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किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे, जानिए खास बातें - किसान आंदोलन की शुरुआत

किसान आंदोलन का आज 100वां दिन है मगर सरकार और किसानों के बीच की तकरार अभी भी जारी है. किसानों की मांग है कि जब तक कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा. जानिए किसान आंदोलन की खास बातें...

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Published : Mar 5, 2021, 5:34 PM IST

Updated : Mar 5, 2021, 7:41 PM IST

नई दिल्ली : किसान आंदोलन का आज 100वां दिन है. किसान सौ दिनों से दिल्ली सीमा पर तीन कृषि कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसान आंदोलन को रोकने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर भारी पुलिस बल की तैनाती की गई. बॉर्डर पर कड़े बैरिकेडिंग के अलावा, रैली को रोकने के लिए वॉटर कैनन का भी इस्तेमाल हुआ. पुलिस बल को आंदोलन उग्र होने पर लाठी चार्ज का भी सहारा लेना पड़ा.

किसानों ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर सभी मोर्चों का सामना करने के बाद पंजाब और हरियाणा से लगभग तीन से चार लाख किसानों के साथ वहीं डेरा डाल लिया और सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़ गए. आंदोलन के दूसरे और तीसरे सप्ताह में बड़े पैमाने पर पश्चिमी-यूपी और राजस्थान के किसान भी अपना समर्थन देने के लिए दिल्ली बॉर्डर कूच करने लगे. किसानों ने दिल्ली के टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर ' कृषि कानूनों' को 'काला कानून' बताते हुए किसानों के समर्थन में मोर्चा खोल गया.

'संयुक्त किसान मोर्चा' का गठन

इससे पहले कि किसान संगठन सरकार के साथ कृषि कानून पर अपनी मांग को लेकर बातचीत करने के लिए जाते, उन्होंने चालीस अलग-अलग किसान यूनियन नेताओं के साथ 'संयुक्त किसान मोर्चा' (SKM) बना लिया. उन्होंने सरकार के प्रस्ताव का भी खंडन किया, जिसमें केवल 30 नेता शामिल थे. किसानों और सरकार के बीच पहले दिन ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि उनकी बातचीत के बीच कोई अन्य राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा.

राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन

इस विरोध को पंजाब और हरियाणा की महिलाओं का भी बड़ा समर्थन मिला क्योंकि किसान संयुक्त मोर्चा ने आंदोलन में महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करने के लिए महिला नेताओं को भी शामिल किया. इस बीच भारत के दक्षिणी और पश्चिमी भाग विशेष रूप से बेंगलुरु, मुंबई और तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल से बड़े पैमाने पर रैलियां देखी गईं, अलग-अलग प्रदेशों से सिंघु बॉर्डर पर लगभग 10,800 किसान पहुंचे.

सरकार और किसान नेताओं के बीच वार्ता

सरकार और किसान नेताओं के बीच 11 दौर की वार्ता हुई, जो निर्णायक साबित नहीं हो सका. सरकार उनकी दो मांगों को मानने के लिए सहमत हो गई. लेकिन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की किसानों की मुख्य मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. केंद्र ने उन्हें कई बार पांच सदस्यीय समिति बनाने का विकल्प दिया, लेकिन किसानों ने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे समिति के सदस्यों पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि समिति सिर्फ इसमें संशोधन की सिफारिश करेगी और हम कृषि कानून को पूरी तरह से निरस्त चाहते हैं.

सोशल मीडिया अभियान

किसानों के नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने आधिकारिक पेज बनाकर एक सुनियोजित तरीके से डिजिटल अभियान चलाया. इस अभियान में छात्र संघ, वकील, सरकार विरोधी पार्टियां और सेलिब्रिटी के साथ आम जनता ने किसानों को अपना समर्थन दिया. भारत में पहली बार सोशल मीडिया एक समानांतर मीडिया की तरह उभरा. जिसकी मदद से किसानों का यह विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन कई देशों में भी चर्चा का विषय बना.

