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प्रियंका गांधी ने अडानी पर लगाया सेब बागवानों से लूट का आरोप, जानें Adani Company हिमाचल में किसानों से कैसे करती है डील? - Priyanka Gandhi Gautam Adani

हिमाचल में अडानी कंपनी की सीए स्टोर बागवानों से हर साल बड़ी मात्रा में सेब खरीदती है, लेकिन इस साल कंपनी द्वारा सेब की कीमत कम दिए जाने से बागवानों ने नाराजगी जाहिर की है. वहीं, इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सवाल खड़े किए हैं. जिसको लेकर एक बार फिर से अडानी कंपनी सुर्खियों में छायी हुई है. पढ़िए पूरी खबर...(Adani company Buy Himachal apple) (priyanka Gandhi on Adani) (Adani Company Store in Himachal )

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प्रियंका गांधी ने अडानी पर लगाया आरोप
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 6, 2023, 7:48 PM IST

Updated : Sep 6, 2023, 8:37 PM IST

शिमला: राजनीति गलियारों में अडानी का नाम समय-समय पर बड़ी जोरों शोरों से गूंजता रहता है. अक्सर विपक्षी नेता अडानी को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधते रहते हैं. एक बार फिर से अडानी का नाम सुर्खियों में हैं. क्योंकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानों को अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर द्वारा कम दाम दिए जाने का मुद्दा उठाया है. उन्होंने अडानी पर आपदा के समय बागवानों से लूट का आरोप लगाया है. साथ ही प्रियंका ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि इस लूट को रोकने के लिए कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं? गौरतलब है कि इन दिनों हिमाचल में सेब सीजन चल रहा है. हर साल अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर 22 से 24 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि अडानी ग्रुप हिमाचल के बागवानों से सेब खरीदने के लिए क्या प्रोसेस अपनाता है और यहां अडानी के कितने सीए स्टोर हैं.

इस साल अडानी एग्रोफ्रेश ने बागवानों से सेब खरीद शुरू कर दी है, लेकिन बाजार से कम कीमत मिलने पर किसानों और बागवानों ने आपत्ति जाहिर की. जिसके बाद अडानी एग्रोफ्रेश ने सेब की कीमत बढ़ा दी. वहीं, इस साल हिमाचल सरकार ने सेब किलो के हिसाब से खरीदने का नियम बनाया है. हालांकि, अडानी सीए स्टोर में पहले से ही सेब किलो के हिसाब से खरीदे जा रहे हैं. यहां सेब खरीद के लिए अडानी ग्रुप ने कई मापदंड तय किए हैं. जिसके अनुसार ही सेबों के दाम तय किए जाते हैं.

  • आपदा के इस कठिन दौर में जहाँ हिमाचल प्रदेश के बाग़बानों पर पहले से ही परेशानियों का पहाड़ टूट रहा था, प्रधानमंत्री जी के मित्र अडानी उनकी परेशानियों को क्यों बढ़ा रहे हैं?

    खबरों के मुताबिक़ अडानी के दाम जारी करने के बाद सेब की पेटियाँ पहले से एक तिहाई दाम में बिक रही हैं।

    आपदा…

    — Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) September 6, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हिमाचल प्रदेश में अडानी कंपनी के तीन सीए स्टोर हैं, ये तीनों स्टोर शिमला जिले में ही हैं. हर साल अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर 22 से 24 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. हिमाचल के रोहड़ू मेंहदली, ठियोग के सैंज और रामपुर बीथल में अडानी के तीन सीए स्टोर है. रोहड़ू मेंहदली सीए स्टोर की क्षमता 10 हजार मीट्रिक टन, सैंज सीए स्टोर की क्षमता 6 हजार मीट्रिक और रामपुर बीथल सीए स्टोर की क्षमता 6 हजार मीट्रिक टन है. इन सीए स्टोर में सेब की खरीद ग्रेडिंग के हिसाब से की जाती है.

हिमाचल सरकार ने भले ही इस बार मंडियों में सेब किलो के हिसाब से खरीदने का फैसला लिया है, लेकिन प्रदेश में किलो के हिसाब से सेब खरीदने का श्रेय अडानी एग्रोफ्रेश को ही जाता है. पिछले 16 सालों से अडानी की कंपनी हिमाचल में सेब की खरीद कर रही है. अडानी के सीए स्टोर पर सेब की खरीद किलो के हिसाब से की जाती है. कुछ और वजह से भी बागवान अडानी एग्रोफ्रेश में सेब बेचने को प्राथमिकता देते हैं. यहां बागवानों को पेटियों में सेब भरने की जरूरत नहीं होती. बागवान सेब क्रेट में भरकर स्टोर्स में ले जाते हैं. इसके अलावा अडानी कंपनी की ओर से भी सेब लाने के लिए क्रेट बागवानों को दिए जाते हैं. जिससे बागवानों का क्रेट या पेटियों का खर्च बच जाता है.

