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Comet seen in Varanasi: 50 हजार साल बाद काशी में दिखा हरा धूमकेतु, दसवीं के छात्र ने कैद की तस्वीर - green comet seen in Kashi

काशी में 50 हजार साल पुराना हरा धूमकेतु दिखाई दिया. जिसकी दुर्लभ तस्वीर एक बच्चे ने टेलिस्कोप की मदद से अपने मोबाइल में कैद किया है.

Comet seen in Varanasi
Comet seen in Varanasi
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Published : Feb 2, 2023, 9:00 PM IST

वाराणसी: वाराणसी में कक्षा दसवीं की छात्रा वेदांत ने न सिर्फ ग्रीन कॉमेट को देखा, बल्कि अपने मोबाइल से उसकी दुर्लभ तस्वीरों को भी कैद किया है. उन्होंने टेलिस्कोप से मोबाइल को जोड़कर कुछ अच्छी तस्वीरें निकाली है. जिसमें ग्रीन कॉमेट नजर आ रहा है. यहा धूमकेतु पुरापाषाण काल का है, जो 50 हजार साल बाद दिखाई दिया है.

वेदांत वाराणसी के सराय नंदन के एक निजी स्कूल में कक्षा दसवीं के छात्र हैं. उनके पिता जितेंद्र एक व्यवसाई हैं. वेदांत बचपन से ही अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखते हैं. खाली समय में वो अक्सर अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारियों को अलग-अलग वेबसाइट पर पढ़ते रहते हैं. बीते कुछ माह पहले जब उन्होंने हरे धूमकेतु के बारे में पढ़ा तो उसके बाद से ही वह हर दिन टेलिस्कोप के जरिए इसकी तलाश करने लगे.

टेलिस्कोप से धूमकेतु देखते दसवीं के छात्र वेदांत.
टेलिस्कोप से धूमकेतु देखते दसवीं के छात्र वेदांत.

28 जनवरी को निकाली दुर्लभ तस्वीर: इस बारे में वेदांत ने बताया कि बीते 1 महीने से वह लगातार धूमकेतु की लोकेशन को ट्रैक कर रहे थे और हर दिन अलग-अलग समय पर टेलिस्कोप के जरिए इसे आसमान में ढूंढने का प्रयास कर रहे थे. लेकिन शुरू में उनकी कोशिश नाकामयाब रही. फिर उन्होंने बीते 28 जनवरी को सुबह लगभग 5:30 बजे धूमकेतु की लोकेशन को ट्रैक की और अपने छत पर टेलिस्कोप में मोबाइल जोड़कर इसकी तस्वीरें खींचने की कोशिश की. इस दौरान सफलता मिली और उन्होंने बेहद साफ धूमकेतु की तस्वीरें निकाली.

एस्ट्रोनॉट फोटोग्राफर बनना चाहते हैं वेदांत: वेदांत बताते हैं कि एस्ट्रोनॉमी में काफी रुचि है और इसी को देखते हुए बीते दिनों उन्होंने अपनी पॉकेट मनी से टेलिस्कोप दिल्ली से खरीदा था. बड़े होकर के उनका सपना एस्ट्रोनॉट फोटोग्राफर बनने का है. इसलिए वह हमेशा एस्ट्रोनॉट से जुड़ी हुई वेबसाइटों को खंगालते रहते हैं. इसी के तहत उन्हें इस हरे धूमकेतु के दिखने की जानकारी मिली थी और वह बीते 1 महीने से इस के प्रयास में जुटे हुए थे.

50 हजार साल बाद दिखा ये कॉमेट: गौरतलब हो कि धूमकेतू की पहचान पिछले वर्ष हुई थी. इसके हरे रंग के कारण खगोलशास्त्री इस पर अध्ययन कर रहे हैं. बीएचयू के खगोल वैज्ञानिक प्रोफेसर अभय कुमार ने बताया कि यह एक दुर्लभ धूमकेतु है. यह लगभग 50000 साल बाद देखने को मिला है. उन्होंने बताया कि इसका आर्बेट अब तक के धूमकेतु में सबसे बड़ा है. पृथ्वी के निर्माण में इस तरीके के धूमकेतु का बड़ा महत्व होता है.

