नई दिल्ली : पिछले सप्ताह आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया संप्रदाय को लेकर एक फैसला लिया. बोर्ड ने इन्हें 'काफिर' और 'गैर मुस्लिम' करार दे दिया. बोर्ड ने कहा कि अब वे अहमदिया समुदाय से जुड़ी जमीनों की देखरेख भी नहीं करेंगे. केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड के इस फैसले को गलत करार दिया है.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि वक्फ का फैसला नफरत फैलाने वाला है. उन्होंने कहा कि इससे विभाजनकारी सोच को बढ़ावा मिलेगा. अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर कार्रवाई करने को कहा है.
केंद्र सरकार ने कहा कि वक्फ का प्रस्ताव अवैध है. सरकार ने कहा कि वक्फ का काम संपत्ति की देखरेख करना है और उसे सुरक्षित रखना है, न कि किसी भी व्यक्ति या समुदाय की धार्मिक पहचान पर टिप्पणी करना या फिर उसे इस धर्म का बताना या उस धर्म का बताना. मंत्रालय ने कहा कि वक्फ को धार्मिक पहचान तय करने का कोई अधिकार नहीं है, बल्कि यह समाज के खिलाफ है. वक्फ इस तरीके से समाज के समरस ताने-बाने को कमजोर कर रहा है.
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VIDEO | "No Waqf Board in the country has authority to expel a person or a community from a religion," says Minority Affairs Minister @smritiirani amid a row over the Andhra Pradesh Waqf Board passing a resolution describing the Ahmadiyya community as non-Muslims. pic.twitter.com/JCWWgeu7fS
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आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड ने न सिर्फ उन्हें गैर मुस्लिम करार दिया, बल्क उसने अहमदियोंं से नाता तोड़ने की बात कही. बोर्ड ने मौलवियों को कहा कि वे उनके यहां निकाह न पढ़ाएं, साथ ही जो भी इस्लाम के रीति-रिवाज होते हैं, उनमें वे शरीक न हों. वक्फ ने यह भी कहा कि अहमदिया समुदाय की जमीन का प्रबंधन भी वो खुद करें, वक्फ उनकी जमीन का प्रबंधन नहीं करेगा.
आंध्र वक्फ बोर्ड ने इसके पहले 2012 में भी ऐसा ही फैसला लिया था. तब अहमदिया संप्रदाय ने वक्फ के फैसले को अवैध ठहराते हुए हाईकोर्ट की शरण ली थी. हाईकोर्ट ने वक्फ के फतवे पर रोक लगा दी थी. एक बार फिर से उसे उसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा रहा है. अहमदिया संप्रदाय ने कुछ दिनों पहले ही इसकी शिकायत केंद्र सरकार को की थी.
कौन हैं अहमदिया- इस्लाम के पुनरुद्धार के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले मिर्जा गुलाम अहमद ने 20वीं सदी में अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी. उनके अनुयायी अपने आप को अहमदिया मुस्लिम मानते हैं. मिर्जा गुलाम पंजाब के कादियान में पैदा हुए थे. पंजाब के इस इलाके के अलावा वे दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, प.बंगाल और आंध्रप्रदेश के कुछ इलाकों में रहते हैं. पाकिस्तान में रहने वाले अहमदियों के साथ बहुत ही बुरा सलूक किया जाता है. वे उनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव करते हैं.
पाकिस्तान ने बाकायदा कानून बनाकर अहमदिया को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया. जुल्फिकार अली भुट्टो के समय में यह कानून बना था. पाकिस्तान में 50 लाख के आसपास इनकी आबादी है. पूरी दुनिया में पाकिस्तान में ही इनकी सबसे अधिक आबादी है. दूसरे नंबर पर नाइजीरिया और तीसरे नंबर पर तंजानिया है. पाकिस्तान में इनको अपनी पहचान छिपानी पड़ती है.
दरअसल, इस्लाम कई श्रेणियों में बंटा हुआ है. सुन्नी और शिया प्रमुख श्रेणियां हैं. बाकी की सभी श्रेणियां इसके अधीन ही हैं. 80 फीसदी आबादी सुन्नी की, जबकि 20 फीसदी आबादी शिया की है. जितनी भी श्रेणियां हैं - सभी अल्लाह, पैगंबर और कुरान - को मानते हैं. लेकिन उसके बाद पैगंबरों के वारिसों को मानें या न मानें, इस पर अलग-अलग राय है. इसके आधार पर ही वे बंटे हुए हैं.
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📢𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥 statement from the spokesperson of #𝐀𝐡𝐦𝐚𝐝𝐢𝐲𝐲𝐚 Muslim Community India regarding beliefs of Ahmadiyya #Muslim Community which clears various misconceptions and allegations raised by non Ahmadi Muslims which were also misquoted in some media.#WaqfBoard pic.twitter.com/eHdaDodRQK
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शियाओं के अंदर जैदी, इस्ना अशअरी, फातमी, खोजे, नुसैरी, बोहरा जैसे समुदाय हैं. जबकि सुन्नियों में हनफी, मालिकी, सलफी, वहाबी, शाफई, हंबली हैं. अहमदिया सुन्नी के हिस्से हैं.
अहमदियों के हज पर पाबंदी है. हज सऊदी अरब में किया जाता है. सऊदी अरब सुन्नी प्रमुख देश है और इसने अहमदिया पर बैन लगा रखा है. अहमदिया समुदाय कृष्ण को भी भगवान का दूत मानते हैं. इसी तरह से वे महात्मा बुद्ध और ईसा मसीह को भी भगवान का ही दूत मानते हैं. यही वह बिंदु है, जहां पर नॉन अहमदी उन पर हमला करते हैं.
संविधान में क्या कहा गया है- भारत के संविधान में हर व्यक्ति को अपने पसंद के धर्म का अनुपालन करने का अधिकार है. कोई भी व्यक्ति जबरदस्ती किसी का भी न तो धर्म परिवर्तन कर सकता है और न ही इसके लिए दबाव डाल सकता है. किसी के धर्म में कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकता है. भारत में जब भी जनगणना होती है, तो अहमदिया को इस्लाम का हिस्सा माना जाता है. उसे इस्लाम के एक वर्ग के रूप में संबोधित किया जाता है.
क्या है सुन्नी संगठन की राय - जमीयत उलमा ए हिंद ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के फैसले का समर्थन किया है. सुन्नी संगठन ने कहा कि अहमदिया के बारे में वक्फ के फतवे को वे सही मानते हैं. संगठन ने कहा क्योंकि अहमदिया इस्लाम की मूल आस्था को नहीं मानता है, यानी उन्हें पैगंबर हजरत मोहम्मद पर ही यकीन नहीं है, फिर उन्हें मुस्लिम कहलाने का कोई हक नहीं है. हजरत मोहम्मद को पैगंबर का आखिरी दूत माना जाता है.
सुन्नी संगठन ने दावा किया है कि वर्ल्ड मुस्लिम लीग की एक बैठक 1974 में हुई थी. इसमें भी अहमदिया को इस्लाम का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था. जमीयत के मुताबिक इस बैठक में दुनिया भर के 110 देशों के मुस्लिम प्रतिनिधियों ने भागीदारी की थी.
अहमदिया ने सुन्नी संगठन के दावे को किया खारिज- अहमदिया समुदाय ने कहा कि उनके बारे में गलत अवधारणा है. अहमदिया हजरत मोहम्मद को अंतिम पैगंबर मानता है. वे इस्लाम के वसूलों में यकीन करते हैं. उन्होंने कहा कि वक्फ का काम समाज को तोड़ने वाला है. वे सामाजिक तौर पर तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
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