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डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस के सामने एक ऐसी चुनौती, जिससे सभी मानवतावादी भली भांति परिचित हैं

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Published : Jan 29, 2022, 2:04 PM IST

अदीस अबाबा को उस समय शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी, जब टेड्रोस ने टिग्रे में स्वास्थ्य एवं मानवीय स्थिति पर बात की थी. गृह युद्ध के दौरान टिग्रे में आम नागरिकों के खिलाफ जातीय हमले किए गए थे और दवाओं एवं खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति रोक दी गई थी.

डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस
डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस

मैनचेस्टर: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2017 में डॉ. टेड्रोस अदहानोम गेब्रेयेसस (WHO Chief Tedros) को अपना महानिदेशक नियुक्त किया था. वह इस पद पर बैठने वाले पहले अफ्रीकी हैं. उनके चुनाव की प्रक्रिया भी ऐतिहासिक थी. इस दौरान गुप्त मतदान हुआ था, जिसने डब्ल्यूएचओ के 70 साल के इतिहास में पहली बार सभी सदस्य देशों को मतदान का समान अधिकार दिया गया था. इससे पहले कार्यकारी बोर्ड के मतदान के जरिए इस पद पर नियुक्ति होती थी. टेड्रोस को दो-तिहाई बहुमत से जीत मिली.

उनकी नियुक्ति के बाद उनके देश इथियोपिया में जश्न मनाया गया था, लेकिन अब जब टेड्रोस दूसरे कार्यकाल के लिए डब्ल्यूएचओ की कमान संभालने के इच्छुक है, तो इथियोपिया में उनके खिलाफ माहौल है और सरकार ने उन पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके कदाचार का आरोप लगाया है. बहरहाल, ट्रेडोस को पुन: चुने जाने के लिए इथियोपिया के समर्थन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले कार्यकाल में शानदार काम किया है और कोई उम्मीदवार उनका विरोध नहीं कर रहा.

टेड्रोस के खिलाफ नाराजगी क्यों?

अदीस अबाबा को उस समय शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी, जब टेड्रोस ने टिग्रे में स्वास्थ्य एवं मानवीय स्थिति पर बात की थी. गृह युद्ध के दौरान टिग्रे में आम नागरिकों के खिलाफ जातीय हमले किए गए थे और दवाओं एवं खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति रोक दी गई थी. टेड्रोस का परिवार और उनके मित्रों को भी इस संघर्ष में निशाना बनाया गया था. टेड्रोस इथियोपिया में 'टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' के प्रभुत्व वाले पूर्व प्रशासन के एक अहम सदस्य थे. 'टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' मौजूदा प्रधानमंत्री अबी अहमद की विरोधी पार्टी है.

आवाज उठाई जाए या चुप रहा जाए?

संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के निर्वाचित प्रमुख के खिलाफ नाराजगी और उन्हें अपमानित किया जाना चिंताजनक व्यापक समस्याओं को उठाता है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता सदस्य देशों को जब सर्वमान्य नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करते देखते हैं, तो क्या उन्हें बोलना चाहिए या चुप रहना चाहिए? डब्ल्यूएचओ एक बहुपक्षीय विकास एजेंसी है, लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसका कार्य काफी हद तक मानवीय है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है.

टेड्रोस की दुविधा से सभी मानवतावादी भली भांति परिचित है. यदि वे पीड़ितों के साथ हुए दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के खिलाफ बोलते हैं, तो सरकारें उनकी निंदा करती हैं और यदि वे पीड़ितों के लिए आवाज नहीं उठाते, तो मानवाधिकार समर्थक उनकी निंदा करते हैं.

पढ़ें: भुखमरी से बेहाल है अफगानिस्तान, पेट भरने के लिए लोग बेच रहे हैं अपनी किडनी

पुराने नियम काम नहीं करते

इथियोपिया, यमन और म्यांमा जैसे क्षेत्रों में मानवतावादियों की भूमिका तेजी से सिकुड़ रही है. पुराने नियम और उससे जुड़ी शिष्टता अब काम नहीं करतीं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार परिषद, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय या अफ्रीकी संघ जैसे ढांचों और संस्थानों की एक बहुपक्षीय प्रणाली का रक्षा कवच उनकी अवहेलना करने वाले शक्तिशाली देशों की भूराजनीति के कारण कमजोर हो गया है. आजकल मानवतावादी इथियोपिया में तभी काम कर सकते हैं, यदि वे राष्ट्रीय प्राधिकारियों की इच्छा के अनुसार चलते हैं. नए नियम हैं- 'बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोला.' इस बात को भी पचाया जा सकता था, यदि ऐसा करने पर अकाल से पीड़ित और बीमार लोगों को मदद मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा.