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हिमाचल में अडानी कंपनी के सीए स्टोर

अडानी एग्रोफ्रेश सीए स्टोर पर सेब कलर, साइज और क्वालिटी के हिसाब से रेट तय किए जाते हैं. सीए स्टोर 80 से 100 फीसदी कलर वाले सेब लार्ज मीडियम साइज (LMS), एक्ट्रा लारज (EL), एक्स्ट्रा स्मॉल (ES), एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) और पीतू (PITTU) सेब को प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है. वहीं, 60 से 80 फीसदी कलर वाले सेब लार्ज मीडियम साइज (LMS), एक्ट्रा लार्ज (EL) , एक्स्ट्रा स्मॉल (ES), एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) और पीतू (PITTU) प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है. जबकि 60 फीसदी से कम कलर वाले और कलर लेस सेब काफी कम दामों में खरीदता है. गौरतलब है कि सेब के दाम कलर, साइज, क्वालिटी के आधार पर ही तय होती है.

इससे पहले भी अडानी कंपनी पर मार्केट में सेब के रेट गिराने के आरोप भी लग चुके हैं. इसको लेकर बागवानों और विपक्षी नेताओं ने तत्कालीन जयराम सरकार को घेरा था. दरअसल राज्य की बीजेपी सरकार ने पहले कहा था कि सेब सीजन में सेब के रेट तय करने के लिए बागवानी विश्वविद्यालय नौणी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अडानी एग्रो फ्रेश ने अपनी ओर से रेट तय कर दिए थे. बागवानों ने इसको लेकर धरना प्रदर्शन भी किए थे.

सेब बहुल इलाके कोटगढ़ में सेब की सहकारी सभाओं के संयोजक एवं प्रगतिशील बागवान सतीश भलैक का कहना है कि सेब के भविष्य के लिए अदानी सहित अन्य कंपनियों का होना न केवल जरूरी है, बल्कि इस तरह की कंपनियां ज्यादा से ज्यादा हिमाचल में आनी चाहिए. जितनी ज्यादा कंपनियां होंगी बागवानों को उतना ही फायदा होगा क्योंकि इससे मंडियों में सेब का फ्लो ज्यादा नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि बागवानों को लांग टर्म के बैनिफिट के नजरिए से इन कंपनियों को देखना होगा और उम्मीद करनी चाहिए कि सेब खरीदने के लिए ज्यादा से ज्यादा कंपनियां हिमाचल में आएंगी.

वहीं उनका यह भी कहना है कि प्रदेश में सरकार ने इस साल से सेब को किलो के हिसाब से सेब खरीदने की व्यवस्था की है, लेकिन सीए स्टोर वाली कंपनियां पहले से ही सेब की खरीद किलो के हिसाब से कर रही है. इस तरह कानून के मुताबिक किलो के हिसाब से सेब खरीदने की शुरुआत भी अदानी व अन्य कंपनियों ने शुरू की है. इस तरह बागवानों को एक पॉजिटिव नजरिए से कंपनियों को देखना होगा.

प्रगतिशील बागवान एवं संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि सेब खरीदने वाली कंपनियां ज्यादा से ज्यादा आए, यह बागवानों के हित में है, लेकिन इन कंपनियों पर कंट्रोल होना जरूरी है. प्रदेश में काम करने वाली कंपनियों का सेब के रेट तय करने का तरीका हिडन है, ये कंपनियां अपनी सहुलियत के हिसाब से सेब खरीद करती हैं. पहले किसानों को लगता था कि कंपनियों के आने से उनको फायदा होगा, क्योंकि मंडियों में आढ़ती शोषण करते थे. लेकिन पहले छोटी मछलियां यानी आढ़ती बागवानों को निगलती थीं, अब ये बड़ी मछयिलां यानी कंपनी बागवानों को निगल रही हैं.

हरीश चौहान का कहना है कि कंपनियों के रेट तय करना का कोई मानक नहीं है और न ही इन पर किसी का कंट्रोल है. विडंबना है कि सरकार ने इन कंपनियों के साथ कोई एमओयू तक नहीं किया जिससे किसानों के हितों को संरक्षित किया जा सके. उनका कहना है कि इन कंपनियों को सीसीआई (कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) के नार्मज के तहत लाया जाना चाहिए. रेट तय करने के नियम होने चाहिए. बेहतर है कि सरकार एक कमेटी बनाए जिसमें सरकार, किसान प्रतिनिधि, मार्केटिंग बोर्ड, मापतोल विभाग के प्रतिनिधि हो. इस तरह कमेटी मानक तय करे और इससे बागवानों का शोषण रूकेगा. मंडियों में सेब के दाम तय नहीं किए जा सकते, लेकिन इन कंपनियों के माध्यम से सेब के वाजिब दाम तय किए जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: Priyanka On Adani: 'हिमाचल के सेब बागवानों को लूट रहे हैं प्रधानमंत्री के दोस्त अडानी, कुछ करते क्यों नहीं पीएम ?'

