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सुप्रीम कोर्ट ने बेतुकी जनहित याचिकाओं पर जताई नाराजगी, कहा- यह अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग

सुप्रीम कोर्ट ने बेतुकी जनहित याचिकाओं पर नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि ये अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर जुर्माना भी लगाया. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

SC expresses anguish at frivolous PILs
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 4, 2023, 8:01 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश की शीर्ष अदालत में दायर किए जा रहे बेतुके मामलों पर नाराजगी जताई और इसे 'अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग' करार देते हुए इसकी निंदा की.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष चार जनहित याचिकाएं सूचीबद्ध की गईं. एक जनहित याचिका लॉ स्टूडेंट द्वारा दायर की गई थी जिसमें संवैधानिक प्रावधानों में पुरुष सर्वनाम (male pronouns) को खत्म करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. याचिका में दलील दी गई कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. शीर्ष अदालत ने आश्चर्य जताया कि इसने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कैसे किया.

मुख्य न्यायाधीश ने याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की और याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाया. याचिकाकर्ता से कहा कि ऐसी जनहित याचिका दायर करने के बजाय, उन्हें अपनी कानूनी शिक्षा हासिल करनी चाहिए.

'जुर्माना शुरू करना चाहिए' : पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, 'आपने ऐसी जनहित याचिकाओं के साथ यहां आने के बजाय लॉ स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं की.' संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया. पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता कानून का छात्र नहीं होता तो वह उस पर जुर्माना लगाती. पीठ ने कहा कि 'हमें अब जुर्माना लगाना शुरू कर देना चाहिए...'

वहीं, वकील सचिन गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में जाति व्यवस्था के पुनर्वर्गीकरण के लिए एक नीति तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई. इस पर भी कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 का आह्वान करते हुए केंद्र को जाति व्यवस्था के पुन: वर्गीकरण के लिए एक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है. यह जनहित याचिका का एक स्पष्ट उदाहरण है जो कि मामले की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. ऐसी याचिकाओं पर उचित लागत भुगतान करने को कहना चाहिए.

25 हजार जमा करने होंगे : शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'हम याचिका को खारिज करते हैं और निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ता कल्याण कोष में 25,000 रुपये की लागत का भुगतान करेगा. याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री को लागत के भुगतान के संबंध में एक रसीद प्रस्तुत करनी होगी.'

वकील सचिन गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चरणबद्ध तरीके से नीति तैयार करने का निर्देश देने के लिए शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने की मांग की गई है. कहा गया है कि 'क्रमिक तरीके से आरक्षण दें और वैकल्पिक नीति बनाएं.'

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 'संविधान के अनुच्छेद 32 के अधिकार क्षेत्र के तहत आह्वान स्पष्ट रूप से अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ता कल्याण कोष में 25,000 रुपये की लागत के भुगतान की शर्त पर याचिका खारिज की जाती है. याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री को लागत के भुगतान के संबंध में एक रसीद प्रस्तुत करनी होगी.'

और, अंततः एस वेंकटेश द्वारा दायर एक जनहित याचिका में शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह प्रदर्शित नहीं किया है कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रावधानों से कैसे व्यथित है, जिन्हें एक कथित जनहित याचिका में चुनौती देने की मांग की गई है. कोर्ट ने कहा 'उठाए गए कानून के सवाल पर कोई राय व्यक्त किए बिना, हम उस आधार पर रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं. तदनुसार रिट याचिका खारिज की जाती है.' शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, लंबित आवेदन, यदि कोई हों, का निपटारा किया जाए.

इन जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कोर्ट के समय के महत्व पर जोर दिया और कहा कि ऐसी जनहित याचिकाओं को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, जिनमें वास्तविक सार्वजनिक हित या कानूनी आधार का अभाव है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश की शीर्ष अदालत में दायर किए जा रहे बेतुके मामलों पर नाराजगी जताई और इसे 'अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग' करार देते हुए इसकी निंदा की.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष चार जनहित याचिकाएं सूचीबद्ध की गईं. एक जनहित याचिका लॉ स्टूडेंट द्वारा दायर की गई थी जिसमें संवैधानिक प्रावधानों में पुरुष सर्वनाम (male pronouns) को खत्म करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. याचिका में दलील दी गई कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. शीर्ष अदालत ने आश्चर्य जताया कि इसने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कैसे किया.

मुख्य न्यायाधीश ने याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की और याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाया. याचिकाकर्ता से कहा कि ऐसी जनहित याचिका दायर करने के बजाय, उन्हें अपनी कानूनी शिक्षा हासिल करनी चाहिए.

'जुर्माना शुरू करना चाहिए' : पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, 'आपने ऐसी जनहित याचिकाओं के साथ यहां आने के बजाय लॉ स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं की.' संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया. पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता कानून का छात्र नहीं होता तो वह उस पर जुर्माना लगाती. पीठ ने कहा कि 'हमें अब जुर्माना लगाना शुरू कर देना चाहिए...'

वहीं, वकील सचिन गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में जाति व्यवस्था के पुनर्वर्गीकरण के लिए एक नीति तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई. इस पर भी कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 का आह्वान करते हुए केंद्र को जाति व्यवस्था के पुन: वर्गीकरण के लिए एक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है. यह जनहित याचिका का एक स्पष्ट उदाहरण है जो कि मामले की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. ऐसी याचिकाओं पर उचित लागत भुगतान करने को कहना चाहिए.

25 हजार जमा करने होंगे : शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'हम याचिका को खारिज करते हैं और निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ता कल्याण कोष में 25,000 रुपये की लागत का भुगतान करेगा. याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री को लागत के भुगतान के संबंध में एक रसीद प्रस्तुत करनी होगी.'

वकील सचिन गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चरणबद्ध तरीके से नीति तैयार करने का निर्देश देने के लिए शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने की मांग की गई है. कहा गया है कि 'क्रमिक तरीके से आरक्षण दें और वैकल्पिक नीति बनाएं.'

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 'संविधान के अनुच्छेद 32 के अधिकार क्षेत्र के तहत आह्वान स्पष्ट रूप से अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ता कल्याण कोष में 25,000 रुपये की लागत के भुगतान की शर्त पर याचिका खारिज की जाती है. याचिकाकर्ता को दो सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री को लागत के भुगतान के संबंध में एक रसीद प्रस्तुत करनी होगी.'

और, अंततः एस वेंकटेश द्वारा दायर एक जनहित याचिका में शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह प्रदर्शित नहीं किया है कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रावधानों से कैसे व्यथित है, जिन्हें एक कथित जनहित याचिका में चुनौती देने की मांग की गई है. कोर्ट ने कहा 'उठाए गए कानून के सवाल पर कोई राय व्यक्त किए बिना, हम उस आधार पर रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं. तदनुसार रिट याचिका खारिज की जाती है.' शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, लंबित आवेदन, यदि कोई हों, का निपटारा किया जाए.

इन जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कोर्ट के समय के महत्व पर जोर दिया और कहा कि ऐसी जनहित याचिकाओं को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, जिनमें वास्तविक सार्वजनिक हित या कानूनी आधार का अभाव है.

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