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अफ्स्पा, बेरोजगारी और आरक्षण बने मणिपुर के चुनावी मुद्दे, फायदा किसे मिलेगा

मणिपुर विधानसभा चुनाव में इस बार अफ्स्पा बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. इसके अलावा बेरोजगारी और मैतेई समुदाय के आरक्षण की मांग भी चुनावी मुद्दों में शामिल हो गए हैं. आखिर मणिपुर में ये मुद्दे क्यों हावी हुए, पढ़ें रिपोर्ट

election issues of Manipur
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Published : Feb 24, 2022, 4:53 PM IST

नई दिल्ली : अभी देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. गोवा, पंजाब, उत्तराखंड में वोटिंग हो चुकी है. उत्तरप्रदेश में तीन चरणों की वोटिंग होनी है. यूपी के अलावा पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में भी चुनावी घमासान मचा है. 16 जिलों वाले मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं. 2017 में यहां 12वीं विधानसभा अस्तित्व में आई थी. अब 13वीं विधानसभा के लिए दो चरणों में 28 फरवरी और 5 मार्च को वोट डाले जाएंगे. इस बार मणिपुर के चुनाव मैदान में कुल 265 प्रत्याशी हैं, लेकिन इन प्रत्याशियों में केवल 17 महिलाएं हैं. मणिपुर में महिला वोटरों की संख्या 10.57 लाख है जबकि 9.90 लाख पुरुष मतदाता हैं.

अभी मणिपुर में भाजपा की नेतृत्व वाली NDA गठबंधन की सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 86.63 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटें और भाजपा को 21 सीटें मिली थीं. मगर बीजेपी ने NPF के चार, NPP के चार, LJP के एक सदस्यों के सहारे सत्ता हासिल कर ली. इस तरह कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक पांच साल तक विपक्ष की भूमिका निभाती रही. इस दौरान कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि सात ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. चुनाव होने तक कांग्रेस के पास सिर्फ 15 विधायक बचे हैं.

election issues of Manipur
कांग्रेस ने अफ्स्पा को हटाने और इसके तहत बंद पत्रकारों को मुआवजा देने का वादा किया है.

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के कारण मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 काफी संवेदनशील हो गया है. इस बार कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता फेंकते हुए अफ्सपा (AFSPA) कानून को निरस्त करने को चुनावी मुद्दा बना लिया है. हालांकि 2017 से पहले दो दशक तक मणिपुर में राज करने वाली कांग्रेस ने इस कानून को हटाने की चर्चा सत्ता में रहने के दौरान कभी नहीं की थी. अफ्सपा मणिपुर में पिछले तीन दशकों से अधिक समय से लागू है. अफ्सपा (AFSPA) के मसले पर बीजेपी खामोश है. उसके घोषणापत्र में भी इस पर कोई राय नहीं रखी गई है. छोटे दलों जनता दल यूनाइटेड, नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने अफस्पा हटाने का वादा किया है.

आखिर अफस्पा क्यों बना मणिपुर में मुद्दा

पिछले साल भारतीय सेना के कुछ जवानों ने आतंकवादी समझकर नागालैंड के मोन जिले में 13 आम नागरिकों को मार डाला था. इस घटना उत्तर-पूर्वी राज्यों में अफ्सपा निरस्त करने की सुलग रही मांग को फिर से भड़का दिया. नागालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री भी सार्वजनिक रूप से अफ्सपा को निरस्त करने की मांग कर चुके हैं. इसके बाद से ही अफ्सपा मणिपुर में भी चुनावी मुद्दा बन गया. हालात को देखते हुए कांग्रेस समेत कई दलों ने भी इस कानून की मुखालफत शुरू कर दी है.

election issues of Manipur
इरोम शर्मिला 16 साल तक अफ्स्पा के खिलाफ लड़ी थीं, मगर वह 2017 में बुरी तरह चुनाव हार गई. पांच साल पहले अफ्स्पा मुद्दा नहीं बन सका था.

पहले भी मणिपुर में अफ्स्पा मुद्दा नहीं बना

अशांत क्षेत्र घोषित होने के बाद पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में अफ्स्पा करीब 30 साल से लागू है. इसके खिलाफ 'आयरन लेडी' के नाम से मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला16 वर्षों तक अनशन कर चुकी है. 2017 के चुनाव में इरोम शर्मिला अफ्स्पा निरस्त करने की मांग को लेकर चुनाव मैदान में उतरी थीं, मगर उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे. एक अन्य अफस्पा विरोधी कार्यकर्ता नजीमा बीबी को तो इससे भी कम वोट मिले थे.

