सुकमा: जहां विकास के नाम पर नेता आज वोट मांगते हैं, जहां छत्तीसगढ़ की खूबसूरती बस ती है. जो गांव कभी बस्तर की राजनीति का केंद्र हुआ करता था, जिस गांव ने बस्तर को पहला सांसद दिया, वो बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है. हम बात कर रहे हैं सुकमा जिले के इड़जेपाल गांव की.
गांव में नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं
इस गांव से एक सांसद और दो विधायक निर्वाचित हुए थे, लेकिन न तो इस गांव की तस्वीर बदली और न ही ग्रामीणों के हालात. यहां रहने वाले लोग आज भी मुफलिसी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं.
1952 में बने थे विधायक
मुचाकी कोसा आजादी के बाद पहले आम चुनाव में 1952 में निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते थे जबकि बेटे मुचाकी देवा और वेटटी जोगा 80 के दशक में विधायक चुने गए. पूर्व सांसद मुचाकी कोसा का पूरा परिवार खपरैल और मिट्टी के मकान में रहता है. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक स्वच्छ भारत मिशन के निशान तो यहां दिखते हैं , लेकिन शौचालय का हाल देखकर आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि इस योजना का कितना लाभ इन्हें मिला है.
गांव में रहते हैं 1400 लोग
पूर्व सांसद मुचाकी कोसा के प्रपौत्र मुचाकी शंकर ने बताया कि 'सांसद और विधायक के गांव में जिस गति के साथ विकास कार्य होने चाहिए थे वो नहीं हुए'. ग्राम पंचायत में कुल दो ग्राम आश्रित हैं, जिसमें डॉन्द्रेपाल और गाडमरास शामिल हैं. यहां की कुल आबादी 1400 से अधिक है. वहीं पंचायत मुख्यालय इड़जेपाल की जनसंख्या 600 के आस-पास है. पूरे पंचायत में 740 मतदाता हैं, लोगों का कहना है कि गांव के विकास के लिए नेताओं ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया.
गांव में पेयजल की समस्या
इड़जेपाल तीन साल पहले ही सुकमा जिले में शामिल किया गया है. इसके पहले यह पंचायत बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक में आती थी. इड़जेपाल की आज सबसे बड़ी पहचान किसी और कारण से नहीं बल्कि बस्तर के पहले सांसद के गांव के रूप में ही है. गांव में पेयजल की बड़ी समस्या है. गांव तक पहुंचमार्ग जर्जर हो चुका है. कृषि प्रधान इस इलाके में सिंचाई के पर्याप्त साधन तक नहीं हैं.
विकास की बांट जोह रहा गांव
शायद इसे राजनीति की विडंबना ही कहेंगे कि जिस गांव ने जिले को सांसद और विधायक दिए आज वो गांव मुफलिसी की मार झेलते हुए जनप्रतिनिधियों से विकास की बांट जोह रहा है.