देहरादून: हाल ही में भारत सरकार की काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च संस्थान की देहरादून में मौजूद आईआईपी लैब में पहली दफा दुनिया के सामने जैविक इंधन को इंट्रोड्यूस किया गया है. साथ ही जैविक ईंधन की हमारे पर्यावरण और भविष्य के लिए उपयोगिता को भी बताया गया. इसी कड़ी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम यानी देहरादून आईआईपी में बायो जेट फ्यूल का एक बेहतरीन कांसेप्ट सामने आया जिस पर सीएसआइआर आईआईपी ने लंबे शोध के बाद इसे व्यवसाय के स्तर पर धरातल पर उतारा.
देहरादून आईआईपी में डिवेलप हुआ है बायो जेट फ्यूल: तमाम औपचारिकताओं के बाद देहरादून आईआईपी में डिवेलप किए गए बायो जेट फ्यूल का इस्तेमाल आज भारतीय वायुसेना के विमानों में सफलतम रूप से किया जा रहा है, तो वहीं बायो जेट फ्यूल को लेकर अब विदेशी एविएशन एजेंसियां भी अपनी रुचि दिखा रही है. इसी को देखते हुए यूरोपीय यूनियन-एशिया एविएशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (EU-SA APP) के तहत मंगलवार को देहरादून आईआईपी में यूरोप संघ के 7 देश और साउथ एशिया के 6 देशों से एविएशन के प्रतिनिधियों ने एविएशन फ्यूल में किए गए इस इनोवेशन के इस्तेमाल और संभावनाओं पर चर्चा करते हुए वर्किंग टू फोस्टर सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल्स (SAF) कार्यशाला का आयोजन किया गया.
यूरोप और साउथ एशिया के कई देश एक साथ कर रहे काम: इस कार्यक्रम में EASA (यूरोपीय यूनियन एविएशन सेफ्टी एजेंसी) की तरफ से प्रतिनिधित्व कर रहे कालोर्स फर्नांडिस ने ईटीवी से बातचीत करते हुए कहा कि इस प्रोग्राम के तहत यूरोप और साउथ एशिया के कई देश एक साथ मिलकर सुरक्षा और नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यूरोपीय संघ और भारत के बीच विमानन के क्षेत्र में हाल के वर्षों में EU-SA APP प्रोजेक्ट के तहत हवाई संपर्क और सुरक्षा मानकों को बढ़ाने और विमानन उद्योग को अधिक टिकाऊ बनाने की दिशा में काम किया गया है.
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कालोर्स फर्नांडिस ने बताया कि विमानन उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसका पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है. EU-SA APP II परियोजना ने दक्षिण एशिया में सभी बड़े स्टेक होल्डर के साथ मिलकर इस प्रभाव से निपटने के लिए ग्लोबल स्ट्रेटजी का विश्लेषण किया है, साथ ही इस पर भविष्य के लिए रणनीतियों के बारे में सबसे सटीक जानकारी देने के लिए पहल की है.
बायो जेट फ्यूल पर पूरी दुनिया दिखा रही रुचि: वहीं, इस मौके पर सीएसआईआर-आईआईपी देहरादून के निदेशक डॉक्टर अंजन रे ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि आईआईपी देहरादून में किए गए प्रयोग के बाद बायोजेट फ्यूल को अपार संभावनाएं और सफलता मिली है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से देहरादून आईआईपी से पहली दफा भारतीय सेना के विमानों ने बायो जेट फ्यूल के जरिए उड़ान भरी उसने निश्चित तौर से पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है. इस शोध के बाद इसे किस तरह से अब व्यवसायिक प्लेटफार्म पर उतारा जाना है इसको लेकर के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा की जा रही है. पॉलिसी मेकर्स और स्टेकहोल्डर के साथ इस पर गहन चर्चा हो रही है, साथ ही इसकी भविष्य की जरूरतों को देखते हुए भी इसकी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिस तरह से आज पर्यावरण को सुरक्षित रखना एक बड़ा विषय बना हुआ है, उस दिशा में बायो जेट फ्यूल एक बड़ी समस्या का समाधान साबित होने जा रहा है.
क्या होता है बायो जेट फ्यूल और कैसे बनता है? इस शोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक सलीम अख्तर फारुकी ने बताया कि आज ज्यादातर हम जीवाश्म ईंधन यानी फॉसिल फ्यूल पर आधारित है, जो जलकर वातावरण में इस तरह की कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है जिसे रिसाइकल करना है या फिर उसे पेड़ पौधों के द्वारा अवशोषित करना मुश्किल होता है. यह कार्बन डाइऑक्साइड हमारे वातावरण में बनी रहती है. इससे अलग बायोफ्यूल जैविक पदार्थों से बनाए जाते हैं यह खासतौर से खराब तेल, वसा और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पेड़ पौधों से तैयार किया जाता है और इसकी कई अलग-अलग विधियां हैं.
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बायोफ्यूल पर लंबे समय से शोध: उन्होंने बताया कि आईआईपी देहरादून में बायोफ्यूल पर लंबे समय से शोध किया जा रहा है और इसी का एक सेगमेंट बायो जेट फ्यूल भी है जो आने वाले भविष्य में एक बड़ा कारगर शोध साबित होने जा रहा है. देहरादून आईआईपी में इस्तेमाल किए हुए खराब तेल का रिफाइनरी में प्रोसेस कर के 30 से 50 फीसदी की दर से बायो जेट फ्यूल तैयार किया जाता है, जिसका इस्तेमाल भारतीय वायुसेना के विमानों में किया जा रहा है.
पूरे विश्व में इस समय कार्बन उत्सर्जन एक सबसे बड़ी वैश्विक समस्या है. इसी को देखते हुए कोर्सिया सोसायटी द्वारा भारत देश पर कार्बन उत्सर्जन करने वाले विमानों को लेकर खास तौर से यूरोपियन देशों में बेहद दबाव रहता था, तो वहीं ऐसे विमानों से भारी-भरकम कार्बन टैक्स भी वसूला जाता था. लिहाजा बायो जेट फ्यूल से कार्बन उत्सर्जन कम होने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है. वैज्ञानिक सलीम अख्तर फारूकी बताते हैं कि भारत देश में विकसित किए गए बायोजेट फ्यूल से जहां एक तरफ भारत की छवि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन की दिशा में बेहतर हुई है, तो वहीं देश के नेट जीरो एमिशन की दिशा में वर्ष 2070 तक कार्बन के नेट जीरो एमिशन के लक्ष्य को देखते हुए बायो जेट फ्यूल एक बड़ा कदम साबित होने जा रहा है.