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'कृषि कानूनों पर सरकार से बातचीत तभी जब उनके वास्तविक मुद्दे का समाधान हो'

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Published : Nov 28, 2020, 9:36 PM IST

एक ओर जहां कृषि कानून के विरोध की आग पंजाब से हरियाणा तक भड़क रही है. वहीं दूसरी ओर इस आग को शांत करने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर प्रदर्शन कर रहे किसानों से हर मुद्दे पर चर्चा करने के लिए वार्ता आयोजित कर रहे हैं. इसी विषय पर एआईएफए के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत कर अपनी प्रतिक्रिया दी.

AIFA
कृषि कानून

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन के बीच सरकार ने एक बार फिर से बातचीत करने की पेशकश की. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के मुद्दों को सुलझाने के लिए तीन दिसंबर को बातचीत करने के लिए किसानों को बुलाया है, जिसके एक दिन बाद शनिवार को अखिल भारतीय किसान गठबंधन (AIFA) ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि वे केवल तभी सरकार से बातचीत करेंगे जब सरकार उनके वास्तविक मुद्दे का समाधान करेगी.

ईटीवी भारत से बात करते हुये एआईएफए के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि पहले भी सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है, जहां सरकार ने केवल उनको समझाया है. अगर सरकार हमारी चिंता को दूर करने के लिए गंभीर है, तो हम निश्चित रूप से बातचीत में भाग लेंगे.

ईटीवी से खास चर्चा

किसान यूनियनों से बात करने के लिए सरकार तैयार
बता दें कि दिल्ली-हरियाणा-पंजाब-यूपी के सीमावर्ती इलाकों में दो दिनों की अराजक स्थिति के बाद, दिल्ली पुलिस ने आंदोलन कर रहे किसानों को अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए नरेला आने की अनुमति दी है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी तीन दिसंबर को वार्ता के लिए आंदोलनरत किसानों को बुलाया था.

पढ़ें: पंजाब में बढ़ता किसानों का आंदोलन बढ़ा सकता है मुसीबत

कृषि कानून बिल का विरोध
डॉ. त्रिपाठी (जो एक प्रतिष्ठित कृषि कार्यकर्ता भी हैं) ने कहा कि यह कोई नया विरोध या आंदोलन नहीं है. जब से सरकार द्वारा कृषि बिल पेश किया गया है, हम इस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि न ही सरकार ने उनकी बात सुनी और न ही कृषि कानून बिल लाने से पहले किसानों से इस विषय पर बात करना जरूरी समझा. केवल कॉरपोरेट्स के हित सरकार के दिमाग में था.

लिखित आश्वासन की मांग
उन्होंने आगे कहा कि किसान नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना ​​है कि कानून उनकी कमाई को कम कर देंगे और बड़े खुदरा विक्रेताओं और कॉरपोरेट्स को अधिक शक्तिशाली और लाभदायक बना देंगे. किसान एक बिल के फर्म में लिखित आश्वासन की भी मांग कर रहे हैं कि भविष्य में केंद्रीय समर्थन मूल्य (MSP) के लिए पारंपरिक खाद्यान्न खरीद प्रणाली जारी रहेगी. सरकार ने किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक 2020 के किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते को पारित किया है, जिसमें कहा गया है कि कानून बिचौलियों को दूर करेंगे.

'उत्पादों के उचित मूल्य की चिंता'
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि सरकार क्रोनी कॉरपोरेट्स के इशारे पर काम कर रही है. वहीं, सरकार हमारी चिंता को भी प्राथमिकता नहीं दे रही है. अगर सरकार किसान समर्थक है, तो बिल में एमएसपी को शामिल नहीं करने का क्या कारण है. वास्तव में, सरकार हमारे उत्पादों का केवल छह प्रतिशत ही खरीदती है और बाकी निजी खिलाड़ियों द्वारा खरीदा जा रहा है, इसलिए हम चिंतित हैं कि हमें अपने उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिलेगा.

पढ़ें: चिराग पासवान बोले- कभी भी गिर सकती है बिहार सरकार

राजनीतिक दलों की आलोचना
उन्होंने इस मामले का राजनीतिकरण करने के लिए राजनीतिक दलों की आलोचना भी की. त्रिपाठी ने कहा कि हमारी मांगें सरकार द्वारा स्वीकार की जा रही थीं, किसी भी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे के साथ खेलने का अवसर नहीं मिल सकता था. भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते, विपक्ष हमेशा आंदोलनकारियों का समर्थन करने के लिए आता है. वास्तव में सभी राजनीतिक दल वर्तमान में अराजक स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.