बीजेपी ने बनाया क्षेत्रीय अखंडता का मुद्दा

बीजेपी मणिपुर के क्षेत्रीय अखंडता के नारे पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस ने दशकों से सत्ता में आने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. जब से नगा शांति वार्ता शुरू हुई है, तब से मणिपुर में क्षेत्रीय अखंडता सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में शामिल हो गया है. बीजेपी अपने 13 परियोजनाओं और शांति वार्ता के आधार पर वोट मांग रही है.

election issues of Manipur
नवंबर 2021 में नागालैंड में सेना के जवानों के आतंकी समझकर 13 लोगों को मार डाला था, इस कारण विधानसभा चुनाव में अफ्स्पा का मुद्दा फिर गरमाया.

युवाओं ने बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाया

पिछली जनगणना के अनुसार मणिपुर की साक्षरता दर लगभग 80 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है. राज्य में पुरुष साक्षरता 86.49 प्रतिशत है. 2017-18 में यहां बेरोजगारी दर 11.6 फीसदी थी. मणिपुर के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार 15-24 ऐज कैटिगरी में बेरोजगारी 44.4 प्रतिशत रही. इस कारण इस बार बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा बनकर सामने आई है.

बीजेपी पर मैतई वोटरों को साथ रखने का चैलेंज

मणिपुर की राजनीति में मैतई समुदाय का दबदबा रहा है. मेतई हिंदू रीति-रिवाज़ों का पालन करने वाला जनजातीय समूह हैं. राज्य की कुल आबादी 28 लाख से अधिक है, जिसका 40 फीसदी सामान्य मेतेई हैं. मणिपुर में सरकार वही बनाएगा, जो मैतेई समुदाय की भावनाओं का सम्मान करेगा. मैतेई जनजाति के लोग शिड्यूल ट्राइब्स का दर्जा देने की मांग को लेकर लामबंद हैं. उनकी मांगों का राज्य के पहाड़ी हिस्सों में विरोध हो रहा है. पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले ट्राइबल को डर है कि अगर सरकार ने मैतेई को आदिवासी का दर्जा दिया तो वे उनकी जमीन पर कब्जा कर लेंगे. इसके अलावा मैतई इनर लाइन पर‍म‍िट खत्‍म होने का भी विरोध कर रहे हैं.

पढ़ें : मणिपुर में कांग्रेस के गठबंधन से बीजेपी का होगा तगड़ा मुकाबला

नई दिल्ली : अभी देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. गोवा, पंजाब, उत्तराखंड में वोटिंग हो चुकी है. उत्तरप्रदेश में तीन चरणों की वोटिंग होनी है. यूपी के अलावा पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में भी चुनावी घमासान मचा है. 16 जिलों वाले मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं. 2017 में यहां 12वीं विधानसभा अस्तित्व में आई थी. अब 13वीं विधानसभा के लिए दो चरणों में 28 फरवरी और 5 मार्च को वोट डाले जाएंगे. इस बार मणिपुर के चुनाव मैदान में कुल 265 प्रत्याशी हैं, लेकिन इन प्रत्याशियों में केवल 17 महिलाएं हैं. मणिपुर में महिला वोटरों की संख्या 10.57 लाख है जबकि 9.90 लाख पुरुष मतदाता हैं.

अभी मणिपुर में भाजपा की नेतृत्व वाली NDA गठबंधन की सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 86.63 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटें और भाजपा को 21 सीटें मिली थीं. मगर बीजेपी ने NPF के चार, NPP के चार, LJP के एक सदस्यों के सहारे सत्ता हासिल कर ली. इस तरह कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक पांच साल तक विपक्ष की भूमिका निभाती रही. इस दौरान कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि सात ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. चुनाव होने तक कांग्रेस के पास सिर्फ 15 विधायक बचे हैं.

election issues of Manipur
कांग्रेस ने अफ्स्पा को हटाने और इसके तहत बंद पत्रकारों को मुआवजा देने का वादा किया है.

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के कारण मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 काफी संवेदनशील हो गया है. इस बार कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता फेंकते हुए अफ्सपा (AFSPA) कानून को निरस्त करने को चुनावी मुद्दा बना लिया है. हालांकि 2017 से पहले दो दशक तक मणिपुर में राज करने वाली कांग्रेस ने इस कानून को हटाने की चर्चा सत्ता में रहने के दौरान कभी नहीं की थी. अफ्सपा मणिपुर में पिछले तीन दशकों से अधिक समय से लागू है. अफ्सपा (AFSPA) के मसले पर बीजेपी खामोश है. उसके घोषणापत्र में भी इस पर कोई राय नहीं रखी गई है. छोटे दलों जनता दल यूनाइटेड, नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने अफस्पा हटाने का वादा किया है.

