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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन पर विचार करने को कहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह के अपूरणीय टूटने (Irretrievable break down of marriage) को तलाक का कानूनी आधार बनाया जाना चाहिए.

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हिंदू विवाह अधिनियम पर इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Nov 4, 2022, 6:54 AM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह के अपूरणीय टूटने (Irretrievable break down of marriage ) को तलाक का कानूनी आधार बनाया जाना चाहिए. कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में विभिन्न आदेशों में पारित फैसलों व निर्देशों पर अमल करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में आवश्यक संशोधन करने पर विचार करें.

हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब पति पत्नी अलग हो गए और यह अलगाव लंबे समय तक जारी रहता है, तथा उनके बीच संबंध सुधारने की कोई भी गुंजाइश ना बची हो. ऐसी स्थिति में जब पति या पत्नी में से कोई तलाक के लिए आवेदन करता है तो यह अच्छी तरीके से समझा जा सकता है, कि विवाह पूरी तरीके से टूट चुका है. कोर्ट ने कहा कि जब यह अच्छी तरीके से समझ में आ जाए कि पति पत्नी के बीच संबंध सुधारने की अब कोई भी गुंजाइश नहीं बची है. ऐसी स्थिति में तलाक देने में विलंब करने से दोनों पक्षों का नुकसान होगा. हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act ) में इस संबंध में कोई कानून ना होने के कारण अदालतें विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश नहीं दे सकती हैं.

आईपीएस अधिकारी असित कुमार पांडा द्वारा दाखिल तलाक की अर्जी स्वीकार करने के मेरठ परिवार न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ की पीठ ने सुनाया.

हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act ) में विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक आधार नहीं माना गया है. परंतु परिस्थितियों में हो रहे बदलाव और ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जहां वैवाहिक संबंध वास्तव में मृत हो रहे हैं. जब तक इस परिकल्पना को व्यवहार में नहीं लाया जाता है. तलाक नहीं दिया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा कि निस्संदेह अदालतों को पूरी गंभीरता के साथ विवाह संबंध बचाने का प्रयास करना चाहिए. इसके बावजूद अगर लगता है कि संबंध सुधारे नहीं जा सकते हैं. तब तलाक देने में देरी नहीं की जानी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में किसी कानून के अभाव में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुनेश कक्कड़ केस में कहा है कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने नवीन कोहली केस में भी केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन लाकर विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक का आधार बनाया जाए. समर कोहली केस में सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कमिशन की 71वीं रिपोर्ट का जिक्र किया है, पूरी तरीके से निष्प्रभावी हो चुके विवाह को तलाक का आधार बनाया जाए.

मामले के अनुसार आईपीएस आसित पांडा (IPS Asit Panda) ने अपनी पत्नी गायत्री मोहपात्रा और उनके परिजनों पर मानसिक क्रूरता करने का आरोप लगाते हुए परिवार न्यायालय मेरठ में तलाक के लिए आवेदन किया था. आरोप है कि विवाह के बाद से ही पत्नी व उसके परिजन असित और उसके परिवार वालों को तरह-तरह से परेशान कर रहे हैं. उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई और यहां तक कि उनके एक मात्र पुत्र को भी उनसे दूर रखा. परिवारवाद न्यायालय में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इसे मानसिक क्रूरता का मामला मानते हुए तलाक को मंजूरी दे दी. गायत्री देवी ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी. कोर्ट ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि परिवार न्यायालय के आदेश में कोई गलती नहीं है.

यह भी पढ़ें-प्रयागराज में दस माह में माफियाओं की 210 करोड़ की संपत्ति कुर्क, जानिए किस पर सबसे ज्यादा कसा शिकंजा

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह के अपूरणीय टूटने (Irretrievable break down of marriage ) को तलाक का कानूनी आधार बनाया जाना चाहिए. कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में विभिन्न आदेशों में पारित फैसलों व निर्देशों पर अमल करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में आवश्यक संशोधन करने पर विचार करें.

हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब पति पत्नी अलग हो गए और यह अलगाव लंबे समय तक जारी रहता है, तथा उनके बीच संबंध सुधारने की कोई भी गुंजाइश ना बची हो. ऐसी स्थिति में जब पति या पत्नी में से कोई तलाक के लिए आवेदन करता है तो यह अच्छी तरीके से समझा जा सकता है, कि विवाह पूरी तरीके से टूट चुका है. कोर्ट ने कहा कि जब यह अच्छी तरीके से समझ में आ जाए कि पति पत्नी के बीच संबंध सुधारने की अब कोई भी गुंजाइश नहीं बची है. ऐसी स्थिति में तलाक देने में विलंब करने से दोनों पक्षों का नुकसान होगा. हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act ) में इस संबंध में कोई कानून ना होने के कारण अदालतें विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश नहीं दे सकती हैं.

आईपीएस अधिकारी असित कुमार पांडा द्वारा दाखिल तलाक की अर्जी स्वीकार करने के मेरठ परिवार न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ की पीठ ने सुनाया.

हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act ) में विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक आधार नहीं माना गया है. परंतु परिस्थितियों में हो रहे बदलाव और ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जहां वैवाहिक संबंध वास्तव में मृत हो रहे हैं. जब तक इस परिकल्पना को व्यवहार में नहीं लाया जाता है. तलाक नहीं दिया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा कि निस्संदेह अदालतों को पूरी गंभीरता के साथ विवाह संबंध बचाने का प्रयास करना चाहिए. इसके बावजूद अगर लगता है कि संबंध सुधारे नहीं जा सकते हैं. तब तलाक देने में देरी नहीं की जानी चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में किसी कानून के अभाव में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुनेश कक्कड़ केस में कहा है कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने नवीन कोहली केस में भी केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन लाकर विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक का आधार बनाया जाए. समर कोहली केस में सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कमिशन की 71वीं रिपोर्ट का जिक्र किया है, पूरी तरीके से निष्प्रभावी हो चुके विवाह को तलाक का आधार बनाया जाए.

मामले के अनुसार आईपीएस आसित पांडा (IPS Asit Panda) ने अपनी पत्नी गायत्री मोहपात्रा और उनके परिजनों पर मानसिक क्रूरता करने का आरोप लगाते हुए परिवार न्यायालय मेरठ में तलाक के लिए आवेदन किया था. आरोप है कि विवाह के बाद से ही पत्नी व उसके परिजन असित और उसके परिवार वालों को तरह-तरह से परेशान कर रहे हैं. उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई और यहां तक कि उनके एक मात्र पुत्र को भी उनसे दूर रखा. परिवारवाद न्यायालय में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इसे मानसिक क्रूरता का मामला मानते हुए तलाक को मंजूरी दे दी. गायत्री देवी ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की थी. कोर्ट ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि परिवार न्यायालय के आदेश में कोई गलती नहीं है.

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