'सरकार कार्यकारी आदेश कर सकती है पारित'
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि राजनीतिक दल आंदोलन से अपना राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा सरकार, भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान संगठन भी हमारी मांगों का समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार निश्चित रूप से इस वर्तमान अधिनियम में संशोधन ला सकती है. पूर्व में भी कई संशोधन हुए थे और वर्तमान विवादास्पद अधिनियम में संशोधन के लिए सरकार एक कार्यकारी आदेश पारित कर सकती है.

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन के बीच सरकार ने एक बार फिर से बातचीत करने की पेशकश की. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के मुद्दों को सुलझाने के लिए तीन दिसंबर को बातचीत करने के लिए किसानों को बुलाया है, जिसके एक दिन बाद शनिवार को अखिल भारतीय किसान गठबंधन (AIFA) ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि वे केवल तभी सरकार से बातचीत करेंगे जब सरकार उनके वास्तविक मुद्दे का समाधान करेगी.

ईटीवी भारत से बात करते हुये एआईएफए के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि पहले भी सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है, जहां सरकार ने केवल उनको समझाया है. अगर सरकार हमारी चिंता को दूर करने के लिए गंभीर है, तो हम निश्चित रूप से बातचीत में भाग लेंगे.

ईटीवी से खास चर्चा

किसान यूनियनों से बात करने के लिए सरकार तैयार
बता दें कि दिल्ली-हरियाणा-पंजाब-यूपी के सीमावर्ती इलाकों में दो दिनों की अराजक स्थिति के बाद, दिल्ली पुलिस ने आंदोलन कर रहे किसानों को अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए नरेला आने की अनुमति दी है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी तीन दिसंबर को वार्ता के लिए आंदोलनरत किसानों को बुलाया था.

पढ़ें: पंजाब में बढ़ता किसानों का आंदोलन बढ़ा सकता है मुसीबत

कृषि कानून बिल का विरोध
डॉ. त्रिपाठी (जो एक प्रतिष्ठित कृषि कार्यकर्ता भी हैं) ने कहा कि यह कोई नया विरोध या आंदोलन नहीं है. जब से सरकार द्वारा कृषि बिल पेश किया गया है, हम इस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि न ही सरकार ने उनकी बात सुनी और न ही कृषि कानून बिल लाने से पहले किसानों से इस विषय पर बात करना जरूरी समझा. केवल कॉरपोरेट्स के हित सरकार के दिमाग में था.

लिखित आश्वासन की मांग
उन्होंने आगे कहा कि किसान नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना ​​है कि कानून उनकी कमाई को कम कर देंगे और बड़े खुदरा विक्रेताओं और कॉरपोरेट्स को अधिक शक्तिशाली और लाभदायक बना देंगे. किसान एक बिल के फर्म में लिखित आश्वासन की भी मांग कर रहे हैं कि भविष्य में केंद्रीय समर्थन मूल्य (MSP) के लिए पारंपरिक खाद्यान्न खरीद प्रणाली जारी रहेगी. सरकार ने किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक 2020 के किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते को पारित किया है, जिसमें कहा गया है कि कानून बिचौलियों को दूर करेंगे.

'उत्पादों के उचित मूल्य की चिंता'
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि सरकार क्रोनी कॉरपोरेट्स के इशारे पर काम कर रही है. वहीं, सरकार हमारी चिंता को भी प्राथमिकता नहीं दे रही है. अगर सरकार किसान समर्थक है, तो बिल में एमएसपी को शामिल नहीं करने का क्या कारण है. वास्तव में, सरकार हमारे उत्पादों का केवल छह प्रतिशत ही खरीदती है और बाकी निजी खिलाड़ियों द्वारा खरीदा जा रहा है, इसलिए हम चिंतित हैं कि हमें अपने उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिलेगा.

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राजनीतिक दलों की आलोचना
उन्होंने इस मामले का राजनीतिकरण करने के लिए राजनीतिक दलों की आलोचना भी की. त्रिपाठी ने कहा कि हमारी मांगें सरकार द्वारा स्वीकार की जा रही थीं, किसी भी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे के साथ खेलने का अवसर नहीं मिल सकता था. भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते, विपक्ष हमेशा आंदोलनकारियों का समर्थन करने के लिए आता है. वास्तव में सभी राजनीतिक दल वर्तमान में अराजक स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.

'सरकार कार्यकारी आदेश कर सकती है पारित'
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि राजनीतिक दल आंदोलन से अपना राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा सरकार, भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान संगठन भी हमारी मांगों का समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार निश्चित रूप से इस वर्तमान अधिनियम में संशोधन ला सकती है. पूर्व में भी कई संशोधन हुए थे और वर्तमान विवादास्पद अधिनियम में संशोधन के लिए सरकार एक कार्यकारी आदेश पारित कर सकती है.

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