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केंद्र की अधिसूचना के आधार पर अरावली क्षेत्र की पहचान करने की दी सलाह

हरियाणा सरकार की एक समिति ने अधिकारियों को केंद्र की 1992 की अधिसूचना के आधार पर अरावली के तहत आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने की सलाह दी है. जिसमें केवल पुराने गुड़गांव जिले के क्षेत्र शामिल हैं.

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Published : Sep 13, 2021, 5:41 PM IST

गुड़गांव : हरियाणा की सरकारी समिति ने अधिकारियों को अरावली के तहत आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने की सलाह दी है. इसके बाद पर्यावरणविदों ने पूछा कि क्या राष्ट्रीय संरक्षण क्षेत्र (एनसीजेड) के प्रावधान फरीदाबाद के अरावली क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे?

समिति ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड केवल गैर मुमकिन पहाड़ (ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जो कृषि योग्य नहीं हैं) की पहचान करते हैं. समिति ने अपनी हाल की बैठक में संबंधित अधिकारियों को सलाह दी है कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ व सीसी) की 1992 की अधिसूचना के आधार पर अरावली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए.

नगर एवं कंट्रीय योजना के प्रधान सचिव एपी सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजधानी के हरियाणा उप क्षेत्र में एनसीजेड की जमीन-सच्चाई को लेकर नौ अगस्त को राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) की बैठक हुई थी.

बैठक में उपायुक्त भी शामिल थे और जिला-स्तरीय उप-समितियों से केंद्र की 1992 की अधिसूचना के अनुसार अरावली की पहचान करने को कहा गया. इस पर पर्यावरणविदों ने दावा किया है कि यह गैर मुमकिन पहाड़ को एनसीजेड से प्रभावी ढंग से बाहर कर देगा और फरीदाबाद में अरावली क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लागू नहीं होंगे.

एसएलसी की बैठक की टिप्पणियों के मुताबिक राजस्व रिकॉर्ड में अरावली नाम का कोई शब्द नहीं है, बल्कि केवल गैर मुमकिन पहाड़ का उल्लेख है. लिहाज़ा कुछ जिलों ने राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन पहाड़ के तौर दर्ज क्षेत्रों को अरावली के समान मानते हुए एनसीजेड के तहत उनकी पहचान की है.

इसमें तीन मार्च 2017 को हरियाणा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक के मिनटों का संदर्भ दिया गया है जिसमें अरावली की पहचान के मुद्दे के संबंध में कहा गया है. हरियाणा सरकार इस अधिसूचना को पुराने जिले गुरुग्राम (वर्तमान में गुड़गांव और नूंह) में ही मान सकती है और सात मई 1992 की अधिसूचना में निर्दिष्ट क्षेत्रों को अरावली माना जा सकता है.

उसमें कहा गया है कि अरावली की परिभाषा को तब तक हरियाणा के अन्य उप- क्षेत्रों तक विस्तारित नहीं किया जा सकता है जो सात मई 1992 की अरावली अधिसूचना में परिभाषित नहीं हैं, जब तक कि यह एमओईएफ व सीसी द्वारा समान अधिसूचना के माध्यम से ऐसा नहीं किया जाता है.

पिछले महीने हुई एसएलसी की बैठक में कहा गया है कि इसलिए पुराने जिले गुरुग्राम में सात मई 1992 को मौजूद केवल निर्दिष्ट क्षेत्र अरावली होने के कारण पुष्ट एनसीजेड का हिस्सा हो सकते हैं और अन्य जिलों के ऐसे क्षेत्रों को एनसीजेड की श्रेणी से हटाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें-राम जन्मभूमि परिसर में और बनेंगे 6 मंदिर, जानें कौन-कौन से देवता विराजेंगे

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चेतन अग्रवाल ने आशंका जताई कि इस कदम से क्षेत्र में निर्माण गतिविधियां शुरू हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि फरीदाबाद समेत गुड़गांव के बाहर स्थित सभी गैर मुमकिन पहाड़ अरावली का हिस्सा नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा कि इसका असर न सिर्फ फरीदाबाद पर बल्कि रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ पर भी पड़ेगा.

