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Joshimath Sinking: मोरेन थ्योरी है जोशीमठ आपदा की वजह, पर्यावरणविद बोले- केदारनाथ में भी ऐसा हो सकता है

जोशीमठ में लगातार भू धंसाव (Joshimath landslide) से स्थानीय लोग जूझ रहे हैं और अपने पुश्तैनी आशियानों को अपने सामने धरती में समाते देख रहे हैं. जिससे उनकी आंखें पथरा जाती हैं और अपना दर्द बताते-बताते आंखों से आंसू आ जाते हैं. कमोवेश ऐसा हाल जोशीमठ में हर परिवार का है. लेकिन अब जोशीमठ के भू धंसाव को लेकर मोरेन थ्योरी (moraine theory on landslide) पर जमकर चर्चा हो रही है.

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Published : Jan 13, 2023, 9:55 AM IST

मोरेन थ्योरी है जोशीमठ आपदा की वजह

देहरादून: जोशीमठ में लगातार भू धंसाव (joshimath landslide) चिंता का सबब बना हुआ है और कई लोगों को अपने आशियाने छोड़ने पड़ रहे हैं. वहीं उत्तराखंड के जोशीमठ में लगातार हो रहे भू धंसाव के पीछे मोरेन थ्योरी (moraine theory on landslide) यानी पुराने मलबे पर बसा शहर की खूब चर्चाएं (cause of joshimath landslide) हो रही है. अब केदारनाथ पुनर्निर्माण को लेकर भी पर्यावरणविदों ने चिंता जाहिर की है.

मलबे के ढेर में बसे हैं शहर: जोशीमठ में लगातार खिसक रही जमीन के पीछे मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट (mishra committee report) और उससे पहले के तमाम दस्तावेजों में जोशीमठ शहर के मोरेन यानी कि पुराने निकल चुके ग्लेशियर की धरती के ऊपर बसे होने की बात कई जगह पर लिखी हुई है. इस बात को पुख्ता करती है कत्यूरी वंश के राजाओं का यहां से राजधानी को कुमाऊं में शिफ्ट कर देना. वहीं कई विशेषज्ञ मानते हैं कि जोशीमठ की धरती पुराने भूस्खलन के मलबे के ऊपर बसी हुई है. यही वजह है कि यहां पर केयरिंग कैपेसिटी से अधिक बड़े-बड़े निर्माण होने की वजह से जमीन धंस रही है. इसी कॉन्सेप्ट को आधार मानते हुए अब कुछ एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट केदारनाथ में लगातार हो रहे पुनर्निर्माण पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
पढ़ें-Joshimath Sinking: राहत राशि और मुआवजे पर है कंफ्यूजन? पढ़ें पूरी खबर

जानिए क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के पर्यावरणविद जेपी मैठाणी (Environmentalist JP Maithani) का कहना है कि केदारनाथ में हो रहे भारी-भरकम पुनर्निर्माण को हम जोशीमठ से अलग आंककर नहीं देख सकते हैं. पर्यावरणविद जेपी मैठाणी कहते हैं कि केदारनाथ में भी तो 2013 की आपदा में आए मलबे के ऊपर भारी मात्रा में पुनर्निर्माण किया जा रहा है. मैठाणी बताते हैं कि 2013 में चोराबाड़ी ग्लेशियर टूटने से चोराबाड़ी झील का एक किनारा टूटा और उसके बाद पूरा मलबा ग्लेशियर से होते हुए केदारनाथ मंदिर के दोनों तरफ होते हुए आगे बढ़ा, जिसने पूरी केदारनाथ वैली में तबाही मचाई. इसके अलावा वह इस बात का भी जिक्र करते हैं कि हिमालय में लगातार ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और कई सालों पहले केदारनाथ ग्लेशियर की सीमा भी काफी नीचे तक रही होगी. जो कि अब धीरे-धीरे पीछे हो रही है. यानी कि केदारनाथ के आसपास हुआ हर तरह का निर्माण एक मोरेन के ऊपर हुआ निर्माण है.
पढ़ें-Joshimath Sinking: उत्तराखंड के वित्त मंत्रालय ने जारी किए ₹45 करोड़, जल्द विस्थापित होंगे प्रभावित

पर्यावरणविदों की क्या है चिंता: पर्यावरणविद् इस बात की आशंका जताते हैं कि जब जोशीमठ (Concern of environmentalists on Joshimath landslide) में सदियों पुराना ज्योग्राफिकल असर आज देखने को मिल रहा है तो केदारनाथ में लगातार हो रहे पुनर्निर्माण को हम अलग आइने से कैसे देख सकते हैं. उनका कहना है कि केदारनाथ में भी लगातार 2013 में आई आपदा के मलबे के ऊपर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं जो कि आने वाले समय में जोशीमठ जैसी त्रासदी को ही बुलावा देगा. उन्होंने कहा कि हमें सोचना चाहिए कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण कार्यों को लेकर के हम बेहद संवेदनशील तरीके से सोचें और उसके बाद एक सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर आगे बढ़ें.

