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क्या ज्ञानवापी और मथुरा मामले की सुनवाई में आड़े आएगा द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट, कानूनी पक्ष बता रहे हैं वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय

बनारस की अदालत ने ज्ञानवापी मस्ज़िद में सर्वे को जारी रखने का फैसला सुना दिया है. लेकिन अब इस बात पर देश भर में बहस चल पड़ी है कि अगर ज्ञानवापी में मंदिर के सबूत मिल भी जाएं, तो क्या 1991 का ‘द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट’ इस बात की इजाजत देता है कि मामले को अदालत में ले जाया जाए. 1991 में यह कानून नरसिंह राव की सरकार ने बनाया था. इसके मुताबिक अयोध्या को छोड़कर किसी भी और धार्मिक स्थल के विवाद का मामला कोर्ट में भी नहीं ले जाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय इस कानून को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं. उन्होंने ईटीवी के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी से खास बातचीत में 1991 के इस कानून की परतें खोलीं

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय
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Published : May 12, 2022, 8:15 PM IST

Updated : May 12, 2022, 8:23 PM IST

नई दिल्ली : देश में काशी-मथुरा समेत कई मस्जिदों को लेकर विवाद है कि वह हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं. हिंदू पक्ष अदालतों में याचिका दायर कर रहा है. द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 में प्रावधान है कि राम मंदिर के अलावा इन धार्मिक स्थलों का मामला कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता है. मगर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील इस कानून से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि यह कानून न्याय के अधिकार के साथ आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन कर रहा है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 को चुनौती दे रखी है. हालांकि उनका मानना है कि इस एक्ट में ऐसे नियम हैं, जिसके तहत काशी-मथुरा के मामले को कोर्ट के दायरे में लाया जा सकता है.

सवाल: द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप ऐक्ट 1991 के खिलाफ आपने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है? क्या है आपकी दलील ?

अश्विनी उपाध्याय : ये कानून 1991 में उस वक्त की सरकार ले कर आई जब अयोध्या मूवमेंट अपने चरम पर था. उस वक्त अयोध्या, मथुरा और काशी तीनों को वापस हिंदुओं को देने की बात होती थी. उस वक्त की केंद्र में कांग्रेस सरकार ने एक खास समुदाय को खुश करने के लिए कानून बना दिया कि अयोध्या का मामला तो कोर्ट में हल होगा, लेकिन काशी और मथुरा के मंदिरों का मामला कोर्ट में जाएगा ही नहीं. पहली बात तो यह है कि इस कानून के चौथे सेक्शन में साफ लिखा है कि रेलिजियस कैरेक्टर वही होगा, जो 15 अगस्त 1947 को था.

हमारा तर्क है कि हिंदू धार्मिक स्थान में अगर एक बार विधि-विधान के साथ प्राण-प्रतिष्ठा हो गई, तो वह तब तक हिंदू धर्म स्थान ही होता है, जब तक वापस वहां विसर्जन न किया जाय. मुगलों ने भले ही वहां पर छत तोड़कर गुंबद बना दिए, मगर फाउंडेशन तो उस मंदिर का ही है. उसे नहीं तोड़ा गया, कुछ जगह तो दीवारें भी मंदिर की हैं. उन्होंने सिर्फ छत को बदल दिया है. त्रिभुज के आकार की छत को गुम्बद बना दिया. इस हिसाब से हिंदू धार्मिक स्थान का रेलिजियस कैरेक्टर तो नहीं बदला, इसलिए इस कानून का सेक्शन 4 इस मामले पर लागू ही नहीं होता.

दूसरी बात यह है कि इसी कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें हैं, उन पर ये कानून लागू नहीं होगा. ये कानून कुछ इस तरह है.

Any place of worship referred to in the said sub-sections which is an ancient and historical monument or an archaeological site or remains covered by the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 (24 of 1958) or any other law for the time being in force.

अब अगर आप Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 पढ़ेंगे, तो उसका मतलब होता है ऐसी इमारत जो सौ साल या उससे ज्यादा पुरानी हो, वह प्राचीन मानी जाएगी. इस कानून में Ancient sites परिभाषा दी गई है. लिखा है कि सौ साल पुराना कोई कंस्ट्रक्शन हो तो उसे Ancient माना जाएगा. इस नियम के हिसाब से मथुरा और काशी के मंदिरों के मामले तो इसी सब-सेक्शन से कवर हो जाते हैं

The Places of Worship Act 1991
वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है.

