देहरादून: जज्बे और हिम्मत के आगे उम्र मायने नहीं रखती...97 साल की बुजुर्ग महिला हरवंत कौर ने इस कहावत को सच कर दिखाया है. उनका जज्बा देख युवा भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हैं. उम्र के इस पड़ाव में जब ज्यादातर बुजुर्ग ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते, वहीं, चमोली में समुद्रतल से 15,225 फीट की ऊंचाई पर स्थित सिखों के सबसे ऊंचे पवित्र तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब तक हरवंत कौर पैदल चलकर पहुंची हैं.
हेमकुंड साहिब की दुर्गम यात्रा को करने में युवाओं की सांसें फूल जाती हैं. लेकिन 97 वर्षीय झारखंड निवासी हरवंत कौर के जज्बे ने सभी को हैरान कर दिया है. हरवंत कौर ने पैदल ही हेमकुंड साहिब की खतरनाक चढ़ाई की. वो एक जत्थे के साथ आई यहां पहुंचीं, जिसमें 325 सिख श्रद्धालु हेमकुंड साहिब में मत्था टेकने आए हैं. वहीं, हेमकुंड साहिब पहुंचते ही हरवंत कौर की आंखों में आंसू आ गए. यहां पहुंचकर उन्होंने बड़ी उम्मीद से पवित्र सरोवर, हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा और सप्तसृंग की चोटियां को निहारा.
पढ़ें- हेमकुंड साहिब में दो हफ्ते पहले ही खिला ब्रह्मकमल, देखें VIDEO
संगत 15 जुलाई को गोविंदघाट पहुंची. यहां प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ उनके परिजनों ने भी उम्र का हवाला देते हुए उन्हें इस यात्रा को करने से मना किया था. लेकिन वो नहीं मानीं. तीन दिन की पैदल यात्रा में हरवंत कौर पहले गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब और फिर हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेकने के बाद गोविंदघाट पैदल ही पहुंचीं. इस दौरान उनको अटलाकोटी में थोड़ी दिक्कत हुई. क्योंकि यहां ऑक्सीजन लेवल कम होता है, लेकिन वो कहती हैं कि गुरू के प्रति उनकी आस्था ने उनको इस यात्रा को पूरा करने की हिम्मत दी.
टाटानगर जमशेदपुर (झारखंड) की रहने वाली हरवंत कौर का एक बेटा अमरजीत सिंह (77 साल) और एक बेटी गुरुविंदर कौर है. वो अबतक 20 बार हेमकुंड साहिब की यात्रा कर चुकी हैं और उन्हें यहां आकर अपार शांति एवं सुकून मिलता है. उनका कहना है कि, उन पर वाहेगुरु की बड़ी कृपा है, इसी वजह से वो उम्र की इस दहलीज पर भी हेमकुंड साहिब पहुंच सकी हैं.
पढ़ें- उत्तराखंडः बर्फबारी ने रोकी हेमकुंड साहिब की यात्रा, फूलों की घाटी की सैर भी थमी
वहीं, श्री हेमकुंड साहिब यात्रा मैनेजमेंट ट्रस्ट के वरिष्ठ प्रबंधक सेवा सिंह ने भी इसे एक चमत्कार ही माना. उन्होंने कहा कि ये वाहेगुरु का चमत्कार ही है कि 97 साल की बुजुर्ग महिला हेमकुंड साहिब तक पैदल पहुंच गईं, जहां पर अच्छे खासे जवान लोग भी नहीं पहुंच पाते हैं.