पीटीआई-भाषा

मैनचेस्टर: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2017 में डॉ. टेड्रोस अदहानोम गेब्रेयेसस (WHO Chief Tedros) को अपना महानिदेशक नियुक्त किया था. वह इस पद पर बैठने वाले पहले अफ्रीकी हैं. उनके चुनाव की प्रक्रिया भी ऐतिहासिक थी. इस दौरान गुप्त मतदान हुआ था, जिसने डब्ल्यूएचओ के 70 साल के इतिहास में पहली बार सभी सदस्य देशों को मतदान का समान अधिकार दिया गया था. इससे पहले कार्यकारी बोर्ड के मतदान के जरिए इस पद पर नियुक्ति होती थी. टेड्रोस को दो-तिहाई बहुमत से जीत मिली.

उनकी नियुक्ति के बाद उनके देश इथियोपिया में जश्न मनाया गया था, लेकिन अब जब टेड्रोस दूसरे कार्यकाल के लिए डब्ल्यूएचओ की कमान संभालने के इच्छुक है, तो इथियोपिया में उनके खिलाफ माहौल है और सरकार ने उन पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके कदाचार का आरोप लगाया है. बहरहाल, ट्रेडोस को पुन: चुने जाने के लिए इथियोपिया के समर्थन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले कार्यकाल में शानदार काम किया है और कोई उम्मीदवार उनका विरोध नहीं कर रहा.

टेड्रोस के खिलाफ नाराजगी क्यों?

अदीस अबाबा को उस समय शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी, जब टेड्रोस ने टिग्रे में स्वास्थ्य एवं मानवीय स्थिति पर बात की थी. गृह युद्ध के दौरान टिग्रे में आम नागरिकों के खिलाफ जातीय हमले किए गए थे और दवाओं एवं खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति रोक दी गई थी. टेड्रोस का परिवार और उनके मित्रों को भी इस संघर्ष में निशाना बनाया गया था. टेड्रोस इथियोपिया में 'टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' के प्रभुत्व वाले पूर्व प्रशासन के एक अहम सदस्य थे. 'टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' मौजूदा प्रधानमंत्री अबी अहमद की विरोधी पार्टी है.

आवाज उठाई जाए या चुप रहा जाए?

संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के निर्वाचित प्रमुख के खिलाफ नाराजगी और उन्हें अपमानित किया जाना चिंताजनक व्यापक समस्याओं को उठाता है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता सदस्य देशों को जब सर्वमान्य नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करते देखते हैं, तो क्या उन्हें बोलना चाहिए या चुप रहना चाहिए? डब्ल्यूएचओ एक बहुपक्षीय विकास एजेंसी है, लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसका कार्य काफी हद तक मानवीय है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है.

टेड्रोस की दुविधा से सभी मानवतावादी भली भांति परिचित है. यदि वे पीड़ितों के साथ हुए दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के खिलाफ बोलते हैं, तो सरकारें उनकी निंदा करती हैं और यदि वे पीड़ितों के लिए आवाज नहीं उठाते, तो मानवाधिकार समर्थक उनकी निंदा करते हैं.

पढ़ें: भुखमरी से बेहाल है अफगानिस्तान, पेट भरने के लिए लोग बेच रहे हैं अपनी किडनी

पुराने नियम काम नहीं करते

इथियोपिया, यमन और म्यांमा जैसे क्षेत्रों में मानवतावादियों की भूमिका तेजी से सिकुड़ रही है. पुराने नियम और उससे जुड़ी शिष्टता अब काम नहीं करतीं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार परिषद, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय या अफ्रीकी संघ जैसे ढांचों और संस्थानों की एक बहुपक्षीय प्रणाली का रक्षा कवच उनकी अवहेलना करने वाले शक्तिशाली देशों की भूराजनीति के कारण कमजोर हो गया है. आजकल मानवतावादी इथियोपिया में तभी काम कर सकते हैं, यदि वे राष्ट्रीय प्राधिकारियों की इच्छा के अनुसार चलते हैं. नए नियम हैं- 'बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोला.' इस बात को भी पचाया जा सकता था, यदि ऐसा करने पर अकाल से पीड़ित और बीमार लोगों को मदद मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा.

पीटीआई-भाषा

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