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बंद होने के कगार पर भोगल में चल रहा अफगान स्कूल, शरणार्थियों को इस बात से है ऐतराज

अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के कई महीने बाद दिल्ली में अफगान बच्चों का स्कूल अब बंद होने की कगार पर है. स्कूल का नाम सैयद जमालुद्दीन अफगान हाई स्कूल है. यह दिल्ली के भोगल में एक किराए की बिल्डिंग में चल रहा है. विदेश मंत्रालय के अनुसार स्कूल के 300 छात्रों को भारतीय स्कूलों में ट्रांसफर किया जाएगा, क्योंकि अब अफगान शिक्षा बोर्ड नहीं है.

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Published : Apr 15, 2023, 6:56 AM IST

Updated : Apr 15, 2023, 7:11 AM IST

नई दिल्ली: राजधानी में रहने वाले अफगान शरणार्थियों के बच्चों के लिए भोगल में चल रहा सैयद जमालुद्दीन अफगान हाई स्कूल बंद होने की कगार पर है. 15 अगस्त, 2021 को जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से एग्जिट किया और काबुल तालिबान के कब्जे में आ गया, तो अफगान सरकार से फंडिंग भी बंद हो गई. तब भारत के विदेश मंत्रालय ने स्कूल की आर्थिक मदद की और स्कूल को बंद होने से बचाया. अब अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगाते हुए इस स्कूल की मान्यता रद्द कर दी है, इसलिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने यहां पढ़ने वाले करीब 300 छात्र-छात्राओं को भारतीय बोर्डों द्वारा संचालित स्कूलों में शिफ्ट करने की योजना बनाई है. हालांकि इस काम में सबसे बड़ी मुश्किल भाषा की आएगी.

अफगानी छात्रों के सामने भाषा का संकट : पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों का कहना है कि अभी तक उनके बच्चों ने अफगानी भाषा में पढ़ाई की है. अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढ़ा है. ऐसे में अचानक उन्हें अंग्रेजी माध्यम में शिफ्ट करने से उनके सामने भाषा का संकट खड़ा हो जाएगा और वह अन्य विषयों को अंग्रेजी में इतनी आसानी से समझ नहीं पाएंगे. अभिभावकों का कहना है कि अंग्रेजी विषय पढ़ना और अंग्रेजी माध्यम से अन्य विषय पढ़ना, इन दोनों में बहुत अंतर है.

स्कूल की मदद के लिए सामाजिक संस्था पर निर्भर : अफगान शरणार्थियों के लिए काम करने वाले एक अफगानी सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि वह प्रयास कर रहे हैं कि स्कूल को चलाने के लिए यदि भारत सरकार फंड नहीं देती है, तो कुछ सामाजिक संस्थाओं की ओर से मदद मिल जाए. इसके लिए वह लगातार सामाजिक संस्थाओं से संपर्क कर रहे हैं. उम्मीद है कि जल्द ही कहीं न कहीं से फंडिंग की व्यवस्था हो जाएगी. उन्होंने बताया कि इसके साथ ही वह भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के भी संपर्क में हैं और प्रयास कर रहे हैं कि स्कूल को बंद न करना पड़े.

ये भी पढ़ें : Delhi liquor scam: CBI ने 16 अप्रैल को CM अरविंद केजरीवाल को पूछताछ के लिए बुलाया

1994 में शुरू हुआ था अफगानी स्कूल : वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी ऑनर्स (नर्सिंग) कर रही एक अफगानी छात्रा ने बताया कि अफगान स्कूल में उन्हें अपने देश की भाषा, वहां की कला एवं संस्कृति और उनके देश का इतिहास पढ़ाया जाता है. भारतीय स्कूल में प्रवेश के बाद यहां के बच्चों को यह सब सीखने को नहीं मिलेगा, इसलिए भारत सरकार को और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को इस स्कूल को बंद होने से बचाने के लिए मदद की जरूरत है. इस स्कूल में कक्षा 1 से 12 तक के छात्र हैं. यह स्कूल 1994 में शुरू हुआ था. यह 2008 में एक प्राथमिक विद्यालय और 2017 में उच्च विद्यालय बन गया.

