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उत्तराखंड: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में कृत्रिम तरीके से बढ़ेगा घड़ियालों का कुनबा - जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में घड़ियालों की संख्या लगातार घटती जा रही है. ऐसे में पार्क प्रशासन अब उनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दे रहा है. इसके लिए कॉर्बेट पार्क प्रशासन अब कृत्रिम तरीका अपनाने जा रहा है.

घड़ियालों का कुनबा
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Published : Aug 17, 2021, 9:02 AM IST

रामनगर : बाघों के लिए विश्व प्रसिद्ध उत्तराखंड का कॉर्बेट नेशनल पार्क अब जल्द ही जलीय जीवों के लिए भी जाना जाएगा. इसलिए कॉर्बेट पार्क प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है. जलीय जीवों में घड़ियालों की घटती संख्या को लेकर अब कॉर्बेट प्रशासन इनके अंडों से ब्रीडिंग के जरिए बच्चे निकालकर घड़ियालों का कुनबा बढ़ाने जा रहा है.

आर्टिफिशियल तरीके से बढ़ेगा कुनबा: देश के अन्य राज्यों की तरह जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में घड़ियाल को संरक्षित करने का प्रयास जोर-शोर से चल रहा है. कॉर्बेट प्रशासन अगर इनकी संख्या बढ़ाने की सोच रहा है. अंडों से कृत्रिम तरीके से बच्चे विकसित करने का कार्य लखनऊ में कुकरैल सेंटर एवं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के कतरनिया घाट सेंचुरी में होता है. इस तकनीक में अंडों को आर्टिफिशियल इनक्यूबेटर मशीन में रखा जाता है. मादा के शरीर के अनुसार अंडों को तापमान दिया जाता है. अंड़ों से बच्चे निकलने के बाद उनके साढ़े तीन फीट तक होने का इंतजार किया जाता है, जिसके बाद उन्हें नदी में छोड़ दिया जाता है. वन्यजीव प्रेमी राजेश भट्ट बताते हैं कि इस पहल से शत प्रतिशत घड़ियालों की संख्या में बढ़ोतरी दिखेगी.

संख्या घटकर तीन अंकों में पहुंची: विशेषज्ञों के मुताबिक विश्व में घड़ियाल की 23 प्रजातियां ऐसी हैं, जो मनुष्य को किसी भी रूप में हानि नहीं पहुंचाती. तस्करी और अवैध शिकार के चलते घड़ियालों की संख्या घटकर तीन अंकों में पहुंच गई है.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने बताया कि साल 2020 में दो बाद जलीय जीवों की गणना करवाई गई है, मौसम खराब होने के कारण भी गणना का कार्य सही ढंग से नहीं हो पाया होगा, इसलिए भी घड़ियालों की गिनती ठीक से नहीं हो पाई. लेकिन दूसरी बार दिसंबर महीने में हुई गणना में इनकी संख्या 96 पाई गई, जो साल 2008 से काफी कम है. इस जीव का अस्तित्व संकट में है, ये विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हें बचाने के लिए घड़ियालों के प्रजनन का अध्ययन किया जा रहा है. ब्रीडिंग सेंटर में पैदा किये गये घड़ियाल के बच्चों को उनके प्राकृतिक निवास में समय पर छोड़ा जाएगा.

कृत्रित तरीके से बढ़ेगा घड़ियालों का कुनबा

कॉर्बेट क्षेत्र क्यों है घड़ियालों के लिए मुफीद: घड़ियाल आबादी से साफ-सुथरी तेज बहाव वाली नदी में रहना पसंद करता है, साथ ही जहां पर खाने के लिए भरपूर मछलियां हों, उन नदियों में घड़ियाल रहना पसंद करते हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बीच से बहने वाली रामगंगा नदी आबादी से दूर बहती है, जिस कारण घड़ियाल सुकून से रामगंगा नदी किनारे रह सकेंगे.

घड़ियाल नदी में पड़ने वाली गंदगी को खा जाते हैं, जिससे नदी में प्रदूषण कम हो जाता है. पहले भारत में इनकी काफी संख्या थी. लेकिन अब इनकी संख्या धीरे-धीरे बहुत कम होती जा रही है. बता दें कि घड़ियाल एक बार में 20 से 95 अंडे देते हैं.

