लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के सात शिक्षण संस्थानों का प्रांतीयकरण (सरकार द्वारा अधिग्रहण) करने के पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी सरकार की अधिसूचना को निरस्त करने संबंधी मौजूदा सरकार के निर्णय को बहाल रखा.
नहीं किया गया था प्रक्रिया का पालन
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने इन शिक्षण संस्थानों (educational institutions) के शिक्षण तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों द्वारा दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा कि 23 दिसंबर 2016 को तत्कालीन सरकार ने इन सात शिक्षण संस्थानों के प्रांतीयकरण का फैसला वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से कुछ दिनों पहले जल्दबाजी में लिया था और इसके लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.
सपा सरकार की मंशा शंका के दायरे में
पीठ ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री (अखिलेश यादव) ने संबंधित सात शिक्षण संस्थानों के प्रांतीयकरण की कवायद का अनुमोदन चुनाव की अंतिम तिथि यानी 8 मार्च 2017 या मतगणना के बाद 14 मार्च को दिया था. यह सब कुछ इतनी जल्दबाजी में किया गया कि इसके पीछे की मंशा शंका के दायरे में आती है. इस मामले में इन शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों ने अदालत में याचिका दाखिल कर कहा था कि वह इन संस्थानों में सेवा दे रहे हैं लेकिन उन्हें 23 दिसंबर 2016 से वेतन नहीं मिला है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने इन शिक्षण संस्थानों की सभी संपत्तियों को कथित रूप से कानूनन अपने स्वामित्व में ले लिया था. अदालत ने यह पाया कि तत्कालीन सरकार का उन संस्थानों के प्रांतीयकरण का मकसद पवित्र नहीं था.
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इस वजह से अदालत ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व वाली सरकार के 13 फरवरी 2018 के निर्णय को बहाल रखा.
(पीटीआई-भाषा )