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उत्तराखंड : मुफ्त बिजली के वादों में कितना दम, कितनी कीमतें होंगी कम? जानें

उत्तराखंड में ऊर्जा विभाग पिछले कई सालों से लगातार घाटे में डूबता जा रहा है. ऐसे में मुफ्त बिजली दिए जाने पर ऊर्जा विभाग के ऊपर सालाना करीब 600 करोड़ रुपए का भार आएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं को सरकार मुफ्त में बिजली दे पाएगी या ये महज चुनावी स्टंट साबित होगा.

मुफ्त बिजली
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Published : Jul 11, 2021, 12:00 AM IST

देहरादून : ऊर्जा विभाग की कमान संभालने के बाद अधिकारियों की पहली बैठक में ही हरक सिंह रावत ने 100 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली देने की बात कही है. यही नहीं, 200 यूनिट तक बिजली का इस्तेमाल करने वाले लोगों को कुल बिल का 50 फीसदी बिल जमा करना होगा. ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या राज्य सरकार के पास इतने संसाधन मौजूद हैं कि वो प्रदेश की जनता को मुफ्त बिजली उपलब्ध करवा सकती है? या फिर ये चुनावी साल में जनता को लुभाने के लिए सिर्फ एक चुनावी स्टंट तो नहीं है.

दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal visit to Uttarakhand) चुनावी दौरे पर उत्तराखंड आ रहे हैं. सीएम केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) उत्तराखंड में फ्री बिजली का मुद्दा (free electricity issue in uttarakhand) उठाएंगे. सीएम केजरीवाल के उत्तराखंड दौरे और फ्री बिजली देने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) का भी बयान आया है. उन्होंने कहा है कि दिल्ली के सीएम केजरीवाल के लिए ये चुनावी मुद्दा हो सकता है, लेकिन हम जनता के लिए जो सबसे अच्छा काम हो सकता है वो करेंगे.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) से जब पूछा गया कि आम आदमी पार्टी का मुफ्त बिजली का वादा क्या उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी के लिए चुनौती हो सकता है. इस पर उन्होंने कहा कि वे केवल चुनाव को ध्यान में रखकर काम नहीं कर रहे हैं. हमारे सामने ये मुद्दा कोई चुनौती नहीं है. उत्तराखंड की शीर्ष तक विकास ही एकमात्र चुनौती है. बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami visit to delhi) दिल्ली दौरे पर हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बता देंं कि उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के रूप में जाना जाता है, लेकिन हालात यह हैं कि गर्मियों और मॉनसून के समय में इस ऊर्जा प्रदेश को अन्य जगहों से महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ती है. आलम यह है कि कई बार पीक टाइम में 10 रुपये प्रति यूनिट बिजली भी ऊर्जा विभाग को मजबूरी में खरीदनी पड़ती है. ऐसे में ऊर्जा मंत्री का प्रदेश के करीब 16 लाख लोगों को मुफ्त में बिजली देने का वादा क्या वास्तव में संभव हो पाएगा? क्योंकि ऊर्जा विभाग पिछले कई सालों से लगातार घाटे में डूबता जा रहा है. ऐसे में मुफ्त बिजली दिए जाने पर ऊर्जा विभाग के ऊपर सालाना करीब 600 करोड़ रुपए का भार आएगा.

उत्तराखंड में 24,551 मेगावाट क्षमता वाली जल विद्युत परियोजनाएं मौजूद हैं. इनमें से 3,993 मेगावाट निर्माणाधीन के तहत, 2,374 मेगावाट डीपीआर अनुमोदित के तहत, 7,590 मेगावाट सर्वे एवं इन्वेस्टिगेशन के अंतर्गत, 6,634 मेगावाट की परियोजना के साथ ही 3,959 मेगावाट की परियोजनाएं रुकी हुई हैं. इसके चलते यूजेवीएनएल (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड) ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक 4,091.21 एमडीयू का उत्पादन किया था.