आखिर अफस्पा क्यों बना मणिपुर में मुद्दा

पिछले साल भारतीय सेना के कुछ जवानों ने आतंकवादी समझकर नागालैंड के मोन जिले में 13 आम नागरिकों को मार डाला था. इस घटना उत्तर-पूर्वी राज्यों में अफ्सपा निरस्त करने की सुलग रही मांग को फिर से भड़का दिया. नागालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री भी सार्वजनिक रूप से अफ्सपा को निरस्त करने की मांग कर चुके हैं. इसके बाद से ही अफ्सपा मणिपुर में भी चुनावी मुद्दा बन गया. हालात को देखते हुए कांग्रेस समेत कई दलों ने भी इस कानून की मुखालफत शुरू कर दी है.

election issues of Manipur
इरोम शर्मिला 16 साल तक अफ्स्पा के खिलाफ लड़ी थीं, मगर वह 2017 में बुरी तरह चुनाव हार गई. पांच साल पहले अफ्स्पा मुद्दा नहीं बन सका था.

पहले भी मणिपुर में अफ्स्पा मुद्दा नहीं बना

अशांत क्षेत्र घोषित होने के बाद पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में अफ्स्पा करीब 30 साल से लागू है. इसके खिलाफ 'आयरन लेडी' के नाम से मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला16 वर्षों तक अनशन कर चुकी है. 2017 के चुनाव में इरोम शर्मिला अफ्स्पा निरस्त करने की मांग को लेकर चुनाव मैदान में उतरी थीं, मगर उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे. एक अन्य अफस्पा विरोधी कार्यकर्ता नजीमा बीबी को तो इससे भी कम वोट मिले थे.

बीजेपी ने बनाया क्षेत्रीय अखंडता का मुद्दा

बीजेपी मणिपुर के क्षेत्रीय अखंडता के नारे पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस ने दशकों से सत्ता में आने के लिए इसका इस्तेमाल किया था. जब से नगा शांति वार्ता शुरू हुई है, तब से मणिपुर में क्षेत्रीय अखंडता सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में शामिल हो गया है. बीजेपी अपने 13 परियोजनाओं और शांति वार्ता के आधार पर वोट मांग रही है.

election issues of Manipur
नवंबर 2021 में नागालैंड में सेना के जवानों के आतंकी समझकर 13 लोगों को मार डाला था, इस कारण विधानसभा चुनाव में अफ्स्पा का मुद्दा फिर गरमाया.

युवाओं ने बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाया

पिछली जनगणना के अनुसार मणिपुर की साक्षरता दर लगभग 80 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है. राज्य में पुरुष साक्षरता 86.49 प्रतिशत है. 2017-18 में यहां बेरोजगारी दर 11.6 फीसदी थी. मणिपुर के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार 15-24 ऐज कैटिगरी में बेरोजगारी 44.4 प्रतिशत रही. इस कारण इस बार बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा बनकर सामने आई है.

बीजेपी पर मैतई वोटरों को साथ रखने का चैलेंज

मणिपुर की राजनीति में मैतई समुदाय का दबदबा रहा है. मेतई हिंदू रीति-रिवाज़ों का पालन करने वाला जनजातीय समूह हैं. राज्य की कुल आबादी 28 लाख से अधिक है, जिसका 40 फीसदी सामान्य मेतेई हैं. मणिपुर में सरकार वही बनाएगा, जो मैतेई समुदाय की भावनाओं का सम्मान करेगा. मैतेई जनजाति के लोग शिड्यूल ट्राइब्स का दर्जा देने की मांग को लेकर लामबंद हैं. उनकी मांगों का राज्य के पहाड़ी हिस्सों में विरोध हो रहा है. पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले ट्राइबल को डर है कि अगर सरकार ने मैतेई को आदिवासी का दर्जा दिया तो वे उनकी जमीन पर कब्जा कर लेंगे. इसके अलावा मैतई इनर लाइन पर‍म‍िट खत्‍म होने का भी विरोध कर रहे हैं.

पढ़ें : मणिपुर में कांग्रेस के गठबंधन से बीजेपी का होगा तगड़ा मुकाबला

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