ट्विटर वार

आंदोलन के दौरान राजनीतिक नेताओं और भारतीय हस्तियों के बीच ट्विटर पर झगड़े भी देखने को मिले. सबसे पहले पंजाब और हरियाणा के सीएम के बीच ट्विटर पर जंग देखने को मिला. दूसरा सबसे मजेदार और दिलचस्प ट्वीट वार कंगना रनौत और दिलजीत दोसांझ के बीच हुआ. कंगना ने एक महिला प्रदर्शनकारीयों को लेकर बहुत ही तीखा ट्वीट किया तब दिलजीत दोसांझ ने कंगना को एक के बाद एक कई ट्वीट किए.

पंजाबी सेलेब्रिटीज कलाकार की भूमिका

दिलजीत दोसांझ, अम्मी विर्क, रंजीत बावा, गिप्पी ग्रेवाल, बब्बल राय, बी जय रंधावा, निमरत खैरा, हरभजन मान, हार्फ चेम्मा, बबलू मान, तरसेम जस्सर जैसे अभिनेता और गायक सहित किसानों के आंदोलन का समर्थन किया और किसानों के समर्थन में कई गीत गाए. वें प्रदर्शन स्थलों पर भी गए और किसानों के साथ खड़े रहे.

न्यायपालिका की भूमिका

आंदोलन के बीच कुछ एक्टिविस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की ताकि साइट के खिलाफ कार्रवाई की जा सके और कानूनों की संवैधानिक पुष्टि की जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आखिरी आदेश में अगले आदेश तक कानूनों पर रोक लगाई और चार सदस्यों की एक समिति बनाई, जिसका किसानों ने विरोध किया. सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को प्रदर्शन करने की अनुमति तो दी लेकिन साइट के संदर्भ में सवाल भी पुछा. किसानों के सभी चार नेता कानून के साथ थे इसलिये किसानों ने जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का विरोध किया तो किसान आंदोलन से भाकियू नेता ने अपना नाम वापस ले लिया.

लाल किले में गुंडागर्दी

किसानों का आंदोलन 2 महीने तक तो लगातार शांतिपूर्ण ढंग से चला, लेकिन 26 जनवरी 2021 की खौफनाक घटना ने किसानों के आंदोलन पर कई प्रश्न खड़े कर दिये. किसान यूनियनों ने कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के अंदर एक विशाल ट्रैक्टर रैली का आह्वान किया लेकिन रैली के दिन कुछ अज्ञात बदमाशों और गुंडों ने रैली में सुनियोजित तरीके से लाल किले के अंदर जाकर राष्ट्रीय विरासत और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. कुछ लोग साइड पोल पर चढकर झंडा फहराया. इस घटना में दीप सिद्धू और लक्खा सदाना को मुख्य आरोपी बनाया गया.

इसके बाद और महापंचायतें

इस घटना के बाद आंदोलन कर रहे किसान पर पुलिस की टीम कड़ी निगरानी बरतने लगी है. सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर पर ठोस बैरिकेडिंग कर रखी है. लाल किला घटना के बाद कई किसानों को यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के विभिन्न स्थानों में, मुजफ्फरनगर में कई महापंचायतों को बुलाया गया था. इस कड़ी में में कई राजनीतिक नेता जैसे सचिन पायलट और प्रियंका गांधी ने भी राजस्थान और यूपी में किसानों के बीच महापंचायतें कीं.

राजनीतिक रूप से क्या हुआ?