वहीं, ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश है, लेकिन पिछले 20 सालों से ऊर्जा प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाए रखने के लिए जो कार्य किए जाने थे वह कार्य नहीं किए गए. पर्यावरण क्लीयरेंस के साथ ही कई एनजीओ की वजह से इन कामों में दिक्कतें आई. ऐसे में अब प्रदेश को पूर्ण रूप से ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए पहल की जाएगी. इसकी शुरुआत घोषणा के माध्यम से कर दी गई है, जिसका फायदा प्रदेश के 16 लाख ग्राहकों को होगा.

हरक सिंह रावत ने कहा राज्य सरकार पर ढाई सौ-चार सौ करोड़ रुपए से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि इससे प्रदेश के उन गरीब लोगों का भला होगा, उनके घर में मुफ्त में रोशनी आ सकेगी. ऊर्जा मंत्री ने कहा कोरोना संक्रमण की वजह से दिक्कतें जरूर आई हैं, लेकिन लोगों को मुफ्त बिजली दिए जाने की जो घोषणा की गई है, वह सिर्फ कोविड-19 लिए नहीं है, बल्कि हमेशा के लिए रहेगी.

हरक सिंह रावत ने कहा कि यह जो प्रस्ताव लाया गया है, यह प्रस्ताव सिर्फ आगामी 5-6 महीनों के लिए नहीं है बल्कि यह प्रस्ताव, हमेशा के लिए है. जब तक लोगों का जीवन स्तर उठ नहीं जाता, तब तक लोगों को मुफ्त में बिजली दी जाएगी. हरक सिंह रावत के अनुसार अगर कोई 200 यूनिट से अधिक बिजली का इस्तेमाल कर रहा है, इसका मतलब उसका जीवन स्तर ऊंचा है. उससे नीचे जो लोग उपयोग कर रहे हैं, उनका जीवन स्तर काफी नीचे है, जिन्हें उठाने की जरूरत है.

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि इस प्रस्ताव के बन जाने के बाद ऊर्जा विभाग पर सालाना करीब 250 से 400 करोड़ रुपए का भार पड़ेगा. ऊर्जा विभाग के दो निगम पिटकुल और यूजेवीएनएल काफी मुनाफे में चल रहे हैं. ऐसे में ऊर्जा विभाग इतना सक्षम है कि मुनाफे में चल रहे दोनों कॉरपोरेशन की सहायता से लोगों को मुफ्त बिजली दे सकता है. अगर फिर भी बजट की कमी होगी तो सरकार से मदद ली जाएगी.

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि सरकार ने जो फैसला लिया है, वह किसी से कॉपी नहीं किया गया है, बल्कि ये खुद से लिया गया निर्णय है. उन्होंने कहा यह फैसला काफी पहले ही ले लिया जाना चाहिए था. लेकिन बड़ी भूल हो गई कि ऐसा फैसला पहले नहीं लिया गया.

पढ़ें - कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता धूमल बोले- PM मोदी का भरोसा बेटे ने मेहनत से जीता

बिजली फ्री घोषणा से राज्य सरकार पर 600 करोड़ का भार
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने पहले दिन ही ऊर्जा मंत्री का कार्यभार संभाला और फिर बिना सोचे-समझे 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की बात कर दी. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि किस मद से इसकी भरपाई की जाएगी. राज्य सरकार का राजस्व भी इतना नहीं है कि वह इसकी भरपाई कर सके. जय सिंह रावत के अनुसार अगर राज्य सरकार 100 यूनिट बिजली फ्री देती है, तो ऐसे में राज्य सरकार पर करीब 350 करोड़ रुपए का भार आएगा.

इसके साथ ही घोषणा इसकी भी की गई है कि 200 यूनिट से कम यूनिट इस्तेमाल करने वाले लोगों को 50 फीसदी की छूट होगी. ऐसे में राज्य सरकार पर भार और अधिक बढ़ जाएगा. यानी सालाना करीब 600 करोड़ रुपए का राज्य सरकार को भार वहन करना पड़ेगा.