कॉर्बेट में घड़ियालों की कम होती संख्या के पीछे एक वजह उनके अंडों का बहना भी है. दरअसल, घड़ियाल रामगंगा नदी के किनारे अप्रैल व मई में रेत में अंडे देते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में नदी में बाढ़ आने की वजह से अंडे बह जाते हैं.

घड़ियालों की बढ़ोत्तरी बेहद कम: भारत में घड़ियाल भारत के उत्तरी भाग में स्थित नदियां गंगा, चंबल, सोन नदी, रामगंगा और गिरवा और पूर्वी की नदियां में पाए जाते हैं. वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि घड़ियाल के इलाके में मगरमच्छ की संख्या बढ़ रही है, पिछले 30 वर्षों में मगरमच्छ दिखने के मामले में 10 गुना अधिक बढ़ोतरी हुई है. वहीं, घड़ियाल दिखने के मामले में सिर्फ 2 गुना बढ़ोतरी हुई है.

पढ़ें : पत्नी दहेज में नहीं लाई भैंस तो पति बन गया 'जानवर'

घड़ियालों के कम होने का कारण: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व घड़ियालों के लिए बहुत ही सुरक्षित और महत्वपूर्ण जगह है. लेकिन वाटर पॉल्यूशन और प्रकृतिक आपदा जैसे बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं के कारण घड़ियालों की संख्या लगातार घट रही है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में साल 2008 में की गई जलीय जीवों की गणना में घड़ियालों की संख्या 122 थी जो 2020 फरवरी में घटकर 75 रह गई. हालांकि, इसी साल दिसंबर में दोबारा हुई गणना में घड़ियालों की संख्या 96 हो गई. इसके विपरीत वर्ष 2008 की तुलना में वर्ष 2020 में ऊदबिलाव की संख्या में 26 की बढ़ोतरी हुई. मगरमच्छ की संख्या में भी 82 की वृद्धि हुई, जबकि घड़ियाल की संख्या में 26 घड़ियाल की कमी पाई गई है.

वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश भट्ट कहते है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व घड़ियालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण व सुरक्षित जगह है. लेकिन इनकी संख्या के लगातार कम होने के कई कारण हैं. बरसात के समय नदी में बाढ़ आने के कारण इनकी संख्या न बढ़ना भी मुख्य कारण है क्योंकि बरसात में ही घड़ियाल अंडे देते हैं और बाढ़ आने से इनके अंडे नदी में बह जाते हैं.

वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि कॉर्बेट प्रशासन का घड़ियालों को संरक्षित करने का अच्छा प्रयास है, क्योंकि घड़ियाल एक संकटग्रस्त प्रजाति है. पहले भी कॉर्बेट पार्क की रामगंगा नदी में लाकर घड़ियाल छोड़े गए थे. रामगंगा नदी में रेतीले तट हैं. उन्होंने बताया कि राम गंगा नदी में बाड़ के समय उस पर काफी पानी आता है, ऐसे में इनके अंडे भी बाढ़ में बह जाते है ,जिन कारण इनकी संख्या बढ़ नहीं पा रही है. कॉर्बेट प्रशासन अब ब्रीडिंग के जरिये घड़ियालों के अंडे कलेक्ट करके आर्टिफिशियल ब्रीडिंग कर दोबारा से रामगंगा नदी में उनको छोड़ेगा. इससे निश्चित रूप से घड़ियालों की संख्या में वृद्धि होगी.

किस तरह होगी ब्रीडिंग: वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश भट्ट कहते है कि अंडों से कृत्रिम तरीके से बच्चे विकसित करने का कार्य लखनऊ में कुकरैल सेंटर एवं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के कतरनिया घाट सेंचुरी में होता है. अंडों को ले जाकर आर्टिफिशियल इनक्यूबेटर मशीन में रखते हैं, मादा के शरीर के अनुसार अंडों को तापमान दिया जाता है, बच्चे निकलने के बाद साढ़े तीन फीट के होने पर नदी में छोड़ दिया जाता है. वे कहते हैं कि इस पहल से शत प्रतिशत घड़ियालों की संख्या में बढ़ोतरी दिखेगी.

