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अब्दुल हमीद जन्मदिन विशेष : जोश देख दंग रह गई थी पाकिस्तानी सेना, पैंटन टैंकों को कर दिया था तबाह

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Published : Jul 1, 2021, 5:58 PM IST

वीर अब्दुल हमीद (abdul hameed) का जन्म 1 जुलाई 1933 को यूपी के गाजीपुर में हुआ था. 20 साल की उम्र में वे सेना में भर्ती हुए थे. 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में पंजाब के खेमकरण सेक्टर (Khemkaran Sector) में अब्दुल हमीद ने आठ पाकिस्तानी पैटन टैंकों (panton tanks) को तबाह कर दिया था. अब्दुल हमीद इस युद्ध में आठवां पैटन टैंक तबाह करते समय वीरगति को प्राप्त हुए थे. भारत सरकार ने अब्दुल हमीद को अदम्य वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र (param vir chakra) से सम्मानित किया था.

अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद

गाजीपुर : राष्ट्र निर्माण में सेना का अहम योगदान रहा है, सेना के शूरवीरों ने हमेशा से ही देश के लिए कुर्बानी दी है. ऐसे ही एक योद्धा थे भारतीय सेना के अब्दुल हमीद. 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध (war with pakistan) के दौरान खेमकरण सेक्टर में असल उत्ताड़ गांव में अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) से पाकिस्तान के पैंटन टैंक (panton tanks) को तबाह कर दिया. अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठकर पाकिस्तान के एक-दो नहीं बल्कि आठ-आठ पैटन टैंकों को तबाह कर दिया था. आठवां टैंक बर्बाद करते समय गोला लगने से वह शहीद हो गए. इस युद्ध में दिखाई गई उनकी दिलेरी इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गई. अब्दुल हमीद को मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र (param vir chakra) प्रदान किया गया था.

साधारण परिवार में हुआ था जन्म

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 में हुआ था. उनकी माता का नाम सकीना बेगम और पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. उनके पिता सिलाई का काम करते थे, लेकिन उनका मन इस काम में नहीं लगता था. उनकी दिलचस्पी लाठी चलाने, कुश्ती लड़ने और गुलेल से निशाना लगाने आदि में थी. सेना में भर्ती होने से पहले वह काम में अपने पिता की मदद किया करते थे.

अब्दुल हमीद भारतीय सेना का वीर सूपत
अब्दुल हमीद भारतीय सेना का वीर सपूत.

20 साल की उम्र में हुए थे सेना में भर्ती
हमीद 20 साल की उम्र में वाराणसी में सेना में आए और निसाराबाद ग्रिनेडियर्स रेजिमेटंल सेंटर (Grenadiers Regimental Center) में प्रशिक्षण के बाद 1955 में हमीद 4 ग्रेनेडियर्स में क्वार्टर मास्टर हवलदार के रूप में तैनात किए गए. 1962 में भारत चीन युद्ध (indo-china war) में उन्होंने थांग ला से 7 माउंटेन ब्रिग्रेड, 4 माउंटेन डिविजन की ओर से भाग लिया था. सितंबर आठ, 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत में हमला किया तब वे पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर (khemkaran sector) में तैनात थे. पाकिस्तान सेना ने अमेरिकी पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उत्ताड़ गांव पर हमला किया था.

. अब्दुल हमीद की जीप
अब्दुल हमीद की जीप.

अजेय समझे जाने वाले पैंटन टैंकों को किया था तबाह

इस युद्ध में पहले पाकिस्तान का पलड़ा भारी था. उस समय भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे, और न ही बड़े हथियार. केवल थ्री-नॉट थ्री और लाईट मशीन गन थी. जबकि पाकिस्तान के पास अमेरिका में निर्मित पैंटन टैंक थे, जिसका पाक ने इस युद्ध में प्रयोग किया था. हमीद को इन टैंकों से निपटने का जिम्मा दिया गया था. उन्होंने अपनी 'गन माउनटेड जीप' (gun mounted jeep) से पैंटन टैंकों पर सटीक निशाना लगाते हुए एक के बाद एक नष्ट करना शुरू कर दिया था, और युद्ध का रुख ही पलट दिया. इसी बीच उनकी जीप को एक गोला आकर लगा और वह गंभीर रूप से घायल हो गए. 10 सितंबर 1965 को वह वीरगति को प्राप्त हुए. अब्दुल हमीद की वीरता की इसलिए भी मिसाल दी जाती है, क्योंकि उस वक्त पैटन टैंकों को अजेय माना जाता था. युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को शहीद होने से पहले अब्दुल हमीद ने मैदान-ए-जंग में पाक के पैंटन टैंकों की कब्रगाह बना दी थी. 1965 के युद्ध में अब्दुल हमीद द्वारा दिखाई गई असाधारण वीरता के लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र (param vir chakra) प्रदान किया गया था.