सवाल- इसका थोड़ा मतलब सामान्य भाषा में समझाइए.

अश्विनी उपाध्याय : ये कानून ये कह रहा है कि अगर कोई ढांचा सेक्शन 4 के इस सब-सेक्शन 3 के तहत कवर हो रहा है, तो उस ढांचे पर ये कानून लागू नहीं होगा. 1958 के उस कानून में साफ लिखा हुआ है कि Any structure of , erection or monument which is historical, archaeological and which has been in existence for not less than 100 years. तो जो ढांचा सौ साल या उससे पुराना है, उस पर ये कानून लागू ही नहीं होगा.

सवाल- तो क्या इसे आप इस कानून का लूपहोल कहेंगे ? क्योंकि इस हिसाब से तो इस कानून में ही छेद हैं।

अश्विनी उपाध्याय : कानून कांग्रेस सरकार ने बनाया तो यही सोच थी कि अयोध्या के अलावा और कोई मामला कोर्ट में न जाए, लेकिन ग़लती से ये लूपहोल आ गया.

सवाल-इस कानून के सेक्शन 4 में लिखा है - Declaration as to the religious character of certain places of worship and bar of jurisdiction of courts, etc.—(1) It is hereby declared that the religious character of a place of worship existing on the 15th day of August, 1947 shall continue to be the same as it existed on that day. तो ये रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) का मतलब क्या है ?

अश्विनी उपाध्याय : रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) का मतलब है , जो पवित्रता है उस स्थान की, वह यथावत बरकरार रहेगी.

सवाल- यानी आपने इस कानून के सेक्शन 4 के इस शब्द रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) पर ही सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील में फोकस किया है ?

अश्विनी उपाध्याय : हमने इस कानून को ही खत्म करने की मांग की है. देखिए धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश में विवाद का समाधान दो तरीके से होता है. एक पंचायत के द्वारा या फिर कोर्ट के ज़रिए. लेकिन ये जो कानून है, ये सेक्शन 2 और 3 में कहता है कि आप कोर्ट जा ही नहीं सकते और कोर्ट में अगर कोई मुकदमा चल भी रहा है, तो खत्म हो जाएगा. यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि हम कानून के हिसाब से चलेंगे. यानी इस देश में कानून का शासन होगा, भीड़तंत्र का नहीं. मेरी दलील है कि ये कानून लोकतंत्र को खत्म कर, भीड़तंत्र को बढ़ा रहा है. अगर विवाद का समाधान कोर्ट से नहीं होगा तो इसका मतलब कि कोई भी जाए और लाठी-डंडे के ज़ोर पर कब्ज़ा कर ले. ‘द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट तो यही कह रहा है. इसी तरह आर्टिकल 21 में न्याय के अधिकार ( Right to Justice) को एक मूलभूत अधिकार माना गया है. आप न्याय का अधिकार लोगों से नहीं छीन सकते. यह कानून न्याय का अधिकार छीन रहा है, कोर्ट का दरवाज़ा बंद कर रहा है.

सवाल-देवताओं के अधिकार पर भी कोई दलील दी है आपने ?

अश्विनी उपाध्याय : हां, मथुरा और काशी के मामले में एक और बात है. जो देवता होते हैं, उनको Juristic Person कहा गया है. Juristic Person के पास वे सारे अधिकार होते हैं , जो हम लोगों को होते हैं. अब संविधान का आर्टिकल 15 कहता है हम सब बराबर हैं, हमारे बीच कोई भेदभाव नही है. कानून के सामने सब बराबर होंगे. हमारा तर्क है कि आर्टिकल 14 और 15 मथुरा और काशी पर भी लागू होता है. भगवान राम और कृष्ण दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं. आप इस कानून के ज़रिए कह रहे हैं कि अयोध्या का मसला कानून के दायरे के बाहर रहेगा, लेकिन मथुरा के लिए कह रहे हैं कि ये कानून के भीतर रहेगा, इसलिए ये कानून आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन कर रहा है.

सरकार का कर्तव्य है कि वह अवैध कानून को अपराध घोषित करे और कानून सम्मत धारा को लागू करे. ‘द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप ऐक्ट बनाकर सरकार ने बाबर, हुमायूं , तुगलक के अवैध कामों को वैध साबित किया है. ये अपने आप में आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. मैंने सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट को चैलेंज किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुना, इसके बाद सुब्रमण्यम स्वामी की दलील को भी सुना और कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया तो प्रथम दृष्ट्या तो कोर्ट हमारी दलीलों से संतुष्ट हो ही गया. अब देखते हैं सुप्रीम कोर्ट में जुलाई के दूसरे हफ्ते में अगली सुनवाई में क्या होता है?

