अजमेर. चौहान वंश की बसाई अजमेर नगरी राजस्थान का दिल कही जाती है. चौहान वंश के बाद अजमेर नगरी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. अजमेर शहर के बीच खड़ी मजबूत और सुंदर इमारत जो आज राजकीय संग्रहालय के नाम से जानी जाती है. यह बुलंद इमारत कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी रही है. इस इमारत का सफर बादशाह अकबर के अजमेर आने से शुरू हुआ था. लिहाजा वर्षों तक यह अकबर के किले से रूप में जानी गई. इस इमारत ने अजमेर में मुगलों का वैभव देखा तो हल्दी घाटी के युद्ध की योजना बनते देखी. वहीं, देश में गुलामी की जंजीरें डलती देखी तो मराठा और राठौड़ों का संघर्ष देखा. वहीं, अंग्रेजी हुकूमत में प्रथम विश्व युद्ध में हथियारों की भरमार देखी. देश की आजादी का जश्न देखा और उसके बाद इमारत की दुर्दशा भी देखी. पिछले 5 वर्षों में अजमेर के किले का वैभव लौट आया है.
चौहान वंश ने अजमेर की स्थापना की थी. अजमेर का सामरिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है. सबसे महत्वपूर्ण अजमेर का राजस्थान के मध्य होना भी है. अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद अजमेर नगरी ने कई उतार चढ़ाव देखे. यहां की आध्यात्मिक वातावरण में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज ने भी अजमेर को अपना बना लिया. 1570 से पहले जब देश में मुगल सलतनत थी और अकबर बादशाह था. माना जाता है कि अकबर के कोई औलाद नहीं थी, इसलिए वह ख्वाजा गरीब नवाज की जियारत के लिए दिल्ली से अजमेर आया था. औलाद होने पर उसका अकीदा (विश्वास) ख्वाजा गरीब नवाज में बढ़ गया.
अकबर ने बनवाया किलाः 1570 में बादशाह अकबर दोबारा अजमेर आया, तब उसने अजमेर में किला बनवाया. इस किले के निर्माण में अकबर का केवल (Journey from Akbar Fort to Ajmer Museum) धार्मिक प्रयोजन ही नहीं बल्कि राजनीति मंशा भी थी. इस किले से सम्पूर्ण राजपुताना पर नियंत्रण रखना मुगलों के लिए आसान था. खासकर उस दौर में मेवाड़ पर अधिपत्य स्थापित करने के लिए अकबर ने मानसिंह के साथ 3 अप्रैल 1576 से पहले हल्दीघाटी के युद्ध की योजना यहीं पर तैयार की थी.
शाहजहां ने इसी किले से दी थी व्यापार करने की अनुमतिः अकबर के बाद शाहजहां भी अपनी बेगम मेहरुनिसा के साथ अजमेर आता रहा. मेहरुनिसा को नूरजहां की उपाधि भी यही दी गई थी. इतिहास के जानकार बताते हैं कि 1613 से 1616 तक तीन वर्ष शाहजहां मेहरुनिसा के साथ अजमेर रहा था. 10 जनवरी 1616 का वह दिन जिसने अंग्रेजी हुकूमत और गुलामी का सूत्रपात हुआ. शाहजहां ने सर थॉमस को ईस्ट इंडिया कंपनी को देश में व्यापार करने की अनुमति भी इस किले से दी थी. बताया जाता है कि शाहजहां के तीन औलाद दाराशिखो, शुजा और जहांआरा का जन्म भी यही हुआ था. शाहजहां के दोनों बेटों का युद्ध भी अजमेर के दौहराई में हुआ था. वहीं, जहांआरा भी सूफियाना थी. उसने बड़ा समय यही पर गुजरा था.
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यूनेस्को की 40 धरोहरों की पेंटिंग की लगी प्रदर्शनीः वर्ल्ड म्यूजियम डे के अवसर पर लोगों को जागरूक और ज्ञान वर्धन करने के उद्देश्य से अजमेर के राजकीय संग्रहालय में डॉ. मंजू परिहार की बनाई गई पेंटिंग का प्रदर्शन किया गया. डॉ. परिहार ने यूनेस्को की 40 अमूल्य धरोहरों को वाटर कलर पेंटिंग के माध्यम से कैनवास पर उकेरा है. उनकी बनाई गई पेंटिंग की प्रदर्शनी भी लगाई गई. म्यूजियम में कई गेलरिया है. इनमें स्थापत्य कला, हस्तकला, वस्त्र, हिन्दू जैन देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं, मुद्रा,अस्त्र शामिल है. वर्ल्ड म्यूजियम डे के अवसर पर आमजन के निःशुल्क एंट्री रखी गई. शहर के कई म्यूजियम लवर भी आज के दिन संग्रहालय में जुटे.
प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने किले को बनाया मैगजीनः प्रथम विश्व युद्ध से पहले अजमेर में अंग्रेजी हुकूमत स्थापित हो चुकी थी. अंग्रेजों ने अजमेर को न केवल छावनी बनाया, बल्कि यहां रेलवे के कारखाने भी स्थापित किए. बताया जाता है कि इन रेलवे के कारखानों में हथियार बना करते थे. प्रथम विश्व युद्ध में अजमेर से भी सैनिकों को ले जाया गया था. हथियारों को किले में रखा जाता था. इसके बाद मराठा ने कुछ समय के लिए किले पर अपना कब्जा जमा लिया था. किले पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए राठौड़ और मराठों के बीच अजमेर में संघर्ष भी हुआ. जिसमें मराठा जीत गए थे. मराठाओं ने जिले में राधा कृष्ण का मंदिर भी बनवाया था. बाद में मंदिर को अंग्रेजों ने अन्य जगह पर स्थापित कर दिया. अंग्रेजों की हुकूमत के समय कई कार्यालय जिले में बनाए गए थे.
अजमेर में मना आजादी का जश्नः देश को जब अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली तब इस ऐतिहासिक किले ने अजमेर में आजादी का जश्न भी देखा. सबसे पहले इस किले पर ही तिरंगा फहराया गया था. सन 1942 में इस ऐतिहासिक किले को राजकीय संग्रहालय में (Government Museum Ajmer) बदल दिया गया. संग्रहालय के पहले अधीक्षक गौरी शंकर ओझा थे, जिन्होंने आसपास पुरातत्व महत्व की वस्तुओं का संग्रह संग्रहालय में किया. स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत किले का जीर्णोद्धार हुआ, जिससे किले की सुंदरता फिर से लौट आई है.
वर्ल्ड म्यूजियम डे पर आम दिनों से ज्यादा लोग विरासत की अमूल्य धरोहरों को देखने के लिए संग्रहालय आए. लोगों ने संग्रहालय में मौजूद हर वस्तु को देखा और उसकी जानकारी लेकर अपना ज्ञानवर्धन भी किया. ईटीवी भारत ने एक छात्राओं के समूह में शामिल छात्रा से संग्रहालय और इसकी ऐतिहासिक ईमारत के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि अब तक जो किताबों में पढ़ा था वह आंखों से देखने को मिला है. सभ्यता, संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला. यहां आकर लग रहा है कि राजा महाराजाओं के दौर में आ गए हैं. संग्रहालय में आने पर काफी शानदार अनुभव रहा है.