अमेरिका को करनी पड़ी थी पैटन टैंकों के डिजाइन की समीक्षा

इस युद्ध में साधारण गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) के हाथों हुई पैटन टैंकों की बर्बादी को देखते हुए अमेरिका में पैंटन टैंकों के डिजाइन को लेकर पुन: समीक्षा करनी पड़ी थी, लेकिन वो अमेरिकी पैंटन टैंकों के सामने केवल साधारण गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) को ही देख कर समीक्षा कर रहे थे, उसको चलाने वाले वीर अब्दुल हमीद के हौसले को नहीं देख पा रहे थे.

अब्दुल हमीद की सैन्य सेवा

अब्दुल हमीद 27 दिसम्बर 1954 को भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए. बाद में उनकी तैनाती रेजीमेंट के 4 ग्रेनेडियर बटालियन में हुई. जहां उन्होंने अपने सैन्य सेवा काल तक अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं.

भारत-चीन युद्ध (INDO-CHINA WAR) के दौरान अब्दुल हमीद की सातवीं इंफैन्ट्री बटालियन ब्रिगेड का हिस्सा थी. जिसने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से लोहा लिया. इस युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट जी.वी.पी.राव को मरणोपरांत अद्भुत शौर्य और वीरता के प्रदर्शन के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. अब्दुल हमीद के सम्मान से पहले इस बटालियन को भारत की स्वतंत्रता के पश्चात मिलने यह सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार था. अब्दुल हमीद ने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था.

यह भी पढे़े-ड्रोन की आसानी से उपलब्धता ने सुरक्षा चुनौतियों की बढ़ाई जटिलता : सेना प्रमुख

भारतीय डाक विभाग ने जारी किया था डाक टिकट

आपको बता दें कि-28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग (Indian Postal Department) ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में तीन रुपये का एक डाक टिकट जारी किया. इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर बनी हुई है.

अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद पर जारी किया गया डाक टिकट.

परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की ही प्रेरणा से आज पूर्वांचल में गाजीपुर जिले से हर दूसरे घर से भारतीय सेना में युवक अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इतना ही नहीं, गाजीपुर में हमीद के नाम पर गंगा पर सेतु भी बनाया गया है.

गाजीपुर : राष्ट्र निर्माण में सेना का अहम योगदान रहा है, सेना के शूरवीरों ने हमेशा से ही देश के लिए कुर्बानी दी है. ऐसे ही एक योद्धा थे भारतीय सेना के अब्दुल हमीद. 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध (war with pakistan) के दौरान खेमकरण सेक्टर में असल उत्ताड़ गांव में अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) से पाकिस्तान के पैंटन टैंक (panton tanks) को तबाह कर दिया. अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठकर पाकिस्तान के एक-दो नहीं बल्कि आठ-आठ पैटन टैंकों को तबाह कर दिया था. आठवां टैंक बर्बाद करते समय गोला लगने से वह शहीद हो गए. इस युद्ध में दिखाई गई उनकी दिलेरी इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गई. अब्दुल हमीद को मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र (param vir chakra) प्रदान किया गया था.

साधारण परिवार में हुआ था जन्म

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 में हुआ था. उनकी माता का नाम सकीना बेगम और पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. उनके पिता सिलाई का काम करते थे, लेकिन उनका मन इस काम में नहीं लगता था. उनकी दिलचस्पी लाठी चलाने, कुश्ती लड़ने और गुलेल से निशाना लगाने आदि में थी. सेना में भर्ती होने से पहले वह काम में अपने पिता की मदद किया करते थे.

अब्दुल हमीद भारतीय सेना का वीर सूपत
अब्दुल हमीद भारतीय सेना का वीर सपूत.

