कोरबा: वनांचल गांव बरपाली (जिल्गा) के अभय राठिया महज 7 साल के हैं. नियति ने जन्म से ही उसे बोलने और सुनने की शक्ति से महरूम कर रखा है. होश संभालने के बाद परिवार को अभय के शिक्षा और भविष्य की चिंता हुई. पता चला कि मूक बधिर बच्चों के लिए स्पेशल स्कूल होते हैं. अभय के पिता अपने जिगर के टुकड़े को स्कूल भेजना तो चाहते हैं, लेकिन स्पेशल स्कूल में दाखिले के लिए सिस्टम को अभय के गूंगे और बहरे होने का सर्टिफिकेट चाहिए. इसके लिए अभय के पिता ने पिछले 3 साल से कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी. बावजूद इसके सर्टिफिकेट नहीं बन पाया. मजबूर पिता कलेक्टर की जनचौपाल में पहुंचा तो बात मेडिकल कॉलेज अस्पताल तक पहुंचाई गई. हालांकि महकमे के संविदाकर्मियों की हड़ताल से अभय का इंतजार बढ़ सकता है.
स्पेशल स्कूल में एडमिशन टेढ़ी खीर: मूक बधिर होने का सर्टिफिकेट स्वास्थ विभाग की ओर से जारी किया जाता है. इसके लिए विशेष तरह की जांच होती है. एक मशीन से ऑडियोग्राफी का टेस्ट लिया जाता है. प्रक्रिया पूरा करने में काफी समय लग जाता है. जिला अस्पताल कोरबा को अब मेडिकल कॉलेज अस्पताल बना दिया गया है. यहां से भी मूक बधिरों को मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है. लेकिन अभय के मामले में यह काम अब तक नहीं हो पाया है. पेशे से किसान अभय के पिता कहेन्दर राठिया आरक्षित वर्ग से भी आते हैं. मामले में ज्यादा संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए थी, लेकिन यहां 3 साल बाद भी एक सर्टिफिकेट तक जारी नहीं हो पाया. कोरबा के रामपुर में मूकबधिर बच्चों के लिए स्पेशल स्कूल है, जहां दाखिले के लिए सर्टिफिकेट की अनिवार्य है.
मैं मेडिकल कॉलेज अस्पताल गया था, जहां बताया गया कि मूकबधिरों की जांच वाली मशीन खराब है. फिर रायपुर जाने को कहा गया. रायपुर भी गए, जहां जाने के बाद कुछ टेस्ट हुए. लेकिन फिर कर्मचारियों ने कहा कि बच्चे को फिलहाल ज़ुकाम है. ऐसी स्थिति में टेस्ट नहीं हो सकता, दोबारा 10 दिन बाद बुलाया गया. इसी तरह कई बार वह विभागों के चक्कर लगा चुके हैं. लेकिन बात नहीं बनी. यह सिलसिला पिछले लगभग 2 से 3 सालों से चला आ रहा है. -कहेन्दर राठिया, अभय के पिता
किस काम का मेडिकल कॉलेज का तमगा: लोक जनशक्ति पार्टी के जिलाध्यक्ष राजकुमार दुबे अभय के पिता कहेन्दर और अभय को लेकर कलेक्टर की जनचौपाल में पहुंचे थे. बच्चे के सर्टिफिकेट को लेकर स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों की आनाकानी की शिकायत उन्होंने कलेक्टर से की. इसके बाद महकमा हरकत में आया और बात मेडिकल काॅलेज तक पहुंची. अब सर्टिफिकेट के लिए जांच में तेजी दिखाई जा रही है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के संविदाकर्मियों की हड़ताल से इंतजार बढ़ भी सकता है.
एक मूक-बधिर बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा है. उसका किसान पिता जो कि आदिवासी वर्ग से आता है, वह 3 साल से इसके लिए भटक रहा है. ऐसी असंवेदनशीलता बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. कोरबा के जिला अस्पताल को अब मेडिकल कॉलेज अस्पताल का तमगा मिल चुका है. लेकिन जब एक 7 साल के बच्चे को मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए 3 साल का इंतजार करना पड़ेगा, तब ऐसा तमगा किस काम का? इससे अच्छा होता किअस्पताल को किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की तरह ही संचालित किया जाता. -राजकुमार दुबे, जिलाध्यक्ष, लोक जनशक्ति पार्टी
जानकारी मिली है, जारी करेंगे सर्टिफिकेट : अभय के विषय में कलेक्टर से होते हुए जानकार मेडिकल कॉलेज अस्पताल तक पहुंची. तब यहां का अमला सक्रिय हुआ. बात मीडिया में भी फैल गई और मीडियाकर्मियों ने इसकी जानकारी अस्पताल प्रबंधन तक पहुंचाई.
मीडिया के माध्यम से हमें सूचना मिली है. अभय का सर्टिफिकेट नहीं बन पाने की वजह से उसे स्पेशल स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा है. मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए ऑडियोग्राफी टेस्ट होता है. वर्तमान में कर्मचारी हड़ताल पर हैं. इसकी वजह से भी दिक्कत हो रही है. इसके बाद भी मैंने कर्मचारी को बुलाया है. हम प्रयास कर रहे हैं कि जल्द ही मेडिकल सर्टिफिकेट जारी कर परिवार को प्रदान कर दें. -डॉ रविकांत जाटवर, अधीक्षक, मेडिकल कॉलेज अस्पताल
मामले बढ़ने और प्रशासन के पास पहुंचने पर अब मेडिकल कॉलेज हास्पिटल भी तेजी दिखा रहा है. जांच का प्रासेस पूरा कर सर्टिफिकेट जल्द जारी करने की भी बात कही जा रही है. लेकिन स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल से स्पेशल स्कूल में दाखिले के लिए अभय को फिलहाल इंतजार करना पड़ सकता है.