रामनगर : बाघों के लिए विश्व प्रसिद्ध उत्तराखंड का कॉर्बेट नेशनल पार्क अब जल्द ही जलीय जीवों के लिए भी जाना जाएगा. इसलिए कॉर्बेट पार्क प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है. जलीय जीवों में घड़ियालों की घटती संख्या को लेकर अब कॉर्बेट प्रशासन इनके अंडों से ब्रीडिंग के जरिए बच्चे निकालकर घड़ियालों का कुनबा बढ़ाने जा रहा है.

आर्टिफिशियल तरीके से बढ़ेगा कुनबा: देश के अन्य राज्यों की तरह जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में घड़ियाल को संरक्षित करने का प्रयास जोर-शोर से चल रहा है. कॉर्बेट प्रशासन अगर इनकी संख्या बढ़ाने की सोच रहा है. अंडों से कृत्रिम तरीके से बच्चे विकसित करने का कार्य लखनऊ में कुकरैल सेंटर एवं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के कतरनिया घाट सेंचुरी में होता है. इस तकनीक में अंडों को आर्टिफिशियल इनक्यूबेटर मशीन में रखा जाता है. मादा के शरीर के अनुसार अंडों को तापमान दिया जाता है. अंड़ों से बच्चे निकलने के बाद उनके साढ़े तीन फीट तक होने का इंतजार किया जाता है, जिसके बाद उन्हें नदी में छोड़ दिया जाता है. वन्यजीव प्रेमी राजेश भट्ट बताते हैं कि इस पहल से शत प्रतिशत घड़ियालों की संख्या में बढ़ोतरी दिखेगी.

संख्या घटकर तीन अंकों में पहुंची: विशेषज्ञों के मुताबिक विश्व में घड़ियाल की 23 प्रजातियां ऐसी हैं, जो मनुष्य को किसी भी रूप में हानि नहीं पहुंचाती. तस्करी और अवैध शिकार के चलते घड़ियालों की संख्या घटकर तीन अंकों में पहुंच गई है.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने बताया कि साल 2020 में दो बाद जलीय जीवों की गणना करवाई गई है, मौसम खराब होने के कारण भी गणना का कार्य सही ढंग से नहीं हो पाया होगा, इसलिए भी घड़ियालों की गिनती ठीक से नहीं हो पाई. लेकिन दूसरी बार दिसंबर महीने में हुई गणना में इनकी संख्या 96 पाई गई, जो साल 2008 से काफी कम है. इस जीव का अस्तित्व संकट में है, ये विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हें बचाने के लिए घड़ियालों के प्रजनन का अध्ययन किया जा रहा है. ब्रीडिंग सेंटर में पैदा किये गये घड़ियाल के बच्चों को उनके प्राकृतिक निवास में समय पर छोड़ा जाएगा.

कृत्रित तरीके से बढ़ेगा घड़ियालों का कुनबा

कॉर्बेट क्षेत्र क्यों है घड़ियालों के लिए मुफीद: घड़ियाल आबादी से साफ-सुथरी तेज बहाव वाली नदी में रहना पसंद करता है, साथ ही जहां पर खाने के लिए भरपूर मछलियां हों, उन नदियों में घड़ियाल रहना पसंद करते हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बीच से बहने वाली रामगंगा नदी आबादी से दूर बहती है, जिस कारण घड़ियाल सुकून से रामगंगा नदी किनारे रह सकेंगे.

घड़ियाल नदी में पड़ने वाली गंदगी को खा जाते हैं, जिससे नदी में प्रदूषण कम हो जाता है. पहले भारत में इनकी काफी संख्या थी. लेकिन अब इनकी संख्या धीरे-धीरे बहुत कम होती जा रही है. बता दें कि घड़ियाल एक बार में 20 से 95 अंडे देते हैं.