20 साल की उम्र में हुए थे सेना में भर्ती
हमीद 20 साल की उम्र में वाराणसी में सेना में आए और निसाराबाद ग्रिनेडियर्स रेजिमेटंल सेंटर (Grenadiers Regimental Center) में प्रशिक्षण के बाद 1955 में हमीद 4 ग्रेनेडियर्स में क्वार्टर मास्टर हवलदार के रूप में तैनात किए गए. 1962 में भारत चीन युद्ध (indo-china war) में उन्होंने थांग ला से 7 माउंटेन ब्रिग्रेड, 4 माउंटेन डिविजन की ओर से भाग लिया था. सितंबर आठ, 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत में हमला किया तब वे पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर (khemkaran sector) में तैनात थे. पाकिस्तान सेना ने अमेरिकी पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उत्ताड़ गांव पर हमला किया था.

. अब्दुल हमीद की जीप
अब्दुल हमीद की जीप.

अजेय समझे जाने वाले पैंटन टैंकों को किया था तबाह

इस युद्ध में पहले पाकिस्तान का पलड़ा भारी था. उस समय भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे, और न ही बड़े हथियार. केवल थ्री-नॉट थ्री और लाईट मशीन गन थी. जबकि पाकिस्तान के पास अमेरिका में निर्मित पैंटन टैंक थे, जिसका पाक ने इस युद्ध में प्रयोग किया था. हमीद को इन टैंकों से निपटने का जिम्मा दिया गया था. उन्होंने अपनी 'गन माउनटेड जीप' (gun mounted jeep) से पैंटन टैंकों पर सटीक निशाना लगाते हुए एक के बाद एक नष्ट करना शुरू कर दिया था, और युद्ध का रुख ही पलट दिया. इसी बीच उनकी जीप को एक गोला आकर लगा और वह गंभीर रूप से घायल हो गए. 10 सितंबर 1965 को वह वीरगति को प्राप्त हुए. अब्दुल हमीद की वीरता की इसलिए भी मिसाल दी जाती है, क्योंकि उस वक्त पैटन टैंकों को अजेय माना जाता था. युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को शहीद होने से पहले अब्दुल हमीद ने मैदान-ए-जंग में पाक के पैंटन टैंकों की कब्रगाह बना दी थी. 1965 के युद्ध में अब्दुल हमीद द्वारा दिखाई गई असाधारण वीरता के लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र (param vir chakra) प्रदान किया गया था.

अमेरिका को करनी पड़ी थी पैटन टैंकों के डिजाइन की समीक्षा

इस युद्ध में साधारण गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) के हाथों हुई पैटन टैंकों की बर्बादी को देखते हुए अमेरिका में पैंटन टैंकों के डिजाइन को लेकर पुन: समीक्षा करनी पड़ी थी, लेकिन वो अमेरिकी पैंटन टैंकों के सामने केवल साधारण गन माउनटेड जीप (gun mounted jeep) को ही देख कर समीक्षा कर रहे थे, उसको चलाने वाले वीर अब्दुल हमीद के हौसले को नहीं देख पा रहे थे.

अब्दुल हमीद की सैन्य सेवा

अब्दुल हमीद 27 दिसम्बर 1954 को भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए. बाद में उनकी तैनाती रेजीमेंट के 4 ग्रेनेडियर बटालियन में हुई. जहां उन्होंने अपने सैन्य सेवा काल तक अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं.

भारत-चीन युद्ध (INDO-CHINA WAR) के दौरान अब्दुल हमीद की सातवीं इंफैन्ट्री बटालियन ब्रिगेड का हिस्सा थी. जिसने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से लोहा लिया. इस युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट जी.वी.पी.राव को मरणोपरांत अद्भुत शौर्य और वीरता के प्रदर्शन के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. अब्दुल हमीद के सम्मान से पहले इस बटालियन को भारत की स्वतंत्रता के पश्चात मिलने यह सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार था. अब्दुल हमीद ने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था.

यह भी पढे़े-ड्रोन की आसानी से उपलब्धता ने सुरक्षा चुनौतियों की बढ़ाई जटिलता : सेना प्रमुख

भारतीय डाक विभाग ने जारी किया था डाक टिकट

आपको बता दें कि-28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग (Indian Postal Department) ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में तीन रुपये का एक डाक टिकट जारी किया. इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर बनी हुई है.

अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद पर जारी किया गया डाक टिकट.

परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की ही प्रेरणा से आज पूर्वांचल में गाजीपुर जिले से हर दूसरे घर से भारतीय सेना में युवक अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इतना ही नहीं, गाजीपुर में हमीद के नाम पर गंगा पर सेतु भी बनाया गया है.

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