(पीटीआई-भाषा)

गुड़गांव : हरियाणा की सरकारी समिति ने अधिकारियों को अरावली के तहत आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने की सलाह दी है. इसके बाद पर्यावरणविदों ने पूछा कि क्या राष्ट्रीय संरक्षण क्षेत्र (एनसीजेड) के प्रावधान फरीदाबाद के अरावली क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे?

समिति ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड केवल गैर मुमकिन पहाड़ (ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जो कृषि योग्य नहीं हैं) की पहचान करते हैं. समिति ने अपनी हाल की बैठक में संबंधित अधिकारियों को सलाह दी है कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ व सीसी) की 1992 की अधिसूचना के आधार पर अरावली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए.

नगर एवं कंट्रीय योजना के प्रधान सचिव एपी सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजधानी के हरियाणा उप क्षेत्र में एनसीजेड की जमीन-सच्चाई को लेकर नौ अगस्त को राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) की बैठक हुई थी.

बैठक में उपायुक्त भी शामिल थे और जिला-स्तरीय उप-समितियों से केंद्र की 1992 की अधिसूचना के अनुसार अरावली की पहचान करने को कहा गया. इस पर पर्यावरणविदों ने दावा किया है कि यह गैर मुमकिन पहाड़ को एनसीजेड से प्रभावी ढंग से बाहर कर देगा और फरीदाबाद में अरावली क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लागू नहीं होंगे.

एसएलसी की बैठक की टिप्पणियों के मुताबिक राजस्व रिकॉर्ड में अरावली नाम का कोई शब्द नहीं है, बल्कि केवल गैर मुमकिन पहाड़ का उल्लेख है. लिहाज़ा कुछ जिलों ने राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन पहाड़ के तौर दर्ज क्षेत्रों को अरावली के समान मानते हुए एनसीजेड के तहत उनकी पहचान की है.

इसमें तीन मार्च 2017 को हरियाणा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक के मिनटों का संदर्भ दिया गया है जिसमें अरावली की पहचान के मुद्दे के संबंध में कहा गया है. हरियाणा सरकार इस अधिसूचना को पुराने जिले गुरुग्राम (वर्तमान में गुड़गांव और नूंह) में ही मान सकती है और सात मई 1992 की अधिसूचना में निर्दिष्ट क्षेत्रों को अरावली माना जा सकता है.

उसमें कहा गया है कि अरावली की परिभाषा को तब तक हरियाणा के अन्य उप- क्षेत्रों तक विस्तारित नहीं किया जा सकता है जो सात मई 1992 की अरावली अधिसूचना में परिभाषित नहीं हैं, जब तक कि यह एमओईएफ व सीसी द्वारा समान अधिसूचना के माध्यम से ऐसा नहीं किया जाता है.

पिछले महीने हुई एसएलसी की बैठक में कहा गया है कि इसलिए पुराने जिले गुरुग्राम में सात मई 1992 को मौजूद केवल निर्दिष्ट क्षेत्र अरावली होने के कारण पुष्ट एनसीजेड का हिस्सा हो सकते हैं और अन्य जिलों के ऐसे क्षेत्रों को एनसीजेड की श्रेणी से हटाया जा सकता है.

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प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चेतन अग्रवाल ने आशंका जताई कि इस कदम से क्षेत्र में निर्माण गतिविधियां शुरू हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि फरीदाबाद समेत गुड़गांव के बाहर स्थित सभी गैर मुमकिन पहाड़ अरावली का हिस्सा नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा कि इसका असर न सिर्फ फरीदाबाद पर बल्कि रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ पर भी पड़ेगा.

(पीटीआई-भाषा)

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