किसान आंदोलन के दौरान अब तक लगभग 200 से अधिक किसानों की मृत्यु हो गई है. आंदोलन के दौरान कई राजनीतिक गतिविधियां भी सामने आई हैं. पंजाब सरकार ने विरोध के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को 5 लाख रुपये का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. छह राज्यों (पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल) ने कृषि कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. आंदोलन के दौरान कृषि कानून वापस लेने के लिए विपक्षी दल सरकार पर निशाना साधा. विपक्षी दल इस कानून को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति को ज्ञापन भी सौंपने गये थे. दूसरी तरफ लोक सभा में, बजट सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं द्वारा इन बिलों के खिलाफ आवाज भी उठाया गया, इस विरोध का सबसे पहला प्रभाव पंजाब शहरी निकाय चुनाव में देखा गया, जहाँ भाजपा अपने मुख्य चुनावी निगमों और परिषदों में हार गई.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कसा शिकंजा

किसान आंदोलन के दौरान बहुत सारे कार्यकर्ता और पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन दिशा रवि, नोडेप कौर और मनदीप पूनिया की गिरफ्तारी बेहद चौंकाने वाली, डरावनी, अप्रत्याशित, अनैतिक और दिखावा ही लगता है. हालांकि इन सभी को छोड़ दिया गया था. लेकिन पुलिस पर उनका यौन शोषण और उनके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा. किसानों के समर्थन में अपनी बात बोलने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर और वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई.

संवैधानिक वैधता

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एच.डी. ढिल्लन (1972) के अनुसार, संसदीय कानूनों की संवैधानिकता को केवल दो आधारों पर चुनौती दी जा सकती है - पहला यह कि विषय राज्य सूची में हो, दूसरा यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो. क्या कृषि कानून पर संसदीय शक्तियां संघवाद और संविधान की भावना के अनुरूप हैं. क्या संसद के पास कृषि बाजारों और भूमि पर कानून बनाने की शक्ति है. क्या इन कानूनों को लागू करने से पहले संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए था.

ग्राउंड जीरो कंडीशन

16 राज्यों में 5,000 से अधिक किसानों के बीच 'गांव कनेक्शन' द्वारा किए गए एक सर्वे ने रोचक तथ्यों को उजागर किया है. उन सर्वेक्षणों में बड़ा हिस्सा सीमांत किसानों का है और केवल 28 प्रतिशत मध्यम और बड़े किसान हैं. सर्वेक्षण में शामिल 52 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वें तीनों नए कृषि कानून के खिलाफ हैं और 35 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वें कृषि कानून का समर्थन करते हैं.

नई दिल्ली : किसान आंदोलन का आज 100वां दिन है. किसान सौ दिनों से दिल्ली सीमा पर तीन कृषि कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसान आंदोलन को रोकने के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर भारी पुलिस बल की तैनाती की गई. बॉर्डर पर कड़े बैरिकेडिंग के अलावा, रैली को रोकने के लिए वॉटर कैनन का भी इस्तेमाल हुआ. पुलिस बल को आंदोलन उग्र होने पर लाठी चार्ज का भी सहारा लेना पड़ा.

किसानों ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर सभी मोर्चों का सामना करने के बाद पंजाब और हरियाणा से लगभग तीन से चार लाख किसानों के साथ वहीं डेरा डाल लिया और सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़ गए. आंदोलन के दूसरे और तीसरे सप्ताह में बड़े पैमाने पर पश्चिमी-यूपी और राजस्थान के किसान भी अपना समर्थन देने के लिए दिल्ली बॉर्डर कूच करने लगे. किसानों ने दिल्ली के टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर ' कृषि कानूनों' को 'काला कानून' बताते हुए किसानों के समर्थन में मोर्चा खोल गया.

'संयुक्त किसान मोर्चा' का गठन

इससे पहले कि किसान संगठन सरकार के साथ कृषि कानून पर अपनी मांग को लेकर बातचीत करने के लिए जाते, उन्होंने चालीस अलग-अलग किसान यूनियन नेताओं के साथ 'संयुक्त किसान मोर्चा' (SKM) बना लिया. उन्होंने सरकार के प्रस्ताव का भी खंडन किया, जिसमें केवल 30 नेता शामिल थे. किसानों और सरकार के बीच पहले दिन ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि उनकी बातचीत के बीच कोई अन्य राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा.

राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन

इस विरोध को पंजाब और हरियाणा की महिलाओं का भी बड़ा समर्थन मिला क्योंकि किसान संयुक्त मोर्चा ने आंदोलन में महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करने के लिए महिला नेताओं को भी शामिल किया. इस बीच भारत के दक्षिणी और पश्चिमी भाग विशेष रूप से बेंगलुरु, मुंबई और तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल से बड़े पैमाने पर रैलियां देखी गईं, अलग-अलग प्रदेशों से सिंघु बॉर्डर पर लगभग 10,800 किसान पहुंचे.

सरकार और किसान नेताओं के बीच वार्ता

सरकार और किसान नेताओं के बीच 11 दौर की वार्ता हुई, जो निर्णायक साबित नहीं हो सका. सरकार उनकी दो मांगों को मानने के लिए सहमत हो गई. लेकिन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की किसानों की मुख्य मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. केंद्र ने उन्हें कई बार पांच सदस्यीय समिति बनाने का विकल्प दिया, लेकिन किसानों ने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे समिति के सदस्यों पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि समिति सिर्फ इसमें संशोधन की सिफारिश करेगी और हम कृषि कानून को पूरी तरह से निरस्त चाहते हैं.

सोशल मीडिया अभियान

किसानों के नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने आधिकारिक पेज बनाकर एक सुनियोजित तरीके से डिजिटल अभियान चलाया. इस अभियान में छात्र संघ, वकील, सरकार विरोधी पार्टियां और सेलिब्रिटी के साथ आम जनता ने किसानों को अपना समर्थन दिया. भारत में पहली बार सोशल मीडिया एक समानांतर मीडिया की तरह उभरा. जिसकी मदद से किसानों का यह विरोध प्रदर्शन पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन कई देशों में भी चर्चा का विषय बना.

ट्विटर वार

आंदोलन के दौरान राजनीतिक नेताओं और भारतीय हस्तियों के बीच ट्विटर पर झगड़े भी देखने को मिले. सबसे पहले पंजाब और हरियाणा के सीएम के बीच ट्विटर पर जंग देखने को मिला. दूसरा सबसे मजेदार और दिलचस्प ट्वीट वार कंगना रनौत और दिलजीत दोसांझ के बीच हुआ. कंगना ने एक महिला प्रदर्शनकारीयों को लेकर बहुत ही तीखा ट्वीट किया तब दिलजीत दोसांझ ने कंगना को एक के बाद एक कई ट्वीट किए.

पंजाबी सेलेब्रिटीज कलाकार की भूमिका

दिलजीत दोसांझ, अम्मी विर्क, रंजीत बावा, गिप्पी ग्रेवाल, बब्बल राय, बी जय रंधावा, निमरत खैरा, हरभजन मान, हार्फ चेम्मा, बबलू मान, तरसेम जस्सर जैसे अभिनेता और गायक सहित किसानों के आंदोलन का समर्थन किया और किसानों के समर्थन में कई गीत गाए. वें प्रदर्शन स्थलों पर भी गए और किसानों के साथ खड़े रहे.

न्यायपालिका की भूमिका

आंदोलन के बीच कुछ एक्टिविस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की ताकि साइट के खिलाफ कार्रवाई की जा सके और कानूनों की संवैधानिक पुष्टि की जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आखिरी आदेश में अगले आदेश तक कानूनों पर रोक लगाई और चार सदस्यों की एक समिति बनाई, जिसका किसानों ने विरोध किया. सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को प्रदर्शन करने की अनुमति तो दी लेकिन साइट के संदर्भ में सवाल भी पुछा. किसानों के सभी चार नेता कानून के साथ थे इसलिये किसानों ने जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का विरोध किया तो किसान आंदोलन से भाकियू नेता ने अपना नाम वापस ले लिया.

