पलामू: भागीरथ ने तपस्या की थी तो धरती पर गंगा आई थी लेकिन पलामू में नदी का पानी ही सूख गया. ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर पर पलामू में दिखने लगा है. यहां कुदरत का विनाश दिखाई देने लगा है. जिस नदी में कभी कलकल निनाद की आवाज होती थी, आज वह सूखे रेगिस्तान की हवाओं की आवाज दे रही है. आलम यह है कि क्षेत्र के जो लोग मर रहे हैं उनके अस्थि कलश विसर्जन तक के लिए इस नदी में पानी नहीं मिल रहा है.
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एक दर्जन से अधिक नदियां सूख गईं: राजधानी रांची से करीब 165 किलोमीटर दूर पलामू का ये इलाका यूपी, बिहार और छत्तीसगढ़ सीमा पर मौजूद है. इस इलाके से अमानत, कोयल, औरंगा, बटाने, सदाबह जैसी एक दर्जन से अधिक नदियां होकर गुजरती हैं. कभी इन नदियों के आसपास जीवन गुलजार रहता था. जानवर, पक्षी से लेकर इंसान तक इन नदियों के किनारे आकर तरोताजा हो जाते थे. लेकिन इस साल मार्च-अप्रैल में ही ये सूख चुकी हैं. लोगो को अंतिम संस्कार के लिए भी पानी नसीब नहीं हो रहा है. लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार भी ठीक से नहीं कर पा रहे हैं. कई मुक्तिधाम सा श्मशान घाट में कृत्रिम तरीके से पानी की व्यवस्था की गई है. इस पानी से मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति ही नहा पा रहा है और किसी तरह अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा कर रहा है.
पानी के इंतजार में अवशेष: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार पलामू में प्रतिवर्ष 1650 से अधिक मौतें होती है, ये सभी मौतें सामान्य हैं. मार्च के अंतिम सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक पलामू के विभिन्न इलाकों में 475 से अधिक मौतें हुई हैं. इनमें से अधिकतर का अंतिम संस्कार नदियों के तट पर मौजूद मुक्ति धाम या किनारे पर किया गया है. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में राजा हरिश्चंद्र घाट पर दो महीने में 27 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. सभी के अवशेष को एक जगह जमा करके रखा गया है, नदी में पानी आने के बाद शव को अवशेष को बहाया जाएगा.
नदियों में अस्थि और अवशेष प्रवाहित करने की मान्यता: हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के दौरान नदियों की महत्वपूर्ण मान्यता है. अंतिम संस्कार के बाद शरीर के पांच अस्थि को गंगा नदी मे विसर्जित किया जाता है, जबकि बचे हुए राख और अन्य अवशेष को नदियों में प्रवाहित किया जाता है. पुजारी केदारनाथ पाठक ने बताया कि नदियों में अंतिम संस्कार करने की प्रक्रिया को श्रेष्ठ माना गया है, नदियों में अंतिम संस्कार करने से मुक्ति मिलती है और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है. यह दुखद है कि पलामू की नदियां सूख गई है.
पर्यावरणविद बोले नहीं चेते तो भुगतना होगा गंभीर परिणाम: पलामू का इलाका लगातार सुखाड़ के लिए चर्चा में है. कई दशकों के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि पलामू की सभी नदियां पूरी तरह से सूख गई हैं. पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि यह पलामू के लिए अलर्ट वाला समय है. पर्यावरण को लेकर लोग सचेत नहीं हुए तो इसके गंभीर परिणाम निकल कर सामने आएंगे. तालाब नदियां सभी सूखती जा रही हैं. कब तक हम प्रकृति का दोहन करते रहेंगे, उन्होंने लोगों को पेड़ लगाने की जरूरत है ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके. पलामू का इलाका रेगिस्तान बनने की तरफ बढ़ रहा है.