शिमला: राजनीति गलियारों में अडानी का नाम समय-समय पर बड़ी जोरों शोरों से गूंजता रहता है. अक्सर विपक्षी नेता अडानी को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधते रहते हैं. एक बार फिर से अडानी का नाम सुर्खियों में हैं. क्योंकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानों को अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर द्वारा कम दाम दिए जाने का मुद्दा उठाया है. उन्होंने अडानी पर आपदा के समय बागवानों से लूट का आरोप लगाया है. साथ ही प्रियंका ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि इस लूट को रोकने के लिए कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं? गौरतलब है कि इन दिनों हिमाचल में सेब सीजन चल रहा है. हर साल अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर 22 से 24 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि अडानी ग्रुप हिमाचल के बागवानों से सेब खरीदने के लिए क्या प्रोसेस अपनाता है और यहां अडानी के कितने सीए स्टोर हैं.

इस साल अडानी एग्रोफ्रेश ने बागवानों से सेब खरीद शुरू कर दी है, लेकिन बाजार से कम कीमत मिलने पर किसानों और बागवानों ने आपत्ति जाहिर की. जिसके बाद अडानी एग्रोफ्रेश ने सेब की कीमत बढ़ा दी. वहीं, इस साल हिमाचल सरकार ने सेब किलो के हिसाब से खरीदने का नियम बनाया है. हालांकि, अडानी सीए स्टोर में पहले से ही सेब किलो के हिसाब से खरीदे जा रहे हैं. यहां सेब खरीद के लिए अडानी ग्रुप ने कई मापदंड तय किए हैं. जिसके अनुसार ही सेबों के दाम तय किए जाते हैं.

  • आपदा के इस कठिन दौर में जहाँ हिमाचल प्रदेश के बाग़बानों पर पहले से ही परेशानियों का पहाड़ टूट रहा था, प्रधानमंत्री जी के मित्र अडानी उनकी परेशानियों को क्यों बढ़ा रहे हैं?

    खबरों के मुताबिक़ अडानी के दाम जारी करने के बाद सेब की पेटियाँ पहले से एक तिहाई दाम में बिक रही हैं।

    आपदा…

    — Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) September 6, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हिमाचल प्रदेश में अडानी कंपनी के तीन सीए स्टोर हैं, ये तीनों स्टोर शिमला जिले में ही हैं. हर साल अडानी एग्रोफ्रेश स्टोर 22 से 24 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. हिमाचल के रोहड़ू मेंहदली, ठियोग के सैंज और रामपुर बीथल में अडानी के तीन सीए स्टोर है. रोहड़ू मेंहदली सीए स्टोर की क्षमता 10 हजार मीट्रिक टन, सैंज सीए स्टोर की क्षमता 6 हजार मीट्रिक और रामपुर बीथल सीए स्टोर की क्षमता 6 हजार मीट्रिक टन है. इन सीए स्टोर में सेब की खरीद ग्रेडिंग के हिसाब से की जाती है.

हिमाचल सरकार ने भले ही इस बार मंडियों में सेब किलो के हिसाब से खरीदने का फैसला लिया है, लेकिन प्रदेश में किलो के हिसाब से सेब खरीदने का श्रेय अडानी एग्रोफ्रेश को ही जाता है. पिछले 16 सालों से अडानी की कंपनी हिमाचल में सेब की खरीद कर रही है. अडानी के सीए स्टोर पर सेब की खरीद किलो के हिसाब से की जाती है. कुछ और वजह से भी बागवान अडानी एग्रोफ्रेश में सेब बेचने को प्राथमिकता देते हैं. यहां बागवानों को पेटियों में सेब भरने की जरूरत नहीं होती. बागवान सेब क्रेट में भरकर स्टोर्स में ले जाते हैं. इसके अलावा अडानी कंपनी की ओर से भी सेब लाने के लिए क्रेट बागवानों को दिए जाते हैं. जिससे बागवानों का क्रेट या पेटियों का खर्च बच जाता है.

