नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) के बाहर शरणार्थी दर्जे की मांग को लेकर प्रदर्शन के लिए बड़ी संख्या में अफगान नागरिकों के एकत्रित होने पर बुधवार को चिंता जताई थी.
इस मामले पर अफगान सॉलिडेरिटी कमेटी के सदस्य अंजाम अहमद खान ने खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि हमें दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के बारे में पता चला, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि हम लोग कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह सरासर गलत है. हम सभी यहां पर भारत सरकार के दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं. हम सभी मास्क पहनते हैं, चाहे वह महिला हो या छोटे बच्चे.
उन्होंने कहा कि हमारी समस्याएं महामारी से बड़ी है. जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तब से हमारी समस्याएं और भी बढ़ गई हैं. हम मकान के किराए का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं, हम अपने बच्चों की ट्यूशन फीस नहीं जमा कर पा रहे हैं.
दरअसल, उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस स्थिति को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि वहां पर प्रदर्शनकारी बिना मास्क पहने एक-दूसरे के निकट दिख रहे हैं. अदालत ने अधिकारियों से इस पर कार्रवाई करने को कहा.
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने केंद्र, दिल्ली सरकार और पुलिस से कहा कि इस मुद्दे के समाधान के लिए वे मिलकर सोच विचार करें और यह भी ध्यान रखें कि लोगों की भीड़ कोविड-19 फैलने का कारक न बने. दिल्ली उच्च न्यायालय ने वसंत विहार वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस, दक्षिण दिल्ली नगर निगम और दिल्ली जल बोर्ड को नोटिस जारी किए.
खान ने कहा कि छोटे बच्चों और महिलाओं यहां दिन-रात प्रदर्शन कर रहे हैं. यूएनएचसीआर को उनपर दया दिखानी चाहिए और हमारी मांगों को पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यूएनएचसीआर को हमारे बंद मामलों को फिर से खोलना चाहिए और हमें शरणार्थी कार्ड प्रदान करना चाहिए.
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12 साल की लड़की बुशरा ने कहा कि यूएनएचसीआर के बाहर हमारे विरोध का आज 12वां दिन है, अब तक यूएनएचसीआर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. बुशरा ने कहा कि हम शरणार्थी कार्ड की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा अगर शरणार्थी कार्ड हमें नहीं मिलता है तो हमें किसी अन्य देश में भेज दें, ताकि हम अपना भविष्य बना सकें.
उन्होंने कहा कि मैं भारत में पिछले 5 साल से रह रही हूं, लेकिन हम लोगों के लिए कुछ नहीं हुआ है. इसलिए बेहतर यही होगा कि हम लोग देश छोड़कर कहीं और जाकर बस जाएं.