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इलाहाबाद हाई कोर्ट से यूपी सरकार को झटका, OBC की 18 जातियां SC कैटगरी में नहीं होंगी शामिल

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Published : Aug 31, 2022, 5:49 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की 18 जातियों को अनुसूचित (एससी) वर्ग की कैटेगरी में शामिल करने का नोटिफेकेशन रद्द कर दिया है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की 18 जातियों को अनुसूचित (एससी) वर्ग की कैटेगरी में शामिल करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन रद्द कर दिया है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक अधिकार न होने के बाद भी यूपी में राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जातियों की सूची में बार-बार फेरबदल किया जा रहा है. अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र और राज्य सरकारों को नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र व राज्य सरकारों को इस सूची में बदलाव का कोई अधिकार संविधान ने नहीं दिया है. एक खास बात यह भी कि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यह कहा है कि उसके पास यह अधिसूचना जारी रखने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. सरकार की ओर से पेश इस दलील के आधार पर ही कोर्ट ने याचिकाएं मंजूर कर लीं. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने गोरखपुर की डॉ. भीमराव अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है.

कोर्ट ने इन सभी अधिसूचनाओं के अमल पर पहले ही रोक लगा रखी थी. अखिलेश यादव और योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में दो-दो अधिसूचनाएं जारी कर प्रदेश में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की बात कही थी. अखिलेश यादव सरकार ने 21 और 22 दिसंबर 2016 को प्रदेश विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले दो अधिसूचनाएं जारी कर 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शिफ्ट करने की बात कही थी. कोर्ट ने याचिकाओं की प्रमुख मांग मंजूर करते हुए सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दीं.

यह भी पढ़ें- शीघ्र रिलीज होगी पीएम किसान सम्मान निधि की 12वीं किश्त, 2.60 करोड़ लोगों को मिल रहा लाभ

24 जून 2019 को योगी सरकार ने हाईकोर्ट के एक फैसले का गलत संदर्भ लेते हुए अधिसूचना जारी की थी. इसके तहत डेढ़ दर्जन ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने का आदेश जारी किया था. कुछ ही दिनों बाद हाईकोर्ट ने अखिलेश यादव सरकार की दोनों अधिसूचनाओं के अमल पर रोक लगा दी थी. योगी सरकार का आदेश भी हाईकोर्ट से स्टे हो गया था.

गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2005 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने भी डेढ़ दर्जन ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने का फैसला किया था. हाईकोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी थी. बाद में यूपी सरकार ने उस फैसले को वापस ले लिया था.

अधिसूचनाओं में शामिल ओबीसी की 18 जातियां: ओबीसी की जिन जातियों को एससी में शामिल करने की अधिसूचनाएं जारी की गई थीं, उनमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ शामिल हैं.

यह भी पढ़ें- फरियादी से अभद्र भाषा में बोले मंत्री नंद गोपाल नंदी, कहा- दिमाग में भी कुछ है या एप्लीकेशन ही लाए हो

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की 18 जातियों को अनुसूचित (एससी) वर्ग की कैटेगरी में शामिल करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन रद्द कर दिया है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक अधिकार न होने के बाद भी यूपी में राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जातियों की सूची में बार-बार फेरबदल किया जा रहा है. अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र और राज्य सरकारों को नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र व राज्य सरकारों को इस सूची में बदलाव का कोई अधिकार संविधान ने नहीं दिया है. एक खास बात यह भी कि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यह कहा है कि उसके पास यह अधिसूचना जारी रखने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. सरकार की ओर से पेश इस दलील के आधार पर ही कोर्ट ने याचिकाएं मंजूर कर लीं. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने गोरखपुर की डॉ. भीमराव अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है.

कोर्ट ने इन सभी अधिसूचनाओं के अमल पर पहले ही रोक लगा रखी थी. अखिलेश यादव और योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में दो-दो अधिसूचनाएं जारी कर प्रदेश में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की बात कही थी. अखिलेश यादव सरकार ने 21 और 22 दिसंबर 2016 को प्रदेश विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले दो अधिसूचनाएं जारी कर 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शिफ्ट करने की बात कही थी. कोर्ट ने याचिकाओं की प्रमुख मांग मंजूर करते हुए सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दीं.

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24 जून 2019 को योगी सरकार ने हाईकोर्ट के एक फैसले का गलत संदर्भ लेते हुए अधिसूचना जारी की थी. इसके तहत डेढ़ दर्जन ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने का आदेश जारी किया था. कुछ ही दिनों बाद हाईकोर्ट ने अखिलेश यादव सरकार की दोनों अधिसूचनाओं के अमल पर रोक लगा दी थी. योगी सरकार का आदेश भी हाईकोर्ट से स्टे हो गया था.

गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2005 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने भी डेढ़ दर्जन ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने का फैसला किया था. हाईकोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी थी. बाद में यूपी सरकार ने उस फैसले को वापस ले लिया था.

अधिसूचनाओं में शामिल ओबीसी की 18 जातियां: ओबीसी की जिन जातियों को एससी में शामिल करने की अधिसूचनाएं जारी की गई थीं, उनमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ शामिल हैं.

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