हरे रंग का है धूमकेतु: प्रो. अभय के अनुसार धूमकेतु हरा रंग सोलर विंड और कॉमेट के पत्थरों के टकराने की वजह से बनता है. जब यह पत्थर टकराते हैं तो कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है. जिसके वजह से हरा रंग नजर आता है.

वाराणसी: वाराणसी में कक्षा दसवीं की छात्रा वेदांत ने न सिर्फ ग्रीन कॉमेट को देखा, बल्कि अपने मोबाइल से उसकी दुर्लभ तस्वीरों को भी कैद किया है. उन्होंने टेलिस्कोप से मोबाइल को जोड़कर कुछ अच्छी तस्वीरें निकाली है. जिसमें ग्रीन कॉमेट नजर आ रहा है. यहा धूमकेतु पुरापाषाण काल का है, जो 50 हजार साल बाद दिखाई दिया है.

वेदांत वाराणसी के सराय नंदन के एक निजी स्कूल में कक्षा दसवीं के छात्र हैं. उनके पिता जितेंद्र एक व्यवसाई हैं. वेदांत बचपन से ही अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखते हैं. खाली समय में वो अक्सर अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारियों को अलग-अलग वेबसाइट पर पढ़ते रहते हैं. बीते कुछ माह पहले जब उन्होंने हरे धूमकेतु के बारे में पढ़ा तो उसके बाद से ही वह हर दिन टेलिस्कोप के जरिए इसकी तलाश करने लगे.

टेलिस्कोप से धूमकेतु देखते दसवीं के छात्र वेदांत.
टेलिस्कोप से धूमकेतु देखते दसवीं के छात्र वेदांत.

28 जनवरी को निकाली दुर्लभ तस्वीर: इस बारे में वेदांत ने बताया कि बीते 1 महीने से वह लगातार धूमकेतु की लोकेशन को ट्रैक कर रहे थे और हर दिन अलग-अलग समय पर टेलिस्कोप के जरिए इसे आसमान में ढूंढने का प्रयास कर रहे थे. लेकिन शुरू में उनकी कोशिश नाकामयाब रही. फिर उन्होंने बीते 28 जनवरी को सुबह लगभग 5:30 बजे धूमकेतु की लोकेशन को ट्रैक की और अपने छत पर टेलिस्कोप में मोबाइल जोड़कर इसकी तस्वीरें खींचने की कोशिश की. इस दौरान सफलता मिली और उन्होंने बेहद साफ धूमकेतु की तस्वीरें निकाली.

एस्ट्रोनॉट फोटोग्राफर बनना चाहते हैं वेदांत: वेदांत बताते हैं कि एस्ट्रोनॉमी में काफी रुचि है और इसी को देखते हुए बीते दिनों उन्होंने अपनी पॉकेट मनी से टेलिस्कोप दिल्ली से खरीदा था. बड़े होकर के उनका सपना एस्ट्रोनॉट फोटोग्राफर बनने का है. इसलिए वह हमेशा एस्ट्रोनॉट से जुड़ी हुई वेबसाइटों को खंगालते रहते हैं. इसी के तहत उन्हें इस हरे धूमकेतु के दिखने की जानकारी मिली थी और वह बीते 1 महीने से इस के प्रयास में जुटे हुए थे.

50 हजार साल बाद दिखा ये कॉमेट: गौरतलब हो कि धूमकेतू की पहचान पिछले वर्ष हुई थी. इसके हरे रंग के कारण खगोलशास्त्री इस पर अध्ययन कर रहे हैं. बीएचयू के खगोल वैज्ञानिक प्रोफेसर अभय कुमार ने बताया कि यह एक दुर्लभ धूमकेतु है. यह लगभग 50000 साल बाद देखने को मिला है. उन्होंने बताया कि इसका आर्बेट अब तक के धूमकेतु में सबसे बड़ा है. पृथ्वी के निर्माण में इस तरीके के धूमकेतु का बड़ा महत्व होता है.

हरे रंग का है धूमकेतु: प्रो. अभय के अनुसार धूमकेतु हरा रंग सोलर विंड और कॉमेट के पत्थरों के टकराने की वजह से बनता है. जब यह पत्थर टकराते हैं तो कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है. जिसके वजह से हरा रंग नजर आता है.

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