लाल किले में गुंडागर्दी

किसानों का आंदोलन 2 महीने तक तो लगातार शांतिपूर्ण ढंग से चला, लेकिन 26 जनवरी 2021 की खौफनाक घटना ने किसानों के आंदोलन पर कई प्रश्न खड़े कर दिये. किसान यूनियनों ने कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के अंदर एक विशाल ट्रैक्टर रैली का आह्वान किया लेकिन रैली के दिन कुछ अज्ञात बदमाशों और गुंडों ने रैली में सुनियोजित तरीके से लाल किले के अंदर जाकर राष्ट्रीय विरासत और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. कुछ लोग साइड पोल पर चढकर झंडा फहराया. इस घटना में दीप सिद्धू और लक्खा सदाना को मुख्य आरोपी बनाया गया.

इसके बाद और महापंचायतें

इस घटना के बाद आंदोलन कर रहे किसान पर पुलिस की टीम कड़ी निगरानी बरतने लगी है. सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर पर ठोस बैरिकेडिंग कर रखी है. लाल किला घटना के बाद कई किसानों को यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के विभिन्न स्थानों में, मुजफ्फरनगर में कई महापंचायतों को बुलाया गया था. इस कड़ी में में कई राजनीतिक नेता जैसे सचिन पायलट और प्रियंका गांधी ने भी राजस्थान और यूपी में किसानों के बीच महापंचायतें कीं.

राजनीतिक रूप से क्या हुआ?

किसान आंदोलन के दौरान अब तक लगभग 200 से अधिक किसानों की मृत्यु हो गई है. आंदोलन के दौरान कई राजनीतिक गतिविधियां भी सामने आई हैं. पंजाब सरकार ने विरोध के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को 5 लाख रुपये का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. छह राज्यों (पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल) ने कृषि कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. आंदोलन के दौरान कृषि कानून वापस लेने के लिए विपक्षी दल सरकार पर निशाना साधा. विपक्षी दल इस कानून को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति को ज्ञापन भी सौंपने गये थे. दूसरी तरफ लोक सभा में, बजट सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं द्वारा इन बिलों के खिलाफ आवाज भी उठाया गया, इस विरोध का सबसे पहला प्रभाव पंजाब शहरी निकाय चुनाव में देखा गया, जहाँ भाजपा अपने मुख्य चुनावी निगमों और परिषदों में हार गई.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कसा शिकंजा

किसान आंदोलन के दौरान बहुत सारे कार्यकर्ता और पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन दिशा रवि, नोडेप कौर और मनदीप पूनिया की गिरफ्तारी बेहद चौंकाने वाली, डरावनी, अप्रत्याशित, अनैतिक और दिखावा ही लगता है. हालांकि इन सभी को छोड़ दिया गया था. लेकिन पुलिस पर उनका यौन शोषण और उनके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा. किसानों के समर्थन में अपनी बात बोलने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर और वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई.

संवैधानिक वैधता

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एच.डी. ढिल्लन (1972) के अनुसार, संसदीय कानूनों की संवैधानिकता को केवल दो आधारों पर चुनौती दी जा सकती है - पहला यह कि विषय राज्य सूची में हो, दूसरा यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो. क्या कृषि कानून पर संसदीय शक्तियां संघवाद और संविधान की भावना के अनुरूप हैं. क्या संसद के पास कृषि बाजारों और भूमि पर कानून बनाने की शक्ति है. क्या इन कानूनों को लागू करने से पहले संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए था.

ग्राउंड जीरो कंडीशन

16 राज्यों में 5,000 से अधिक किसानों के बीच 'गांव कनेक्शन' द्वारा किए गए एक सर्वे ने रोचक तथ्यों को उजागर किया है. उन सर्वेक्षणों में बड़ा हिस्सा सीमांत किसानों का है और केवल 28 प्रतिशत मध्यम और बड़े किसान हैं. सर्वेक्षण में शामिल 52 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वें तीनों नए कृषि कानून के खिलाफ हैं और 35 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वें कृषि कानून का समर्थन करते हैं.

Last Updated : Mar 5, 2021, 7:41 PM IST
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