पढ़ें : श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवादः मथुरा की अदालत को इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्देश, 4 महीने में निपटाएं सभी अर्जियां

नई दिल्ली : देश में काशी-मथुरा समेत कई मस्जिदों को लेकर विवाद है कि वह हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं. हिंदू पक्ष अदालतों में याचिका दायर कर रहा है. द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 में प्रावधान है कि राम मंदिर के अलावा इन धार्मिक स्थलों का मामला कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता है. मगर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील इस कानून से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि यह कानून न्याय के अधिकार के साथ आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन कर रहा है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 को चुनौती दे रखी है. हालांकि उनका मानना है कि इस एक्ट में ऐसे नियम हैं, जिसके तहत काशी-मथुरा के मामले को कोर्ट के दायरे में लाया जा सकता है.

सवाल: द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप ऐक्ट 1991 के खिलाफ आपने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है? क्या है आपकी दलील ?

अश्विनी उपाध्याय : ये कानून 1991 में उस वक्त की सरकार ले कर आई जब अयोध्या मूवमेंट अपने चरम पर था. उस वक्त अयोध्या, मथुरा और काशी तीनों को वापस हिंदुओं को देने की बात होती थी. उस वक्त की केंद्र में कांग्रेस सरकार ने एक खास समुदाय को खुश करने के लिए कानून बना दिया कि अयोध्या का मामला तो कोर्ट में हल होगा, लेकिन काशी और मथुरा के मंदिरों का मामला कोर्ट में जाएगा ही नहीं. पहली बात तो यह है कि इस कानून के चौथे सेक्शन में साफ लिखा है कि रेलिजियस कैरेक्टर वही होगा, जो 15 अगस्त 1947 को था.

हमारा तर्क है कि हिंदू धार्मिक स्थान में अगर एक बार विधि-विधान के साथ प्राण-प्रतिष्ठा हो गई, तो वह तब तक हिंदू धर्म स्थान ही होता है, जब तक वापस वहां विसर्जन न किया जाय. मुगलों ने भले ही वहां पर छत तोड़कर गुंबद बना दिए, मगर फाउंडेशन तो उस मंदिर का ही है. उसे नहीं तोड़ा गया, कुछ जगह तो दीवारें भी मंदिर की हैं. उन्होंने सिर्फ छत को बदल दिया है. त्रिभुज के आकार की छत को गुम्बद बना दिया. इस हिसाब से हिंदू धार्मिक स्थान का रेलिजियस कैरेक्टर तो नहीं बदला, इसलिए इस कानून का सेक्शन 4 इस मामले पर लागू ही नहीं होता.

दूसरी बात यह है कि इसी कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें हैं, उन पर ये कानून लागू नहीं होगा. ये कानून कुछ इस तरह है.

Any place of worship referred to in the said sub-sections which is an ancient and historical monument or an archaeological site or remains covered by the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 (24 of 1958) or any other law for the time being in force.

अब अगर आप Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 पढ़ेंगे, तो उसका मतलब होता है ऐसी इमारत जो सौ साल या उससे ज्यादा पुरानी हो, वह प्राचीन मानी जाएगी. इस कानून में Ancient sites परिभाषा दी गई है. लिखा है कि सौ साल पुराना कोई कंस्ट्रक्शन हो तो उसे Ancient माना जाएगा. इस नियम के हिसाब से मथुरा और काशी के मंदिरों के मामले तो इसी सब-सेक्शन से कवर हो जाते हैं

The Places of Worship Act 1991
वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है.

सवाल- इसका थोड़ा मतलब सामान्य भाषा में समझाइए.

अश्विनी उपाध्याय : ये कानून ये कह रहा है कि अगर कोई ढांचा सेक्शन 4 के इस सब-सेक्शन 3 के तहत कवर हो रहा है, तो उस ढांचे पर ये कानून लागू नहीं होगा. 1958 के उस कानून में साफ लिखा हुआ है कि Any structure of , erection or monument which is historical, archaeological and which has been in existence for not less than 100 years. तो जो ढांचा सौ साल या उससे पुराना है, उस पर ये कानून लागू ही नहीं होगा.