Himachal Apple Season
हिमाचल में अडानी कंपनी के सीए स्टोर

अडानी एग्रोफ्रेश सीए स्टोर पर सेब कलर, साइज और क्वालिटी के हिसाब से रेट तय किए जाते हैं. सीए स्टोर 80 से 100 फीसदी कलर वाले सेब लार्ज मीडियम साइज (LMS), एक्ट्रा लारज (EL), एक्स्ट्रा स्मॉल (ES), एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) और पीतू (PITTU) सेब को प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है. वहीं, 60 से 80 फीसदी कलर वाले सेब लार्ज मीडियम साइज (LMS), एक्ट्रा लार्ज (EL) , एक्स्ट्रा स्मॉल (ES), एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा स्मॉल (EES) और पीतू (PITTU) प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है. जबकि 60 फीसदी से कम कलर वाले और कलर लेस सेब काफी कम दामों में खरीदता है. गौरतलब है कि सेब के दाम कलर, साइज, क्वालिटी के आधार पर ही तय होती है.

इससे पहले भी अडानी कंपनी पर मार्केट में सेब के रेट गिराने के आरोप भी लग चुके हैं. इसको लेकर बागवानों और विपक्षी नेताओं ने तत्कालीन जयराम सरकार को घेरा था. दरअसल राज्य की बीजेपी सरकार ने पहले कहा था कि सेब सीजन में सेब के रेट तय करने के लिए बागवानी विश्वविद्यालय नौणी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अडानी एग्रो फ्रेश ने अपनी ओर से रेट तय कर दिए थे. बागवानों ने इसको लेकर धरना प्रदर्शन भी किए थे.

सेब बहुल इलाके कोटगढ़ में सेब की सहकारी सभाओं के संयोजक एवं प्रगतिशील बागवान सतीश भलैक का कहना है कि सेब के भविष्य के लिए अदानी सहित अन्य कंपनियों का होना न केवल जरूरी है, बल्कि इस तरह की कंपनियां ज्यादा से ज्यादा हिमाचल में आनी चाहिए. जितनी ज्यादा कंपनियां होंगी बागवानों को उतना ही फायदा होगा क्योंकि इससे मंडियों में सेब का फ्लो ज्यादा नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि बागवानों को लांग टर्म के बैनिफिट के नजरिए से इन कंपनियों को देखना होगा और उम्मीद करनी चाहिए कि सेब खरीदने के लिए ज्यादा से ज्यादा कंपनियां हिमाचल में आएंगी.

वहीं उनका यह भी कहना है कि प्रदेश में सरकार ने इस साल से सेब को किलो के हिसाब से सेब खरीदने की व्यवस्था की है, लेकिन सीए स्टोर वाली कंपनियां पहले से ही सेब की खरीद किलो के हिसाब से कर रही है. इस तरह कानून के मुताबिक किलो के हिसाब से सेब खरीदने की शुरुआत भी अदानी व अन्य कंपनियों ने शुरू की है. इस तरह बागवानों को एक पॉजिटिव नजरिए से कंपनियों को देखना होगा.

प्रगतिशील बागवान एवं संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि सेब खरीदने वाली कंपनियां ज्यादा से ज्यादा आए, यह बागवानों के हित में है, लेकिन इन कंपनियों पर कंट्रोल होना जरूरी है. प्रदेश में काम करने वाली कंपनियों का सेब के रेट तय करने का तरीका हिडन है, ये कंपनियां अपनी सहुलियत के हिसाब से सेब खरीद करती हैं. पहले किसानों को लगता था कि कंपनियों के आने से उनको फायदा होगा, क्योंकि मंडियों में आढ़ती शोषण करते थे. लेकिन पहले छोटी मछलियां यानी आढ़ती बागवानों को निगलती थीं, अब ये बड़ी मछयिलां यानी कंपनी बागवानों को निगल रही हैं.

हरीश चौहान का कहना है कि कंपनियों के रेट तय करना का कोई मानक नहीं है और न ही इन पर किसी का कंट्रोल है. विडंबना है कि सरकार ने इन कंपनियों के साथ कोई एमओयू तक नहीं किया जिससे किसानों के हितों को संरक्षित किया जा सके. उनका कहना है कि इन कंपनियों को सीसीआई (कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) के नार्मज के तहत लाया जाना चाहिए. रेट तय करने के नियम होने चाहिए. बेहतर है कि सरकार एक कमेटी बनाए जिसमें सरकार, किसान प्रतिनिधि, मार्केटिंग बोर्ड, मापतोल विभाग के प्रतिनिधि हो. इस तरह कमेटी मानक तय करे और इससे बागवानों का शोषण रूकेगा. मंडियों में सेब के दाम तय नहीं किए जा सकते, लेकिन इन कंपनियों के माध्यम से सेब के वाजिब दाम तय किए जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: Priyanka On Adani: 'हिमाचल के सेब बागवानों को लूट रहे हैं प्रधानमंत्री के दोस्त अडानी, कुछ करते क्यों नहीं पीएम ?'

Last Updated : Sep 6, 2023, 8:37 PM IST
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