जय सिंह रावत ने कहा कि मुफ्त और सस्ती बिजली की राजनीति बहुत ही खतरनाक है. बाद में इसका असर बिजली उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है. जहां एक ओर लोगों के बिजली के बिल को माफ करेंगे तो वहीं अन्य उपभोक्ताओं के बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी कर देंगे. अगर सरकार इसका वहन करती है तो सरकार भी जनता की जेब से ही इसे वसूलेगी. जय सिंह रावत ने कहा अगर वर्तमान राज्य सरकार ने इसे शुरू कर दिया तो आने वाली सरकारें इसे बंद नहीं कर पाएंगी. कोई भी राजनेता इसे वापस लेने का जोखिम नहीं उठाएगा.

जय सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार के इस निर्णय से भले ही आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिले, लेकिन इसका नुकसान आगामी सरकारों और आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा.

उत्तराखंड में विद्युत उत्पादन के सापेक्ष विद्युत की मांग
वित्तीय वर्ष 2015-16 में प्रदेश भर में 12,908.07 एमयू (मिलियन यूनिट) विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,942.33 एमयू ही रहा है. वहीं, वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश भर में 13,080.91 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,379.47 एमयू रहा है.

वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रदेश भर में 13,455.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,725.66 एमयू रहा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश भर में 13,842.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,663.08 एमयू रहा है.

वित्तीय वर्ष 2019-20 में प्रदेश भर में 13,852.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 5,088.88 एमयू रहा. वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक प्रदेश भर में 9,663.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4191.21 एमयू रहा.

पिछले कुछ सालों में विभाग को हुई घाटे की जानकारी
वित्तीय वर्ष 2014-15 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत विभाग को 18.64 % का नुकसान हुआ. वित्तीय वर्ष 2015-16 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 17.19 % का नुकसान हुआ. वित्तीय वर्ष 2016-17 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 15.85 % का नुकसान हुआ.

वित्तीय वर्ष 2017-18 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 16.10 %, वित्तीय वर्ष 2018-19 में 16.52 % और वित्तीय वर्ष 2019-20 में 20.44 % का नुकसान हुआ.

देहरादून : ऊर्जा विभाग की कमान संभालने के बाद अधिकारियों की पहली बैठक में ही हरक सिंह रावत ने 100 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली देने की बात कही है. यही नहीं, 200 यूनिट तक बिजली का इस्तेमाल करने वाले लोगों को कुल बिल का 50 फीसदी बिल जमा करना होगा. ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या राज्य सरकार के पास इतने संसाधन मौजूद हैं कि वो प्रदेश की जनता को मुफ्त बिजली उपलब्ध करवा सकती है? या फिर ये चुनावी साल में जनता को लुभाने के लिए सिर्फ एक चुनावी स्टंट तो नहीं है.

दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal visit to Uttarakhand) चुनावी दौरे पर उत्तराखंड आ रहे हैं. सीएम केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) उत्तराखंड में फ्री बिजली का मुद्दा (free electricity issue in uttarakhand) उठाएंगे. सीएम केजरीवाल के उत्तराखंड दौरे और फ्री बिजली देने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) का भी बयान आया है. उन्होंने कहा है कि दिल्ली के सीएम केजरीवाल के लिए ये चुनावी मुद्दा हो सकता है, लेकिन हम जनता के लिए जो सबसे अच्छा काम हो सकता है वो करेंगे.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) से जब पूछा गया कि आम आदमी पार्टी का मुफ्त बिजली का वादा क्या उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी के लिए चुनौती हो सकता है. इस पर उन्होंने कहा कि वे केवल चुनाव को ध्यान में रखकर काम नहीं कर रहे हैं. हमारे सामने ये मुद्दा कोई चुनौती नहीं है. उत्तराखंड की शीर्ष तक विकास ही एकमात्र चुनौती है. बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami visit to delhi) दिल्ली दौरे पर हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बता देंं कि उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के रूप में जाना जाता है, लेकिन हालात यह हैं कि गर्मियों और मॉनसून के समय में इस ऊर्जा प्रदेश को अन्य जगहों से महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ती है. आलम यह है कि कई बार पीक टाइम में 10 रुपये प्रति यूनिट बिजली भी ऊर्जा विभाग को मजबूरी में खरीदनी पड़ती है. ऐसे में ऊर्जा मंत्री का प्रदेश के करीब 16 लाख लोगों को मुफ्त में बिजली देने का वादा क्या वास्तव में संभव हो पाएगा? क्योंकि ऊर्जा विभाग पिछले कई सालों से लगातार घाटे में डूबता जा रहा है. ऐसे में मुफ्त बिजली दिए जाने पर ऊर्जा विभाग के ऊपर सालाना करीब 600 करोड़ रुपए का भार आएगा.

