नई दिल्ली: दिल्ली सरकार में सर्विसेज को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के नेताओं से मुलाकात की और उनसे समर्थन मांगा. सीपीआई के महासचिव डी राजा से मुलाकात में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अध्यादेश के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
सरकार के अधिकार को छीना गया: प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह कॉमरेड डी राजा का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस बिल्डिंग में वे अक्सर आते रहते थे और मुख्यमंत्री बनने के बाद यह यह पहला अवसर है जब वह मुलाकात के लिए आए हैं. केजरीवाल ने कहा कि सीपीआई ने आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया है. दिल्ली के दो करोड़ लोगों को जनतांत्रिक अधिकार है कि वे जिस सरकार को चुनकर भेजें और उस सरकार के पास काम करने की सारी शक्तियां होनी चाहिए. यह एक बेसिक जनतांत्रिक अधिकार है. अध्यादेश लाकर सरकार के अधिकार को छीना गया है.
पूर्ण राज्य के लिए भी लाया जा सकता है अध्यादेश: केजरीवाल ने कहा कि सीपीआई ने दिल्ली की जनता के लिए अपना सपोर्ट दिया है, इसके लिए वे शुक्रगुजार हैं. वह अध्यादेश का अध्ययन कर रहे हैं और यह किसी को न लगे कि दिल्ली हाफ स्टेट है. जिस तरह दिल्ली के लिए अध्यादेश लाया गया है, उसी तरह राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक के लिए भी अध्यादेश लाया जा सकता है. यह किसी भी फुल स्टेट सरकार के लिए लाया जा सकता है और कोई राज्य न समझे कि यह केवल दिल्ली के लिए ही लाया गया है. दिल्ली केवल एक प्रयोग है. अगर इसे दिल्ली के लिए से लागू होने से नहीं रोका गया तो अन्य राज्यों की सरकारों के लिए भी अध्यादेश लाया जा सकता है. सभी पार्टियों को मिलकर के इस अध्यादेश का विरोध करना है.
उन्होंने आगे कहा कि इस अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही खारिज नहीं किया गया है. इस अध्यादेश में जो प्रावधान किए गए हैं, इसमें ऐसी बातें डाली गई हैं, जिससे कि दिल्ली सरकार की भूमिका ही खत्म हो जाती है. इसमें लिखा है कि अगर कोई मंत्री अपने सचिव को आदेश देगा तो सचिव के पास यह पावर है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से सही है या गलत है, यह सोचकर फैसला ले. अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से ठीक नहीं है तो सचिव मंत्री का आदेश मानने के लिए इनकार कर सकता है. केजरीवाल ने यह भी कहा कि अध्यादेश में किसी सचिव के लिए ऐसे बातें करना बहुत ही हैरान करने वाला है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विजिलेंस सेक्रेटरी को एक आदेश दिया तो सेक्रेटरी ने जवाब दिया कि इस अध्यादेश के आने के बाद वह जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है. यह बहुत ही खतरनाक अध्यादेश है. इसमें कई ऐसे प्रावधानों का जिक्र है, जिससे सरकार चलाना मुश्किल हो सकता है.
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ये वीडियो देखिए। दिल्ली वालों के ख़िलाफ़ जो अध्यादेश लाए हैं, वो कितना ख़राब है। अगर इस अध्यादेश को एक लाइन में बताना हो तो वो क्या होगी -
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“आज से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नहीं होंगे। आज से दिल्ली के मुख्यमंत्री मोदी जी होंगे।” pic.twitter.com/AN6K9npHpl
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वहीं सीपीआई के महासचिव डी राजा ने भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आश्वस्त किया कि जब इस अध्यादेश को पास कराने के लिए राज्यसभा में लाया जाएगा तो वह इसके खिलाफ वोट करेंगे. क्योंकि यह असंवैधानिक है और इस तरह के अध्यादेश लाकर चुनी हुई सरकार के अधिकार नहीं छीने जा सकते हैं.
सीबीआई का नाम बदलकर 'बीजेपी की सेना' रख देना चाहिए: वहीं तमिलनाडु में बिजली मंत्री के खिलाफ ईडी रेड पर अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह बहुत ही गलत है. बीजेपी को लगता है कि इस तरह की रेड कर वह वहां चुनाव जीत जाएंगे तो वे गलत सोचते हैं. पहले जब सीबीआई और ईडी की रेड होती थी तो लोग समझते थे कि यह भ्रष्ट है. लेकिन आज जो हालात हैं उसमें अब सीबीआई और ईडी की रेड के बारे में लोगों के सोचने की धारणा बदल गई है. उन्होंने कहा कि सीबीआई का नाम बदलकर बीजेपी की सेना रख देना चाहिए. वहीं डी राजा ने भी कहा कि पिछले दिनों तमिलनाडु में गृह मंत्री अमित शाह का दौरा था. उनका दौरा खत्म होने के तुरंत बाद इस रेड का होने का मतलब साफ है.
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क्या है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश: दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामलों को पूर्ण अधिकार, चुनी हुई सरकार को देने का आदेश दिया था. इस अध्यादेश के जरिए उसे पलट दिया गया. केंद्र के अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले अब ऑथोरिटी के जरिए होंगे. इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है. लेकिन फैसला बहुमत से होगा. नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेंगी, जिसपर अंतिम मुहर उपराज्यपाल की लगाएंगे.
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