सूरजपुर : मंदिर और देवालयों में तो आप पूजा करने के लिए अक्सर ही जाते होंगे, लेकिन सूरजपुर के खोपा धाम मंदिर में किसी देवी देवता नहीं बल्कि बकासुर नाम के दानव की पूजा होती है. यहां के लोगों की इस मंदिर में बहुत आस्था है. लोगों का मानना है कि यहां आने वाले लोगों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं. यही वजह है कि यहां केवल छत्तीसगढ़ से ही नहीं बल्कि देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.
यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए नारियल और धागा पेड़ पर बांधते हैं. दानव बकासुर का मंदिर खोपा गांव में है, इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता है.
मंदिर में बैगा जाति के लोग पूजा-पाठ का काम संभालते हैं. मंदिर में पूजा करने वाले बैगा ने बताया कि वे पिछले 23 साल से यहां पूजा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां पूजा तो सालों से हो रही है, लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है, जिसके पीछे पौराणिक कहानी है. उन्होंने कहा कि कथाओं के मुताबिक दानव बकासुर ने खोपा में स्थापित होने से पहले ही बताया था कि उनका मंदिर नहीं बनाया जाए, ताकि वे चारदीवारी में कैद होने के बजाय स्वतंत्र रह सकें.
बकासुर की पूजा के पीछे की कहानी
इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है. बताया जाता है कि बकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेड नदी में रहता था. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वहां गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगा और अपनी पूजा के लिए उसने बैगा जाति के लोगों को स्वीकृति दी. यही वजह है कि आज भी पूजा कोई पंडित नहीं बल्कि बैगा जाति के लोग ही करते हैं.
महिलाओं के लिए अलग से कुंड की व्यवस्था
यहां की पूजा की विधि बहुत ही अलग है. पहले यहां नारियल तेल और सुपारी के साथ पूजा कर अपनी मान्यता मांगते हैं और मान्यता पूरी होने पर शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. कहा जाता है इस स्थान पर महिलाओं के आने पर पाबंदी थी, लेकिन बदलते वक्त के अनुसार यहां महिलाएं भी पूजा करने पहुंचती हैं, हालांकि आज भी यहां के मुख्य कुंड में उन्हें पूजा करने की पाबंदी है और उनके लिए अलग कुंड बनाया गया है. वहीं महिलाएं यहां का प्रसाद नहीं खाती हैं.
लोग चढ़ाते हैं बकासुर को बलि
लोग यहां बकासुर को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि भी देते हैं. इस प्रसाद को घर ले जाकर बनाकर खाना मना है, बल्कि इसे खुले मैदान में ही पकाकर खाया जाता है. लोगों की आस्था है कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है, वो अधिकतम एक साल में पूरी हो जाती है.