उत्तराखंड में 24,551 मेगावाट क्षमता वाली जल विद्युत परियोजनाएं मौजूद हैं. इनमें से 3,993 मेगावाट निर्माणाधीन के तहत, 2,374 मेगावाट डीपीआर अनुमोदित के तहत, 7,590 मेगावाट सर्वे एवं इन्वेस्टिगेशन के अंतर्गत, 6,634 मेगावाट की परियोजना के साथ ही 3,959 मेगावाट की परियोजनाएं रुकी हुई हैं. इसके चलते यूजेवीएनएल (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड) ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक 4,091.21 एमडीयू का उत्पादन किया था.

वहीं, ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश है, लेकिन पिछले 20 सालों से ऊर्जा प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाए रखने के लिए जो कार्य किए जाने थे वह कार्य नहीं किए गए. पर्यावरण क्लीयरेंस के साथ ही कई एनजीओ की वजह से इन कामों में दिक्कतें आई. ऐसे में अब प्रदेश को पूर्ण रूप से ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए पहल की जाएगी. इसकी शुरुआत घोषणा के माध्यम से कर दी गई है, जिसका फायदा प्रदेश के 16 लाख ग्राहकों को होगा.

हरक सिंह रावत ने कहा राज्य सरकार पर ढाई सौ-चार सौ करोड़ रुपए से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि इससे प्रदेश के उन गरीब लोगों का भला होगा, उनके घर में मुफ्त में रोशनी आ सकेगी. ऊर्जा मंत्री ने कहा कोरोना संक्रमण की वजह से दिक्कतें जरूर आई हैं, लेकिन लोगों को मुफ्त बिजली दिए जाने की जो घोषणा की गई है, वह सिर्फ कोविड-19 लिए नहीं है, बल्कि हमेशा के लिए रहेगी.

हरक सिंह रावत ने कहा कि यह जो प्रस्ताव लाया गया है, यह प्रस्ताव सिर्फ आगामी 5-6 महीनों के लिए नहीं है बल्कि यह प्रस्ताव, हमेशा के लिए है. जब तक लोगों का जीवन स्तर उठ नहीं जाता, तब तक लोगों को मुफ्त में बिजली दी जाएगी. हरक सिंह रावत के अनुसार अगर कोई 200 यूनिट से अधिक बिजली का इस्तेमाल कर रहा है, इसका मतलब उसका जीवन स्तर ऊंचा है. उससे नीचे जो लोग उपयोग कर रहे हैं, उनका जीवन स्तर काफी नीचे है, जिन्हें उठाने की जरूरत है.

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि इस प्रस्ताव के बन जाने के बाद ऊर्जा विभाग पर सालाना करीब 250 से 400 करोड़ रुपए का भार पड़ेगा. ऊर्जा विभाग के दो निगम पिटकुल और यूजेवीएनएल काफी मुनाफे में चल रहे हैं. ऐसे में ऊर्जा विभाग इतना सक्षम है कि मुनाफे में चल रहे दोनों कॉरपोरेशन की सहायता से लोगों को मुफ्त बिजली दे सकता है. अगर फिर भी बजट की कमी होगी तो सरकार से मदद ली जाएगी.

