभर के नेता जुटेंगे. 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक शुरू होने जा रही इस बैठक में 120 देशों के नेता ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को रोकने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के तरीकों पर चर्चा करेंगे.

COP26 से पहले भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित अन्य देशों के बीच कई द्विपक्षीय बैठकें हुई हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में एक बैठक के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने COP के सार्थक परिणाम के लिए यूके COP प्रेसीडेंसी को भारत के पूर्ण समर्थन का आश्वासन देते हुए कहा था कि आगामी COP26 'कार्रवाई और कार्यान्वयन का COP' होना चाहिए.

उन्होंने कहा था कि सम्मेलन में केवल 'वादे और संकल्प' नहीं होने चाहिए तथा दुनिया को दीर्घकालिक लक्ष्यों के बजाय इस दशक में त्वरित और अधिक उत्सर्जन कटौती करने की जरूरत है'. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा था कि विज्ञान ने समय के साथ जलवायु परिवर्तन के संबंध में त्वरित कार्रवाई की तात्कालिकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है. दुनियाभर में अत्यंत प्रतिकूल मौसम के घटनाक्रम में इस बात की पुष्टि होती है जो विज्ञान हमें बता रहा है. यादव ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं और मंचों में दुनिया का भरोसा सभी को बनाकर रखना होगा. सीओपी26 अब वित्तीय और प्रौद्योगिकी समर्थन में कार्रवाई के लिए सीओपी होना चाहिए और केवल वादे और संकल्प नहीं.

पर्यावरणविद् ने ये दिया सुझाव
COP26 से भारत की अपेक्षाओं पर 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए पर्यावरणविद् मनु सिंह ने कहा, 'वैश्विक स्तर पर समग्र स्थिति बहुत निराशाजनक होती जा रही है. ग्लोबल वार्मिंग एक खतरनाक दर से बढ़ रही है और हमने कई सुपरस्टॉर्म के रूप में इसका असर देखा है. मेरा मानना ​​​​है कि कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने, जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों को लाने के अलावा, भारत को पशुधन उद्योग के बारे में भी पता होना चाहिए जो अब भारत में फलफूल रहा है.

उनका कहना है कि यूरोपीय देशों ने इस तथ्य पर जोर दिया है कि पशुधन उद्योग ग्लोबल वार्मिंग, दुनिया भर में वर्षा वनों के विनाश और कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार मुख्य उद्योग रहा है, लेकिन भारत ने अभी तक स्पष्ट रुख नहीं लिया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या COP26 जलवायु संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है, सिंह ने जवाब दिया, 'यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन यह कार्यान्वयन भाग पर निर्भर करता है. हमने कई शिखर सम्मेलन देखे हैं जो विफल हो गए लेकिन इसे ऐसा होते नहीं देख सकते. समस्या सिर्फ एक अंकगणितीय दृष्टिकोण के रूप में है. भारत एकमात्र ऐसा देश है जो वास्तव में आध्यात्मिक रूप से इस समस्या को हल कर सकता है क्योंकि हम अधिक खपत में विश्वास नहीं करते हैं. COP26 का फोकस सभी देशों को, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, 'नेट जीरो' के लिए प्रतिबद्ध करने पर होगा. भारत ने इस लक्ष्य पर सहमत होने की संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं किया है, हालांकि यह विकसित देशों की मांगों से नहीं हटेगा.

पढ़ें- रोम से लेकर ग्लास्गो तक G20 और COP26 की बैठकों में भारत के सामने होंगी कई चुनौतियां

पर्यावरणविद् ने कहा, 'भारत को शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिए संघर्ष करना चाहिए, लेकिन यूरोपीय राज्यों के दबाव में नहीं. मुझे लगता है कि हम सक्षम हैं और अगर हम अपने उत्सर्जन को देखें तो जनसांख्यिकीय रूप से यह संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में बहुत बेहतर है. अक्षय ऊर्जा में हमारा निवेश क्षेत्र विनम्र है.'

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1 नवंबर को शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे. पीएम जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को व्यापक रूप से संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालेंगे, जिसमें कार्बन स्पेस का समान वितरण, शमन और अनुकूलन का समर्थन और लचीलापन निर्माण उपाय, वित्त जुटाना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और महत्व शामिल हैं.

