अहमदाबाद : गुजरात के अरावली जिले स्थित मोडासा में एक 71 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए लोगों को लकड़ी मुहैया कर रहे हैं. दिन हो या रात, कोई फर्क नहीं पड़ता, बूढ़ा व्यक्ति उन लोगों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए यहां आते हैं. वह मोडास में कोरोना वायरस से मरने वालों के शवों का अंतिम संस्कार करने के साथ श्मशान के रखरखाव और जलाने के लकड़ी की आपूर्ति का काम देखते हैं.
वह कोरोना महामारी के बावजूद दिन-रात सभी को अपनी सेवा प्रदान करते हैं. 71 साल की उम्र में अब्दुल रहमान बिना थकान के यह काम कर रहे हैं. वह रमजान के दौरान रोजा रखते हुए अपना कार्य कर रहे हैं.
कोविड 19 ने पिछले एक साल से अधिक समय से दुनिया को हिला दिया है. महामारी ने लाखों लोगों की जान ले ली है. अरावली जिले में भी महामारी से कई लोगों की जान चली गई. ऐसे समय में अब्दुल रहमान चाचा कस्बे के श्मशान में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं.
कुछ अवसरों पर मृतकों के परिजन कोरोना वायरस संक्रमण के डर से श्मशान में आने से डरते हैं. ऐसे मौकों पर अब्दुल रहमान मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं.हालांकि यह उनके परिवार के सदस्यों के लिए चिंता का विषय है फिर भी उनका परिवार काफी सपोर्टिव रहा है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए अब्दुल रहमान ने कहा कि वह पिछले दस वर्षों से श्मशान के रखरखाव और लकड़ी की आपूर्ति का ठेका संभाल रहे हैं. जब भी कोरोना वायरस से किसी की मौत होती है मृतक के परिवार वाले उनसे संपर्क करते हैं, जिसके बाद वह उनको अंतिम संस्कार में इस्तेमाल होने वाली सामाग्री और लकड़ियां उपलब्ध कराते हैं.
अब्दुल रहमान बताया , 'मेरे पास यह ठेका पिछले दस वर्षों से है. इससे पहले भी, मैं श्मशान को लकड़ी की आपूर्ति करता था. मैं जाति और पंथ के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव नहीं करता हूं और कोरोना महामारी के दौरान भी उन्हें अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा हूं.
यदि अंतिम संस्कार करने के लिए मृतकों के रिश्तेदारों की मदद करने वाला कोई नहीं है, तो मैं और मेरा बेटा उनका अंतिम संस्कार करते हैं. मेरी उम्र 71 वर्ष है. मैं सुबह 8 बजे श्मशान में आता हूं और बिना किसी डर के अपनी सेवाएं देता हूं. मैं श्मशान में आता हूं.
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अब्दुल रहमान के बेटे हारून का कहना है कि हमारे पास पिछले दस वर्षों से श्मशान का कॉन्ट्रेक्ट है. यहां तक कि हम कोरोना वायरस महामारी के समय में भी वह सुबह-शाम श्मशान में जाते हैं. हमें कोई दिक्कत नहीं है.
कभी-कभी शव के साथ आने वाला कोई नहीं होता है. तब मेरे पिता ने चिता को मुखाग्नि देते हैं. हमें इससे कोई आपत्ति नहीं है. श्मशान के सभी ट्रस्टी हमारा समर्थन करते हैं.