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि सरकार ने जो फैसला लिया है, वह किसी से कॉपी नहीं किया गया है, बल्कि ये खुद से लिया गया निर्णय है. उन्होंने कहा यह फैसला काफी पहले ही ले लिया जाना चाहिए था. लेकिन बड़ी भूल हो गई कि ऐसा फैसला पहले नहीं लिया गया.

पढ़ें - कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता धूमल बोले- PM मोदी का भरोसा बेटे ने मेहनत से जीता

बिजली फ्री घोषणा से राज्य सरकार पर 600 करोड़ का भार
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने पहले दिन ही ऊर्जा मंत्री का कार्यभार संभाला और फिर बिना सोचे-समझे 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की बात कर दी. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि किस मद से इसकी भरपाई की जाएगी. राज्य सरकार का राजस्व भी इतना नहीं है कि वह इसकी भरपाई कर सके. जय सिंह रावत के अनुसार अगर राज्य सरकार 100 यूनिट बिजली फ्री देती है, तो ऐसे में राज्य सरकार पर करीब 350 करोड़ रुपए का भार आएगा.

इसके साथ ही घोषणा इसकी भी की गई है कि 200 यूनिट से कम यूनिट इस्तेमाल करने वाले लोगों को 50 फीसदी की छूट होगी. ऐसे में राज्य सरकार पर भार और अधिक बढ़ जाएगा. यानी सालाना करीब 600 करोड़ रुपए का राज्य सरकार को भार वहन करना पड़ेगा.

जय सिंह रावत ने कहा कि मुफ्त और सस्ती बिजली की राजनीति बहुत ही खतरनाक है. बाद में इसका असर बिजली उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है. जहां एक ओर लोगों के बिजली के बिल को माफ करेंगे तो वहीं अन्य उपभोक्ताओं के बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी कर देंगे. अगर सरकार इसका वहन करती है तो सरकार भी जनता की जेब से ही इसे वसूलेगी. जय सिंह रावत ने कहा अगर वर्तमान राज्य सरकार ने इसे शुरू कर दिया तो आने वाली सरकारें इसे बंद नहीं कर पाएंगी. कोई भी राजनेता इसे वापस लेने का जोखिम नहीं उठाएगा.

जय सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार के इस निर्णय से भले ही आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिले, लेकिन इसका नुकसान आगामी सरकारों और आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा.

उत्तराखंड में विद्युत उत्पादन के सापेक्ष विद्युत की मांग
वित्तीय वर्ष 2015-16 में प्रदेश भर में 12,908.07 एमयू (मिलियन यूनिट) विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,942.33 एमयू ही रहा है. वहीं, वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश भर में 13,080.91 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,379.47 एमयू रहा है.

वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रदेश भर में 13,455.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,725.66 एमयू रहा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश भर में 13,842.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4,663.08 एमयू रहा है.

वित्तीय वर्ष 2019-20 में प्रदेश भर में 13,852.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 5,088.88 एमयू रहा. वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक प्रदेश भर में 9,663.00 एमयू विद्युत की मांग थी, जबकि प्रदेश में विद्युत का उत्पादन 4191.21 एमयू रहा.

पिछले कुछ सालों में विभाग को हुई घाटे की जानकारी
वित्तीय वर्ष 2014-15 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत विभाग को 18.64 % का नुकसान हुआ. वित्तीय वर्ष 2015-16 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 17.19 % का नुकसान हुआ. वित्तीय वर्ष 2016-17 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 15.85 % का नुकसान हुआ.

वित्तीय वर्ष 2017-18 में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉस के तहत 16.10 %, वित्तीय वर्ष 2018-19 में 16.52 % और वित्तीय वर्ष 2019-20 में 20.44 % का नुकसान हुआ.

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