कॉर्बेट में घड़ियालों की कम होती संख्या के पीछे एक वजह उनके अंडों का बहना भी है. दरअसल, घड़ियाल रामगंगा नदी के किनारे अप्रैल व मई में रेत में अंडे देते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में नदी में बाढ़ आने की वजह से अंडे बह जाते हैं.

घड़ियालों की बढ़ोत्तरी बेहद कम: भारत में घड़ियाल भारत के उत्तरी भाग में स्थित नदियां गंगा, चंबल, सोन नदी, रामगंगा और गिरवा और पूर्वी की नदियां में पाए जाते हैं. वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि घड़ियाल के इलाके में मगरमच्छ की संख्या बढ़ रही है, पिछले 30 वर्षों में मगरमच्छ दिखने के मामले में 10 गुना अधिक बढ़ोतरी हुई है. वहीं, घड़ियाल दिखने के मामले में सिर्फ 2 गुना बढ़ोतरी हुई है.

पढ़ें : पत्नी दहेज में नहीं लाई भैंस तो पति बन गया 'जानवर'

घड़ियालों के कम होने का कारण: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व घड़ियालों के लिए बहुत ही सुरक्षित और महत्वपूर्ण जगह है. लेकिन वाटर पॉल्यूशन और प्रकृतिक आपदा जैसे बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं के कारण घड़ियालों की संख्या लगातार घट रही है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में साल 2008 में की गई जलीय जीवों की गणना में घड़ियालों की संख्या 122 थी जो 2020 फरवरी में घटकर 75 रह गई. हालांकि, इसी साल दिसंबर में दोबारा हुई गणना में घड़ियालों की संख्या 96 हो गई. इसके विपरीत वर्ष 2008 की तुलना में वर्ष 2020 में ऊदबिलाव की संख्या में 26 की बढ़ोतरी हुई. मगरमच्छ की संख्या में भी 82 की वृद्धि हुई, जबकि घड़ियाल की संख्या में 26 घड़ियाल की कमी पाई गई है.

वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश भट्ट कहते है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व घड़ियालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण व सुरक्षित जगह है. लेकिन इनकी संख्या के लगातार कम होने के कई कारण हैं. बरसात के समय नदी में बाढ़ आने के कारण इनकी संख्या न बढ़ना भी मुख्य कारण है क्योंकि बरसात में ही घड़ियाल अंडे देते हैं और बाढ़ आने से इनके अंडे नदी में बह जाते हैं.

वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि कॉर्बेट प्रशासन का घड़ियालों को संरक्षित करने का अच्छा प्रयास है, क्योंकि घड़ियाल एक संकटग्रस्त प्रजाति है. पहले भी कॉर्बेट पार्क की रामगंगा नदी में लाकर घड़ियाल छोड़े गए थे. रामगंगा नदी में रेतीले तट हैं. उन्होंने बताया कि राम गंगा नदी में बाड़ के समय उस पर काफी पानी आता है, ऐसे में इनके अंडे भी बाढ़ में बह जाते है ,जिन कारण इनकी संख्या बढ़ नहीं पा रही है. कॉर्बेट प्रशासन अब ब्रीडिंग के जरिये घड़ियालों के अंडे कलेक्ट करके आर्टिफिशियल ब्रीडिंग कर दोबारा से रामगंगा नदी में उनको छोड़ेगा. इससे निश्चित रूप से घड़ियालों की संख्या में वृद्धि होगी.

किस तरह होगी ब्रीडिंग: वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश भट्ट कहते है कि अंडों से कृत्रिम तरीके से बच्चे विकसित करने का कार्य लखनऊ में कुकरैल सेंटर एवं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के कतरनिया घाट सेंचुरी में होता है. अंडों को ले जाकर आर्टिफिशियल इनक्यूबेटर मशीन में रखते हैं, मादा के शरीर के अनुसार अंडों को तापमान दिया जाता है, बच्चे निकलने के बाद साढ़े तीन फीट के होने पर नदी में छोड़ दिया जाता है. वे कहते हैं कि इस पहल से शत प्रतिशत घड़ियालों की संख्या में बढ़ोतरी दिखेगी.

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