मोरेन थ्योरी है जोशीमठ आपदा की वजह

देहरादून: जोशीमठ में लगातार भू धंसाव (joshimath landslide) चिंता का सबब बना हुआ है और कई लोगों को अपने आशियाने छोड़ने पड़ रहे हैं. वहीं उत्तराखंड के जोशीमठ में लगातार हो रहे भू धंसाव के पीछे मोरेन थ्योरी (moraine theory on landslide) यानी पुराने मलबे पर बसा शहर की खूब चर्चाएं (cause of joshimath landslide) हो रही है. अब केदारनाथ पुनर्निर्माण को लेकर भी पर्यावरणविदों ने चिंता जाहिर की है.

मलबे के ढेर में बसे हैं शहर: जोशीमठ में लगातार खिसक रही जमीन के पीछे मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट (mishra committee report) और उससे पहले के तमाम दस्तावेजों में जोशीमठ शहर के मोरेन यानी कि पुराने निकल चुके ग्लेशियर की धरती के ऊपर बसे होने की बात कई जगह पर लिखी हुई है. इस बात को पुख्ता करती है कत्यूरी वंश के राजाओं का यहां से राजधानी को कुमाऊं में शिफ्ट कर देना. वहीं कई विशेषज्ञ मानते हैं कि जोशीमठ की धरती पुराने भूस्खलन के मलबे के ऊपर बसी हुई है. यही वजह है कि यहां पर केयरिंग कैपेसिटी से अधिक बड़े-बड़े निर्माण होने की वजह से जमीन धंस रही है. इसी कॉन्सेप्ट को आधार मानते हुए अब कुछ एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट केदारनाथ में लगातार हो रहे पुनर्निर्माण पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
पढ़ें-Joshimath Sinking: राहत राशि और मुआवजे पर है कंफ्यूजन? पढ़ें पूरी खबर

जानिए क्या कह रहे जानकार: उत्तराखंड के पर्यावरणविद जेपी मैठाणी (Environmentalist JP Maithani) का कहना है कि केदारनाथ में हो रहे भारी-भरकम पुनर्निर्माण को हम जोशीमठ से अलग आंककर नहीं देख सकते हैं. पर्यावरणविद जेपी मैठाणी कहते हैं कि केदारनाथ में भी तो 2013 की आपदा में आए मलबे के ऊपर भारी मात्रा में पुनर्निर्माण किया जा रहा है. मैठाणी बताते हैं कि 2013 में चोराबाड़ी ग्लेशियर टूटने से चोराबाड़ी झील का एक किनारा टूटा और उसके बाद पूरा मलबा ग्लेशियर से होते हुए केदारनाथ मंदिर के दोनों तरफ होते हुए आगे बढ़ा, जिसने पूरी केदारनाथ वैली में तबाही मचाई. इसके अलावा वह इस बात का भी जिक्र करते हैं कि हिमालय में लगातार ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और कई सालों पहले केदारनाथ ग्लेशियर की सीमा भी काफी नीचे तक रही होगी. जो कि अब धीरे-धीरे पीछे हो रही है. यानी कि केदारनाथ के आसपास हुआ हर तरह का निर्माण एक मोरेन के ऊपर हुआ निर्माण है.
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पर्यावरणविदों की क्या है चिंता: पर्यावरणविद् इस बात की आशंका जताते हैं कि जब जोशीमठ (Concern of environmentalists on Joshimath landslide) में सदियों पुराना ज्योग्राफिकल असर आज देखने को मिल रहा है तो केदारनाथ में लगातार हो रहे पुनर्निर्माण को हम अलग आइने से कैसे देख सकते हैं. उनका कहना है कि केदारनाथ में भी लगातार 2013 में आई आपदा के मलबे के ऊपर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं जो कि आने वाले समय में जोशीमठ जैसी त्रासदी को ही बुलावा देगा. उन्होंने कहा कि हमें सोचना चाहिए कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण कार्यों को लेकर के हम बेहद संवेदनशील तरीके से सोचें और उसके बाद एक सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर आगे बढ़ें.

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