सवाल- तो क्या इसे आप इस कानून का लूपहोल कहेंगे ? क्योंकि इस हिसाब से तो इस कानून में ही छेद हैं।

अश्विनी उपाध्याय : कानून कांग्रेस सरकार ने बनाया तो यही सोच थी कि अयोध्या के अलावा और कोई मामला कोर्ट में न जाए, लेकिन ग़लती से ये लूपहोल आ गया.

सवाल-इस कानून के सेक्शन 4 में लिखा है - Declaration as to the religious character of certain places of worship and bar of jurisdiction of courts, etc.—(1) It is hereby declared that the religious character of a place of worship existing on the 15th day of August, 1947 shall continue to be the same as it existed on that day. तो ये रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) का मतलब क्या है ?

अश्विनी उपाध्याय : रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) का मतलब है , जो पवित्रता है उस स्थान की, वह यथावत बरकरार रहेगी.

सवाल- यानी आपने इस कानून के सेक्शन 4 के इस शब्द रिलिजियस कैरेक्टर ( religious character) पर ही सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील में फोकस किया है ?

अश्विनी उपाध्याय : हमने इस कानून को ही खत्म करने की मांग की है. देखिए धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश में विवाद का समाधान दो तरीके से होता है. एक पंचायत के द्वारा या फिर कोर्ट के ज़रिए. लेकिन ये जो कानून है, ये सेक्शन 2 और 3 में कहता है कि आप कोर्ट जा ही नहीं सकते और कोर्ट में अगर कोई मुकदमा चल भी रहा है, तो खत्म हो जाएगा. यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि हम कानून के हिसाब से चलेंगे. यानी इस देश में कानून का शासन होगा, भीड़तंत्र का नहीं. मेरी दलील है कि ये कानून लोकतंत्र को खत्म कर, भीड़तंत्र को बढ़ा रहा है. अगर विवाद का समाधान कोर्ट से नहीं होगा तो इसका मतलब कि कोई भी जाए और लाठी-डंडे के ज़ोर पर कब्ज़ा कर ले. ‘द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप एक्ट तो यही कह रहा है. इसी तरह आर्टिकल 21 में न्याय के अधिकार ( Right to Justice) को एक मूलभूत अधिकार माना गया है. आप न्याय का अधिकार लोगों से नहीं छीन सकते. यह कानून न्याय का अधिकार छीन रहा है, कोर्ट का दरवाज़ा बंद कर रहा है.

सवाल-देवताओं के अधिकार पर भी कोई दलील दी है आपने ?

अश्विनी उपाध्याय : हां, मथुरा और काशी के मामले में एक और बात है. जो देवता होते हैं, उनको Juristic Person कहा गया है. Juristic Person के पास वे सारे अधिकार होते हैं , जो हम लोगों को होते हैं. अब संविधान का आर्टिकल 15 कहता है हम सब बराबर हैं, हमारे बीच कोई भेदभाव नही है. कानून के सामने सब बराबर होंगे. हमारा तर्क है कि आर्टिकल 14 और 15 मथुरा और काशी पर भी लागू होता है. भगवान राम और कृष्ण दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं. आप इस कानून के ज़रिए कह रहे हैं कि अयोध्या का मसला कानून के दायरे के बाहर रहेगा, लेकिन मथुरा के लिए कह रहे हैं कि ये कानून के भीतर रहेगा, इसलिए ये कानून आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन कर रहा है.

सरकार का कर्तव्य है कि वह अवैध कानून को अपराध घोषित करे और कानून सम्मत धारा को लागू करे. ‘द प्लेसेज़ ऑफ वरशिप ऐक्ट बनाकर सरकार ने बाबर, हुमायूं , तुगलक के अवैध कामों को वैध साबित किया है. ये अपने आप में आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. मैंने सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट को चैलेंज किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुना, इसके बाद सुब्रमण्यम स्वामी की दलील को भी सुना और कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया तो प्रथम दृष्ट्या तो कोर्ट हमारी दलीलों से संतुष्ट हो ही गया. अब देखते हैं सुप्रीम कोर्ट में जुलाई के दूसरे हफ्ते में अगली सुनवाई में क्या होता है?

पढ़ें : श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवादः मथुरा की अदालत को इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्देश, 4 महीने में निपटाएं सभी अर्जियां

Last Updated : May 12, 2022, 8:23 PM IST
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