नई दिल्ली : स्कॉटिश शहर ग्लासगो में 26वें कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी-26) में विश्वभर के नेता जुटेंगे. 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक शुरू होने जा रही इस बैठक में 120 देशों के नेता ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को रोकने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के तरीकों पर चर्चा करेंगे.

COP26 से पहले भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित अन्य देशों के बीच कई द्विपक्षीय बैठकें हुई हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में एक बैठक के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने COP के सार्थक परिणाम के लिए यूके COP प्रेसीडेंसी को भारत के पूर्ण समर्थन का आश्वासन देते हुए कहा था कि आगामी COP26 'कार्रवाई और कार्यान्वयन का COP' होना चाहिए.

उन्होंने कहा था कि सम्मेलन में केवल 'वादे और संकल्प' नहीं होने चाहिए तथा दुनिया को दीर्घकालिक लक्ष्यों के बजाय इस दशक में त्वरित और अधिक उत्सर्जन कटौती करने की जरूरत है'. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा था कि विज्ञान ने समय के साथ जलवायु परिवर्तन के संबंध में त्वरित कार्रवाई की तात्कालिकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है. दुनियाभर में अत्यंत प्रतिकूल मौसम के घटनाक्रम में इस बात की पुष्टि होती है जो विज्ञान हमें बता रहा है. यादव ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं और मंचों में दुनिया का भरोसा सभी को बनाकर रखना होगा. सीओपी26 अब वित्तीय और प्रौद्योगिकी समर्थन में कार्रवाई के लिए सीओपी होना चाहिए और केवल वादे और संकल्प नहीं.

पर्यावरणविद् ने ये दिया सुझाव
COP26 से भारत की अपेक्षाओं पर 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए पर्यावरणविद् मनु सिंह ने कहा, 'वैश्विक स्तर पर समग्र स्थिति बहुत निराशाजनक होती जा रही है. ग्लोबल वार्मिंग एक खतरनाक दर से बढ़ रही है और हमने कई सुपरस्टॉर्म के रूप में इसका असर देखा है. मेरा मानना ​​​​है कि कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने, जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों को लाने के अलावा, भारत को पशुधन उद्योग के बारे में भी पता होना चाहिए जो अब भारत में फलफूल रहा है.

उनका कहना है कि यूरोपीय देशों ने इस तथ्य पर जोर दिया है कि पशुधन उद्योग ग्लोबल वार्मिंग, दुनिया भर में वर्षा वनों के विनाश और कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार मुख्य उद्योग रहा है, लेकिन भारत ने अभी तक स्पष्ट रुख नहीं लिया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या COP26 जलवायु संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है, सिंह ने जवाब दिया, 'यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन यह कार्यान्वयन भाग पर निर्भर करता है. हमने कई शिखर सम्मेलन देखे हैं जो विफल हो गए लेकिन इसे ऐसा होते नहीं देख सकते. समस्या सिर्फ एक अंकगणितीय दृष्टिकोण के रूप में है. भारत एकमात्र ऐसा देश है जो वास्तव में आध्यात्मिक रूप से इस समस्या को हल कर सकता है क्योंकि हम अधिक खपत में विश्वास नहीं करते हैं. COP26 का फोकस सभी देशों को, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, 'नेट जीरो' के लिए प्रतिबद्ध करने पर होगा. भारत ने इस लक्ष्य पर सहमत होने की संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं किया है, हालांकि यह विकसित देशों की मांगों से नहीं हटेगा.

पढ़ें- रोम से लेकर ग्लास्गो तक G20 और COP26 की बैठकों में भारत के सामने होंगी कई चुनौतियां

पर्यावरणविद् ने कहा, 'भारत को शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिए संघर्ष करना चाहिए, लेकिन यूरोपीय राज्यों के दबाव में नहीं. मुझे लगता है कि हम सक्षम हैं और अगर हम अपने उत्सर्जन को देखें तो जनसांख्यिकीय रूप से यह संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में बहुत बेहतर है. अक्षय ऊर्जा में हमारा निवेश क्षेत्र विनम्र है.'

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1 नवंबर को शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे. पीएम जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को व्यापक रूप से संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालेंगे, जिसमें कार्बन स्पेस का समान वितरण, शमन और अनुकूलन का समर्थन और लचीलापन निर्माण उपाय, वित्त जुटाना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और महत्व शामिल हैं.

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