मई के अंत तक भवन करने के निर्देश: अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार ने भारत में रहने वाले अफगान शरणार्थियों के अनुरोध पर धन देना शुरू किया था और स्कूल को मान्यता दी थी. अब तालिबान सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगाने के साथ ही इस स्कूल की मान्यता को भी रद्द कर दिया है, इसी कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है. स्कूल के शिक्षकों को मई के अंत तक किराए के भवन को खाली करने के लिए कहा गया है. तालिबान से पहले स्कूल को अफगान सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी, जो बोर्ड कक्षाओं के लिए प्रमाण पत्र जारी करती थी.

ये भी पढ़ें : Delhi Free Electricity: दिल्लीवालों को मिलती रहेगी फ्री बिजली, फाइल पर LG ने किया साइन, बिजली मंत्री पर भड़के

नई दिल्ली: राजधानी में रहने वाले अफगान शरणार्थियों के बच्चों के लिए भोगल में चल रहा सैयद जमालुद्दीन अफगान हाई स्कूल बंद होने की कगार पर है. 15 अगस्त, 2021 को जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से एग्जिट किया और काबुल तालिबान के कब्जे में आ गया, तो अफगान सरकार से फंडिंग भी बंद हो गई. तब भारत के विदेश मंत्रालय ने स्कूल की आर्थिक मदद की और स्कूल को बंद होने से बचाया. अब अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगाते हुए इस स्कूल की मान्यता रद्द कर दी है, इसलिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने यहां पढ़ने वाले करीब 300 छात्र-छात्राओं को भारतीय बोर्डों द्वारा संचालित स्कूलों में शिफ्ट करने की योजना बनाई है. हालांकि इस काम में सबसे बड़ी मुश्किल भाषा की आएगी.

अफगानी छात्रों के सामने भाषा का संकट : पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों का कहना है कि अभी तक उनके बच्चों ने अफगानी भाषा में पढ़ाई की है. अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढ़ा है. ऐसे में अचानक उन्हें अंग्रेजी माध्यम में शिफ्ट करने से उनके सामने भाषा का संकट खड़ा हो जाएगा और वह अन्य विषयों को अंग्रेजी में इतनी आसानी से समझ नहीं पाएंगे. अभिभावकों का कहना है कि अंग्रेजी विषय पढ़ना और अंग्रेजी माध्यम से अन्य विषय पढ़ना, इन दोनों में बहुत अंतर है.

स्कूल की मदद के लिए सामाजिक संस्था पर निर्भर : अफगान शरणार्थियों के लिए काम करने वाले एक अफगानी सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि वह प्रयास कर रहे हैं कि स्कूल को चलाने के लिए यदि भारत सरकार फंड नहीं देती है, तो कुछ सामाजिक संस्थाओं की ओर से मदद मिल जाए. इसके लिए वह लगातार सामाजिक संस्थाओं से संपर्क कर रहे हैं. उम्मीद है कि जल्द ही कहीं न कहीं से फंडिंग की व्यवस्था हो जाएगी. उन्होंने बताया कि इसके साथ ही वह भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के भी संपर्क में हैं और प्रयास कर रहे हैं कि स्कूल को बंद न करना पड़े.

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1994 में शुरू हुआ था अफगानी स्कूल : वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी ऑनर्स (नर्सिंग) कर रही एक अफगानी छात्रा ने बताया कि अफगान स्कूल में उन्हें अपने देश की भाषा, वहां की कला एवं संस्कृति और उनके देश का इतिहास पढ़ाया जाता है. भारतीय स्कूल में प्रवेश के बाद यहां के बच्चों को यह सब सीखने को नहीं मिलेगा, इसलिए भारत सरकार को और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को इस स्कूल को बंद होने से बचाने के लिए मदद की जरूरत है. इस स्कूल में कक्षा 1 से 12 तक के छात्र हैं. यह स्कूल 1994 में शुरू हुआ था. यह 2008 में एक प्राथमिक विद्यालय और 2017 में उच्च विद्यालय बन गया.

मई के अंत तक भवन करने के निर्देश: अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार ने भारत में रहने वाले अफगान शरणार्थियों के अनुरोध पर धन देना शुरू किया था और स्कूल को मान्यता दी थी. अब तालिबान सरकार ने लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगाने के साथ ही इस स्कूल की मान्यता को भी रद्द कर दिया है, इसी कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है. स्कूल के शिक्षकों को मई के अंत तक किराए के भवन को खाली करने के लिए कहा गया है. तालिबान से पहले स्कूल को अफगान सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी, जो बोर्ड कक्षाओं के लिए प्रमाण पत्र जारी करती थी.

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Last Updated : Apr 15, 2023, 7:11 AM IST
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